कुमाउनी लेख : पर्यावरण संरक्षण
डॉ. दीपा गोबाड़ी
प्रोफेसरः हिंदी, एम.बी.राज. महा. हल्द्वानी, मो.-9412944710
• पर्यावरण
• पर्यावरण संरक्षण
• पर्यावरण संरक्षणकि भारतीय परंपरा
• अलग कालक्रमन में पर्यावरण संरक्षण
• धर्म,संस्कार और साहित्य में पर्यावरण संरक्षण
• पर्यावरण संरक्षण लिजी प्रमुख सुझाव
पर्यावरण - पर्यावरण शब्द द्वी शब्दोंल बणी छ- परि + आवरण। यैक मतलब छ- चारों तरफ बटी ढकी रई। (परि- चारों तरफ, आवरण-ढकी रई)। यो अर्थ में मैंसोंक चारों तरफ जो लै भौतिक और अभौतिक चीज छन, उ वीक पर्यावरण छ। मैंस चारों तरफ चंद्रमा, तार, सूरज, पृथ्वी, हाउ, पहाड़, नदी, जङव, जलवायु, ताप क अलावा समाज, समूह, संस्था, प्रथा, परंपरा, लोकाचार, नैतिकता, धर्म और सामाजिक मूल्योंल घिरी छ।
पर्यावरण क्षरण- कुदरत हमेशा हमर लिजी उदार रैं, लेकिन मैंसल लालच, आपुण स्वार्थ और विकासक नाम पर उकें भौत नुकसान पुजाछ। जसी-जसी मैंस विकासक तरफ बढ़ौ हमर पारिस्थितिक तंत्र गड़बड़ै गौछ। आज धरतीक तापमान भौत बढ़ गो, यैक वीली जलवायु, बनस्पति, जीव जंतु, मैंस, वीक समाज और संस्कृति सबन में दुष्प्रभाव देखीण लाग रौ। यो पर्यावरण क्षरण मैंसल खुद उपजा राखछ, सो यैक लिजी भरपाई लै मैंसै कराल। बिकासक दगाड़ पर्यावरण संतुलन भौत जरूरी छ। आधुनिक युगकि पैंल चुनौती पर्यावरण प्रदूषण लै छ। यैक लिजी सबूंकें जागरूक हुण भौत जरूरी छ।
पर्यावरण संरक्षणकि भारतीय परंपरा- भारतीय ज्ञान परंपरा में प्रकृति और मैंस आपस में जुड़ी रई छन। प्रकृति दगाड़ मैंसक जुड़ाव पैंली बटी चली ऐ रौछ। भारत में पुरूखोंल उ थात कैं ज्यून धर राखछ, जैक कारण पुर संसार में भारतकि पछयाण विश्वगुरू रूप में छ।
भारतीय ज्ञान परंपरा में पर्यावरण संरक्षणकि शिक्षा दी जांछी। हमार हर क्रियाकलाप में पर्यावरण कें बिना नुकसान पुजा भेर भौत योजना बणाई जांछी। प्रकृति कें द्याप्त बणा भेर वीक संरक्षण करी जांछी। भवन निर्माण में वास्तु, जल निकासी, धुआँ निकासी, बरसाती पाणिक संरक्षण, मौसम, रोशनी सबूंक ध्यान राखी जांछी, योई नैं भारत में स्थापत्य कलाक भौते उत्कृष्ट निर्माण है री, जैकें देख भेर कसी बणा हुनाल कै आश्चर्य हुंछ। फर्स बणून लिजी सीमेंट जाग में मास ;उड़दद्ध पिस भेर हालछी जो भौतै मजबूत हुंछी। कई जै सकीं कि उ प्रकृति पोषक छी।
अलग कालक्रमन में पर्यावरण संरक्षण- पैंली बटी हमार वेदों, पुराणों और धर्मग्रंथन में प्रकृति दगै जुड़ाव देखींछ। गुरूकुलों, आश्रमों में भलौ, श्रेष्ठ जीवन जीणक लिजी प्रकृति कें पाली-पोसी जांछी। सिंधु सभ्यता में लै भारत में बोट-बनस्पति और नाना पशु पक्षिन, प्राणियोंक पुज करणक प्रमाण मिलनी। यजुर्वेद में कै राखछ-
ऊँ अग्नि देवता, वातो देवता, सूर्यो देवता, चंद्रमा देवता, वासवो देवता, रूद्रा देवता, आदित्य देवता...।’
‘अथर्ववेद ’ में धरती कें माता कै राखछ। इजाक समान अपनूनी वाल, प्रेम दीणी और सग्ग क्वे नि हुन। ‘माता भूमि पुत्रो अहं पृथिव्याः।’ रामायण में ‘अशोक’ वाटिका, पर्णकुटी, संजीवनी बूटी, पुष्पक विमान ;फूलोंक विमानद्ध आदिक उल्लेख मिलूं, जो प्रकृति दगाड़ निकटता कें बतूंछ। चंद्रगुप्त मौर्यक शासनकाल में अभयारण्योंक स्थापना और उनर संरक्षणक प्रावधान छी। सम्राट अशोकल शिलालेखों में पशु-पक्षिन कंें नि मारणक उल्लेख करि राखछ। भौत राजामहाराजाओंल कुआँ और तालाब खुदवाई। वर्षा जलक संचय करणक जुगत देखीनी भौत जाग। यो हर कालक्रम में पर्यावरण संरक्षण कें इंगित करूं।
धर्म - संस्कारों, साहित्य में पर्यावरण संरक्षण- हमर सनातन धर्म में जनम बटी मृत्यु तक प्रकृतिक रक्षा करी जांछ। हमार धर्म-संस्कारन में भौत रूपों में पर्यावरण संरक्षण मिलूं। पर्यावरण संरक्षण कें धर्म दगै जोड़ भेर वीकि रक्षा करि राखछ। विविध संस्कारों मूल में लै पर्यावरण संरक्षणक भावना रूंछी। जनम और मृत्यु में क्वाड़ में रूण आजक कोरेनटाइन छ, घरक लोगों कें क्वे लै नि छून। शुद्धिकरण, दिन पूर्ण हुणक बाद लोग मिलनी। रजस्वला कें चार दिन अलग धरण आजक आइसोलेशन छ। ये मूल में शरीर कें आराम मिलो और बीमारीयोंल बची रवो, यो सोच छ। भ्यार बटी आभेर पैंली हाथ-खुट धूण, नान-धूण, चप्पल भ्यारै उतारण यैक मूल में भ्यारकि गंदगी, रोग भितेर नि आवो, यो सोच छ। खा्ण है पैंली हाथ धूण, खा्णक बाद कुल्ला करण, कै दगै मिलण में हाथ जोड़न यो सब विज्ञान कें ली हुई छ। आज पुर दुनी कोरोना रोगक महामारी में नमस्ते केंई अपनूण लाग रै।
हमर धर्म पुज-पाठ में, ब्या काज में हल्दीक उबटन लगूनी। हाथों में हल्दीक कंकण ;गांठद्ध बादनी। हल्द्वी रोग प्रतिरोधक हुंछ। पुज-पाठ में काम ऊनेर तुलसी, दूब, पान, तिल, जौं,चंदन-शहद, गो मूत्र, बेलपत्र, कपूर, पिठ्यां सबै प्रकृति लिहाजल मैंसक लिजी भौत लाभप्रद छन सो इनूकैं धर्म बटी जोड़ भेर इनर संरक्षण करी गो। तुलसी कें बिष्णुप्रिया कई जां। जां यो हुंछि किड़- मकोड़ नि ऊन। क्यल भौत शुद्ध फल छ। पान पत्त ल पेट में किड़ नि पड़न व पाचक हुंछ। पेट रोग, सूजन, पीलिया, रक्तस्राव में लाभप्रद छ। बेलपत्र शिवज्यू कैं चढ़ाई जां, पेटकि बिमारी में फैद पुजूं यैल। पारिजात बाइ-बात, साइटिका, याददास्त में, आम बंदनवार और लकाड़ हवन में काम ऊनी। कपूरक पौधक पत्ती कैं हरी लै जगै सकनू, जो पेट्रोलक न्यात जगूं। भौतै जड़ी-बूटी धूप हवनक काम ऊनी जो पर्यावरण कें शुद्ध करनी। शंख बजूणल आस-पासक वातावरण व श्वास नली, हृदय सई रूनी। दुब जीवाणु नाशक छ, पेट रोग, सूजन, पीलिया, रक्तस्राव में फैद पुजूं। बिना यैक क्वे पुज संपन्न नि हुन। एक शमी पत्त द्वी सौ बेल पत्त बराबर मानी जांछ, यैल लीवर लिजी फैद हुंछ।
साहित्य में पर्यावरण संरक्षणक अनगिन प्रसंग छन। प्रकृति दगाड़ मैंसक प्रेम स्वाभाविक छ। महर्षि कण्व शकुंतला कें विदा करण बखत बनस्पति बोटों छें कूनी-
पातुं न प्रथमं व्यविष्यति जलं युवमास्वपीतेषु या।
नादत्ते प्रियमंडनापि भवतां स्नेहेन या पल्लवम।
आद्ये वः कुसुम-प्रसूति यस्या भवत्युत्सवः।
सेयं याति शकुंतला पतिगृहं सर्वेरनुज्ञायताम्।।
(कालिदास कृत ‘अभिज्ञानशाकुंतलम्’ अंक 4 श्लोक 11)
सुमित्रानंदन पंत ज्यू त प्रकृतिक सुकुमार कवि मानी जानी। कुमाउनी में प्रकृति-पर्यावरण छैं जुड़ी कविताओंक सृजन करणी कवि छन- गुमानी पंत, कृष्ण पांडे, गौरीदत्त पांडे ‘गौर्दा’, राम दत्त पंत, सुमित्रानंदन पंत, देवकी महरा, गिरीश तिवाड़ी, दुर्गेश पंत, एम.डी. अंडोला, राजेन्द्र बोरा उर्फ त्रिभुवन गिरि, देव सिंह पोखरिया, गोपाल दत्त भट्ट, काशीराम भट्ट, जगदीश जोशी, दीपक कार्की आदि। गुमानी ज्यूल कुमाऊँ में मिलनेर भौत फल-साग पातक वर्णन करि राखछ-
केला, निम्बू, अखोड़, दाड़िम,
रिखू, नारिंग आदो दही,
खासो भात जमालि को
कलकलो भूना गडेरी गचा।
गौरी दत्त पंाडे ‘गौर्दा’ (1872-1939 ई.) ‘वृक्षन को विलाप’ कविता में लेखनी-
मानुष जाति सुणिया मणि हो,
वृक्षन की लै बिपति का हाल
सब जन हरि जन उन्नति में छन,
हमरो लै कुछ करला ख्याल
बुलै नि सकना तुमन अघ्याड़ी,
लागिया भै जनमै मुख म्वाल।
शेर सिंह बिष्ट ‘अनपढ़’ ज्यू कूनी-
ल्यो तरानै डाड़ मानई बज्याणी बोट
नि हाणो हमरि खोरि, रमटकि चोट
काफलाक ग्याड़ कूनई बुरूंशिक फूल
पहाड़ उधरि जालौ हम कां जूंल।
देवकी महरा ज्यूक पर्यावरण तरफ चिंता यो प्रकार ब्यक्त है रैछ-
ऊं जंगल कां हुं गया, जो मेरा पराण छिया
धुर जगाणी सालमा, हाइ रै छयौड़ा बालमा
कां घुरैली मेरी घुघुती, कां बासलो कफुवा।
छ्वाय-सिमार सब सुकिया,
जो मेरा पराण छिया।
जगदीश जोशी ज्यू कूनी-
मैंल यकें आपण औलाद है लै जादे
लाड़ -प्यार, मैल-मोव, पाणि दे।
‘बांजि कुड़िक पहरू’ में राजेन्द्र बोरा ;त्रिभुवन गिरिद्ध पहाड़कि बेदना बतूनी-
पहाड़ न्हैं हाड़ रै गीन
यां माट- पाणि में चंडाव भै गीन।
सबूंल पहाड़ कैं सुंदर बणै राखणकि बात कैछ।
पर्यावरण संरक्षण लिजी सुझाव-
चैड़ पत्तीदार, फलदार, झाड़ीदार बोटोंक रोपण करी जाओ। हमर बुजुर्गाे कें जल, जङव, जमीन, हाउ, पाणि, मौसम और आपुण चारों तरफक वातावरणक भौत भलि जानकारी छी। उनूल मौसमक अनुसार वृक्षारोपण करौ। जसी बांज, बुरूंश, द्यार, काफल, उतीस, भीमल, मेहल, क्वेराल, तिमिल, बेडू, पांगर, च्यूर, औंव, रिठ आदि। आज रिठ जङव बटी हरै गई। यौ सबूं कें संरक्षित करणकि भौत जरवत छ। बांजक बोटक जड़ों में लै खूब पाणि इकट्ठ हुंछ, जैल जल स्रोत पुर्नजीवित ह्वाल। यैक अलावा झाड़ीनुमा फल वाल पेेड़ोंक रोपण करी जा्ण चैं किलैकी हिसालु, घिङारू, किल्मड़, जंगली बेर आ्ब हरान लागि गई। इनर मधुमेह आदि रोगन में उपयोग करी जांछ। सो लोगोंल अंधाधुंध दोहन कर हालो। बांसक तीन-चार प्रजाति छन। बांसक रोपण सड़क किनार करि भेर सुरक्षा दिवारक काम लि जा सकींछ। प्राकृतिक अवरोधक बण जाल यैल। जंगलोंक खालि जाग में चाल, खाल बणून चैनी, जैल जमीन में नमी बणी रवौ और जानवरों कें पाणि मिलो, दगाड़ में माटक जल रिचार्ज होवो।
गूलोंक निर्माण, जल स्रोतोंक, नौलौंक जीर्णो(ार हुण चैनी। उनूकें सहेजण भौत जरूरी छ।
पनचक्की निर्माण, ना्न-ना्न जलाशय बांध बणून चैनी, जैल बिजली पाणिक जरवत पुरि होवो।
जड़ी बूटीक वैज्ञानिक दोहन हुण चैं। कीड़ाजड़ी, जम्बू, गंदरैणि, कुटकी, तेजपात, दालचीनी, तिमूर इनूकें सहेजण चैं।
प्रदूषण फैलूण में दंड दीणक प्रावधान हुण चैं।
हर शुभ काम-काज में बोट उपहार में दिणकि परंपरा हुण चैं। दगाड़ में वृक्षारोपण हुण चैं, उ शुभ दिनकि याद में जसी-मैती पंरपरा।
जङव कैं द्याप्ता नाम पर चढ़ा भेर वीक संरक्षण करी जा सकींछ।
शहरों में साग सब्जी छत में उगूण लिजी प्रशिक्षण दी जाण चैं। प्रोत्साहित करण चैं फूल-पौंध लगूण लिजी।
कृषि पाठ्यक्रम में सम्मिलित करी जाण चैं। उच्च शिक्षा में लै पर्यावरण विज्ञान पाठ्यक्रम में सम्मिलित छ लेकिन व्यावहारिक रूप में आंतरिक मूल्यांकन में एक पेड़ लगूण और वीकि सुरक्षा में अंक मिलण चैनी।
पशु-पक्षी प्रेम कें बढ़ावा दिण चैं। घिनौड़ों लिजी घोंसला सबूं कें आपुण घर में धरण चैं।
हर गों, शहर, कस्ब में पर्यावरण क्लब, ग्रीन ब्रिगेड, पर्यावरण विकास अभियान संघर्ष समिति बणाई जान चैनी, जो पर्यावरण लिजी लोगों कें जागरूक करो।
पौंधा बैंक बणून चैं, जै में लोग पौंध दियो व जरूरतमंद निशुल्क पौंध लि जावो।
प्रकृति संरक्षण वाल त्यार खूब धूमधामल मनूण चैनी और नानतिनों कें लै बतूण चैं। जसी- उत्तरायणी, फूलदेई, हरेला, घ्यू सङरात, सातूूं-आठूं, तुलसी विवाह, तुलसी एकादशी आदि।
किमु ;शहतूतद्ध, मूंगा रेशम पौंधौंक रोपण और उचित प्रबंधन सरकार द्वारा हुण चैं, जैल सिल्क उद्योग स्थापित हो।
गहत, मडुवा, रामदाना, सोयाबीन, जौं भौत पौष्टिक छन, पर उत्पादन कम हुंछ इनर तरफ ध्यान दिणकि जरवत छ।
गौं में बानर, भालू, जंगली सुअर, मैदान में हाथिल भौत उत्पात मचा राखो। उ खेती कें भौत नुकसान पुजूनी। उनूछें निजात पाणक ठोस उपाय करी जावो। कयेक जा्ग में खेतोंक मेड़क पास क्यालक बोट लगाई जो सीमा रेखा रूप में काम आई या गोंक सीमा में भैर किल्मोड़ा, हिसालुक और बांसक पेड़ोंक रोपण हुण चैं।
हमूकैं प्रकृति बटी दिव्य चीज मिल रई उनर उचित सरंक्षण हुण चैं, जसी बुरूंश, हल्दी, चहा, सिसूण, नीबू,माल्टा, नारंगी इनर उचित प्रबंधन व संबंधित लघु उद्योग लिजी सरकार कें बढ़ावा दिण चैं।
खनन प्रति जागरूक हुण चैं। भौत दोहन नि करि बेर धरती माँ कैं नि उचेड़ी जाण चैं।
कचराक निस्तारण सही रूप में हुण चैं। जसी गिल कचरा अलग, पलास्टिक कचरा अलग करण चैं। वीक उचित प्रबंधन और निस्तारण हुण चैं। हमूकें न्यूनतम कचरा उत्पादनक आदत डालण चैं। खतरनाक कचरा लै हूं जसी- सैनिटरी कचरा, पी.पी.ई. किट, मास्क गलब्ज, एक्सपाइरी दवा, बैटरी, पेंट। घरक 50-60: हिस्स गिल या (बायोडिग्रेबल वेस्ट) हुंछ। यैक खाद बणा भेर घरोंक बगीच या गमलों में जैविक खाद डाली जा सकींछ।
घर बटी कपड़ या जूटक बैग-झो्ल लि भेर सामान लीण हैं जाण चैं।
पलास्टिक सैकड़ों साल तक नष्ट नि हुन सो पलास्टिक कम है कम प्रयोग करण चैं। यो स्वास्था लिजी लै भौत नुकसानदायक छ। यैल त्वचा रोग व कैंसर हुनी।
पाणि पिणक लिजी बोतल स्टील या तांबक प्रयोग करण चैं।
जैविक खेती कैं बढ़ावा दिण चैं।
तालाब संस्कृति कें विकसित करण चैं। जैमें सुक रई तालाबों तक पाणि पुजूण उनन कें खोदण, साफ-सफाई, सौन्दर्यीकरण, पुनरूद्धार हो।
अधिकाधिक कूड़ा निस्तारण प्लांट लगाई जाण चैनी या एन.जी.ओ. दगाड़ मिल भेर सालिड वेस्ट मैनेजमेंट प्रोजेक्ट लगाई जाण चैनी।
हमूकैं रिड्यूज रियूज रिसाइकिल कैं अपनून पड़ल।
नारियलक रेशा जो खित दिनी वील भौत बड़ी कोकोपिट बणू जो गमलों में मा्ट दगाड़ मिलाई जां, यो पाणि सोखूं।
हर्बल काढ़ा पौध अदरक, तुलसी, अजवाइन, गिलोय, ब्राह्मी गमलों में लै लगै सकनू।
गोबर, गोमूत्र, चीड़क पत्ती इनर उपयोग हुण चैं।
बुग्यालों में कूड़ा नि फैलाई जावो, पर्यटकोंक जबाबदेही हुण चैं।
सीवर ट्रीटमेंट प्लांट लागण चैनी जैल जीवनदायिनी नदीयोंक पाणि दूषित नि हवो।
श्रेष्ठ ग्राम, श्रेष्ठ काॅलोनी, श्रेष्ठ नगर कें व पर्यावरणक प्रति समर्पित लोगों कें पुरस्कृत, सम्मानित कर प्रेरित करण चैं।
बोटों में होडिग, बैनर, कील, तार नि लगूण चैन।
यो प्रकार हम देखनू कि प्रकृति त भौते उदार छ, सुंदर छ, मन कें खुशी, सुख, संपदा दीनेर छ। हमूकें उपर्युक्त जदुक लै बात छु, सुझाव छन उनूकें सबूंहैं साझा करण पड़ल। गांधी ज्यूल ना्र देछ- ‘अंग्रेजो, भारत छोड़ो’। आज हमार प्रधानमंत्री मोदी ज्यूल ना्र दी राखौ- ‘गंदगी भारत छोड़ो’। सो हमूकें गंदगी, कचरा बटी आजादी पाण लिजी मिल भेर प्रयास करण पड़ल। सबूं है ठुलि यो बात छ कि हमूकैं स्वच्छता आपुण आदत, संस्कारों में शामिल करण पड़ल। हम देखनू कि हमार पुरखोंल प्रकृति छें जुड़ भेर जीवन बिताछ। आज पर्यावरण प्रदूषणकि समस्या भौत ठुलि समस्या छ। हालांकि हम 5 जून कें पर्यावरण दिवस लै मनूनू और पर्यावरण लिजी भौत बात करनू। हमूकैं सोचण पड़ल कि पर्यावरण संरक्षणकि जिम्मेदारी सबूंक छ। अगर आज लै हम नि चेत्यां त न हम बचुंल न सृष्टि। हमार पूर्वज यो बात जांणछी और समझछी कि हम लै प्रकृतिक अंग छां। जसी आत्मा बिना शरीर नश्वर छ उसी कै प्रकृति और मनखी लै एक दुहरक पूरक छन। प्रकृति और पर्यावरण कें हर हाल में सहेजण भौत जरूरी छ।
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• ‘पहरू’ कुमाउनी मासिक पत्रिका मार्च २०२१ अंक बै
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