भा रतकि चित्रकलाक कहानि शिलाचित्रों बै शुरू है बेर कंप्यूटर चित्रों तलक पुजि गे । य कतुक पुराणि छु यैक अंताज मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, चन्हूदड़ो व लोथल आदि उत्खन्न में मिली वस्तुओं बै लगाई जै सकीं । भारतकि चित्रकलाक अजन्ता शैली, गुजराती शैली, पाल शैली, जैन शैली, अपभ्रंश शैली, राजस्थानी शैली, मुगल शैली, पहाड़ी शैली, पटना शैली, सिख शैली, दक्कन शैली, लोक शैली, मधुबनी शैली, आधुनिक शैली दुनी भर में भौत प्रसिद्ध छन । रवीन्द्रनाथ टैगोर ज्यू कुनी - " कला मानव की बाह्य वस्तुओं की अपेक्षा स्वानुभूती की अभिव्यक्ति है।" पुराण जमा्न बटी आज तलक हमा्र लोक कलाकारोंलि भारतकि कला कैं सजूण सवारण व दुनी में प्रसिद्धी दिलूण में ठुल भूमिका निभै। आजकई हुनरमंद कलाकार भारतकि कला परंपरा कैं बरकरार धरी छन और नई प्रयोग लै करण रई जैल कलाक बिस्तार होते जां। कलाक क्षेत्र में कुछ अलग व नई प्रयोग करण रई युवा लोककलाकार जया डौर्बी । Aipan art by Jaya...
टिप्पणियाँ
आपकी कहानी बहुत ही सूंदर लगी , भेजी जो कार्य आप करना छ बडू सराहनीय छ अपनी बोली अपनी भाषा को बचाण का वास्ता निरंतर लग्या रां !!
धन्यवाद !!
आपकु अपणु सी
कैलाश रौथाण
मैंने आपके लेख पढ़े। कुमाँऊनी भाषा संरक्षण में आपका योगदान सराहनीय है।
अब जैसे वैदिक संस्कृत अन्ततः शास्त्रीय संस्कृत बनकर उभरी, क्या आपके विचार में हमारी कुमाँऊनी भी शास्त्रीय रूप धारण करेगी? और यदि करेगी तो यह हिंदी (ब्रज, अवधी, कौरवी, देहलवी) और नेपाली से स्वयं को भिन्न किस प्रकार रख पायेगी?
आपके विचार जानने का इच्छुक,
आपका भुला