ललित तुलेरा की 5 कुमाउनी कविताएं

ललित तुलेरा की 5 कुमाउनी कविताएं


ललित तुलेरा
जनम - 25 जून 1999
निवासी - ग्राम- सलखन्यारी, गरूड़ (बागेश्वर) उत्तराखंड
लेखन- कुमाउनी व हिंदी में कविता, लेख, समीक्षा आदि।
मो.-7055574602
ईमेल- tulera.lalit@gmail.com
ब्लाॅग- Kumaunibhasa.blogspot.com

1.
पछयाण
पहरूवो! 
कां गेछा रे?
किलै बुज री आँख?
किलै फरकै रौ मुख?
अणपूछ किलै है रै ?
किलै डौंसी रछा निझरक ?
कलटोव, निमुजि, बेफिकर किलै ?
मट्टीपलीत, जड़उबाड़, कुकुरगत किलै ?
चहान-चहौता किलै ना ?
निग्वाव गुसैंक किलै बणै रौ ?
जड़ बुस्यै घाम किलै लगूंछा।
धार वौर, ढीक नजीक आओ
उघाड़ो आँख, चिताव हवो।
तुम उनर औलाद छा
जो तुमर भरौस सौंप जैरी
पछयाण, संस्कृति, दुदबोलि।
खड़पट्ट, बजी जा्ल
       निखाणि हलि, गाड़ बगल सब।
के जबाब देला भोवक दिन
आपणि आनि-औलाद कैं? 
2.
धाद
माइक लालो! 
धौंस, डोंडारी, ऐंठ
बजरमुखी किलै?
चुईक बा्ट निकवल।
छम-बिछम, तड़ी,
नड़ि-बेद किलै?
मनखी छा यार।
बुथ्यै खाणी, 
मौकै-मौकै बेर किलै?
द्वि र्वटै तो खाला।
छरब हंकार, 
द्वछै बेर किलै?
मा्ट है जाला।
धौ-धीत में आओ
थिर -थाम में रवो
मनख्योवकि लकार दिखाओ
भोवक दिन खड़पट्ट,
मा्ट छू सब। 
3.
दिगौ लालि!

दिगौ लालि !
य गौं-घरौं में आ्ब दिख लागूं।
डा्न-का्न हुदरि जै गई।
छन दिनै अन्यार चिताई
रात मरण मौत है गई
तिसान है जां गव
मन भारि है जां।
सुनी गेई बाखइ
ताव लागी द्वार-म्हाव लगूनी उदेख
ता्लदेश जाणियां देखि
हिकुरि लागैं हिय में
बजी गई बा्ट-घा्ट।

बली लै!
पहाड़ाक लै सुख्यार दिन कब आल?
पहाड़ कब देखल सुख?
कब होल त्यर भलयाम?
कब खुलाल त्यार भाग?
कब भेटलै तू सुख?
दुख्यारि भाग त्यर
को छू तुकैं चाणी चितौणी?
को छन त्यार आपुण ?

शिबौ! 
पहाड़ा! त्यर भाग में दुखै रैगो,
पहाड़ा! कैल देखी त्यार आँसु ?
को पोछल त्यार आँसु ? 
4.
जिंदगी में...
एक आश बणी रूण जरूड़ी छु जिंदगी में,
ढ़ाइ में पुजणै लिजी नान-ठुल कोशिश जरूरी छु जिंदगी में।

असजिल बाट जिंदगीक ठोकर लागते रूनी,
हर ठोकर बै होश समावण जरूड़ी छू जिंदगी में।

लड़ै लड़नै रूण पडूं, हाथ अजमाते रूण पड़नी,
मेहनतक धुणि में लकाड़ खितनै रूण जरूड़ी छु जिंदगी में।

देखा देखीक धांधली में, खसोड़ी जां मनखी यां,
भाग्यक भरौस भैटी, सब ट्वटै-ट्वट छु जिंदगी में।

सुन जस तातण पडूं, किरमौव जै किरसाण हुण पडूं,
कपाइ हात करि फगत रूनी, दुनीयक दस्तूर कूं जिंदगी में।

एक आश बणी रूण जरूड़ी छु जिंदगी में,
के पाणक लिजी मन मारण लै जरूरी छु जिंदगी मेें। 
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