कुमाउनी ऐतिहासिक कहानी : भारती चंद



प्रस्तुति- ललित तुलेरा
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कहानीकार -



डॉ. पवनेश ठकुराठी
बड़ालू, पिथौरागढ़ ( उत्तराखंड)
मो.-9528557051

(भारती चंद चंद वंशक एक वीर, साहसी और प्रजाप्रेमी रा्ज छी। उनूल 1437 ई. बै 1477 ई. तक कुमू में शासन करौ। ऊं पैंल यस राज छी जनूल डोटी यानी नेपालक राजाकि गुलामी अस्वीकार करि दे और उनूल डोटी राज कैं हरै बेर नेपाल में चंद राजवंशक राज स्थापित करौ। कहानीकारल इतिहास और कल्पनाक समन्वय करि बेर यो कहानि रचि रै। संभवतया यो कुमाउनीकि पैंलि ऐतिहासिक कहानि छ। - संपादक )
    रातक टैम छी। असमान में तार लैम्पू हाथ में धरि बेर खेल लागि राछी। दूर बै जून मतारिकि चारि उनूकैं खेलन चै रैछि। बर्तियाकोटक कोट भितेर राज भारतीचंद इकलै कभै इथकै, कभै उथकै रिटन राछी। उनार मन में सुखीनाक पत्यालोंकि चारि तमाम ख्याल उड़नाछी।
आंखिर कब तलक यो लड़ैं चललि? के ले हो ऊं लड़ैं बंद नि कराल। डोटी राज जयमल्ल कैं जब तलक ऊं हरै नि द्याल, तब तलक ऊं चैनल नि स्याल। सब कुछ मंजूर छ, लेकिन मैंकें गुलामी मंजूर न्हां। मैं डोटी ;नेपालद्ध राजकि गुलामी नि करि सकनू। गुलामीक जीवन ले के जीवन हुं। पराधीन सपनेहुं सुख नाहि। गुलामीक जीवन में स्वीण में ले सुख नि हुन। तब मैं कसिकै मल्ल राजकि गुलामी स्वीकार करि ल्यूं। नि है सकन। कभै नि है सकन। धरती पलटी जालि, अगास पलटी जाल, लेकिन भारतीचंद कभै कैकि गुलामी नि करल। लड़ैं में मल्ल राज हारल। जरूर हारल। जब तलक नि हारल तब तलक मैं लड़ै बंद नि करूंल।
यस सोचन-सोचनै भारतीचंद ल कोटक छा्ज बै भ्यारकि तरफ चै। सामणि बड़ालूक डाना-काना औ कुछेक घर नजर ऊनाछी। उनूल आपणि नजर कैं बिस्तार दे। दूर कथप डोटी राज्य उज्यालाक कारण बिजुलीकि र्यख जै चिताइनौछी। उनूल आपण मन में संकल्प ल्हे- ‘‘आंखिर तै राज्य में मैंल चंद राजवंशक झंड नि गाड़ि दियो त म्यर नाम भारतीचंद नैं। ’’
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भारतीचंद चंद राजवंशक प्रतापी और स्वाभिमानी राज छी। उनरि राजबुंगा ;राजधानीद्ध चंपावती ;चंपावतद्ध छी। डोटीक मल्ल राजल उनूहैं आपणि अधीनता स्वीकार करना लिजी कौ त उनूल साफ इनकार करि दे। तब ऊं आपणि बिशाल कटकी सेना ल्हीबेर डोटी राज जयमल्ल कैं हरूना लिजी आई। उनूल बा्टपन मिलनी वाल तमाम प्रांत और मंडलोंक सामंतों कैं आपण अधीन करौ। उनरि सेना में सबै जातियोंक पदातिक, अश्वारोही, गजारोही, ऊष्टारोही सब किसमाक सैनिक शामिल छी। सोर में उनूल बर्तियाकोट में आपण ड्यार जमा और यांई बै लड़ैक संचालन करौ। ऊं चार सालों बै उरातार डोटीक मल्ल राज जयमल्ल दगै लड़ै लड़नाछी।
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दोफरीक टैम छी। राजा भारतीचंद आपण दरबार में बसीनाक खास मंत्रियों दगड़ि लड़ैंक बार में बिचार करनाछी। उसै टैम एक खबरची आ- ‘‘महाराजकि जै हो।’’
‘‘कवो संदेशवाहक कि खबर ल्यारछा?’’ राजल पुछौ।
‘‘महाराज! डोटी सैनिकोंल कालि गंग में  बणीनाक पुल  टोड़ि बेर बगै है। महाराज! हमार पनर-बीस सैनिक गंग में बगि गई ’’ खबरचील खबर दे। 
‘‘अश्वबलाधिकृत! तुम आपुण पचास अश्वारोहियों कैं शीघ्र राजमिस्त्री कैं ल्यूना लिजी राजबुंगा भेजौ। आ्ब हम बालीचैड़ में ड्यार जमूल। प्रधान अमात्य कैं यो खबर पुजै दियो ’’ भारती चंदल आदेश दे।
थ्वाड़ देर में राजा भारतीचंद आपुण बिश्वासपात्र मंत्रियों और बीस हजार सैनिकौं दगड़ि बर्तियाकोट बै बा्ट लागी। उनूल आ्ब बड़ालू और गौड़ीहाटक इलाक में मौजूद बालीचैड़ नौंकि जा्ग पर ड्यार जमूनक फैसाल ल्ही हाछी। अघिल- अघिल खुद राजा भारतीचंद आपण घ्वड़ में बिराजमान छी। उनर घ्वड़ ‘बाजि’ बिजुलिकि जसि रफ्तार में हिटनौछी। उनर दगड़ महा- अश्वबलाधिकृत राजबीर सिंह और खास सलाहकार गोपू महरा छी। उनार पछिल-पछिल पांच हजार घुड़सवार सैनिक छी और घुड़सवारों पछिल पनर हजारकि पैदन सेना आपण सेनापतिक नेतृत्व में लमालम हिटनैछि।
राजा भारतीचंद जब गौं बै जानाछी, गौंक सार मनखी द्वार में ठाड़ है बेर उनूकैं पैलाग करनाछी। धन्य राजा भारतीचंद, जनरि छत्रछाया में पुर कुमू खुशहाल छ। खुशहाल छन यांक मनखी।
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असली राज उ नि हुन जो शासन करूं। असली राज उ हूं जो प्रजाक ख्याल धरूं। भारती चंद प्रजाक ख्याल धरनी राज छी। यतुकै नैं ऊं वीर, स्वाभिमानी और साहसी ले छी। उनार सलाहकारोंल कतुक फ्यार कौ कि लड़ैंकि जिम्मेवारी आ्ब युवराज रतन चंद कैं दी दिण चैं, लेकिन भारती चंदल उनरि एक नि सुणि। उनर कून छी कि डोटी राजल उनूकैं चुनौती दी राखी, ये वील उनै ये लड़ैं कैं लड़ाल, क्वै और नैं। राजक ये संकल्प और स्वाभिमान कैं देखि बेर सब हारमान है जांछी।
बालीचैड़ में ड्यार जमाई भारती चंद कैं छै महैण है गाछी, लेकिन कालि गंग कैं पार करन उनार लिजी भौतै जटिल है पड़ौ। उनार सैनिकोंल द्वी-चार फ्यार रात में तैरि बेर गंग पार करनकि कोशिश ले करी, लेकिन उन सफल नि है पाय। एक त गंग में पाणिक बहाव भौत जादे छी और दुसर ठुला-ठुल मगरमच्छ वी गंग में ऊणी वाल मनखियों कैं ज्यूनै नेइ दिछी। यैक अलावा डोटीक सैनिक ले पुल पार रात-दिन सचेत रूंछी।
राजमिस्त्रियोंक ऊना बाद राजल तुरंत उनूकैं काम पर लगै दे। उनूल मिस्त्रियों कैं पचास नाव बनूनक आदेश दी दे। राजमिस्त्री नाव बणून में लागि गाय।
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बरखक मौसम छी। असमान में बादव घड़म-चड़म कैबै बुलानाछी। का्ल बादवोंक बीच में बिजुलि आपण नाच दिखूनैछि। कालि गंगाकि सुसाट-भुभाटल वातावरण गुंजायमान है रौछी। रातक बार बाजि रौछी। चंदोंक ड्यार बै खुसर-पुसरकि आवाज ऊनैछि।
‘‘महाराज! खुफिया खबरचील सूचना दी राखी कि डोटी राज जयमल्ल बैतड़ी बै आपुण एक लक्ष सैनिकों दगड़ि लड़ै लड़ना लिजी ऊनकि योजना बनूनौ।’’ प्रधान अमात्य रूद्रेश्वर जोशील जानकारी दे। 
‘‘ऊण दिय उकैं। गंग पार जै कि करि सकल। वीक ऊण है पैंली हम डोटी में आक्रमण करि द्यूंल। तुम आपुण सैनिकों कैं चैबीस घंट गंग पार नजर धरनक आदेश दी दियो’’  भारती चंदल कौ। 
‘‘यसै हो्ल महाराज!... लेकिन महाराज!’’ प्रधान अमात्यल बीचै में आपणि बात रोकी।
‘‘लेकिन कि? जि कून छ साफ कवो। संकोच नि करो’’ राजल कौ।
‘‘महाराज ! हमूकैं यां लड़ते-लड़ते पांच साल है जानी। हमर भौतै खर्च है गो। हमर खाण-पिण और रसदक सार समान खतम हुनकि कगार पर छ’’ रूद्रेश्वरल चिंता जतै।
‘‘अमात्य ज्यू! तुम समानकि फिकर किलै करछा। तुम बस लड़ैंक ऊपर ध्यान दियो। समानकि चिंता लिजी भंडारि ज्यू छन। तुमै बताओ आंखिर कब तलक हम डोटी राज कैं कर देते रूंल? हमरि ऊणी वालि पीढ़ी कभै हमूकैं माफ करि सकली? कि कौलि हमूकैं उ? योई कि हमार महान राज भारतीचंद एक कायर राज छी। वील डोटी राजकि गुलामी स्वीकार करि दे। ना-ना! यो कभै नि है सकन। अमात्य ज्यू! तुम चिंता नैं करौ। सब समान टैम पर ऐ जाल। आंखिर किलै हमूल सोर में कुँवर रतन चंद कैं पंचाशत सहस्त्र सैनिकों दगड़ि तैनात करि राखौ! किलै महरा ज्यू? तुम किलै चै रौछा! आपण लै सुझाव दियो’’ राजल सलाहकार थैं कौ। 
‘‘महाराज! आपूं इतुक ज्ञानी छौ। आपूंक फैसाल कसिकै गलत है सकूं। इजकि माया गलत है सकैं, दयालुकि दाया गलत है सकैं, लेकिन महाराज आपूंक फैसाल कभै गलत नि है सकन’’ गोपू महराल कौ।
‘‘प्रधान अमात्य! आब आपूं चिंता नि करौ। आपूं धरती माताक बीर च्याल छौ। लड़ै लिजी तैयार रवो और कुँवर कंै खबर भिजवै दियो कि उ ले आपणि गजारोही सेना दगड़ि तैयार रवो ’’ राजल कौ। 
‘‘जो आज्ञा महाराज’’ यस कै बेर जोशी ज्यू जानै रई। उनरि चिंता आब दूर है गैछि।
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ब्यावक टैम छी। राजा भारती चंद आपण ड्यार में बिचारमगन छी। ऐल उनार मन में राजबुंगाक ख्याल ऊनाछी। आखिर राजबुंगाक शासन कस चलि रै हुन हो। हालांकि उनूकैं महाराणिकि योग्यता पर पुर भरोस छी। फिरि उनार दगड़ हमार बिश्वासपात्र दीवान बीरेश्वर ज्यू ले छन। महारानीक लाड़िल कुँवर पर्वतचंद ले छन। खैर, पैंली मैंल डोटी राज कैं हरूण जरूरी छ। डोटी राज कैं हरै बेर वी बाद मैं विजयश्रीकि याद में राजबुंग में शिबज्यूक भब्य मंदिर बणूल। द्विज श्रेष्ठों कैं दच्छिण दान में द्यंूल। बुंगाकि गौमाताओं कैं अष्टभोज करूंल। 
ऐल मैंल आपुण ध्यान पुर डोटी पर लगून छ। डोटी राज कैं चंद्र नक्षत्रकि तेजस्विताक एहसास करून छ। जयमल्ल कैं हरून इतुक आसान ले न्हां, लेकिन उ काम ले के काम भै जकैं करन में के कठिनाई न हो। आंखिर राज छूं मैं। हर कठिन काम म्यर लिजी बौं हाथक खेल हुन चैं।
उसै टैम सलाहकार गोपू महराक आगमन हूं-‘‘महाराजकि जै हो! महाराज राजमिस्त्री ज्यू कूनई कि नाव तैयार छन।’’
‘‘भौत भल। य कामक लिजी राजमिस्त्री कैं सौ स्वर्ण मुद्रा इनाम में दी दियो’’ राजल आदेश दे।
‘‘जरूर महाराज! यसै होल। महाराज म्यर यो सुझाव छ कि कातिक महैण में कुकुर त्याराक दिन गंग कैं पार करी जावो, किलैकी डोटीगढ़ में कुकुर त्यार उछासल मनाई जां। वी दिन दुश्मण त्यार मनून में मगन हो्ल। हम वीकि यसै कमजोरीक फैद उठूंल और रातक अन्यार में नावों में बसि बेर गंग पार करूंल ’’ सलाहकारल सुझाव दे। 
‘‘उत्तम सुझाव छ सलाहकार ज्यू! कुँवर कैं खबर पुजै दियो। हर-हर महादेव’’ राजल कौ।
‘‘जो आज्ञा महाराज! हर-हर महादेव’’ सलाहकारल ले समर्थन दे।
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दिवालीकि रात छी। वां डोटीगढ़ में मल्ल राज आपण सैनिकों दगड़ि कुकुर त्यार मनून में मगन छी। यां चंदोंक ड्यार में जबरदस्त हलचल छी। रातोंरात राजमिस्त्रील सैनिकों लिजी एक पुल ले बणै हाछी। सोर बै कुँवर रतनचंदकि सेना ले ऐ गैछि। रातक ठीक द्वी बाजी पचास नावोंल चंद सैनिक फटाफट कालि गंग पार करते रई। घंट भरि में हजारों सैनिक गंग पार पुजि गाछी। फिरि कि छी। प्रधान अमात्य रूद्रेश्वरकि अगुवाई में चंद सैनिकोंल डोटी सैनिकों उपर धावा बोलि दे। 
भयंकर लड़ै भै। महैण भरीकि लड़ै बाद भारतीचंदक सैनिकोंल कालि गंग पारक कोट में आपण अधिकार करौ। वी बाद ऊं हौले-हौले अघिल बढ़ते गई। डोटीगढ़ाक नजीक पुजन पर भारतीचंद और जयमल्लक बीच में भयंकर लड़ै भै। पांच-छै साल तलक संघर्ष चलौ। अनाधुन खुन्यौल-मुस्यौल भै। कतुक फ्यार भारतीचंद कैं पछिल लौटन पड़ौ। कतुक फ्यार जयमल्ल कैं कोट छाड़न पड़ौ। सैनिकों लिजी हथियार और खाण-पिणकि समस्या ऐ। लेकिन कसै ले हार नि मानि। दुवै तरफा सैनिक लड़ते रई। चैतरफा मारकाट मचि गै। धरती सारि लाशोंल ढकी गै, लेकिन आंखिरी में जीत भारती चंद कैं मिलै।
लड़ै जितना बाद भारती चंदल डोटी कैं आपण अधीन करौ और वांक शासन आपण एक योग्य सेनापति कैं सौंपि बेर वापस लौट आई। उनूल डोटी बै झुलघाट पुल में ऊन-जाना लिजी ज्यूलिया कर ल्हिन ले मंजूर करौ।



डोटी कैं जितना बाद भारती चंदल सोर और सीराक शासन कुँवर रतनचंद कैं सौंपि दे और आफूं राजबुंगा लौट आई। जां महाराणि और चंपावतीकि प्रजाल उनार स्वागत में घीक दि जलाई। डोटी राज कैं हरूना उपलक्ष्य में उनूल महाराजाधिराजकि उपाधि धारण करी और राजबुंगा में बिशाल शिब मंदिरक निर्माण करा। भारती चंद शासन काल में चंद वंशक सूर्ज दिन-दूनी रात चैगुनी रफ्तारल जगमगाते रौ। उनर शासनकाल में सारि कुमूकि प्रजा सुखी और संतुष्ट छी। धन्य राज भारती चंद जनर शासन में सारि प्रजा निडरता और स्वाभिमानल जीवन यापन करछी। •

पहरू’ कुमाउनी मासिक पत्रिका, नवंबर २०२० अंक बै साभार 
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