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कुमाउनी प्रेम कहानी : त्यर मुलमुल हँसण

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कहानीकार -  डॉ. आनंदी जोशी  ( न्यू सेरा, पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) निवासी डॉ. आनंदी जोशी ज्यू रिटायर शिक्षक छन, यों कुमाउनी भाषा में एक भल कहानीकार, कवयित्री रूप में जाणी जानी । कुमाउनी भाषा कैं अघिल बढूण में ठुल भूमिका निभूनई )  मो.-9411517434 ( य कुमाउनी कहानि कैं  ‘ पहरू ’ कुमाउनी पत्रिका द्वारा आयोजित   ‘बहादुर सिंह खनी स्मृति प्रेम कहानी लेखन योजना 2019’ में पुरस्कार मिली छु )  •••    रोजै चार रात्तै झुखमुखै उठि बेर बीरूल ना-ध्वै, चहा बणै बेर पे और ख्वा्र में टायर-ट्यूब राखि बेर पुजौ कालि गङाक किनार। टायर ट्यूब कें बगड़ में राखि बेर ऊ एक उच्च ढोव में बैठि बेर इंतजार करन बैठौ यात्रीनक। आज रात्तै बै वीक दैण आँख फुरान लागि रौछी लगातार। ऊ बैठि-बैठी सोचण लागि रौछी कि जाणि कां बै मिलैं आज क्वे भलि खबर। या क्वे मितुर त नी ऊन आज मिलनै थें? नैं-नैं को छू म्यर अपण ये दुनी में, जो मिलनैं थें आल। मतारि पैद करन-करनै भगवानाक घर न्है गै और बाबू पांच सालकि उमर में अपण दगाड़ नैपाल बै भारत लै बेर, नौ सालकि उमर में भौनी सुबदारा्क वां छाड़ि बेर जाणि कां अलोप है गई। वीक...

कुमाउनी ऐतिहासिक कहानी : भारती चंद

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प्रस्तुति-  ललित तुलेरा ••• कहानीकार - डॉ. पवनेश ठकुराठी बड़ालू, पिथौरागढ़  ( उत्तराखंड) मो.-9528557051 ( भारती चंद चंद वंशक एक वीर, साहसी और प्रजाप्रेमी रा्ज छी। उनूल 1437 ई. बै 1477 ई. तक कुमू में शासन करौ। ऊं पैंल यस राज छी जनूल डोटी यानी नेपालक राजाकि गुलामी अस्वीकार करि दे और उनूल डोटी राज कैं हरै बेर नेपाल में चंद राजवंशक राज स्थापित करौ। कहानीकारल इतिहास और कल्पनाक समन्वय करि बेर यो कहानि रचि रै। संभवतया यो कुमाउनीकि पैंलि ऐतिहासिक कहानि छ। - संपादक )     रातक टैम छी। असमान में तार लैम्पू हाथ में धरि बेर खेल लागि राछी। दूर बै जून मतारिकि चारि उनूकैं खेलन चै रैछि। बर्तियाकोटक कोट भितेर राज भारतीचंद इकलै कभै इथकै, कभै उथकै रिटन राछी। उनार मन में सुखीनाक पत्यालोंकि चारि तमाम ख्याल उड़नाछी। आंखिर कब तलक यो लड़ैं चललि? के ले हो ऊं लड़ैं बंद नि कराल। डोटी राज जयमल्ल कैं जब तलक ऊं हरै नि द्याल, तब तलक ऊं चैनल नि स्याल। सब कुछ मंजूर छ, लेकिन मैंकें गुलामी मंजूर न्हां। मैं डोटी ;नेपालद्ध राजकि गुलामी नि करि सकनू। गुलामीक जीवन ले के जीवन हुं। पराधीन सपनेहुं सुख नाहि।...

कुमाउनी किताब समीक्षा : श्री गोलू स्तुति कथासार एवं आरती

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समीक्षक-  ललित तुलेरा   उप संपादक-  ‘पहरू’ कुमाउनी मासिक पत्रिका मो.-7055574602     कुमाउनी व हिंदी लेखक डाॅ. ललित  चंद्र जोशी ‘योगी’ द्वारा लेखी ‘ श्री गोलू स्तुति कथासार एवं आरती’ किताब छपि रै।  य किताब कुमाउनी व हिंदी द्वि भाषाओं में लेखी जै रै। 47 पेजोंकि य किताब में 10 पेजों में गोल ज्यूकि कुमाउनी में स्तुति और करीब 20 पेजों में गोल ज्यूक हिंदी में का्थ लेखि रै। किताब में गोल ज्यूकि हिंदी में एक आरती, एक भजन और कुमाउनी में-   ‘ हिटो हिटो रे दगड़ियो हिटो गोलू ज्यू का द्वार हो।  वां होलि भेट हमरी, वां मनूला त्यार हो।।   चितई का थान जूंला, जूंला नैनीताल-घोड़ाखाला।   नागड़ा, निशाण, दिगेड़ि, नौ गजैक टांकि ल्हि जूंलो।। नामक भजन शामिल छन। हिंदू देवी द्याप्तोंक 50 मंत्र लै य किताब में सामिल कर री दगाड़ै रंगीन में कुमू (कुमाऊँ) क  मनीला मंदिर, नैना देवी मंदिर, जागेश्वर मंदिर चितई मंदिर, कटारमल मंदिर समेत 20 है सकर मंदिरोंक फोटक एकबट्यै बेर छप रई। कुल मिलै बेर य किताब कुमूक न्याय द्याप्त गोल ज्यूक जीवन और उनरि महिमा, चमत्कार कै...

कुमाउनी लेख :- पहाड़कि कृषि

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    प्रस्तुति - ललित तुलेरा  लेखक-  शिवदत्त पांडे  ग्राम व पो.- कफलनी (दन्या), अल्मोड़ा मो.- 8859784649 पहाड़ा गौंओं में रौणी लोगनकि आजीविकाक मुख्य साधन कृषि छु। यांक कृषि कार्य बिना पशुपालन करिए संभव न्हातन। इन लोगन कें कृषिक दगड़-दगड़ै पशुपालन लै करन पड़ौं। पहाड़ में कृषिक मतलब सिर्फ नाज पैद करन न्हातन।  यांक कृषि अंदर बागवानी, साग-भाजी, फुलबाड़ी और पर्यावरण संरक्षणक काम लै हई करूं। पहाड़ में कृषि कार्य करनी वाल लोगन कें जिमदार, काश्तकार कई जां। पुर उत्तराखंड में 12 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि छु। यमें लै पहाड़ी इलाकन में 7.5 प्रतिशत है ले कम कृषि योग्य भूमि छु। पहाड़ा काश्तकारना पास औसतन 10 नालि है लै कम जमीन छु। नदी-घाटी और गाड़-गध्यारनाक इलाकन कें छोड़ि बेर पहाड़न में करीबन 90 प्रतिशत कृषि भूमि जो डा्न-का्न और धुरा इलाकन में छु उ असिंचित छु। उमें फसल द्यौ भरोस पर हई करें। यई विषम भौगोलिक संरचना वील पहाड़कि खेति करनी वालि जमीन तलाऊँ और उपराऊँ द्वि भागन में बँटी छु।  नदी-घाटी और गाड़-गध्यारनाक इलाकन में कुल, बान, खाव, सिंचाई टैंक, सिंचाई नहर और गूल द्वारा सिंचाई करी ज...

कुमाउनी कहानी : टिरेल

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प्रस्तुति - ललित तुलेरा       दिवालिक जस त्यार। बगवाई दिन। खड़कू एक हफ्त बटी घर नैं आई भय। घर में कि छु, कि न्हां, ऊ कैं के सुज नैं। भागुलिल जुमूकार उठि बेर, दुती जगै, नै-ध्वै, नानतिनों कें नवै-धुवै, द्याप्ता थानों भेट-पखोव दी, त्यार बणै हा्ल। खीर, लगड़, बा्ड़, पू, परसाद सब बणाई भय। नानतिनों कें च्यूड़ पुजि, जसै त्यार खवौन कै उठी, गोंन बै लछिया बा्ब दिखाव है गाय। पछिल बै नरी और शोबी लै भा्य। तीनों कै मुखौन चुरैन पड़ी भइ। ज्वत्याया्क जा्स खमाखम बा्ट लागी भा्य। खा्व में पुजा, तीनै जाणि भिड़ि में भैटि गा्य। चैंथार में ठाड़ि लछिए इज थैं खड़कुवल कै-दरपट द्वि गिलास चहा बणा धैं वे।  चहा पी सकौ, शोबियल कै-‘‘ख्वल हो भैंस, आ्ब देर हुनै।’’ खड़कू उठौ ग्वठ हुं जा्ण फैट। भागुलि बुलाणि- किलै ग्वठ कि छु? भैंस ख्वीन छु- खड़कुवल कै। किलै ख्वीन छु? इतुक में नरू जरा नरकि बेर जस बुलाण- ‘‘जू में भैंस हारि रौ खड़कू। हम भैंस ल्हिजाण हुं ऐ रयां। तब ख्वलन छु, और किलै ख्वलन छु।’’ नरूवक बुलाण सुणि, भागुलि कैं निगुरि घुरङ चड़ि गइ। वील कै-खबरदार! म्यर भैंस कैं हात लगाला...। नरूवल कै-किलै नैं...

‘पहरू’ नवंबर २०२० अंक संपादकीय : बार सालक सफर

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संपादक- डॉ. हयात सिंह रावत अल्मोड़ा , उत्तराखंड  ‘ पहरू ’ पत्रिकाक बार सालक सफर पुर है गो। बार सालाक दरमियान ‘ पहरू ’ कें पाठकोंक , रचनाकारोंक जो प्यार , सहयोग मिलौ , उ बेमिसाल छ। सबै पाठक यैक प्रचार - प्रसार में , ‘ पहरू ’ कें घर - घर पुजौन में आपण - आपण तरबै जुटी हुई छन , येकै वील आज ‘ पहरू ’ सा्र देश में पढ़ी जनौ और बार साला भितर यैक भौत भल प्रसार है गो। आज ‘ पहरू ’ देशक कुण - कुण में पढ़ी जनै और करीब पच्चीस हजार लोग पढ़नई। हमरि लिजी विशेष खुशी बात यो लै छ कि आज कुमाउनी भाषा में लेखनेरोंकि एक भौत ठुलि जमात ठाड़ि है गै। बार सालों दरमियान सात सौ छप्पन 756 रचनाकार ‘ पहरू ’ में छपि गई। आज करीब आठ सौ (800) है सकर लोग कुमाउनी में लेखनई। यतुक जादा तादाद में कुमाउनी रचनाकार हुण कुमाउनी भाषा विकासै लिजी शुभ लक्षण छन।   इन बार सालों में ; नवम्बर , 2008 बटि अक्टूबर , 2020 तक)  ‘ पहरू ’ में तमाम विधाओं / स्तंभों में छपी रचनाओंक विवरण यो प्रकार छ -  व...