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कुमाउनी भाषा का पहला ताम्रपत्र

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ललित तुलेरा गरूड़ बागेश्वर (उत्तराखंड) मो.- 7055574602 ई.मेल-tulera.lalit@gmail.com   पु रातत्वविद डॉ. मदन चंद्र भट्ट (पिथौरागढ़) का कुमाउनी की प्रसिद्ध मासिक पत्रिका ‘ पहरू ’ के अप्रैल 2009 अंक में प्रकाशित लेख ‘ कुमाउनी भाषाक पैंल तामपत्र’ के अनुसार कुमाउनी का प्रथम ऐतिहासिक दस्तावेज़ लोहाघाट (चंपावत) के व्यापारी श्री रेवाधर जुकारिया के संग्रह में दस पंक्तियों का एक ताम्रपत्र के रूप में मिलता है। इस लेख में डॉ. भट्ट लिखते हैं कि इस ताम्रपत्र में जिस कुमाउनी भाषा का प्रयोग है वह 1790 ई. तक राजभाषा रही। इस ताम्रपत्र के अनुसार वे कुमाउनी के इतिहास को तीन युगों में वर्गीकृत करते हैं-  १. पूर्व राजभाषा युग-  व्यक्तियों और ज़मीन के नाम संस्कृत के ताम्रपत्रों से पता चलता है।  २. राजभाषा युग- (989 ई.- 1780 ई.)  ३.  लोकभाषा युग- 1790 ई. से आज तक।    इसी ताम्रपत्र का उल्लेख ताराचंद्र त्रिपाठी जी (नैनीताल) में अपनी पुस्तक ‘ मध्य हिमालय भाषा, लोक और प्राचीन स्थान नाम’ के पृष्ठ 5 में भी किया है। इस ताम्रपत्र का वर्णन डॉ. मदन चंद्र भट्ट जी की पुस्तक ‘ कुमा...

कुमाउनी किलै पढ़न-लेखन चैं?

डॉ. शेर सिंह बिष्ट  से.नि. प्राध्यापकः हिंदी विभाग  कुमाऊँ वि.वि.परिसर, अल्मोड़ा कुमाउनीयोंकि  असल मातृभाषा कुमाउनी छु। चंद शासन काल में कुमाउनी याँकि राजभाषा लै छी। येक प्रमाण वी बखता्क ताम्रपत्र और सरकारि अभिलेख छन। सरकारि अभिलेखोंक लेख्वार जादातर संस्कृता्क जानकार पंडित लोग हुँछी, ये लिजी वी बखतकि कुमाउनी भाषा संस्कृतनिष्ठ कुमाउँनी छु। चंद राजोंलि कुमाउँनी कैं भौत मान-सम्मान दे। इतिहास यो बातक गवाह छु कि रा्ज लोग आते रूनी और जाते रूनी। शासन-तंत्र लै बदलते रूँछ, पर भाषा आसानिक साथ न बदलनि। कुमाऊँकि अगर बात करनू तो जब  बटि कुमाऊँ में बसासत शुरू भै हुनेलि, तबै बटि कुमाउँनी लै प्रचलन में ऐ हुनेलि। किलैकी क्वे लै मानव समाज बिन भाषाक न है सकन।  कुमाउँनिक मूलरूप याँक शिलपकारोंकि बोलि-भा्ष में मौजूद छु। बाद में जाँ-जाँ बै, जो-जो जातिक लोग आते रई, उनरि भाषाक शब्द लै वीमें जुड़ते गई। योई कारण छु कि कुमाउँनी में एक अर्थकि लिजी एक है जादा समानार्थी शब्द पाई जानी। जसिक ‘मक्का’ कैं कती ‘घ्वग’ कूनी, तो कती ‘काकुनि’ और कती ‘जुन्या्ल’। या्स सैकड़ों शब्द छन। कई राजनीतिक और सांस्...