- नवीन जोशी
गोमती नगर, लखनऊमो.- 9793702888
( 'अचल' पत्रिका मुखड़ )
खुशी बात छ कि आज हमरि कुमाउनी भाषा (बोलि कूणक चलन छ मगर भाषा कूण में के हर्ज छ) में लेखणी जणीनकि कमी न्हातैं। पुराणि और नई पीढ़ीक रचनाकार कुमाउनी में हर बिधा में खूब लेखणईं। हर महैण नियमित पत्रिका ले निकलण लागि रईं। उनार लिजी कुमाउनी में कविता, का्थ, लेख, संस्मरण, ब्यंग, यात्रा-बृतांत, नाटक, बगैरा सामग्रीकि के कमी न्हांती। कुमाउनी में औनलाइन पत्रिका, ब्लौग और बेबसाइट ले छन। हमार नामी-गिरामी लेखक जो पैंली सिरफ हिंदी में लेखछी, आब खुशी-खुशी कुमाउनी में ले लेखण भै गई। उसी त कुमाउनी में बलाणी दिन पर दिन कम हैते जाणईं। पहाड़ाक गौन में ले नई जमानाक स्यैणी-मैंस-नानतिन सबै देसि ;हिंदीद्ध हाकनी। तबै ‘यूनेस्को’ कि एक रिपोर्ट बतूंछि कि हमरि भाषा खत्र में पड़ि रै। यस्सै हाल रया त एक दिन यैक लोप लै है सकों। खैर, फिलहाल संतोषै बात छ कि दसेक सालन बटी आपणि भाषा में लेखण-छपण- प्रसारण- पौडकास्टिङ खूब हुण लागि रौ।
कुमाउनी भाषा में प्रकाशित हुणी वालि पैंल पत्रिका छी- ‘अचल’, जो 1938 ई. में अल्माड़ बटी शुरू भैछी। यो मासिक पत्रिका छी, मतलब कि हर महैण एक अंक छापींछी। ‘अचल’ द्वि साल जाणै प्रकाशित भो। फिर 1940 ई. में बंद है पड़ी। ‘अचल’ क संपादक छी- जीवन चंद्र जोशी। उनार पछिल क्वे संस्था या संगठन नि छी। उनरि पास इफरात ढेपू-टा्क या पूंजी लै नि छी। उनार दगाड़ सिरफ द्वि-चार दगड़ू छी, मन में एक संकल्प छी और एक जिद छी कि आपणि बोलि में संप्रेषणकि जो ताकत छ वी कें दुनी कें देखूण-बतूण चैं। आपणि द्वि सालै जिंदगी में ‘अचल’ यादगार काम करि गो, कुमाउनी भाषाकि सामर्थ दिखै गो, एक बा्ट बणै गो, एक मछ्याव जगै गो।
जीवन चंद्र जोशी ज्यूक जनम 24 अगस्त 1901 में सफीपुर (उन्नाव) में भौ। उनार बाबू लीलाधर जोशी और महतारि कौशल्या देवी छी। लीलाधर ज्यू तब सफीपुर में मुंसिफ पद पर तैनात छी। उन्नाव उत्तर प्रदेशक एक जिल्ल छ जो तब संयुक्त प्रांत कई जांछी। लीलाधर ज्यू बड़ प्रतिभाशाली और अध्यवसाई छी। कलकत्ता विश्वविद्यालय बटी उनूलि प्रथम श्रेणी में बी. ए. पास करौ। संस्कृत और अंग्रेजी में बिशेष योग्यता दगै स्वर्ण पदक पराप्त करौ। आपणि बोलि-भाषा दगै उनर भौत लगाव छी। अंग्रेजी और कुमाउनी में मौलिक लेखन और अनुवाद ले करछी। उनूलि ‘मेघदूत’ और ‘गीता’ क कुमाउनी में अनुवाद करौ। गीताक अनुवाद हू-ब-हू अनुष्टप छंद में छ। बाण भटकि किताब ‘हर्षचरित’ क लै कुछ अध्याय कुमाउनी में अनुवाद करी। लीलाधर ज्यूलि अंग्रेजी में आपणि आत्मकथा लै लेखी। उनरि कुछ किताब छपी लै छन और बांकि अनछपी रै गईं। ‘मेघदूत’ क अनुवाद सन 1894 ई. में ‘कुमाऊं प्रिंटिंग वक्र्स, अल्माड़’ बटी प्रकाशित भौ। यो शोधक विषय छ कि ‘कुमाऊं प्रिंटिंग वर्क्स’ में कतुक और कास-कास किताब प्रकाशित भईं। खैर, लीलाधर ज्यू जादातर संस्कृत या कुमाउनी में बुलांछी और चिट्ठी-पत्री लै योई भाषान में लेखछी। कूंछी कि पहाड़ बटी जो लोग मैदान में ऐ गईं उनन कें आपणि बोलि नी छोड़न चैनि। उ दिनान पहाड़ि लै अंग्रेजी सिखण में लागि रौछी। अंग्रेज बणि गई पहाड़िन कें कुमाउनी सिखूणा लिजी लीलाधर ज्यूलि आपण दगड़ू जयदत्त जोशी थें एक किताब लिखवै, जैक नाम छी ‘शिशु बोध।’ शेखर पाठक ज्यूकि हालै में प्रकाशित किताब ‘दास्तान- ए-हिमालय’ (भाग एक) में पेज 270 में ‘शिशु बोध’ क संदर्भ दी राखौ जैक अनुसार शिशु बोध (Shishu bodh or an Anglo Kumauni reader for beginners) गल्ली, अल्माड़ बटी सन 1914 में प्रकाशित भैछी। 158 पेजकि यो किताब अंग्रेजी बटी कुमाउनी और कुमाउनी बटी अंग्रेजी सिखणै तें लेखी गे।
यास बिद्वान और कुमाउनी पिरेमी लीलाधर ज्यूक घर में जनमी जीवन चंद्र ज्यूक डीएनए में आपणि भाषा लिजी उत्कट पिरेम हुणै छी। मगर एक अजब बात भै। बार सालाक हुण तक जीवन चंद्र ज्यूलि इस्कूलौ मुख नी देख। नानछना ऊं भौतै बिधुरि छी। 1903 में लीलाधर ज्यूकि बदइ लखनऊ है गेछी। जीवन चंद्र ज्यू दिन भरि पतंग उड़ूण और कंच-पिन्नी-ताश खेलण में लागि रूंछी। उनर नामै ‘पतंग वाले भैया’ पड़ि गोछी। इस्कूल जाणक नाम ल्हीनेर नि भाय्ा। तब लीलाधर ज्यूलि आपण च्याल कें अक्षर ज्ञान करूणक एक तरकीब निकाई। कूनेर भाय्ा -‘भाऊ, आ ताश खेलनू’ ताश खेलणै तें जीवन चंद्र ज्यूक हाड़ हँसनेर भा्य। लीलाधर ज्यूलि ताशा पत्तन में ‘अ-आ, क-ख, गिनती’ लेखी भा्य। बाब- च्याल ताश खेलनेर बैठ। ‘इक्का माने अ’- बौज्यूलि बताय। ‘बादशाह माने आ’ भाऊलि दोर्याय। यसी कै जीवन चंद्र ज्यूकि पढ़ाई शुरू भै। फिर पढ़णक शौक यस लागौ कि बौज्यूनाक किताबन पल्टण लागी। पतंग और ताश में लागणी मन किताबन में रमि गे। सन 1912 में जब लीलाधर ज्यूकि बदइ बहराइच भै तब तक जीवन चंद्र ज्यू इस्कूल नी जांछी। बहराइच में लीलाधर ज्यूक एक दगड़ू बणी आशुतोष हाजरा जो एक इस्कूल में हेड मास्टर छी। एक दिन हाजरा ज्यू उनार घर आईं तो भाऊ जीवन चन्द्र थें पुछि बैठी-‘‘किस दर्जे में पढ़ते हो?’’ लीलाधर ज्यूलि जबाब दे- ‘‘अरे इसने अभी तक इस्कूल का मुंह नही देखा।’’ हाजरा ज्यूलि चकित है बेर कय- ‘‘कल ही इसे मेरे स्कूल लेकर आओ।’’
दुसार दिन बार सालाक जीवन चंद्र ज्यू हाजरा ज्यूक इस्कूल में हाजिर भईं। उनूलि पुछौ- ‘‘क्या-क्या पढ़ना आता है?’’
‘‘सब पढ़ सकता हूं’’ जीवन ज्यूलि जबाब दे।
हेड मास्टरलि हँसि बेर अंग्रेजीक एक किताब खोलि बेर उनार सामणि धरी- ‘‘पढ़ो।’’ जो लै पन्न सामणि खुली छी, जीवन चंद्र ज्यूलि फटाफट पढ़ि दी। खुशि है बेर हेड मास्टरलि बता- ‘‘यो दर्जा सातक किताब छ।’’ तब जीवन चंद्र ज्यू कें दर्जा सात में भरती करि ल्हे।
वी बरस यानी सन 1912 में लीलाधर ज्यू अचानक परलोक सिधारि गईं। तब उनर परिवार अल्माड़ वापस ऐ गे। थ्वाड़ ब्यवधाना बाद अल्माड़ में उनरि पढ़ाई फिर शुरू भै। 1916-17 में जीवन चन्द्र ज्यूलि हाई स्कूल पास करौ। उतकान अल्माड़ साहित्यिक- सांस्कृतिक रूप में भौत सचेत-सक्रिय छी। सुमित्रानंदन पंत, इलाचंद्र जोशी, गोविंदबल्लभ पंत (नाटककार) जास प्रतिभाशाली और लै लौंड-मौंड जीवन चंद्र ज्यूक दगड़ी छी। हाईस्कूल में उनूलि ‘वीर अभिमन्यु’ और ‘मर्चेण्ट आॅफ वेनिस’ जास नाटक खेली। जीवन चंद्र ज्यूलि पैंल नाटक में कर्ण और दुसार नाटक में क्रूर ‘शायलाॅक’ कि भूमिका करी। सुमित्रानंदन पंत ज्यूलि अभिमन्यु क रोल अदा करौ। एक और नाटक ‘दुर्गादास’ ले खेलौ जो बंगालि नाटक छी और राजनैतिक संदेश वाल छी। ‘राजनैतिक नाटक’ खेलण पर अल्माड़ाक सयाणनलि नानतिनन कें नड़क्यै दे। साहित्यिक क्षेत्र में लै यो लौंड-मौंड खूब सक्रिय रूंछी। उनूलि द्वि ग्रुप बणाईं और उनन में आपसी प्रतिद्वंद्विता हुंछी कि धें को कि करि सकौं। एक ग्रुपलि ‘शुद्ध साहित्यिक समिति’ बणै, एक पुस्तकालय चला और ‘सुधाकर’ नामलि पत्रिका निकाली। चर्चित कुमाउनी कवि श्यामाचरण दत्त पंत कें उनूलि आपण संरक्षक बणा। दुसार ग्रुपाक लीडर छी जीवन चंद्र ज्यू। उनूंलि ‘बसंत‘ और ‘उशीर‘ नामलि हस्तलिखित पत्रिका निकाली,जो मिलि-बांटि बेर पढ़ी जांछी।
हाईस्कूल पास करी बाद अघिलै पढ़ाई करणै तें जीवन चंद्र ज्यू लखनऊ आईं। लखनऊ विश्वविद्यालय बटी, जो तब केनिंग काॅलेज कई जांछी, 1923 में उनूलि प्राचीन भारतीय साहित्य विषय में एम. ए. डिग्री ल्हे। साहित्यिक लेखन लै जारी छी। साहित्यिक पत्रिकान में उनार लेख परकाशित हुंछी। नानछनाक दगड़ी सुमित्रानंदन पंत, इलाचंद्र जोशी और नाटककार गोविंदबल्लभ पंत ज्यू लै अल्माड़ है निकलि बेर आपण-आपण क्षेत्र में स्थापित है ग्याछी। चिट्ठी- पत्री चलन छी। जीवन चंद्र ज्यूक मन छी कि कुमाऊंक प्रागैतिहासिक काल पर शोध करी जावो लेकिन योई बीच परिवार में एकाएक बज्रपात जस भ्यो। एक-एक कबेर उनरि द्वि दीदि खतम भई और एक भाणिज ले अकाल काल-कवलित भ्यो। जीवन चंद्र ज्यू कें ले यसि लू लागी कि उनार स्नायु-तंत्र में स्थाई समस्या है गै, जैल बाद में लै ऊं भौत परीशान रईं। यास हालतनलि दुखी हईं जोशी ज्यू पहाड़ लौटि गईं और आपण मामा दगाड़ नैनीताल बैंकक काम-काज देखण लागी। माम ज्यू मथुरादत्त पांडे नैनीताल बैंकाक कर्ता- धर्ताओं में शामिल छी। मामज्यू दगाड़ उनूलि बैंकाक नई-नई शाखा खोली और शैद वां मैनेजरी ले थ्वाड़ समय करी। जोशी ज्यूक मन में और लै कई योजना छी लेकिन मथुरा दत्त ज्यूकि मृत्यु है पड़ी और वीकै दगाड़ यो संगत लै छुटि गै। जीवन चंद्र ज्यू अल्माड़ ऐ बेर लेखन और पठन-पाठन में लागि गाय्ा।
‘अचल’ का्थ-
सन 1937 में कलकत्ता (आ्ब कोलकाता कूनी) बटी परकाशित हुणि ‘विशाल भारत’ पत्रिका में छपी एक लेखलि जीवन चंद्र ज्यू कें एक नईं बा्ट दिखै दे। ‘विशाल भारत’ में देवेंद्र कुमार जोशी ज्यूक कुमाउनी साहित्यकारोंक बार में एक लेख परकाशित है रौछी। उ लेख में जीवन चंद्र जोशी ज्यूक लै हिंदी साहित्यकारक रूप में जिकर छी। यो लेख उनार दगड़ीनलि लै पढ़ौ और जोशी ज्यू कें बधाई दे। जीवन चंद्र ज्यूलि कौ कि यार, हिंदी भाषा में त भौत लोग लेखणईं, बात त तब होलि जब हम आपणि कुमाउनी भाषा में के काम करुंल। तब एडवोकेट बदरी शाह, श्रीधर प्रसाद, धर्मानंद पंत और तारादत्त पांडे जास दगड़ीन दगै बात भै। निश्चय करी गो कि कुमाउनी भाषा में एक पत्रिका निकालण चैं। सबनलि होय-होय करी। उई जोश में ‘शक्ति’ और ‘कुमाऊं कुमुद’ अखबारन में बिज्ञापन परकाशित करै दे कि अल्माड़ बटी कुमाउनी भाषाकि एक पत्रिका शीघ्र परकाशित होलि। बिज्ञापन छपि गयो तब फिकर हुणि लागि कि यार, कसिक हा्ेल, कि होल? फिर सोचै कि आ्ब ठारि हालि त ठारि हालि। जि होल देखी जाल। जुटि गाय काम में। तय करी गय कि पत्रिका मासिक होलि और वीक नाम हा्ेल ‘अचल’। संपादक त जीवन चंद्र जोशी ज्यू भए। तारादत्त पांडे ( मई 1903- अगस्त 1965) ले कम परतिभावान नि छी। तारदा नामलि परसिद्ध पांडे ज्यूलि कुमाउनी मुहावरों एवं कहावतों’ क अंग्रेजी रूपांतर करि बेर एक कोश बणा और उमर खैयामकि रुबाइयोंक फिट्जिराल्ड क अङरेजी अनुवाद बटी कुमाउनी में अनुवाद करौ, जैमें फारसी नाम बदइ बेर भारतीय नाम धरी गईं। तारदा कें बणाई गो ‘अचल’ क सहकारी संपादक। धर्मानंद पंत बणी प्रबंध संपादक। फिरि जतुक लै दगड़ी-परिचित छी सबन कें चिट्ठी लेखी गे कि कुमाउनी में लेख, कहानि, कविता, नाटक बगैरा लेखि दियो। पुराण दगड़ू गोविंद बल्लभ पंत ज्यू कें चिट्ठी लेखी- ‘यार, आब बखत ऐगो कि तुमि आपणि नक्काशी दिखाओ और ‘अचल’ क मुख पृष्ठ बणै दियो। खबरदार ना-नुकुर या टालमटोल झन करिया। यो बात कमै लोग जाणनी कि पंत ज्यू का्थ और नाटक लेखणा अलावा चित्रकारी लै करछी। पंत ज्यूलि दगड़वक आदेश मानि बेर फौरन एक चित्र बणै बेर भेजौ, जैमें अचल प्रतीक यानी कि पर्वत, सूर्य, धु्रवतारा, बगैरा चित्रित करी गईं। योई ‘अचल’ क मुखपृष्ठ बणौ।
कुमाउनी में लेखणी कमै लोग छी। उनार पछिल पड़ि-पड़ि बेर लिखाई गो। फिर लै सामग्री कम पड़ी त जोशी ज्यू और तारादत्त ज्यूलि अलग-अलग नामनलि कतुकै लेख आदि आफी लेखी। यसी कै ‘अचल’ क पैंल अंक यानी ‘श्रेणी एक, श्रृंग एक’ (वर्ष और अंकाक जाग में यस प्रयोग करी गो) फरवरी 1938 में प्रकाशित भौ। यो एक ऐतिहासिक मौक छी। कुमाउनी भाषाकि पैंलि पत्रिका प्रकाशित है गेछी।
जोश में एक ‘श्रृंग’ तो पार है गोछी मगर हर महैण पत्रिका निकालन सितुल काम नी छी। ढेपू-टाक है ठुलि समस्या पत्रिकाक लिजी स्तरीय सामग्री जुटूण छी। पाठक-वर्ग लै तैयार करण छी जो ‘अचल’ कें पढ़ो और वीकि मधद करो। पैं उनूलि हिम्मत नि हारि। द्वि ‘श्रृंग’ प्रकाशित है सक्या त अल्माड़ाक इंदिरा प्रेस थें, जां पत्रिका छपछी, झगड़ है पड़ौ। आ्ब कि हो? खैर, नैनतालाक किंग्स प्रेस में पत्रिका छपूणक इंतजाम है गय मगर रचनाओंक संकट कायम छी। जोशी ज्यूलि क्वे देई नि हुनेलि जां जै बेर रचना नि मांगि हुनेलि। नई-नई लेखक तैयार करी।
सुमित्रानंदन पंत ज्यूक किस्स तो बड़ रोचक छ। जोशी ज्यूलि पंत ज्यू कें कतुकै चिट्ठी लेखी कि यार, हिंदी में मशहूर कवि है गोछा मगर कुमाउनी में लै लेखो, ‘अचल’ में लेखो। मगर पंत ज्यूलि कुमाउनी में कविता लेखि बेर नि भेजि। तब जोशी ज्यू कें रीस ऐ पड़ी। उनूलि बड़ि रीसलि पंत ज्यू कें लेखौ- ‘‘या तो कह दो कुमाउनी नहीं हूं या फिर कुमाउनी में लिख कर दो।’’
यो चिट्ठीक यस असर पड़ौ कि पंत ज्यूलि कुमाउनी में एक कविता लेखि बेर भेजि दे जैक शीर्षक छ ‘बुरूंश’। सुमित्रानंदन पंत ज्यूकि यो एकमात्र कुमाउनी कविता खूब प्रसिद्ध भै-
सार जंगल में त्वी जस क्वे न्हां रे क्वे न्हां,
फुलन छै के बुरूंश! जंगल जस जलि जां।
सल्ल छ, द्यार छ, पई छ, अयांर छ,
सबनाक फाङन में पुङनक भार छ...।
चार-पांच अंक परकाशित हुणा बाद कुमाउनी लेखक बिरादरी कें ले जोश ऐ पड़ौ। श्यामाचरणदत्त पंत, जयंती पंत, रामदत्त पंत, भोलादत्त पंत ‘भोला’, बचीराम पंत, दुर्गादत्त पांडे, त्रिभुवनकुमार पांडे बगैरा कतुकै नामी- गिरामी लेखक- कवि ‘अचल’ में लेखण लागी। नई-नई लेखकन कें लै प्रोत्साहन मिलौ। जीवन चंद्र ज्यूकि संपादन दृष्टि ब्यापक छी। ‘अचल’ में पहाड़ाक अखबारनकि ‘आलोचना’ ले परकाशित हुंछी। श्रेणी-2, श्रृंग- 6 में लैंसडाउन बटी परकाशित हुणी साप्ताहिक ‘कर्मभूमि’ (प्रथम बर्ष, अंक 16) पर ‘आलोचना’ छपी छ। संपादक भक्त दर्शन ज्यू कें बधै दिणा बाद यो सुझाव ले दी राखौ कि -‘‘हमारी संपादक ज्यू थैं यो बिज्ञप्ति छ कि ऊं यैका द्वारा गढ़वाल का साहित्य और संस्कृति कैं लगै परकाश दीना...।’’ उ बखताक चरचित ‘बाबा हैड़ाखान’ और ‘सोमवारी बाबा’ पर ‘अचल’ में खूब सामग्री छापी, जैक आधार पर बाद में दुसार लेखकनलि किताब बणाईं। परख्यात रूसी चित्रकार निकोलाई रोरिखलि हिमालय पर जो लेख लेखीं उनर कुमाउनी अनुवाद ‘अचल’ में परकाशित करी गई। सामग्री हिसाबलि उ जमानक ‘अचल’ उत्कृष्ट छी।
‘अचल’ कि भाषा अलग-अलग इलाकनकि बोलि (दनपुरिया, सोर्याली, खसपर्जिया बगैरा) नि छी। जो भाषा सबै इलाकनाक लोग चिट्ठी-पत्री लेखण में करछी, जैथें भाषाविद सुरेश पंत ज्यू ‘पारंपरिक कुमाउनी रूप’ कूनी, वी अचल में प्रयोग करी गे। तब योई कुमाउनीक मानक रूप मानी जांछी। चारुचंद्र पांडे ज्यू कूंछी कि ‘अचल’ संपादकनै भाषा संस्कृतनिष्ठ छी।
जीवन चंद्र ज्यू कें आंखिरी समय तक यो मानसिक कष्ट रौछ कि कुमाउनी भद्र लोकलि तब ‘अचल’ कें ल्याख नि लगाय्ा। कुमाउनी लेखकनलि त अचलक स्वागत करौ मगर अंग्रेजी मोह में पड़ी और अंग्रेजनकि नकल करणी पहाड़ि लोगन कें आपणि बोलिक पत्रिका देखि बेर शरम लागी। कतुकै लोगनलि पत्रिका यो लेखि बेर लौटै दे कि -‘‘ Don't Send such trash’’ (ऐसा कूड़ा-करकट हमें मत भेजना), कैलै ‘अचल’ कें ‘एंटी नेशनल’ काम कै दे। बुड़यांकाव जाणै जीवन चंद्र ज्यू यो किस्स बतूण में रीसलि कामण लागछी। कूंछी कि- अरे, कसी भ्यो यो एंटी नेशनल काम? हम आपणि भीतरकि सुंदर चीज भ्यार लूण रयां, तुम आपणि भीतरकि चीज दिखाओ। बोशी सेन जास लोग कूंछी कि ‘‘जोशी, यू हैव ब्रौट आउट अ ग्रेट थिंग बट यू आर वर्किंग फाॅर अंग्रेटफुल पीपल।’’ यो किस्स सुणै बेर जोशि ज्यू बड़ दुखलि कूंछी कि ‘‘पहाड़िन में अपण्याटै न्हांती।’’
मगर संकल्पक-धनी जोशी ज्यू बिपरीत हालात में ले ‘अचल’ क संपादन करते रईं। द्वी साल बाद जनवरी, 1940 क अंक (श्रेणी दो, श्रृंग 12) आंखिरी साबित भ्यो। द्वितीय विश्व युद्ध शुरू है गोछी, जै कारण कागज मिलण भौत मुसकिल है गोछी। सामग्री त कसी न कसीक जुटि जांछी मगर कागजक संकट हल नि है सक। कुल चैबीस अंक निकालि बेर (शैत द्वी अंक संयुक्तांक छी) और एक गौरवपूर्ण इतिहास लेखि बेर ‘अचल’ बंद है गा्य।
उत्कट कुमाउनी प्रेमी
जीवन चंद्र ज्यूक जनम ‘देस’ यानी मैदानी इलाक में भ्यो। नानछना लै ऊं देसै में रईं। मगर उनन कें कुमाउनी भाषा दगै अथा प्रेम छी। उनार बौज्यू लै कुमाउनी पिरेमी छी। कुमाउनी बोली लिजी जीवन चंद्र ज्यू ठुल-ठुल मैंसन थें लै लड़ै करि दिछी। चार सितंबर 1935 कि बात छु। एक दिन पैंली यानी तीन सितंबर हुं जवाहरलाल नेहरू अल्माड़ जेल बटी रिहा भईं। चार सितंबरा दिन नेहरू ज्यूक स्वागत में अल्माड़ में सभा करी गे। सभाकि शुरुवात में बद्री दत्त पांडे ज्यू हिंदी में बलाण लागी तो जोशी ज्यूलि उनन थें कौ कि ‘‘कम है कम अल्माड़ में त आपणि कुमाउनी में बलाओ।’’ द्वी-चार लोगनलि लै उनर समरथन करौ। तब बदरी दत्त पांडे और हरगोविंद ज्यूलि कुमाउनी में भाषण करी।
सन 1924 में जोशी ज्यूक ब्या भ्यो। उनरि दुल्हैणि कौशल्या अनूपशहर (बुलंदशहर) में जनमी और वैं पली-बढ़ी छी। कुमाउनी बलाण ऊनेर नि भ्यो। ब्या बाद जोशी ज्यूलि आपणि दुल्हैणि कें सबन है पैंली कुमाउनी सिखै। यस्सै किस्स बाद में उनार च्याला ब्या में लै भ्यो। ब्वारि कें लै कुमाउनी बलाण नि ऊंछी। जोशी ज्यूलि घर में सबन थें कौ कि दुल्हैणि थें सिरफ कुमाउनी में बलाओ। तसि कै उनरि ब्वारि ले कुमाउनी बलाण लागी। घर में सबै कुमाउनी बलांछी। नानतिना दगै खेल, गीत, लोरी बगैरा सब कुमाउनी में हुंछी। ऊं हमेशा कूंछी कि आपणि बोलि-भाषा जै नि आई त उ मनुष्य कां भ्यो। एक बार मैंल उनर इंटरब्यू करछी। सवाल हिंदी में पुछि बैठ्यूं। उनूलि फौरन टोकि दे- कुमाउनी में किलै नि पुछना?
बुड़याकाव बीमारी हालत में जोशी ज्यू आपणि चेलि हीरा तिवारी दगै लखनऊ में रईं, वें 30 अप्रैल 1980 दिन ऊं गोलोकवासी भईं।
जीवन चंद्र ज्यू हिंदी में लै बराबर लेखछी। ठुल-ठुल साहित्यकारन दगै उनरि दोस्ती छी। प्रेमचंद, निराला, अनूप शर्मा, वासुदेव शरण अग्रवाल, दुलारे लाल भार्गव, कृष्णबिहारी मिश्र, बनारसीदास चतुर्वेदी बगैरा दगै चिट्ठी-पत्री हुंछी। लखनऊ बटी परकाशित हुणी परसिद्ध पत्रिका ‘सुधा’ क दफ्तर लेखक- पत्रकारनक अड्ड छी। प्रेमचंद और निराला लि लै वां काम करौ। जोशी ज्यू ले वां जाई करछी। भार्गव ज्यूलि कतुक बखत उनन थें ‘सुधा’ क संपादकीय लिखवाईं। अल्माड़ में चित्रकार बरूस्टर, बैज्ञानिक बोशी सेन और प्रख्यात नृत्यकार उदय शंकर दगै लै उनरि दोस्ती छी। उदय शंकरलि जब ‘कल्पना’ फिलम बणै त वीमें घसियारी नृत्य शामिल करण बखत जोशी ज्यू थें सलाह मांगी।
जोशी ज्यू हिंदी में ठुल लेखक है सकछी मगर उनूलि आपणि पुरि प्रतिभा कुमाउनी सेवा में लगै दे। उनार मन में कुमाउनी लिजी काम करणकि कतुकै योजना छी। ‘कुमाउनी- गढ़वाली- नेपाली’ शब्द कोश तैयार करण चांछी। मगर उमर है जादा बीमारील उनन कें अशक्त बणै दे। लू लागियल स्नायु तंत्र में बिकार ऐ गोछी और दमा रोगलि लै जोर बादि राखछी। बात करण लै कभतै मुसकिल है जांछी। ‘अचल’, वीक संपादकीय टीम, प्रकाशित सामग्री और स्तराक बार में शोध करणै जरवत छु। नई पीढ़ी में कैले यो जिम्मेवारी उठूंण चैंछ।
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