कुमाउनी भाषा के लिए सबसे बड़ा सवाल
-ललित तुलेरा
ईमेल- tulera.lalit@gmail.com
‘ह्याव’ और ‘वकत’ (महत्व) द्वी ठेट शब्द छन-कुमाउनीक। यों शब्द कुमाउनी दगै भौत गैल जुड़ी छन, लंबी पन्यार छु। शब्दकोशन में इन शब्दों कैं भली कै जदुकै टा्ंच-पांच करी गो उदुकै इनर इस्तमाल कुमाउनी खिलाफ लै करी गो। इन शब्दों कैं जस हमर डिमाग में घोटि दिई गई हो और इन शब्दन बै खास लगाव धरणी एक बिचार निकल आई हो। यस बिचार जो आपणि चीज कैं उच्च ना बतून, ना देखन। वीकि अहमियत कैं के नि समझन। फिर य हमरि शिक्षा में शामिल है जैं। हमरि जिंदगी दगै जुड़ बेर दिनचर्या में र्याई-मेसी जैं। ब्यक्तित्व में झलकण फै जैं, आंखिर में हमर ब्यौहारै बणि जैं। यई तो है रौ हमर देशकि भाषाई बिरासत पर। कुमाउनी पर लै। पैंली -पैंली तो हम कुमाउनीयोंल यकैं के नि समझ, हम जदुक पढ़ने-लेखनै डिग्रीधारी बणते रयां, उदुक हमूल आपणि भाषा उज्याणि ध्यान दिन छाड़ि यकैं तलि घुरयाते रयां, शिक्षित आँखोंल च्यापते रयां। जाणि हमूकैं नैतिक और बैचारिक शिक्षाई नि मिली हो। हमूल भाषाक मामिल में विवेकक इस्तमाल और मौलिक चिंतन भौत कम करौ। हमर वां चिता्व और भाषा प्रेमी बांजै छी। लाखोंकि गणती कुमाउनीयों में कुछेकै लोग कलम हलकूण लागि राछी। कुछेकै छी जो आपणि भाषाकि महत्ता कैं समझण लागि राछी और उनूल लै यकैं कभै ह्याव नि कर बल्कि ऊं समाजक अन्यार बा्ट में मुछ्याव जगूनाछी।
पछां-पछां जब विश्वविद्यालयों में कुमाउनीक पैरवी करणी और यैक सामर्थ कैं जाणनी मनखी शोध करण लागी, वैज्ञानिक अध्ययन हुण लागौ, शब्दकोश और साहित्य में किताब देखां हुण भैटी, फिलम बणन भैटी, जाग-जाग कविता सुणाई जाण लागी, सम्मेलन तक बात पुजै तो भौत लोग उघड़ी आँखोंल स्वीण देखण लागी कि हमरि भाषा तो क्वे हौर भाषा है कम न्हैं। पर बात रूजगार तक भली कै नि पुजि पै रइ, बात पाठ्यक्रम तक लै पुज गे, अकादमियों तक लै पुज रै, संविधान तक पुजूणै लिजी तराण लगाई जाणै, य तरफ और लै भौत तिर हुणौ। असली बात तो य छु कि को बताल हमार भाइ-बंधुओं कैं कि आपणि भाषाकि इज्जत करण सिखो, यैक अहमियत कैं समझो, यई तो हमरि पन्यार भइ। क्वे लै भाषा कसिक नानि ठुलि है सकें, हम कसिक कै सकनू क्वे लै भाषा कैं नानि-ठुलि छु। दुनियांक भाषा लोकप्रियता या बुलानी वालोंकि संख्या में अघिल-पछिल है सकनी पर क्वे लै भाषा कैं श्रेष्ठताकि लेबुल में नैं नापी जै सकन, नैं समझी जाण चैं। दुनीयाकि हरेक भाषाक आपूं जाग पर श्रेष्ठ छ।
बात तो चिंताकि य छु कि उनरि गिनती कदुक हुनलि जो भाषाक बिकासै लिजी बिन स्वार्थक जुटी छन? हुनलि कुछेक सौ। उनरि गिनती कदुक हुनलि जो आपणि भाषा कैं ह्याव नि समझन, जनूकैं आपणि भाषा बुलाण में शरन नि ऊनि, जनूकैं य पत्त छु कि कुमाउनी में साहित्य लै रची जाणौ, सैकड़ों किताब लेखि हाली, दर्जनों फिलम बणि गई? हुनलि कुछेक हजार। जबकि हम लाखों छन। यैक पछिल जो कारण छन वीक लंबी लैन छु।
कुमाउनी हित में आजि भौत काम हुण बकाय छन, कुछ काम आद्द पड़ रई, कुछेक लटकी रई, कुछेक अटकी रई, कुछेक अलझी रई। हमर वां सवाल ठा्ड़ करणियांक लै लंबी लैन छु। उनार सवाल भाषा-बोलि, लिपि, मानकीकरण, ब्याकरण, साहित्य आधारित हुनी और इनर जबाब तो परमाण सहित दिई जाण लागि रौ और भाषा पर काम हुनै रौल तो य सवाल कुछ दशकों बाद आफी-आफी नशी जा्ल। सवालों में सबसे ठुल सवाल य छु कि आपणि भाषाक लिजी ‘ह्याव नजरक त्याग’ और यैक ‘वकत’ (महत्व) कैं जाणन। जती बै य त्याग हमूल करण सिखि हा्ल, बस उती बै सुल्ट बा्ट बणि जा्ल। फिर हम लै देखुंल दुनियकि को शक्ति छु यसि जो हमरि ‘कुमाउनी’ कैं अघिल और लोकप्रिय बणन है रोक सकलि। ●●●
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