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कुमाउनी इंटरव्यू : आपुणि भाषा में कई बात जल्दी समझ में ऐंछ - देवकी महरा

देवकीनंदन भट्ट 'मयंक'  तीनपानी, हल्द्वानी, मो.-99177441019ग उ सी तो कुमाउनी भाषाकि ‘महादेवी’ नामल बिभूषित देवकी महरा क्वे परिचयक मोहताज न्हांतिन। उनर लिजी योई नौं ‘देवकी महरा’ सारगर्भित और स्वनाम धन्य छु। उनूथें ‘कुमाऊं कोकिला’ लै कई जां। फिर लै देवकी महरा कैं बिभूषित करणी सार्थक नामों में एक नाम ‘नारी बिमर्शकि साहित्यिक धारा: देवकी महरा’ और जुड़ सकौं तो यमें क्वे अतिशयोक्ति नि होलि, किलैकी ऊं आपुण शैशव काल बटी आज 84 सालकि उमर तक उरातार ऊर्जावान है बेर हिंदी और कुमाउनी जगत कैं सुवासित करण लागि रई। पिछाड़ि दिनौ उनू दगै बात चीत करणक मैंकें मौक मिलौ, जो पाठकों सामणि प्रस्तुत छ- सवाल- देबकी दी! मातृभाषा कुमाउनी में गीत और कबिता लेखणकि परेरणा आपूं कैं कां बै मिली? यो बात मैं आपुण कुमाउनी कबिता संग्रह ‘निशास’ और ‘पराण पुंतुर’ क संदर्भ में जाणन चानू। जबाब- जब बटि होश समालौ, मैं हमेशा संस्कार गीत, झोड़ा, हुड़की बौल, जागर आदि कार्यक्रमों में भाग लिई करछी। उनूकैं याद करणकि कोशिश लै करछी। नई-नई गीत बणौणकि कोशिश करछी। यो गीत, यो धुन सब म्यार मन में रची-बसी छी। हमेशा नई-नई रचना बणै बेर...

इस्कूलों में कुमाउनी भाषा पढ़ाई जाण चैं

भारती पांडे, देहरादून  कांवली, देहरादून , मो.-7983841395  कमला पंत ज्यू दगाड़ भारती पांडे ज्यूकि बातचीत Kumauni Interview सा हित्य, संस्कृति, शिक्षा-भाषा और जतुक लै सामाजिक सरोकार छन, उनर लिजी मुखर, आफूं आफ मजि एक संस्था मानी जाण वालि दिदि छन कमला पंत ज्यू। इनन कैं देखि महादेवी वर्मा ज्यूकि रचना याद ऊणै - ‘‘ दीप मेरे जल अकम्पित घुल अचचंल पथ न भूले एक पग भी घर न खोये लघु विहग भी स्निग्ध लौ की तूलिका से आंक सबकी छांह उज्जवल।’’ दीपशिखाक कवियित्री लोक कल्याणक अघिल ब्यक्तिगत मोक्ष कैं कोई वकत नैं दिन। ठीक उसै सबनक दुख-सुख बांटण मजि सुख पौनेर वालि कमला पंत ज्यू लै छन। कौंल ह्यू और कड़क लै। यस सुभावक जुगलबंदी कम देखण में मिलैं। गुरू कुमार शिशु कुंभ... । वा्ल कहावत लै उनर लिजी कै सकनू। अपुण नानि उमर बै आज जांलै उनूल समाज-साहित्य, भाषा-शिक्षा क्षेत्र मजि बम्त काम करी छौ। उनर कामक ना्न परिचय साक्षात्कारक जरियल आपूं सामणि धरण लाग रयूं- सवाल- दीदी! मैंल तुमनकैं 2003 में पैंल बखत धाद महिला कवियित्री सम्मेलनक मुख्य अतिथिक रूप में देखौ। उदिन तुमूल धाद कैं आपणि कविता माध्यमल जो परिभ...

कुमाउनी इंटरव्यू : साहित्यकार पद्मश्री डॉ. रमेश चंद्र शाह ज्यू दगाड़ डॉ. हयात सिंह रावत ज्यूक बातचीत

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साहित्य समाजक आलोचक हुंछ : पद्मश्री डॉ. रमेश चंद्र शाह  ( जून 2004 कि बात छू। पद्मश्री डाॅ . रमेशचन्द्र शाह उतकांन   अल्मा्ड़ ऐ रौछी। मैंल   उनू दगै गंगोला मोहल्ला में उना्र घर में साहित्य और उनर जीवन दगै जुड़ी सवालों   पर कुमाउनी  भाषा में बातचीत करै।   )  - डाॅ .  हयातसिंह   रावत संपादक - ‘पहरू’ कुमाउनी मासिक पत्रिका , अल्मोड़ा (उत्तराखंड)  प्रश्न - दाज्यू ! हमूकैं भौत खुशी छु कि आपूँल साहित्यकि हर विधा में खूब किताब ल्यखि राखी और हिंदी साहित्य में भल नाम कमै रा्खौ। मैं यो जा्णन चाँ कि आपूँल को उमर बटी ल्यखन शुरू करौ और उभत आपूँ को दर्ज में पढ़छिया ? उत्तर - हयात ! बजार में हमरि दुकान छी। वाँ रद्दी बटी मैंकें ‘ चाँद ’ पत्रिकाक एक अंक मिलौ। ऊ विधवा अंक छी। ऊ कैं पढ़ि बेर मैंल एक कविता ल्यखी। वीक नाम लै ‘ विधवा ’ छी। यो म्येरि पैंल रचना छु। यो कविता चैपाई में ल्यखी छु। म्यर ख्यालल उभत में जीआईसी में दर्जा चार में पढ़छ्यूँ। ...