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कुमाउनी सिनेमा का इतिहास HISTORY OF KUMAUNI CINEMA

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● ललित तुलेरा tulera.lalit@gmail.com   दु नी में फिलमोंकि शुरूवात 1895 बै भै जब लिमिएर बंधु द्वारा ‘अरायव्हल ऑफ द ट्रेन’ नामकि चलचित्र दिखाई गे। आज सवा सौ साल बिश्व सिनेमाक सफर कै है गईं। हमर भारत में तमाम भाषाओं में अलग-अलग भागों में बणनी वा्ल फिलमों कैं भारतीय सिनेमा में गणी जां। भारत में क्षेत्रीय भाषाओं में लै फिलम बणूनक खूब काम हुं। उत्तराखंडा्क क्षेत्रीय  भाषाओं  में लै फिलम निर्माणक भल काम है रौ।       05 मई 1983 ई.क दिन उत्तराखंडक लिजी एक ऐतिहासिक दिन छु किलैकी य दिन उत्तराखंडक क्षेत्रीय भाषा गढ़वाली में पैंल फिलम ‘ जग्वाल ’ रिलीज भै और ठीक चार साल बाद 1987 ई. हुं उत्तराखंडकि दुसरि प्रमुख भाषा कुमाउनी में ‘ मेघा आ ’ फिलम रिलीज भै। (पहली कुमाउनी फिल्म ' मेघा आ'  का पोस्टर)       कुमाउनी भाषा में फिलम निर्माणक लै भौत काम है रौ। कुमाउनी सिनेमाक सफर 1987 ई. में ‘ स्वाति सिने प्रोडक्षन’ संस्था द्वारा बणी ‘ मेघा आ’ फिलम बै शुरू भै। अल्माड़ जिल्लक सालम पट्टी में ल्वाली गौंक रौणी जीवन सिंह बिष्ट ज्यूक प्रय...

कुमाउनी भाषा के लिए सबसे बड़ा सवाल

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      - ललित तुलेरा  ईमेल- tulera.lalit@gmail.com      ‘ ह्या व’ और ‘वकत’ (महत्व) द्वी ठेट शब्द छन-कुमाउनीक। यों शब्द कुमाउनी दगै भौत गैल जुड़ी छन, लंबी पन्यार छु। शब्दकोशन में इन शब्दों कैं भली कै जदुकै टा्ंच-पांच करी गो उदुकै इनर इस्तमाल कुमाउनी खिलाफ लै करी गो। इन शब्दों कैं जस हमर डिमाग में घोटि दिई गई हो और इन शब्दन बै खास लगाव धरणी एक बिचार निकल आई हो। यस बिचार जो आपणि चीज कैं उच्च ना बतून, ना देखन। वीकि अहमियत कैं के नि समझन। फिर य हमरि शिक्षा में शामिल है जैं। हमरि जिंदगी दगै जुड़ बेर दिनचर्या में र्याई-मेसी जैं। ब्यक्तित्व में झलकण फै जैं, आंखिर में हमर ब्यौहारै बणि जैं। यई तो है रौ हमर देशकि भाषाई बिरासत पर। कुमाउनी पर लै। पैंली -पैंली तो हम कुमाउनीयोंल यकैं के नि समझ, हम जदुक पढ़ने-लेखनै डिग्रीधारी बणते रयां, उदुक हमूल आपणि भाषा उज्याणि ध्यान दिन छाड़ि यकैं तलि घुरयाते रयां, शिक्षित आँखोंल च्यापते रयां। जाणि हमूकैं नैतिक और बैचारिक शिक्षाई नि मिली हो। हमूल भाषाक मामिल में विवेकक इस्तमाल और मौलिक चिंतन भौत कम करौ। हमर वां चिता्व और ...

कुमाउनी लेखः घण चलूण बटी निदेशक तकक सफर - लीला टम्टा

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-ललित तुलेरा ई मेल- tulera.lalit@gmail.com       उ  बखत देश कैं नई आजादी मिल रछी। गरीबी, अभाव, अशिक्षा समाज में पसरी छी। चेलि कां, लौंड लै भौत कम इस्कूल जाई करछी। उ चेलि बड़भागि हुंछी जैकें इस्कूल नसीब है सकौ और उ उच्च शिक्षा पै सकौ। शिक्षा पाणक लिजी गरीब परवार तरस छी। यस कठिन बखत में एक हुस्यार किरसाण चेलि आपण बौज्यूक कारबार में हात बटूनै पढ़ाई करनै रै। बौज्यूक पितव, ता्म, लू आदिक भा्न-कुन बणूनक कारबार छी। बौज्यू दगै भा्न-कुन बणून में हात बटूंछी। घण लै चलाई करछी। गरीबी व अभाव में बिती बचपन बै ल्हिबेर शिक्षा निदेशक बै रिटायर हुणक सफर सबन कैं सीख दिणी छु। ऊं स्वाभिमानल आपुण बा्ट बणूनै गई। समाज हित और जिंदगीक ब्यस्तता कारण उनूल ब्या नि कर और ऊं सदा समाजै लिजी लौलीन रई।  (सुश्री लीला टम्टा)         सुश्री लीला टम्टा ज्यूक जनम अल्माड़ नगरक टम्टा मुहल्ल में 04 मार्च 1938 ई. हुं भौ। आपूंक इजक नौं श्रीमती गोमती देवी और बौज्यूक नौं श्री प्रेम लाल टम्टा छी। आपूंकि पराइमरी शिक्षा दर्जा 1 बै 10 तलक पढ़ाई ‘एडम्स गल्र्स हाईस्कूल, अल्मोड़ा’ में भै, वीक बाद आपू...

भारत छोड़ो आंदोलन : आजादी पाणक लिजी भारतीयोंक आंखिरी सबन है ठुल आंदोलन

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● ललित तुलेरा ई-मेल- tulera.lalit@gmail.com हमर देश कैं आजादी पाणक लिजी दर्जनों आंदोलन करण पड़ी जनूमें एक ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ लै छी। आजादी मिलणक पांच साल पैंली य आंदोलन भौ। यस मानी जां कि य भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनक आखिरी सबन है ठुल आंदोलन छी, जैमें सबै भारतवासियोंल एक दगाड़ ठुल स्तर पर भाग ल्हेछी। कयेक जागि समानांतर सरकार लै बणाई गईं। स्वतंत्रता सेनानी भूमिगत है बेर लै लड़ी। य आंदोलन यस बखत में शुरू करी गो जै बखत दुसर बिश्वयुद्ध चली छी। औपनिवेशिक देशोंक नागरिक स्वतंत्रताक प्रति चिताव हुणाछी और कतुकै देशों में साम्राज्यवाद व उपनिवेशवादक खिलाफ आंदोलन तेज हुनै जाणाछी। भारत छोड़ो आंदोलन कैं ‘ अगस्त क्रांति’ क नामल लै जाणी जां। य आंदोलनक लक्ष्य भारत बै ब्रिटिश साम्राज्य कैं खतम करण छी। भारतीय स्वतंत्रता संग्रामक दौरान काकोरी कांडक ठिक सत्रह साल बाद 9 अगस्त, 1942 हुं गांधी ज्यूक आह्वान पर पुर देश में य आंदोलन एक दगाड़ षुरू भौ। भारत छोड़ो आंदोलन सई मायन में एक जन आंदोलन छी, जैमें भारताक लाखों आम लोग शामिल छी। य आंदोलनल नौजवानों कैं ठुलि संख्या में अपनी उज्याणि खैचों। उनूल आपण कौलेज छोड़ि बेर जेलक...

जीवनी : कुमाउनी की पहली पत्रिका 'अचल' के संपादक जीवन चंद्र जोशी

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- नवीन जोशी गोमती नगर, लखनऊ मो.- 9793702888 ( 'अचल' पत्रिका मुखड़ )        खु शी बात छ कि आज हमरि कुमाउनी भाषा (बोलि कूणक चलन छ मगर भाषा कूण में के हर्ज छ) में लेखणी जणीनकि कमी न्हातैं। पुराणि और नई पीढ़ीक रचनाकार कुमाउनी में हर बिधा में खूब लेखणईं। हर महैण नियमित पत्रिका ले निकलण लागि रईं। उनार लिजी कुमाउनी में कविता, का्थ, लेख, संस्मरण, ब्यंग, यात्रा-बृतांत, नाटक, बगैरा सामग्रीकि के कमी न्हांती। कुमाउनी में औनलाइन पत्रिका, ब्लौग और बेबसाइट ले छन। हमार नामी-गिरामी लेखक जो पैंली सिरफ हिंदी में लेखछी, आब खुशी-खुशी कुमाउनी में ले लेखण भै गई। उसी त कुमाउनी में बलाणी दिन पर दिन कम हैते जाणईं। पहाड़ाक गौन में ले नई जमानाक स्यैणी-मैंस-नानतिन सबै देसि ;हिंदीद्ध हाकनी। तबै ‘यूनेस्को’ कि एक रिपोर्ट बतूंछि कि हमरि भाषा खत्र में पड़ि रै। यस्सै हाल रया त एक दिन यैक लोप लै है सकों। खैर, फिलहाल संतोषै बात छ कि दसेक सालन बटी आपणि भाषा में लेखण-छपण- प्रसारण- पौडकास्टिङ खूब हुण लागि रौ। कुमाउनी भाषा में प्रकाशित हुणी वालि पैंल पत्रिका छी- ‘ अचल ’, जो 193...

कुमाउनी भाषा का पहला ताम्रपत्र

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ललित तुलेरा गरूड़ बागेश्वर (उत्तराखंड) मो.- 7055574602 ई.मेल-tulera.lalit@gmail.com   पु रातत्वविद डॉ. मदन चंद्र भट्ट (पिथौरागढ़) का कुमाउनी की प्रसिद्ध मासिक पत्रिका ‘ पहरू ’ के अप्रैल 2009 अंक में प्रकाशित लेख ‘ कुमाउनी भाषाक पैंल तामपत्र’ के अनुसार कुमाउनी का प्रथम ऐतिहासिक दस्तावेज़ लोहाघाट (चंपावत) के व्यापारी श्री रेवाधर जुकारिया के संग्रह में दस पंक्तियों का एक ताम्रपत्र के रूप में मिलता है। इस लेख में डॉ. भट्ट लिखते हैं कि इस ताम्रपत्र में जिस कुमाउनी भाषा का प्रयोग है वह 1790 ई. तक राजभाषा रही। इस ताम्रपत्र के अनुसार वे कुमाउनी के इतिहास को तीन युगों में वर्गीकृत करते हैं-  १. पूर्व राजभाषा युग-  व्यक्तियों और ज़मीन के नाम संस्कृत के ताम्रपत्रों से पता चलता है।  २. राजभाषा युग- (989 ई.- 1780 ई.)  ३.  लोकभाषा युग- 1790 ई. से आज तक।    इसी ताम्रपत्र का उल्लेख ताराचंद्र त्रिपाठी जी (नैनीताल) में अपनी पुस्तक ‘ मध्य हिमालय भाषा, लोक और प्राचीन स्थान नाम’ के पृष्ठ 5 में भी किया है। इस ताम्रपत्र का वर्णन डॉ. मदन चंद्र भट्ट जी की पुस्तक ‘ कुमा...

कुमाउनी किलै पढ़न-लेखन चैं?

डॉ. शेर सिंह बिष्ट  से.नि. प्राध्यापकः हिंदी विभाग  कुमाऊँ वि.वि.परिसर, अल्मोड़ा कुमाउनीयोंकि  असल मातृभाषा कुमाउनी छु। चंद शासन काल में कुमाउनी याँकि राजभाषा लै छी। येक प्रमाण वी बखता्क ताम्रपत्र और सरकारि अभिलेख छन। सरकारि अभिलेखोंक लेख्वार जादातर संस्कृता्क जानकार पंडित लोग हुँछी, ये लिजी वी बखतकि कुमाउनी भाषा संस्कृतनिष्ठ कुमाउँनी छु। चंद राजोंलि कुमाउँनी कैं भौत मान-सम्मान दे। इतिहास यो बातक गवाह छु कि रा्ज लोग आते रूनी और जाते रूनी। शासन-तंत्र लै बदलते रूँछ, पर भाषा आसानिक साथ न बदलनि। कुमाऊँकि अगर बात करनू तो जब  बटि कुमाऊँ में बसासत शुरू भै हुनेलि, तबै बटि कुमाउँनी लै प्रचलन में ऐ हुनेलि। किलैकी क्वे लै मानव समाज बिन भाषाक न है सकन।  कुमाउँनिक मूलरूप याँक शिलपकारोंकि बोलि-भा्ष में मौजूद छु। बाद में जाँ-जाँ बै, जो-जो जातिक लोग आते रई, उनरि भाषाक शब्द लै वीमें जुड़ते गई। योई कारण छु कि कुमाउँनी में एक अर्थकि लिजी एक है जादा समानार्थी शब्द पाई जानी। जसिक ‘मक्का’ कैं कती ‘घ्वग’ कूनी, तो कती ‘काकुनि’ और कती ‘जुन्या्ल’। या्स सैकड़ों शब्द छन। कई राजनीतिक और सांस्...

कुमाउनी लेख : पर्यावरण संरक्षण

डॉ. दीपा गोबाड़ी प्रोफेसरः हिंदी, एम.बी.राज. महा. हल्द्वानी, मो.-9412944710 • प र्यावरण  • पर्यावरण संरक्षण • पर्यावरण संरक्षणकि भारतीय परंपरा • अलग कालक्रमन में पर्यावरण संरक्षण  • धर्म,संस्कार और साहित्य में पर्यावरण संरक्षण • पर्यावरण संरक्षण लिजी प्रमुख सुझाव       पर्यावरण - पर्यावरण शब्द द्वी शब्दोंल बणी छ- परि + आवरण। यैक मतलब छ- चारों तरफ बटी ढकी रई। (परि- चारों तरफ, आवरण-ढकी रई)। यो अर्थ में मैंसोंक चारों तरफ जो लै भौतिक और अभौतिक चीज छन, उ वीक पर्यावरण छ। मैंस चारों तरफ चंद्रमा, तार, सूरज, पृथ्वी, हाउ, पहाड़, नदी, जङव, जलवायु, ताप क अलावा समाज, समूह, संस्था, प्रथा, परंपरा, लोकाचार, नैतिकता, धर्म और सामाजिक मूल्योंल घिरी छ। पर्यावरण क्षरण- कुदरत हमेशा हमर लिजी उदार रैं, लेकिन मैंसल लालच, आपुण स्वार्थ और विकासक नाम पर उकें भौत नुकसान पुजाछ। जसी-जसी मैंस विकासक तरफ बढ़ौ हमर पारिस्थितिक तंत्र गड़बड़ै गौछ। आज धरतीक तापमान भौत बढ़ गो, यैक वीली जलवायु, बनस्पति, जीव जंतु, मैंस, वीक समाज और संस्कृति सबन में दुष्प्रभाव देखीण लाग रौ। यो पर्यावरण क्षरण मैंसल खुद उपजा ...