किताब पर चर्चा : भाग दो । उत्तराखंडाक लोकभाषाओं पर जुड़ी द्वी खाश किताब- ललित तुलेरा
( किताब पर चर्चा (भाग-२) में आपूं लोगनक भौत स्वागत छु। यां आज \"हे जन्माभूमि\" और "\"उत्तराखंड लोकभाषाओं के सृजनरत रचनाकार\" किताबों पर चर्चा करी जाणै। चर्चा करण लागि रीं युवा कुमाउनी समीक्षक- ललित तुलेरा। )
एक तरफ \"हे जन्माभूमि!\" कुमाउनी कबिताओंक हिंदी अनुवाद रूप में कुमाउनी अनुवाद साहित्य में नई प्रयासों में एक छु। तो वांई दुसर तरफ \"उत्तराखंड के सृजनरत रचनाकार\" लै उत्तराखंडाक लोकभाषाओं में कलम चलूण लागी लेखारोंक परिचय दिणी किताब रूप में सामणि ऐ रै जो य क्षेत्र में नई प्रयास प्रयास छु। यों दुवै किताब हमुकैं आपणि भाषाओं में भौत कुछ करणकि सीख दिनी।
हे जन्माभूमि ! : राणा ज्यूकि हियकि बात हिंदी में लै
आपणि प्रतिभाक दम पर कुमाउनी पद्य साहित्य व लोक साहित्य कैं नई मुकाम तलक पुजूणी प्रतिभाक सेठ रचनाकार हीरा सिंह राणा ज्यूकि 51 कुमाउनी कबिताओंक हिंदी अनुवाद रूप में ‘हे जन्माभूमि !’ किताब उज्याव में ऐरै। राणा ज्यूल कुमाउनी भाषा में सैकड़ों कबिता लेखीं और उनूल उनूकें आपणि अवाज दे। उनरि पहुंच जदुक लंबी कुमाउनी संगीत में देखीं, उदुकै कुमाउनी साहित्य में लै देखींछ यानी उनरि पछ्याण जदुक एक गिदारक रूप में छु उदुकै कबि रूप में लै छु।
राणा ज्यूकि कुमाउनी रचनाओंक हिंदी अनुवादक काम कुंदन सिंह उजराड़ी द्वारा करी जैरौ। य किताब में राणा ज्यूक 51 कुमाउनी कबिताओंक अनुवाद हिंदी भाषा में अनुवाद करी छु, जनूमें भौत सा रचनाओं कैं उनूल गीत रूप में गै रौ और ऊं कुमाउनी समाज में भौत लोकप्रिय भईं। य किताब में उनर हिंदी अनुुवाद दगै मूल कुमाउनी कबिता कैं लै ली रौ।
•••
राणा ज्यूकि पहुंच जदुक लंबी कुमाउनी संगीत में देखीं,
उदुकै कुमाउनी साहित्य में लै देखींछ यानी उनरि पछ्याण
जदुक एक गिदारक रूप में छु उदुकै कबि रूप में लै छु।
----------------------
हे जन्माभूमि!
अनुवादक-
कुंदन सिंह उजराड़ी
• पैंल संस्करण-2021
• पेज- 157
• छापनेर- मानिला विकास
समिति, अल्मोड़ा
• मुबाइल- 9868723654
9899390686
----------------------
•••
य किताब में राणा ज्यूक 51 कुमाउनी कबिताओंक
अनुवाद हिंदी भाषा में अनुवाद करी छु,
कुमाउनी भाषा में अनुवादक काम भौत हई छु। इमें संस्कृत ग्रंथोंक, बाइबिल, हिंदी गद्य, पद्य रचनाओंक अनुवाद हई छु पर कुमाउनी रचनाओंक हौर भाषाओं में अनुवादक काम बिल्कुल ना बराबर। य तरफ मथुरादत्त मठपाल ज्यूल कुमाउनी कबि शेर सिंह बिष्ट ‘अनपढ़’ ज्यूकि 12 कबिताओंक ‘अनपढ़ी’ नामल 1986 ई. में, गोपाल दत्त भट्ट ज्यूकि 16 कबिताओंक ‘गोमती-गगास’ नामल 1987 ई. में, ‘हम पीर लुकाते रहे’ नामल 1989 ई. में हीरा सिंह राणा कि कबिताओंक हिंदी में अनुवाद करि बेर किताबक रूप में छपवाई। चारू चंद्र पांडे द्वारा गौरीदत्त पांडे ‘गौर्दा’ क कुमाउनी कबिताओंक अंग्रेजी में अनुवाद \"echoes from the hills\" नामल 1997 ई. में करौ। यैक अलावा लै कुछ छुट पुट काम हई छु। अनुवादक काम आ्ब हौर भाषाओंक कुमाउनी में तो हुणै लागि रौ, पर कुमाउनीक रचनाओंक हौर भाषाओं में भौत कम।
य कई जै सकीं कि कुंदन सिंह उजराड़ी क मिहनत और ‘हे जन्माभूमि’ बदौलत हीरा सिंह राणा ज्यूक रचनाओं कैं हिंदी जाणनी लोग लै जाणि सका्ल। उनर हियकि अवाज दूर तलक पुजलि और कुमाउनी भाषा लोकप्रियता और सम्मानक हकदार बणलि। य एक यस काम लै छु जो कुमाउनीक रचनाओं कैं हौर भाषाओं में अभिब्यक्त करी जाणौ। आश करी जै सकीं कि हमार कुमाउनीक लेखार आपण लेखन कैं स्तरीय बणाल जैल भविष्य में कुमाउनीक रचनाओंक लै हौर भाषाओं में अनुवाद करी जै सकौ।
•••
लोकभाषाक लेखारोंक परिचय दिणी पोथि
उत्तराखंडाक भाषाओं कुमाउनी, गढ़वाली में लेखणकि बुति सैकड़ों साल बै चली आई छु। इन द्वी भाषानक अलावा लै उत्तराखंडाक जौनसारी, जोहारी, थारू, बंगाणी, बोक्साड़ी, मार्च्छा, रं-ल्वू, रवांल्टी, राजी, जौनपुरी आदि भाषा मानी जानी। य कूण सई रौल कि यों बोलि-भाषानक लोक साहित्य पुरा्ण छु और भाषाओंक ब्यौहारिक इस्तमाल होते आई छु।
गढ़वाली, हिंदी लेखार शान्ति प्रकाश ‘जिज्ञासु’ द्वारा तैयार ‘उत्तराखंड लोकभाषाओं के सृजनरत रचनाकार’ खास रूपल उत्तराखंडाक द्वी लोकभाषा कुमाउनी व गढ़वाली में ऐलक बखत में कलम चलूण लागी लेखारों पर केन्द्रित छु। यैक अलावा इमें जौनसारी, जौनपुरी, रवाल्टी आदिक लेखारोंक परिचय लै मिलूं।
य काम लेखन है हट बेर यस किसमक काम छु जमें लोकभाषाओंक 112 लेखारोंक फोटो दगाड़ परिचय कैं एकबट्याई जै रौ। जमें कुमाउनी भाषाक 21 और गढ़वाली व हौर भाषानाक 91 लेखार शामिल छन। इमें सबन है सकर परिचय गढ़वाली लेखारोंक मि
-----------------------
उत्तराखंड लोकभाषाओं के
सृजनरत रचनाकार
• संपादन-
शांति प्रकाश ‘जिज्ञासु’
•पैंल संस्करण-
•कीमत- 250/- रूपैं
•पेज- 224
•छापनेर- धाद प्रकाशन,
देहरादून,
•मुबाइल- 9219510932
9897987624
-----------------------
•••
य किताब में उत्तराखंडाक लोकभाषाओंक 112 लेखारोंक फोटो
दगाड़ परिचय कैं एकबट्याई जै रौ। जमें कुमाउनी भाषाक
21 और गढ़वाली व हौर भाषानाक 91 लेखार शामिल छन।
इमें सबन है सकर परिचय गढ़वाली लेखारोंक मिलूं।
उसिक तो कुमाउनी, गढ़वाली में सैकड़ों लेखार कलम चलूनई पर य किताब में वीक मुकाबिल में भौत कम रचनाकारोंक परिचय मिलूं।लोकभाषाओंक जादेतर लेखार यमें सामिल नि है सक। दिवंगत लेखार इमें शामिल न्हांतिन। पर इकें नई सोच दगाड़ उपजी बुति कई जाण चैं, जो आज तलक देखीण में नि आय। य पोथि में उत्तराखंडी भाषाओंक सृजनरत भाषाविद, कवि, लेखक, साहित्यकार, गिदार, कथाकार, संपादक, गीतकार आदि बिधाओं में काम करणी रचनाकारोंक परिचय सामिल छु। किताबक अभिब्यक्तिक माध्यम हिंदी भाषा छु। य पोथि में लेखारोंक लंब परिचय मिलूं।
आंखिर में य कई जै सकीं कि शांति प्रकाश ‘जिज्ञासु’ ज्यूल लोकभाषाओं में ऐल कलम चलूण लागी लेखारोंक परिचय दिणक मकसदल नई बुति में हात खितौ। य एक भौत मिहनतक, नई किस्मक काम तो छुई, यैकि जरवत भौत चिताइण रछी। ‘जिज्ञासु‘ ज्यूल लेखनक क्षेत्र में य एक नई सोच लेखन बिरादरी कैं दि रै जां हम आपणि लोकभाषाओंक लेखारों कैं एक दगाड़ जाणि सकनू। य क्षेत्र में भौत काम करी जाणकि जरवत छु, जमें हमरि भाषा संस्थान, भाषा अकादमियों कैं लै अघिल ऊण चैं।
•••
य समीक्षा \"पहरू\" कुमाउनी मासिक पत्रिकाक अक्टूबर २०२१ अंक में छपी छु। य वांई बै लिई जैरौ।
•••
( ललित तुलेरा कुमाउनी समीक्षा में नई व युवा हस्ताक्षर छन। यों एक बिद्यार्थी हुणक दगाड़ै आपणि दुदबोलि \"कुमाउनी\" में 16 सालकि उमर बै उरातार गद्य व पद्य में कलम चलूनई। कुमाउनी भाषाकि नामी पत्रिका \"पहरू\" में संपादक मंडल में कुमाउनीक सेवा में जुटी छन। इनूल हालै में कुमाउनी भाषाक 17 ज्वान रचनाकारोंकि \"जो य गड. बगि रै\" नामल संजैत काब्य संकलनक संपादन लै करि रौ। )
• ई मेल-tulera.lalit@gmail.com
टिप्पणियाँ