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कुमाउनी भाषा का 14 वां राष्ट्रीय सम्मेलन हल्द्वानी में, जुटेंगें कुमाउनी को समर्पित शख्सियत

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ललित तुलेरा/अल्मोड़ा।        ‘पहरू’ कुमाउनी मासिक पत्रिका और ‘कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति’ ओर बै साल 2009 बै हर साल कराई जाणी तीन दिनी ‘राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन’ अलीबेर 11 नवंबर बै 13 नवंबर 2022 तक हल्द्वानी में होल। ‘पहरू’ पत्रिका और समिति द्वारा कराई जाणी य सम्मेलन कुमाउनी भाषाक 14 ऊं राष्ट्रीय सम्मेलन छु।  सम्मेलन हीरा नगर में मौजूद ‘पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच’ हल्द्वानी में उरयाई जाल। य सम्मेलन ठुल रूप में मनाई जाण लागि रौ जमंे कुमाऊं और वी है भ्यार देश भर में बसी कुमाउनी साहित्यकार, कुमाउनी भाषा प्रेमी, संस्कृतिकर्मी, कलाकार, चित्रकार शामिल ह्वाल। सम्मेलन में कुमाउनी भाषा, साहित्य, संगीत, कलाक मिली जुली रूप देखण में आल और भाषा, साहित्य, कला, संगीत में योगदान दिण लागी शख्सियतों कैं सम्मानित व पुरस्कृत लै करी जा्ल। सम्मेलन में पुस्तक प्रदर्शनी, फोटी प्रदर्शनी, समाचार कटिंग प्रदर्शनी, कला एवं चित्र प्रदर्शनी समेय हौर कएक प्रदर्शनी लै लगाई जा्ल। तीन दिनों पुर कार्यक्रमों कैं शोसल मीडिया माध्यमल लाइव प्रसारण लै कराई जा्ल। ...

'उज्याव' संगठनक आठूं कुमाउनी कवि गोष्ठी संपन, कवियोंल सुणाई कविता

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  ललित तुलेरा/अल्मोड़ा। 25 सितंबर 2022 हुं इतवारक दिन ' उज्याव ' (कुमाउनी भाषाक लिजी युवा तराण) संगठन द्वारा आपण मासिक कुमाउनी काव्य पाठ कार्यक्रम करी गो। ब्यालकार 07 बाजी बै गूगल मीट में ऑनलाइन उरयाई यो 8ऊं मासिक कार्यक्रम में रचनाकारोंल कुमाउनी भाषा में कविता सुणाई।      ' उज्याव' कुमाउनी भाषा में कलम चलूणी युवाओंक संगठन छु, जमें कुमाऊँ समेत देश भर बै प्रवासी कुमाउनी रचनाकार जुड़ रई। संगठन द्वारा हर महैण आँखिरी इतवारक दिन एक ऑनलाइन कवि गोष्ठी कराई जैं। य कवि गोष्ठीक संचालन कुमाउनी युवा कवि व 'उज्याव' संगठनक संयोजक दीपक सिंह भाकुनी (सोमेश्ववर) द्वारा करी गो। य बार कार्यक्रम में खास पौण व कार्यक्रम अध्यक्ष कुमाउनी व हिंदी साहित्यकार पुष्पलता जोशी 'पुष्पांजलि' (हल्द्वानी) छी। कार्यक्रमक शुभारंभ दीपा पांडे(चंपावत) द्वारा मां शारदाक प्रार्थनाल करी गो।  ● यों कुमाउनी रचनाकारोंल करो कविता पाठ-    गोपाल सिंह बिष्ट (देहरादून), पुष्पलता जोशी 'पुष्पांजलि' (हल्द्वानी), भूपाल बिष्ट (रानीखेत), नंदकिशोर जोशी (गुजरात) , श्रीमती बीना भट्ट (हल्द्वानी)...

कुमाउनी यात्रा बृतांत - लंदन जस मैंल देखौ- डॉ. मनोहर जोशी

         डॉ. मनोहर चंद्र जोशी   मल्ली बमौरी, हल्द्वानी,  मो.- 7579232500              जी वन में कभै-कभै यसि घटना लै घटित है जैं जैक बार में हमूकें पैंली के पत्त नि हुन। मैंल लै कभै यो नैं सोच राखौछी कि मैं लै कभै बिदेशकि यात्रा करूंल। हमर च्यल लंदन में एक कंपनी में काम करों। उ आपणि घरवालिक दगाड़ लंदनाक हैटफील्ड नामक जाग में रौं। वील हमूथें  आपण पासपोट बणौनै लिजी जोर करौ, तब मैंल और मेरि घरवाइ ल आपण पासपोट बणै ल्हि। पासपोट आइया बाद वील हमर लंदन क बीजा लै बणै दी और हमूथें कौन लाग कि लंदन औनकि तैयारी करौ। फिर एक दिन वील म्यर और मेरि घरवाइ द्वियां कै लंदनक टिकट भेजि दे।                                                तारीख 05 अप्रैल 2019 हुं हम दुवै हल्द्वानि बै संपर्क क्रांति रेलल दिल्ली हुं रवान है गयां, उ रात हम आपण चेलि क यां नोएडा में रयां। अघिल दिन 06 अपै्रल 2019 हुं हमरि लंदन यात्रा शु...

कुमाउनी किताब समीक्षा-भाग-३ । 'बोध का्थ' व 'ऐपण'

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          (किताब पर चर्चा  (भाग-३) में आपूं लोगनक भौत स्वागत छु। यां आज ' बोध का्थ '   और ' ऐपण'  किताबों पर चर्चा करी जाणै। चर्चा करण लागि रीं युवा  कुमाउनी समीक्षक - ललित तुलेरा । )  बोध का्थ : कुमाउनी गद्य साहित्य में नई परयास बो ध का्थ जनूकैं हिंदी में ‘ बोध कथा ’ कई जांछ। असल में यों मनखी कैं असली मनखी बणून व गुणवान, संस्कारवान बणून में भौत कारगर हुनी। यैकै वजैल इनरि अहमियत कैं देखि बेर बोध (नैतिक) का्थ इस्कूली कोर्स में नानतिनों कैं लै पढ़ाई जानी। डाॅ. पीताम्बर अवस्थी ज्यू द्वारा लेखी ‘ बोध का्थ’ किताब कुमाउनी में नई परयास रूप में देखां है रै। हिंदी व संस्कृत साहित्य में बोध काथोंक भरमार छु। ‘हितोपदेश’, ‘पंचतंत्र’ जा्स कएक किताबोंकि सैकड़ों बोध का्थ पढ़न में मिल जानी पर कुमाउनी साहित्य में बोध काथोंकि क्वे किताब ऐल तक देखण में नि आई छी। य किताब में बिबिध बिषयों पर गुण, संस्कार दिणी 40 बोध का्थ एकबट्याई छन। इमें शामिल हर बोध का्थ आपुण में खास छु। यां शामिल हर बोध का्थ एक ठुल सीख हमूकैं जरूड़ दींछ । •••••• बोध का्थ • लेखार- ड...

किताब पर चर्चा : भाग दो । उत्तराखंडाक लोकभाषाओं पर जुड़ी द्वी खाश किताब- ललित तुलेरा

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 (  किताब पर चर्चा (भाग-२) में आपूं लोगनक भौत स्वागत छु। यां आज \" हे जन्माभूमि\"  और "\" उत्तराखंड लोकभाषाओं के सृजनरत रचनाकार\"  किताबों पर चर्चा करी जाणै। चर्चा करण लागि रीं युवा कुमाउनी समीक्षक - ललित तुलेरा । )       एक तरफ \"हे जन्माभूमि!\" कुमाउनी कबिताओंक हिंदी अनुवाद रूप में कुमाउनी अनुवाद साहित्य में नई प्रयासों में एक छु। तो वांई दुसर तरफ \"उत्तराखंड के सृजनरत रचनाकार\" लै उत्तराखंडाक लोकभाषाओं में कलम चलूण लागी लेखारोंक परिचय दिणी किताब रूप में सामणि ऐ रै जो य क्षेत्र में नई प्रयास प्रयास छु। यों दुवै किताब हमुकैं आपणि भाषाओं में भौत कुछ करणकि सीख दिनी।    हे जन्माभूमि ! : राणा ज्यूकि हियकि बात हिंदी में लै         आ पणि प्रतिभाक दम पर कुमाउनी पद्य साहित्य व लोक साहित्य कैं नई मुकाम तलक पुजूणी प्रतिभाक सेठ रचनाकार हीरा सिंह राणा ज्यूकि 51 कुमाउनी कबिताओंक हिंदी अनुवाद रूप में ‘ हे जन्माभूमि ! ’ किताब उज्याव में ऐरै। राणा ज्यूल कुमाउनी भाषा में सैकड़ों कबिता लेखीं और उनूल उनूकें आपणि अवाज दे। उनरि...

कुमाउनी समीक्षा : कुमाउनी शब्दों पर द्वी किताब। समीक्षक-ललित तुलेरा

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( ' किताब पर चर्चा ' में आपूं लोगनक स्वागत छु। यां  कुमाउनी शब्दों पर लेखी द्वी नई   किताब 'प्यौलपिटार' व ' कुमाउनी बोली शब्द संग्रह हिंदी अर्थ के साथ’ पर चर्चा करी जाणै। समीक्षक छन- ललित तुलेरा । ) कु माउनी में शब्दकोशकि शुरूवात 1983 ई. में ‘ कुमाउनी हिंदी व्युत्पत्तिकोश ’ नामल भै, जकैं डाॅ. केशव दत्त रुवाली ज्यूल तैयार करौ। यैक बाद कुमाउनी में ऐल तलक द्वीभाषी व बहुभाषी ना्न-ठुल करीब 8 है सकर शब्दकोशोंकि रचना है गे।          कुमाउनी शब्दकोशोंक य क्रम में ‘ प्यौलपिटार ’ हमर सामणि छु। ‘प्यौलपिटार’ उकैं कूनी जो ब्या में बर/ब्योलिक ब्याक समान धरणी बगस (टरङ) हुं, इकैं ‘ब्यौलपिटार’ लै कई जां। कोशाक लेखार कुमाउनीक नामी लेखार पूरन चंद्र कांडपाल छन। कांडपाल ज्यूकि कुमाउनी साहित्याक तमाम बिधाओं व ‘कुमाउनी भाषाक ब्याकरण’ समेत कुमाउनी भाषा में य चौदूं (14) किताब छु। बिकासक बा्ट में बटयोर भाषा में शब्दकोश रचण बौं हातक काम नि हुन।  परसिद्ध भाषाविद स्कैलीगरक कथन छु- ‘‘ अगर क्वे अपराधि कैं ठुलि है ठुलि सजा दिण छु तो उकैं कोश निर्माणकि बुति ...

ललित तुलेरा की 5 कुमाउनी कविताएं

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ललित तुलेरा की 5 कुमाउनी कविताएं ललित तुलेरा जनम - 25 जून 1999 निवासी - ग्राम- सलखन्यारी, गरूड़ (बागेश्वर) उत्तराखंड लेखन- कुमाउनी व हिंदी में कविता, लेख, समीक्षा आदि। मो.-7055574602 ईमेल- tulera.lalit@gmail.com ब्लाॅग- Kumaunibhasa.blogspot.com 1. पछयाण पहरूवो!  कां गेछा रे? किलै बुज री आँख? किलै फरकै रौ मुख? अणपूछ किलै है रै ? किलै डौंसी रछा निझरक ? कलटोव, निमुजि, बेफिकर किलै ? मट्टीपलीत, जड़उबाड़, कुकुरगत किलै ? चहान-चहौता किलै ना ? निग्वाव गुसैंक किलै बणै रौ ? जड़ बुस्यै घाम किलै लगूंछा। धार वौर, ढीक नजीक आओ उघाड़ो आँख, चिताव हवो। तुम उनर औलाद छा जो तुमर भरौस सौंप जैरी पछयाण, संस्कृति, दुदबोलि। खड़पट्ट, बजी जा्ल        निखाणि हलि, गाड़ बगल सब। के जबाब देला भोवक दिन आपणि आनि-औलाद कैं?  2. धाद माइक लालो!  धौंस, डोंडारी, ऐंठ बजरमुखी किलै? चुईक बा्ट निकवल। छम-बिछम, तड़ी, नड़ि-बेद किलै? मनखी छा यार। बुथ्यै खाणी,  मौकै-मौकै बेर किलै? द्वि र्वटै तो खाला। छरब हंकार,  द्वछै बेर किलै? मा्ट है जाला। धौ-धीत में आओ थिर -थाम मे...