इस्कूलों में कुमाउनी भाषा पढ़ाई जाण चैं

भारती पांडे, देहरादून 

कांवली, देहरादून , मो.-7983841395 


कमला पंत ज्यू दगाड़ भारती पांडे ज्यूकि बातचीत

Kumauni Interview

साहित्य, संस्कृति, शिक्षा-भाषा और जतुक लै सामाजिक सरोकार छन, उनर लिजी मुखर, आफूं आफ मजि एक संस्था मानी जाण वालि दिदि छन कमला पंत ज्यू। इनन कैं देखि महादेवी वर्मा ज्यूकि रचना याद ऊणै -

‘‘दीप मेरे जल अकम्पित घुल अचचंल

पथ न भूले एक पग भी

घर न खोये लघु विहग भी

स्निग्ध लौ की तूलिका से

आंक सबकी छांह उज्जवल।’’

दीपशिखाक कवियित्री लोक कल्याणक अघिल ब्यक्तिगत मोक्ष कैं कोई वकत नैं दिन। ठीक उसै सबनक दुख-सुख बांटण मजि सुख पौनेर वालि कमला पंत ज्यू लै छन। कौंल ह्यू और कड़क लै। यस सुभावक जुगलबंदी कम देखण में मिलैं।

गुरू कुमार शिशु कुंभ... । वा्ल कहावत लै उनर लिजी कै सकनू। अपुण नानि उमर बै आज जांलै उनूल समाज-साहित्य, भाषा-शिक्षा क्षेत्र मजि बम्त काम करी छौ। उनर कामक ना्न परिचय साक्षात्कारक जरियल आपूं सामणि धरण लाग रयूं-

सवाल- दीदी! मैंल तुमनकैं 2003 में पैंल बखत धाद महिला कवियित्री सम्मेलनक मुख्य अतिथिक रूप में देखौ। उदिन तुमूल धाद कैं आपणि कविता माध्यमल जो परिभाषा दी, वील मैंकंे भौत प्रभावित करौ। वीक बाद जब-जब लै हमरि भेट भैछ,  मैंल तुमनकैं हर बार नई-नई बिचार और नई ऊर्जाल भरी देखौ। सो आज मैं तुमर जनमभूमि, परिवार और शिक्षा-दीक्षाक बार में जाणन चानू।

जबाब-  मैं तो भौतै सामान्य स्यैणि छूं। अल्माड़ जिल्लक राणिखेत शहर बटी पांच किलोमीटर दूर पंतकोटली गौंक तोक वल्न सैंकुड़ में 1946 में स्व. भोलादत्त पंत और स्व. जानक पंतकि पैंल संतानक रूप में म्यर जनम भौछ। हम पैंली तीन बैणी भयां और पछां तीन भै। दर्जा एक मैंल प्राईमरी इस्कूल दड़माड़ में पढ़ौ। बांकि प्राइमरी शिव मंदिर इस्कूल राणिखेत बटी पास करौ। दर्जा 6 जी.जी.आई.सी. रानीखेत पढ़ौ।1957 में बाबुकि बदली अल्माड़ है गे, तब सातूं दर्ज बटी एम.ए., बी.एड . तक अल्माड़ में पढ़ौ। हम अल्माड़ शहर में दन्या मुहल्ल में रूंछियां जो भौते संभ्रांत लोगनक मुहल्ल छी। कुमाउनीक सबै रीति-रिवाज, ऐपण, कीर्तन-भजन, कर्माक गीत, होलि, जागरण, जनमबार और ब्याक गीतन में दक्ष बणूनक श्रेय दन्या मुहल्ल कैं जां और जां मेरि भौतै सुलझी हुई इज कैंऋ जो हमन कैं हर विधा में निपुण बणूनक लिजी हर बखत सजग रूंछी।

सवाल- एम.ए., बी.एड . करी बाद नौकरी कब और कां लागी? आपणि नौकरीक कुछ अनुभव बताओ।

जबाब- साल 1968 में मैं एम.ए.फाइनल में छ्यूं, जब मेरि नौकरी सहायक बालिका विद्यालय निरीक्षिका पद पर बरेली में लागी। 1968 बटी 1971 तक बरेली जिल्ल में लगभग सबै कन्या पाठशालानक हाजिरी रजिस्टर में चेलिनक नाम-छंगो देवी, रन्नो देवी, भुन्नो देवी, गिलासो देवी, कटोरी देवी, रूमाली देवी, बतासो देवी, जलेबी देवी, इमरती देवी, राबड़ी देवी आदि यस्सै जस लेखी रूंछी। अध्यापिकान थैं पुछौ तो कूंछी कि उनार इज-बौज्यू यस्सै नाम बतूनी। चार- छै महैण बाद मैंल आपण इलाकक सबै मास्टरनीनकि मिटिंग धरी। निरीक्षण में मैंकैं अध्यापन आदि संबंधी जो कमी देखीछी उनर सुधारक लिजी उननकैं प्रशिक्षित करौ और चेलिनक नामै बार में कौछ कि अब जमान बदलि गो। इन चेलिन बटी कुछ अघिल भलि-भलि नौकरी कराल और कोई और लै ठुल काम कराल। उनर इज बौज्यू अनपढ़ छन पर तुम तो पढ़ी लिखी छा। जभत ऊं नाम लेखूण हूं ऊनी तो जो अक्षर बटी चेलिक नाम बतूनी, तुम उई अक्षर बटी भलौ भल नाम लेखि बेर उनर इज बाबू कैं बतै दियौ कि यो चेलिक इस्कूलक नाम आज बटी यो हा्ेल, अब तुम घर में लै उकैं योई नामल बुलाया। यैक नतिज यो भौछ कि हमर अध्यापिका लोगन लै हर वर्ण बटी भला-भा्ल नाम छांटि बेर सूची बणै और चेलिनक नामन में सुधार करौ। कल्लो ल जब अपण नाम कमला और रन्नो ल जब आपण नाम रमा सुण हुनलौ तब उनूकैं कतू भल लाग हुनल, अंदाज लगाओ धैं। तीन साल तक मैं गौंकि हर चेलि कैं इस्कूल भेजणक लिजी अभियान चलाते रयूं और काफी हद तक मैंकैं सफलता लै मिली।

सवाल- उत्तराखंड में तुमरि पछयाण शिक्षाविदक साथ-साथ भाषाविदक रूप में लै छू। पहाड़ी बोलिन पर तुमर शोध कार्य लै छु। बोलिन में काम करणकि रूचि कसी जागी?

जबाब- सन 1971 में मेरि बदली बरेली बटी पिथौरागढ़ है गे। हमूल नानछिना आपण गौं और राणिखेत फनांकि कुमाउनी बोलि सिखिए भै। अल्माड़ ऐ बेर हम अल्माड़क लहजा सिख गयां और उ में रमि ले गयां। यैक वील जब मैं पिथौरागढ़ आयूं त मैंकें वांकि कुमाउनी बोलि भौते अणकसी लागी। म्यर काम गौं-गौं में इस्कूल देखणक छी और मैंकैं जादातर इस्कूलन में पैदल जा्ण पड़छी। पहाड़ में गरीबी भौत छी और भौत कम नानतिन इस्कूलन में ऊंछी। नानतिनन कैं इस्कूल भेजणक लिजी उनर इज-बाबून कैं समझूण जरूरी छी और उनन दगड़ बात करणाक लिजी यो जरूरी छी कि मैं उनरि बोलि में बुलै सकूं। पुर जिल्ल में मैं जै तरफ लै जांछ्यूं बोलि में बदलाव पांछयूं। मैंकैं आश्चर्य हुंछी कि एक्कै कुमाउनी बोलिक थ्वाड़-थ्वाड़ दूरी में कसिक लहजा बदल जां। तब मैंल यो सब बोलिनक नमुन एकबट्यूण शुरू करी। आस्ते-आस्ते पिथौरागढ़ जिल्लक अलावा कुमाऊँक सबै जिल्लनक बोलि एकबटयाई और फिर पर्वतीय क्षेत्र में जां जां तक है सकौ मैंल बोलिनक रूप इकट्ठ करी और बोलिन पर प्रकाशित अटकिंटसन गजट सहित और लै किताबनक अध्ययन करौ। यो बीच मेरि भेंट इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कार्यरत प्रो. भवानी दत्त उप्रेती दगाड़ भैछ। उनूल म्यर काम देखौ और शोध कार्यक लिजी इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पंजीकरण करै दे। आठ महैण छुट्टी ल्हीबेर मैंल अन्य पर्वतीय राज्यनक भ्रमण करौ और अपण शोध विषय- ‘पहाड़ी बोलियों की ब्याकरणिक कोटियों का तुलनात्मक अध्ययन ;नेपाल से भूटान तकद्ध’ पर काम पुर करौ।

सवाल - आपूं देहरादून में साक्षरता मिशन में राज्य परियोजना प्रबंधक पद पर लै रौछा। साक्षरता अभियानक बार में आपण अनुभव लै मैंकैं बताओ।

जबाब- सन 1980 में मैं प्रौढ़ शिक्षा विभाग में ऐ गयूं। आपणि पिछाड़िकि बार सालै नौकरी में मैंल पहाड़क गौंनौकि गरीबी, स्यैणिनक ख्वार में कामक बोझ, बैगनकि शराबखोरी, भूत, प्रेत, द्याप्त लागण, देवी मंदिर में एक बार में आठ-आठ बकार काटण, ना्न-ना्न बातन में लड़ै-झगड़, चेलिन कैं इस्कूल नी भेज बेर नानी उमर में दुहर-तिहर ब्या वा्ल मैंस दगड़ ब्या कर दिण आदि सब आपण आँखनल देखी, काननल सुणी और आत्माल झेली छी। सो म्यर संकल्प छी कि म्यार कैल जतू लै है सकल मैं स्यैणिन कैं साक्षर बणूनकि कोशिश करूंल। नैनीताल, अल्माड़ और पिथौरागढ़ में मैंल आपण सहयोगीन दगै यो काम कैं पुरि निष्ठाल करौ। सन 1990 अंतरराष्ट्रीय साक्षरता वर्ष में अल्माड़ में श्री केशव देसिराजू जिलाधिकारी छी। ऊं खुद लै बाल्मीकि बस्ती, शिल्पकार बस्ती और गरीबनक बीच में जै बेर साक्षरता कक्षा देखछी और पढ़ी- लेखी नानतिनों कैं  ‘हर एक, पढ़ावे एक’ नारा दी बेर अल्माड़ शहर कैं संपूर्ण साक्षर बणूनक लिजी लागि रौंछी। आंखिर हम सबनकि मेहनत काम ऐछ और 15-35 वय वर्ग में अल्माड़ शहर संपूर्ण साक्षर घोषित करी जै सकौ। यो अवसर पर एक स्मारिका लै ‘अक्षरा’ नामल छपै। यो उपलब्धि लिजी म्यर नौं पद्मश्री लिजी लै प्रस्तावित भौछ। पर वां तक मेरि पहुंच कां छी। जब उत्तराखंड राज्य बणौ तब साक्षरता कार्यक्रमन में मेरि रूचि, मिहनत और योगदान देखि बेर मैंकैं उत्तराखंड में राज्य साक्षरता मिशन बणूनक लिजी राज्य परियोजना प्रबंधक बणाई गो, जैक माध्यमल साक्षर भारत अभियान आजि लै चलाई जाणौ।

सवाल- उत्तराखंड में आपूं राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस लै चलूंछा। हिंदी साहित्यक मर्मज्ञ और पहाड़ी बोलिन पर शोध कार्य करण दगै कुमाउनी लोक भाषा, लोक संगीत और लोक संस्कृति पहरू है बेर लै यो विज्ञान कार्यक्रमों में रूचि किलै और कसी भैछ? 

जबाब-  म्यर ना्न भै डाॅ. अशोक कुमार पंत विज्ञान शिक्षक दगड़ै जिला विज्ञान क्लबनक माध्यमल वैज्ञानिक दृष्टि विकास और अन्य कई वैज्ञानिक प्रयोग लै करछी। उन दिनों पिथौरागढ़ में पीणक पाणिक भौतै कमी छी। वील रेवा ;त्म्ॅ।द्ध नाम दि बेर पाणि कैं रिसाइकिल करणक एक माॅडल बणा, जैकें वीक इस्कूल में वास्तविक कार्य करते हुए तत्कालीन डी.एम.- एस. राजू सैबनल देखौ और ऊं इतुक प्रभावित भई कि उनूल उ प्रोजेक्ट कैं यूनिसेफ हूं भेजौ। यूनीसेफ गैर सरकारि संस्थानन दगाड़ काम करछी। तब 1994 में पिथौरागढ़क कुछ विज्ञान शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता लोग अशोक दगाड़ जुड़ी और ‘पहल’ ;पीपुल्स एसोसियेशन आॅफ हिल एरिया लांचर्सद्ध नामल एक समाज वैज्ञानिक संस्थाक पंजीकरण करवा और आस्ते-आस्ते पहाड़क हर जिल्ल में जिला विज्ञान क्लब, इस्कूल विज्ञान क्लब आदि बणै बेर विज्ञान लोकप्रियकरण कार्यक्रम संचालित करी गई। पाणि, जङव, जमीन, खेति-पाति, बागवानी, स्वास्थ रक्षा व स्वच्छता, आॅरगेनिक खेती, कैंसर संचेतना आदि जस भौत काम पहल संस्थाक नौं छन। 2000 में जब उत्तराखंड बणौ तब उत्तराखंड में पहल एकमात्र वैज्ञानिक संस्था छी जैकें भारत सरकार द्वारा 10-17 वय वर्गकि विद्यार्थीनक लिजी संचालित कार्ययोजना राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेसक राज्य समन्वयक रूप में चयनित करी गो। राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस में हर साल एक बिषय पर पुर देशक बाल वैज्ञानिकों कैं आपण- आपण परिवेश में कार्ययोजना तैयार करण पड़छी। वीक लिजी मैं बिषयक हर पक्ष पर प्रकाश डालते हुए सालक शुरू में ई मार्गदर्शिका छापि बेर हर जिल्लक विज्ञान समन्वयकन कैं प्रशिक्षण करै बेर उनर मार्फत सब इस्कूलन तक पुजै दी छ्यंू। बाल वैज्ञानिक इस्कूल स्तर बटी ब्लाॅक स्तर, ब्लाॅक स्तर बटी जिल्ल स्तर, जिल्ल स्तर बटी छांटि बेर राज्य स्तर पर प्रतिभाग करनी और राज्य स्तर बटी राष्ट्रीय स्तर में उत्तराखंडक कोटा सिर्फ 16 बाल वैज्ञानिकनक छू। जब यो सब कार्यक्रम संपन्न है जां, तब राज्य स्तर पर प्रतिभाग करणी वाल बाल वैज्ञानिकनक शोध सार और राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिभाग करणी वालनकि पुरि कार्य योजना कैं एक सालाना स्मारिका ‘सृजन’ नामल छपै बेर उन सबै बाल वैज्ञानिकों और विज्ञान शिक्षकों तक पुजाई जांछी। यो काम संस्थाल 2000 बटी 2016 तक उरातार 16 साल तक करौ। प्रसि( बैज्ञानिक डार्विनकि 200वीं जयंती मौक पर पहल संस्था द्वारा ‘संभव मंचक’ सहयोगल ‘डार्विन तुझे सलाम’ थियेटर फिल्मक निर्माण करी गो, जैक पुर उत्तराखंड में 24 भौत सफल शो रई।

सवाल - आपूं एक बैज्ञानिक पत्रिकाक लै प्रकाशन करण लागि रौछा। यो पत्रिकाक बार में लै कुछ बताओ। 

जबाब - बर्ष 2004 में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय चेतना बर्ष घोषित करी गो। राज्य स्तर पर यो बर्ष में करी जाणी वा्ल कार्यक्रमनक निर्धारणक लिजी जो समिति बणै, वीक अध्यक्ष तत्कालीन मुख्य सचिव- डाॅ. रघुनंदन सिंह टोलिया ज्यू छी। श्री एम. रामचंद्रन प्रमुख सचिव शिक्षा सहित सब संबंधित विभागनक सचिव और वैज्ञानिक संस्थानक निदेशक और कुछ गैर सरकारी संस्था सदस्य छी। कार्यक्रम संयोजनक लिजी जब संस्थानक चयन भौछ तब सबनल एक स्वर में पहल संस्था कैं यो बर्षक कार्यक्रमनक संयोजक बणूनकि सहमति दे। शिक्षा विभागक एक प्रतिनिधि रूप में मैं लै यो समितिक सदस्य छी। उ बरस उत्तराखंडक लगभग सबै गैर सरकारी संस्था पहल दगाड़ काम करणक लिजी अघिल आई। गौं-गौं में नुक्कड़ नाटक, गीत और गोष्ठी आदि करि बेर लोगन में वैज्ञानिक चेतना जगाई गे। दूरस्थ गौंन में विज्ञान शिक्षण कैं प्रक्रियात्मक बणूनक लिजी ‘सुगम साइंस किट’ तैयार करी गई, जैक लोकार्पण 5 सितंबर 2004 हुणि तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नारायण दत्त तिवारी ज्यू द्वारा मुख्य सचिव, सबै विभागीय सचिव और सबै संबंधित विभागनक उच्चाधिकारीनकि उपस्थिति में समारोहपूर्वक करी गो। आमजन, इस्कूली नानतिन और शिक्षकों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण बिकास करणक लिजी ‘विज्ञान वार्ता’ नामक एक समाचार पत्रक लै निकाली गो। मैं 2004 बटी यो संस्था दगाड़ विज्ञान लोकप्रियकरणक अभियानन में सक्रिय छी यैक लिजी 2006 में मेरि सेवानिवृत्ति बाद संस्थाक अध्यक्षताक भार मैंकैं सौंपी गो। जस कि मैंल बता 2004 बटी हम विज्ञान वार्ता कैं समाचार पत्रक रूप में लगातार प्रकाशित करण लागि रौछियां। 2010 में उत्तराखंड काउंसिल फाॅर साइंस एंड टैक्नोलाॅजी ;यूकाॅस्टद्ध द्वारा एक विज्ञान पत्रिका प्रकाशित करणक प्रस्ताव आ। तब भारत सरकार बटी ‘विज्ञान वार्ता’ जाग पर ‘विज्ञान परिचर्चा’ नौं स्वीकृत भौछ और तब बटी पहल संस्था, यूकाॅस्ट और भारतीय विज्ञान लेखक संघ मिलि बेर ‘विज्ञान परिचर्चा’ प्रकाशन करण लागि रई और अब तो यो पत्रिकाल राष्ट्रीय स्तर पर आपणि पछयाण बणै हाली।

सवाल- उत्तराखंड में राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षाक शुरूवात लै तुमूल करी, यो कसी है सकौ?

जबाब -साल 2006 में मानव संसाधन बिकास मंत्रालय द्वारा संचालित राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा उत्तराखंड में संचालित करणक लिजी मैंकैं अवसर दी गो। मैंल राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षाक क्षेत्रीय कार्यालय शुरू करौ और यांक इस्कूल नी जै सकणी वा्ल नानतिननक लिजी मुक्त शिक्षाक द्वार खोली। तीन साल तक यो संस्था माध्यमल हाईस्कूल व इंटरक हर 6-6 महैण में इमतान करूणक दगड़-दगड़ै ब्यावसायिक प्रशिक्षण दिलै बेर बेरूजगारन कैं रूजगार लैक बणा।

सवाल- मंच संचालन हो या बिचार गोष्ठी, तुमर प्रस्तुतिक अंदाज अलगै हुंछ और सबन कैं प्रभावित लै करूं। अच्याल कुमाउनी भाषा कैं अठूं अनुसूची में ल्यूणक लिजी लै प्रयास चलि रई। यो बार में तुम के कूण चाला?

जबाब- यो एक लंब बिमर्श छु। बोलिन कैं अठूं अनुसूची में ल्यूणक, भाषा घोषित करणक कुछ मानक छन। मैंल यो बिषय में खूब बोलि लै राखौ और लेखि लै राखौ। आज मैं इतुकै कूंल कि जब हम कुमाऊँक गौंन में, शहरन में, आपण घर में कुमाउनी में नी बुलाना तो अठूं  के कोई लै अनुसूची कुमाउनी कैं जिंद नी धरि सकनि। हम सब कुमाउनी लोग चाहे जां लै रूण लागि रयां, अगर आपण घर में कुमाउनी में बातचीत करूंला तो हमर उच्चारण, शब्दकोश, संस्कृति, परंपराक ज्ञान और रीति-रिवाज सब हमरि बोली-भाषा में प्रतिबिंबित हो्ल। यैक अलावा भारत सरकारक सर्वे में आपणि मातृभाषा कुमाउनी अंकित करूंल तबै अठूं अनुसूची लिजी सबूंहै ठुल मानक पुर हो्ल। तब कुमाउनी शब्दकोश, व्याकरण और सृजित साहित्यकि महत्ता बढ़लि। इस्कूलन में कुमाउनी मातृभाषा रूप में पढ़ाई जाण चैंछ। उत्तराखंड में यांकि बोलिन कैं द्वितीय राजभाषा घोषित करी जावो और बोलिन पर ठोस काम करणक लिजी सरकार द्वारा अकादमी स्थापित करी जावो।

सवाल- मैंल सुणी कि तुम कतुक नानतिनान कैं आपणि तरब बै पढूंछा और लोगनकि मधत लै करछा। सामाजिक सरोकारन में बढ़ि-चढ़ि बेर भाग लिण लै मैं देखनू। यो बा्र में लै थ्वाड़ बताला?

जबाब-भारती! कूनी कि कैकी मधत अगर दैण हाथल करछा तो बौं हाथ कैं लै पत्त नी लागण चैन। यैक लिजी मैं इनरि गिनती नी करण चान। यो म्यर आत्मतोष छू कि मेरि मधतल कुछ नानतिन भौत अघिल पुजण लागि रई और कुछ गरीब व दुखी लोगन कैं थ्वाड़ राहत मिल जांछ। चेलिन कैं पढूण और स्वावलंबी बणून में मेरि बिशेष रूचि छू।

सवाल- तुमर संपर्क में ऊणी हर मनखी तुमनकैं भल मानू और तुमन है प्रेरणा ल्यूं। तुमन कैं पुरस्कार, सम्मान लै जरूर मिल हुनाल, उनर बार में लै बताओ।

जबाब- सरकारी नौकरी में चाहे तुम कतुकै भल काम करछा, पुरस्कार और सम्मानक कोई प्राविधान न्हातन। अंतरराष्ट्रीय साक्षरता वर्ष में सार देश में अल्माड़ शहरकि संपूर्ण साक्षरता एक मात्र उपलब्धि छी और म्यर नाम पद्मश्री लिजी प्रस्तावित लै भौछ पर मैंल तो वीक लिजी लै के प्रयास नि कर। रिटायर हई बाद ‘पहल’ संस्था कैं आपण पुर टैम देछ तो संस्था कैं राष्ट्रीय स्तर पर चार-चार सर्वोत्कृष्ट पुरस्कार यथा- राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस उत्कृष्ट समन्वयक सम्मान 2007, राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस उत्कृष्ट सांस्कृतिक सम्मान 2010, राष्ट्रीय विज्ञान सम्मान 2012 ;1 लाख रूपैंक धनराशि दगैद्ध और पीक दधीचि सम्मान ;50 हजार रूपैंक धनराशि दगैद्ध मिली- म्यर लिजी योई उपलब्धि छू। सामाजिक क्षेत्र में लै हर साल कोई न कोई सम्मान मिलते रूनी, जैकि गणना लंबी है जालि। 2014 में राज्योत्सवक अवसर पर महामहिम राज्यपाल द्वारा प्रदत्त ‘माँ नंदा देवी’ सम्मान, 2015 में भारत विकास परिषद द्वारा प्रदत ‘गंगोत्री गब्र्याल’ सम्मान, 2016 में नरेन्द्र मोदी विचार मंच द्वारा प्रदत्त ‘उत्तराखंड गौरव’ सम्मान और 2018 में उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केन्द्र द्वारा दिई ‘विशिष्ट महिला वैज्ञानिक’ सम्मान खास छन। 

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• ‘पहरू’ कुमाउनी पत्रिका मार्च २०२१ अंक से साभार

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