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ललित तुलेरा की कुमाउनी कविताओं पर केन्द्रित कैलीग्राफी। Calligraphy art by Lalit Tulera

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यहां ललित तुलेरा द्वारा कुमाउनी कविताओं पर कैलीग्राफी की गई है। उन्होंने कैलीग्राफी के काम को  आँखरांकन नाम दिया है। कुमाउनी के कुछ कवियों की कविताओं पर  कैलीग्राफी यहां प्रस्तुत है :-  ०१. ०२. ०३. ०४. ०५. ०६. ०७. ०८. ०९. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. १७. १८. १९. Calligraphy art by Lalit Tulera/Kumauni calligraphy  बागेश्वर ( उत्तराखंड) में 'कुमाउनी कैलीग्राफी प्रदर्शनी' के साथ ललित तुलेरा। 

क्यों जरूरी है कुमाउनी के लिए सरकारी मान्यता?

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~ ललित तुलेरा     उप संपादक- पहरू पत्रिका tulera.lalit@gmail.com ( कुमाउनी को सरकारी मान्यता की आवश्यकता पर एक चिंतन)       ह मर भारत देश में कतुकै भाषा बोली जानी, जां हर इलाककि माटि बै एक बिशेष संस्कृति और भाषाकि खुसबू ऐंछ। उत्तराखंडक कुमाऊं क्षेत्रकि पछयाण 'कुमाउनी' भाषा आज ढीक नजीक बै पलि जाण लागि रै। यो सिरफ एक भाषा न्हां, बल्कि एक सभ्यता, एक जीवनशैली और पुस्तोंकि फाम छु। फिर सवाल ठा्ड उठूं— कुमाउनी कैं सरकारि मान्यता किलै मिलन चैंछ? (कुमाउनी के व्याकरण पर पद्मश्री डॉ. डी.डी. शर्मा की महत्वपूर्ण पुस्तक।) के कुमाउनी सरकारि मान्यताकि हकदार छु? या इमें इतुक सामर्थ छु कि यकैं सरकारि मान्यता दिई जाण चैं? के बिगर सरकारि मान्यताकि य ज्यून नि रै सकलि? ठुल सवाल य लै छु कि सरकारि मान्यता मोहताज बिना हमरि भाषाक के अस्तित्वै न्हैं के?       य हमुकैं नि भुलण चैन कि हमरि भाषा क्वे किरपाक ना, बल्कन आपण इतिहास, अस्तित्व और सामर्थक बल पर सरकारि मान्यताक हकदार छु। यो हमर लोकतांत्रिक, संवैधानिक अधिकार छु, मनखी हुणक अधिकार छु। ...

कुमाउनी भाषा में इस वर्ष (२०२५) की नौ लेखन पुरस्कार योजनाएं

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कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति  कसारदेवी, अल्मोड़ा व ‘ पहरू ’ कुमाउनी मासिक पत्रिका द्वारा साल 2010 बटी कुमाउनी भाषा में कुमाउनी साहित्य और भाषा बिकासै लिजी साहित्यकि तमाम बिधाओं में लेखन पुरस्कार योजना चलाई जानई। य लेखन योजनाओंल कुमाउनी में साहित्यकि नई गङ बगै। जां एक तरफ कुमाउनी साहित्य में नई-नई बिधाओं में कुमाउनी साहित्य लेखी जै सकौ, तो वांई कुमाउनी में लेखण-पढ़नक लै रिवाज बढ़ौ। नई लेखार लै सामणि आई और कुमाउनी में उरातार साहित्यक बिकास हुनै गो। कुमाउनी में गद्य और पद्य में आज जाधेतर साहित्य य लेखन योजनाओंकि लै उपज छु। य लेखन योजनाओंक बदौलतक कुमाउनीक कयेक लेखारोंल साहित्यक नई बिधाओं में कलम उठा।  अलीबेर (2025) लै हौर सालोंक चारि समिति व ‘पहरू’ पत्रिका द्वारा 09 लेखन योजना चलाई जानई। यों 09 लेखन पुरस्कार योजना यों छन- ०१.  कुँवर दलीप सिंह बिष्ट स्मृति बाल नाटक लेखन पुरस्कार योजना बी.एस.एफ. बै रिटायर सूबेदार श्री रूप सिंह बिष्ट ,  रैथमी ग्रा.-तल्ली नाली ,  सेराघाट ,  जिला-अल्मोड़ा द्वारा दिई मधतल कुमाउनी भाषा में बाल नाटक लेखन कें ...

डाकघट का संक्षिप्त इतिहास ( A Brief History of DANKGHAT)- ललित तुलेरा Lalit Tulera

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ललित तुलेरा tulera.lalit@gmail.com उ त्तराखंड में कई घाटियां और स्थान ऐसे भी हैं जिनका महत्त्वपूर्ण इतिहास रहा है और वे मुख्य धारा में शामिल न हो पाने के कारण अब तक प्रकाश में नहीं आ पाए हैं। ये ऐसे स्थान हैं जो आजादी के कई दशकों बाद भी सड़क, संचार, स्वास्थ्य आदि मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहे हैं। ऐसा ही एक स्थान है डाकघट । कुमाऊं मंडल स्थित बागेश्वर जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर व गरूड़ ब्लॉक मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर सुदूर लाहुर घाटी में एक छोटा व्यावसायिक केन्द्र है- डाकघट । लाहुर नदी के किनारे बसा यह एक छोटी बाजार है। इसका स्थानीय कुमाउनी भाषा में मूल नाम ' डाङघट ' है। यह नाम ' डाङ ' और ' घट' दो शब्दों से मिलकर बना है। 'डाङ' शब्द कुमाउनी का है जिसका अर्थ है विशाल चट्टान, और 'घट' शब्द का उपयोग कुमाउनी में घराट या पनचक्की के लिए होता है। इस तरह 'डाङघट' नामकरण विशाल चट्टान और घराट दोनों की मौजूदगी की वजह से रखा हुआ मालूम पड़ता है, क्योंकि यहां घट और विशाल चट्टान हैं। 'डाङघट' का हिंदीकरण करके इसे ' डाकघट ...