कुमाउनी इंटरव्यू : आपुणि भाषा में कई बात जल्दी समझ में ऐंछ - देवकी महरा

देवकीनंदन भट्ट 'मयंक' 
तीनपानी, हल्द्वानी, मो.-99177441019ग


सी तो कुमाउनी भाषाकि ‘महादेवी’ नामल बिभूषित देवकी महरा क्वे परिचयक मोहताज न्हांतिन। उनर लिजी योई नौं ‘देवकी महरा’ सारगर्भित और स्वनाम धन्य छु। उनूथें ‘कुमाऊं कोकिला’ लै कई जां। फिर लै देवकी महरा कैं बिभूषित करणी सार्थक नामों में एक नाम ‘नारी बिमर्शकि साहित्यिक धारा: देवकी महरा’ और जुड़ सकौं तो यमें क्वे अतिशयोक्ति नि होलि, किलैकी ऊं आपुण शैशव काल बटी आज 84 सालकि उमर तक उरातार ऊर्जावान है बेर हिंदी और कुमाउनी जगत कैं सुवासित करण लागि रई। पिछाड़ि दिनौ उनू दगै बात चीत करणक मैंकें मौक मिलौ, जो पाठकों सामणि प्रस्तुत छ-

सवाल- देबकी दी! मातृभाषा कुमाउनी में गीत और कबिता लेखणकि परेरणा आपूं कैं कां बै मिली? यो बात मैं आपुण कुमाउनी कबिता संग्रह ‘निशास’ और ‘पराण पुंतुर’ क संदर्भ में जाणन चानू।
जबाब- जब बटि होश समालौ, मैं हमेशा संस्कार गीत, झोड़ा, हुड़की बौल, जागर आदि कार्यक्रमों में भाग लिई करछी। उनूकैं याद करणकि कोशिश लै करछी। नई-नई गीत बणौणकि कोशिश करछी। यो गीत, यो धुन सब म्यार मन में रची-बसी छी। हमेशा नई-नई रचना बणै बेर लेखछी और संकलन करछी। यो काम में मैंकैं शिवानी ज्यूल, यमुनादत्त वैष्णव ‘अशोक’ व दयानंद अनंत ज्यूल भौत मदद करी। फिर मोहन उप्रेती ज्यूल ‘निशास’ पुस्तककि भूमिका लेखी। पांडुलिपि उ.प्र. हिंदी संस्थान में जम करै। किताब प्रकाशन हुं संस्थान बै मदद मिली। बाद में पुस्तक कैं सुमित्रानंदन पंत पुरस्कार मिलौ। मोहन उप्रेती ज्यूल यैक भौत गीतोंक मंचन लै करौ।
‘निशास’ है पैंली हिंदी में ‘सपनों की राधा’ उपन्यास व ‘प्रेमांजलि’ काब्य संग्रह परकाशित है गोछी। वीक बाद लै द्वि हिंदी में काब्य संग्रह ‘स्वाति’ और ‘नव जागृति’ परकाशित हई। तब ‘पराण पुंतुर’ प्रकाशित है। वी बाद हिंदी उपन्यास ‘आखिरी पड़ाव’ प्रकाशित हौ। 
जब मैं रिटायर है गोछी और गायत्री शक्ति पीठ  में आपुणि सेवा दिण लागि रौछी, तब वैं बैठ बेर मैंल ‘पराण पुंतुर’ किताबकि रचना करी। यैकै लिजी यैकि रचना आध्यात्मिकताल ओत-प्रोत छन। यो समझ लियो कि मैंल आपणि जीवन भरकि साहित्यिक और आध्यात्मिक पूंजी, जो म्यार पराण छी। एक चावक टुकुड़ में बादि ‘पुंतुरि’ बणै बेर समाज कैं समर्पित कर दे। डाॅ. प्रयाग जोशी ज्यूल किताबक आमुख लेखि बेर यैक मान बढ़ा। शेर सिंह बिष्ट ‘अनपढ़’ शेरदाल पैंली कुमाउनी, बाद में बदइ बेर हिंदी में यैकि भूमिका लेखी। मैंल कारण जाणन चाछौ तो उनूल बता कि मैं चानू कि सारि दुणी जाणौ कि हमार पास लै कुमाउनी में एक महादेवी वर्मा छु। यौ शेरदाक म्यार प्रति अपूर्व स्नेह छी।

सवाल- दीदी! तुमूल हिंदी में जो साहित्य लेखौ, अगर वीक अनुवाद कुमाउनी में लै है जांछियौ तो कुमाउनी साहित्य और लै समृद्ध है सकछी।
जबाब- तुमर सवालक जबाब में कौण चानू कि सब किताबोंक अनुवाद करणक समय नि मिल पाइ। पर मैंल कुमाउनी साहित्यिक लिजी हमेशा काम करौ। ‘पछयाण’, ‘किरमोई तराण’, ‘उड़ घुघुती उड़’, ‘दुदबोलि’, ‘डांडा कांठा स्वर’, ‘धाद’ आदि सामूहिक काब्य संकलनों व पत्रिकाओं में मैंल गीत, कबिता, लेख आदि लिख बेर आपुणि भाषाक प्रचार-प्रसारक काम करौ।

सवाल- यैक के कारण छु कि लोग पैंली कुमाउनी भाषा में खूब लेखनी फिर अचानक हिंदी में लेखण फै जानी? 
जबाब- तुमर सवालक जबाब में कौण चानू कि एक तो प्रकाशनकि कम सुबिधा, दुसर परचार-परसारक लिजी बजार उपलब्ध न्हैं, जो कुमाउनी भाषाक लेखकों कैं हतोत्साहित करनी। कुमाउनी भाषा कैं प्रोत्साहनक लिजी भाषा संस्थानों कैं अघिल औण पड़ल। उसी आपुण-आपुण ज्ञानकि बात छु। हिंदी में लै लेखौ और कुमाउनी में लै लेखौ। खूब लेखौ। हर बिधा में लेखौ। आपुण कुमाउनी भाषाक भकार कैं भरौ। कुमाउनी में शब्द सामर्थ भौत छु। जो हिंदी में भल लेखनी, ऊं कुमाउनी में लै भल लेखि सकनी।

सवाल- कुमाउनी भाषा में गीत, कबिता, कहानी, उपन्यास आदिक तुलना में अच्याल जीवनी, यात्रा वृतांत, संस्मरण, आत्मकथा आदि बिधा पाठकों कैं जादा आकर्षित करण लागि रई। यैक कारण पाठकोंक बदली रूझान तो न्हैं? 
जबाब- मैं के बतौं? तुम खुदै सवाल करनौछा और खुदै जबाब लै दिणौछा। हां यो आपा-धापी, भागदौड़क समय में ठुल-ठुल बृतांत पढ़नक मनखियों पास समय न्हातिन। मौडर्न टैक्नौलौजी ‘लैपटौप’, ‘समाटफौन’ मनखियोंक जीवन शैलीक आधार बन गो। ऊं वी में मस्त रौनी। साहित्य किताबों में हुंछ, किताब क्वे पढ़न न्हां। सिर्फ, थोड़ा ‘इस्कूल डेज’ में पढ़नी। हमर समय में यस नि छी। 

सवाल- दीदी! अगर ईमानदारी साथ कई जाओ तो हमरि कुमाउनी भाषा कैं मार्जन, परिमार्जन, मानकीकरण और ब्याकरणकि भौत जरवत छु। आजि तलक ‘जतु कुंड, उतु मुंड’ या हर ‘दस कोस में बाणी और पाणी बदलि जां’ वालि कुपोषणक शिकार हुण पड़ रौ। तो यसि हालितों में हमरि कुमाउनी भाषा कैं संबिधानकि अठूं अनुसूची में ठौर मिल सकली के? जरा बताओ धैं।
जबाब- जतु बोलि (सैद 10 बोलि) हमार कुमाऊं मंडल में ऐल छैं, उनर ब्याकरण बणौन क्वे मामूली बात न्हैं। पर अगर हमार बुद्धीजीवी लोग मिलि बैठि बेर आपस में तर्क-बितर्कल सुझाव दी बेर के हल निकाल सकला त तबै बात बणलि। नतरि मैं ठुल-मैं ठुल कनै खालि लड़नै में रै जौंल। हात के लै नि आल। कहावत छु- ‘‘बकराक हणी चार टांग, गौं में हैगी आठ पधान’’ गलत कौणई के? बकाय कुमाउनी भाषा कैं संबिधानकि अठूं अनुसूची में ठौर दिलौणकि लिजी राजनीतिक इच्छाशक्ति हुण भौत जरूरी छु।

सवाल- एक सुलझी हुई सुविज्ञ नारी साहित्यकार हुणा कारण आपूंल प्राचीन व अर्वाचीन नारियोंक बिषय में भौत कुछ लेखी हुनल। एक सफल गृहणी, ममतामयी इज, कुशल प्रधानाध्यापिका जाणि कतुक रूपों में आपूंल एक भारतीय नारी कैं आपुण भितेर ढालि हुनल। बताओ दीदी, कसी कर दे य सब?
जबाब- भुला! मैंकें के पत्त नि चल। कब जिंदगी निकल गे। मेरि रचना धर्मिता देख- जब डाड़ आई- एक गीत लेखि दी। जब हँसि आई-दुसर गीत लेखि दी। जब भूख लागी-तब लै उसै क्वे गीत लेखि दी। नानतिनों कैं अङाव हालि बेर प्यार करते-क्वे लोरी-गीत लेखि दी। तो यसिकै समय गुजरनै गोय और मैं जीवन कैं गीतों में ढालनै गोय। यसिकै कैलै मैकैं ‘महादेवी’ कय तो कैलै ‘कुमाऊं कोकिला’। उसी भई मैं ‘तुमरि देबकी दीदि’। कोयल कैं पत्त जै के हुनल कि वीक नौं ‘कोयल’ छु कनै।

सवाल- देबकी दी! आपूं एक लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकारक साथ-साथ एक  बिदुषी महिला लै छा। यो संदर्भ में एक सवाल और कुलबुला गौ म्यार दिल में। कई जां कि एक सफल मनखियाक पछिल एक नारीक हात हुंछ। तुमरि सफलताक पछिल तुमर पतिदेवक हात छियौ के? या उनरि सफलताक पछिल तुमर?
जबाब- महरा ज्यूकि जिंदगीक सफलता पछिल म्यर हात छियो, नि छी मैंकें पत्त न्हैं, पर मेरि जिंदगीक सारी सफलताक श्रेय महरा ज्यू कैं जांछ। महरा ज्यू नि हुंछिया तो देवकी महरा ‘देवकी महरा’ नि हुनि। उनर करी नक/ भल सब म्यार लिजी सफलता सीढ़ी बणनै गई। 

सवाल- आपुण लेखी हिंदी और कुमाउनी साहित्य में -क्वे लै बाल- साहित्य किताब न्हैं। य जरा अस्वाभाविक जै लागूं। यस किलै दीदी?
जबाब- होय, य बात सई छू। बाल साहित्य अलग से लेखणक तो मैंकैं टैम नि मिल पर देहरादून में लेख लेखण शाला में मैं हर साल बुलाई जांछी। वां मैंकैं बाल साहित्य लेखणक मौक मिलौ। तब मैंल बाल-साहित्य पर लघु कथा, कहानी, नाटक, गीत, कबिता, लघु उपन्यास आदि पर काम करौ। बाद में प्रौढ़ शिक्षा विभाग द्वारा मैंकैं सम्मानित लै करी गो।

सवाल- देबकी दी! लोग कौनी कि आपुण पद्य साहित्य में छायावादी साहित्यकि झलक मिलैं। यौ बिषय में आपूं के कौण चांछा?
जबाब- भुला! मैंल जब लै कबिता लेखी ऊं क्वे लै वाद कैं ध्यान में धरि बेर नि लेख। हां, ‘अशोक वाटिका में सीता’ खंड काब्य ‘मनहरण छंद’ में लेखौ तो मैंकैं उमें भौत मेहनत करण पड़ी। मैंल साहित्य में प्रेम गीत,राष्टीय गीत लेखी। 

सवाल- आपुण मन पसंद कबित्री और प्रिय कबि को छी?
जबाब- ‘महादेवी वर्मा’ मेरि मन पसंद कबित्री छी। जब मैं रामगढ़ पढ़ांैछी तब उनर मकानक आंगण में बैठ बेर कबिता लेखछी। तब एक कबिता मैंल उनुहूं लेखी और उनर आशिरबाद मांगौ। उनूल भौत दिनों बाद उत्तर लेखि बेर आपुण आशिरबाद दे। जो ‘प्रेमांजलि’ में छपी छु। द्वि लाइन सुण लियो-
मैं दर्द भरे गीतों की रानी 
दर्द में मेरा बचपन बीता।
दर्द में सनी जवानी
दर्द ही ओढ़ा दर्द बिछाया।
दर्द की अकथ कहानी
मैं दर्द भरे गीतों की रानी।
म्यर प्रिय कबि शेरदा ‘अनपढ़’ छन। उनू दगाड़ मैंल करीब 25 साल तक मंच पर कबिता पाठ करौ। ऊं दीदी-दीदी कै बेर म्यर मनोबल लै बढ़ाई करछी। उनू बटि हमूल भौत कुछ सिखछ। 

सवाल- दीदी! गंभीर साहित्य है बेर इतर आपूंल और के-के लेखौ? म्यर मतलब जस-गीत (लोकगीत), जोड़, भगनौल, झ्वाड़, न्यौलि, गजल, शेरोशायरी, रूबाईयां आकाशबाणी और दूरदर्शनक लिजी कहानि, कबिता, गीत आदि।
जबाब- सबों है पैंली मैंल जबलपुर बटि प्रकाशित पत्रिकाओं में ‘गजल’ लेखी। करीब सात-आठेक पत्रिकाओं में 2-2 कै बेर 20 गजल लेखि हुनाल। आकाशबाणी लखनऊ, रामपुर और अल्मोड़ा बटि सैकड़ों गीत, कबिता, कहानि, लेख आदिक प्रसारण भै हुनल। मैंल हिंदी और कुमाउनी में कबि सम्मेलनों में देहरादून,अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, रामपुर, मुरादाबाद तकाक मंचों में सैकड़ों बार भागीदारी करी और हिंदी, कुमाउनी में कबिता सुणाई। 

सवाल- जरा महाकबि सुमित्रानंदन पंत ज्यूक बार में लै बताओ धैं। मैंल सुणौ ऊं तुमार प्रेरणा स्रोत रई बल। आपूं कैं कबित्री/साहित्यकार बणौन में उनर क्वे योगदान?
जबाब- पंत ज्यूक ठुल भै अल्माड़ में रौंछी-जौहरी मुहल्लाक पिछाड़िक गली में और मैं खजांची मुहल्ला गली में रौंछी। वां उनरि एक भतिजि सोमा छी। पंत ज्यू जब कभै अल्माड़ औंछिया तो ऊं आंगणक दिवाल में कालीन बिछै बेर कबिता लेखछी। जब उनार कबिता लेखी पन्न हा्व में उड़ि जांछिया तो मैं और सोमा ऊं पन्नों कैं इकट्ठ कर बेर पंत ज्यू कैं दिण में आपूं कैं धन्य समझछी। तब मैं 8-9 सालकि हुनेली सैद। उन दिनों पंत ज्यू छायावादी कबि रूप में प्रसि( है गोछी। मैं लै उनर जस बणन चांछी और उनूकैं लुकि-लुकि बेर चै रौंछी। जथां-जथां उनर स्योव पड़छी मैं पछिल-पछिल सुर-सुर फटक मारनै न्है जांछी। एक दिन उनूल धम-धम चितै, पछिल घुमि बेर चाछ तो म्यर हात पकड़ि बेर पुछ -‘‘के करनैछै तू तस?’’ मैं डाड़ मारण लागि गई। उनूल कय-‘‘सच्ची बता, के बात छु?’’ तब मैंल बतै कि आपूं कैं सबै लोग ‘छायावादी कबि’ कौनी। तब मैं आपुण स्योव में हिटणैछी। ‘‘किलै’’ कय उनूल। मैंल कै दी कि मैं लै कबि बणन चानू। पंत ज्यू कैं हँसि ऐ गइ। फिर उनूल कय-‘‘तू घर जै बेर एक कागज में म्यर नाम लेखिए और जे लै तुकैं औंछ उ सब लेखनै जाए।’’ मैंल घर जै बेर उसै कर। तब बटि पंत ज्यू म्यार पैंल साहित्यिक गुरू बण ग्या। 
पंत ज्यूक निधन बाद मैंल और लोगों कैं आपुण दगै जोड़ि बेर कौसाणि में ‘पंत वीथिका’ बणवै। जैक लिजी सरकार दगै एक दीर्घ कालिक संघर्ष लै हम लोगोंल करौ। उभत म्यार पतिदेब श्री यशपाल महरा ज्यू वांक गौंक सभापति छी। हमार दगाड़ साहित्यकार रतन सिंह किरमोलिया, गोपाल दत्त भट्ट और लै भौत नामी-गिरामी लोगोंल सहयोग करि बेर ‘पंत वीथिका’ काम कैं निभा। ‘बागनाथ’ प्रकाशन द्वारा जब तक प्रकाशन चलौछ, हर साल ‘पंत स्मारिका’ निकाली जांछी और पंत जयंती में कार्यकरम लै करी जांछी।

सवाल- दीदी! आपूं रिटायर हई बाद गौंक सभापति लै बणछा बल। तब तुमुकैं यस नि लागौ कि अगर आपूं राजनीति में हुंछिया तो और सफलता व ऊंचाई मिलनि?
जबाब- मैंकैं यौ बातक बिल्कुल लै मलाल न्हैंती कि मैं राजनीति में किलै नि गोय। किलैकी नानतिना दगड़ि तो द्याप्तनक दगड़ भय। मैं शिक्षा बिभाग में भौत खुश रई, हालांकि मैं वां लै हमेशा प्राथमिक शिक्षक संघ उपाध्यक्ष रई और अध्यापकोंक अधिकारों लिजी लड़नै रयूं।

सवाल- बाद में आपूं शांति कुंज गायत्री शक्ति पीठ दगाड़ लै जुड़ि गोछिया बल। यौ आध्यात्मिक झुकाव कसी भौछ? 
जबाब- जीवन भर कामै काम, आपाधापी, नौकरी, घर-गृहस्थी, अध्ययन- अध्यापन, पठन-पाठन बाद जरा मानसिक शांति लिजी आध्यात्मिकता तरफ मुड़ी। ‘गायत्री साधना शक्ति पीठ’ कि साधना प्रक्रिया भौत संयमित और लंबी हैं। पैंली नौ दिनोंक साधना सत्र बटि, उरातार जप-तप, हवन-यज्ञ, पूजा-पाठ, योग- ध्यानक साथ और लै भौत कार्यक्रम चलते रौनी.. सब करण पड़नी और करण चैनी लै। खैर, फिर बाद में आपुण निवास ‘गायत्री-भवन’ हल्द्वानी में बणा। हाल-फिलहाल यैं रौनू अब। 

सवाल- दीदी! मैंल सुणौ आपूं बचपन में खुराफात लै करछिया बल। क्वे खुराफात आपुण पाठकों कैं लै बतै दियो धैं।
जबाब- भुला! खुराफात तो भौत करछी एक खुराफात यो छु कि अल्माड़ में जां मैं बचपन में रौंछी, वां कम्र में मैं आपुण सिराण एक कौपि-पिलसन हमेशा धरि रौंछी। रात में जब क्वे कबिता, गीत या कहानिक पलौट डिमाग में याद औंछी तो उ बखतै उकैं कौपि में नोट करि लिछी और जादातर कबिता, गीत लेखछी और क्वे भलि जै कबिता या गीत बन पड़ौ तो उनर कबिता-पाठ लै करण लागि या धुन बणौन जांछी। पड़ोसियोंल रात में म्यार कम्र बटि गणमणाटकि अवाज औण सुणि हुनलि। उनूल पड़ोस में सबौं कैं बतै दी कि म्यार कम्र भितेर बै रात में भूतोंकि गीत गाणकि अवाज ऐं। जब भौत दिनों बाद उनूकैं पत्त चल कि उ गीत गैणी वाल भूत देवकी छु तो सब हँसनै रै गई। पर म्यर कबिता पाठ, गीत गैण बदस्तूर चलते रय।

सवाल- दीदी! आपूं कुमाउनी भाषाक नवोदित साहित्यकारों हुं के संदेश दिण चाला?
जबाब- मयंक ज्यू! मैं नवोदित साहित्यकार भै-बैणियों हैं कौण चानू कि यौ साहित्यै छु कि जो किसानों कैं उर्जा, सैनिकों कैं जोश और नानतिनों कैं प्रेरणा द्यौं। नारी में प्रेम, समर्पण भाव और पुरूष में उत्तरदायित्व भरौं। शक्तिहीन में शक्ति और तपस्वी में तप भरौं। आपुणि भाषा व बोली में कई गई बात जल्दी समज में ऐंछ। यैक संबर्धन और प्रचार- प्रसारक लिजी ऊं सब प्रयास करौ जैल कि हमरि दुदबोलि कुमाउनी संबिधानकि अठूं अनुसूची में ठौर पै सकौ, बस।

सवाल- आपुणि जिंदगीक क्वे यादगार घटना बार में बताओ, दीदी।
जबाब- उसी तो मेरि पुरि जिंदगी कयेक घटनाओंक संगम छु पर एक घटना मैं जरूर सुणौन चानू। भुला! जब ‘निशास’ क लिजी मैं कैं ‘पंत पुरस्कार’ मिलौ तो तब मैं जू.हा. स्कूल सितारगंज में प्रधानाध्यापिका छी। तब शिक्षा समितिल एक भब्य समारोह मनै बेर म्यर स्वागत समारोह वांक ‘पिक्चर हाॅल’ में आयोजित करौ। शिक्षा बिभागाक सबै उच्च अधिकारी तथा अध्यक्षता लिजी जिलाध्यक्ष ज्यू लै बुलाई छी। गणमान्य नागरिक स्थानीय लोक-कलाकार तथा इस्कूलोंक नानतिन लै हौल में प्रोगरामक लिजी आई भाय। सिनेमा हौल ठसाठस भरी हय। उ दिन म्यर स्वागत समारोह कैं देखणक लिजी मेरि इज लै दगाड़ आई भै और सबों है अघिलक सीट में भैटी भै। उतुक में डी.एम. सैप कैं ल्यौणी अधिकारी लिजी क्वे सीट खालि नि भै तो कैलै कय कि उ अघिलक सीट में भैटी माई कैं, कैं और भैटै दियो। तो यतुक में डी.एम. सैपल चट उठि बेर इज कैं आपुण दगाड़ मंच में आपणि सीट में भैटै दी और आपुणि फूलोंकि माउ लै इजाक गाउ में डालि दी तो हौल तालियौंल गड़गड़ै गोय। म्यार आँख भरी आय। उ छी म्यर असली पुरस्कार-सत्कार। यैक बाद मुरली वाल महाराज ज्यूल मुरली बजै, डाॅ. भवानीदत्त पंत ज्यूल बंदना कै और इस्कूली नानतिनोंल ‘निशास’ क गीतोंक मंचन करौ। भौत भल कार्यक्रम संपन है बेर जब घर आयूं तो इजल मैंकैं पट्ट अङाव हालि बेर कौछ- हाइ वे चेलि! तू तो भौत्तै ‘बलार’ छै क्याप। मैंल इज हैंति कै- ‘बलार’ नैं ‘गिदार’ कौ ‘गिदार’। ऊ हँसण लैगै। ऊ म्यर लिजी एक अविस्मरणीय क्षण छी। आज मैं इन शब्दोंक साथ आपुण इज स्व. बसंती देवी कैं श्रद्धांजलि अर्पित करण चानू- नमन करण चानू।

सवाल- दीदी! आंखिरी सवाल अब यौ बताओ कि आपूं कैं हिंदी/ कुमाउनी साहित्यकि उत्कृष्ट सेवाओं लिजी जो पुरस्कार/सम्मानोंल बिभूषित करी गो, उनर नाम और आज तक रचित साहित्य लै बताओ। 
जबाब- पुरस्कार जीवन में भौत मिली जनर असली हकदार म्यार बाबू जी और ससुर जी छी, जनूल मैंकैं लिखणक लिजी प्रेरित करौ।  पुरस्कार यो प्रकार छें:-
• ‘सुमित्रानंदन पंत पुरस्कार’ सन् 1984: हिंदी संस्थान (उ.प्र.)।
• ‘कुमाऊं गौरव’ सन् 1986ः पर्वतीय संस्थान, नई दिल्ली।
• ‘आचार्य नरेन्द्र देव शिक्षा निधि सम्मान’ सन् 1987 (उ.प्र.)।
• ‘ राज्य संसाधन प्रौढ़ शिक्षा सम्मान’ देहरादून, सन् 2001।
• ‘उत्तराखंड वरिष्ठ साहित्यकार सम्मान, सन् 2006।
• ‘विद्या वारिधि सम्मान’ सन् 2007: शिखर साहित्यकार सम्मेलन
• ‘कुमाउनी साहित्य सेवी सम्मान’ सन् 2009: ‘पहरू’ कुमाउनी पत्रिका
• ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला साहित्य सम्मान’ ‘वसुंधरा’ सन् 2009।
• ‘मौलाराम सम्मान सन् 2011-12: लोकभाषा संस्थान, देहरादून।
• ‘मोहन उप्रेती लोक संस्कृति सम्मान’ सन् 2014।
• ‘शेरसिंह बिष्ट ‘अनपढ़’ कुमाउनी कविता पुरस्कार’ - सन् 2016। ‘पहरू’ कुमाउनी पत्रिका।
• ‘तीलू रौतेली पुरस्कार’ सन् 2013 (उत्तराखंड)।

छपी साहित्य-
• निशास (कुमाउनी कविता संग्रह)
• पराण पुंतुर (कुमाउनी कविता संग्रह)
• अशोक वाटिका में सीता (हिंदी खंडकाव्य)
• प्रेमांजलि (हिंदी काब्य संग्रह)
•  स्वाति (हिंदी काब्य संग्रह)
• नवजागृति (हिंदी काब्य संग्रह)
• आखिरी पड़ाव (हिंदी उपन्यास)।
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('पहरू' मई २०२१ अंक बै )






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