कुमाउनी लेख :- पहाड़कि कृषि

   


प्रस्तुति - ललित तुलेरा 

लेखक- 
शिवदत्त पांडे 
ग्राम व पो.- कफलनी (दन्या), अल्मोड़ा
मो.- 8859784649

पहाड़ा गौंओं में रौणी लोगनकि आजीविकाक मुख्य साधन कृषि छु। यांक कृषि कार्य बिना पशुपालन करिए संभव न्हातन। इन लोगन कें कृषिक दगड़-दगड़ै पशुपालन लै करन पड़ौं। पहाड़ में कृषिक मतलब सिर्फ नाज पैद करन न्हातन। 



यांक कृषि अंदर बागवानी, साग-भाजी, फुलबाड़ी और पर्यावरण संरक्षणक काम लै हई करूं। पहाड़ में कृषि कार्य करनी वाल लोगन कें जिमदार, काश्तकार कई जां। पुर उत्तराखंड में 12 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि छु। यमें लै पहाड़ी इलाकन में 7.5 प्रतिशत है ले कम कृषि योग्य भूमि छु। पहाड़ा काश्तकारना पास औसतन 10 नालि है लै कम जमीन छु। नदी-घाटी और गाड़-गध्यारनाक इलाकन कें छोड़ि बेर पहाड़न में करीबन 90 प्रतिशत कृषि भूमि जो डा्न-का्न और धुरा इलाकन में छु उ असिंचित छु। उमें फसल द्यौ भरोस पर हई करें। यई विषम भौगोलिक संरचना वील पहाड़कि खेति करनी वालि जमीन तलाऊँ और उपराऊँ द्वि भागन में बँटी छु। 




नदी-घाटी और गाड़-गध्यारनाक इलाकन में कुल, बान, खाव, सिंचाई टैंक, सिंचाई नहर और गूल द्वारा सिंचाई करी जैं। य इलाकन में सिंचाई साधन और  मौसम गरम हुना वील खेति-पाति ले भलि हई करें। डा्न-का्न और धुरा इलाकन में सिंचाईक साधन न हुना वील और मौसम ठंड हुना वील खेति-पाति कम हई करें। अति ठंड इलाकन में तो नाजक उत्पादन बिल्कुलै न हुन। यांपन साग-सब्जी, फल-फूल, मसाल और जड़ी-बूटी हई करनी।



नदी-घाटी वालि जमीन सैण छु यमें पैर-पघार, भिड़ न हई करन। यांक जमीन कें स्यार कई जां। यैकै वील पहाड़न में कई जाग स्यारा नामल प्रसि( छन। डा्न-का्न और धुरा इलाकन में अधिकांश जमीन सीड़ीनुमा छु। यमें ठुल-ठुल पैर -पघार और भिड़ हई करनी। जो चैमास में उधरते ले रूनी, उननकें चिनते रून पड़ों। भाई बाण हुना वील पहाड़ै खेति करनी वालि जमीन गाड़न में वड़ खिति बेर टुकुड़ -टुकुड़ में बँटी छु और दूर-दूर बिखरी हुई छु। भौत कम बसावत छन जनार पास आपन इकट्ठी जमीन छु।
पहाड़न में सालाक द्वि फसल हई करनी- चैमासि और ह्यूनाइ। चैमासि फसल में धान, झुङर ;मादिरद्ध मडू, काकुनि, ज्वार, कौणि, चिण, जनोइ, भाङ, भङिर, सूरजमुखी, चू, उगव, तील, कहाण ;दालनद्ध में भट, सोयाबीन, मास, ककूड़ांस, गहत, सुट, गुरांस, रियांस, सिमि हई करें। कोई-कोई इलाकन में अरहर और राजमा लै हई करें। कयेक जागन में मूफली खेति लै करि रखनी। साग-सब्जी में पिनाउ, गडेरि, कोच्यां, आलु, मुव, गाजर, तैड़, गेठि, बैगन, टमाटर, भिंडी, फ्रासबीन, शिमला मिर्च और कती-कती बां्ज-बिल जागन में कटहल लै हई करूं। हरी पत्तदार साग में उगव, चुअ, चैलाइ, बेथू, पात गोभि, पापड़। बेल वाल साग में तोरयां, छिछन, गदू, तुमाड़, लौगि, कुमिल ;भुजद्ध, तित करयल, रामकरयल और ककाड़ हई करनी। मसालन में खुस्याणि, हल्द, आद, दुन, पोदिन, अति ठंड इलाकन में जम्बू गदरैण हई करें। कती-कती तेज पत्ता बोट लै लोग लगै रखनी। फलन में आम, अमरूद, दाड़िम, अनार, अखोड़, खुमानि, कुसम्यारू, पुलम, नाशपाति, गढ़मेहव, आलबुखार, आडू, स्यो, अंगूर, लीची, पपित, क्याव हई करनी।

ह्यूनाइ फसलन में ग्यूं, जौं, वजौं, दैण। दालन में मसुर, कऊं। मसालन में राई, धणी, मेथि, लासण, दुन, पोदिन। साग-सब्जी में मटर, फूलगोभि, बाकुल, आलु, मुव, प्याज। हरी पत्त वाल साग में लाई, पालङ, मेथि, राई, जड़िया पात, प्याजा पात, पत्तगोभि, बेथू हई करूं। खट-मिठ  फलन में माल्टा, नारिङ, निमू, कागजी निमू, कनफौव, जामिर, बिजौर हई करनी। उच्च हिमावक नजीकाक ह्यूं इलाकन में साल में एकै चैमासि फसलै हई करें। यांक लोग उगव, चू, काफर, मारछाक खेति करनी। पैंली बटी पहाड़ा घर-घर में लोग तमाख पिई करछी तो ऊं ह्यून में तमाख ले लगाई करछी। आ्ब तमाखक प्रचलन न्हां फिर ले जो पुरा्ण लोग तमाख पिई करनी ऊं आज ले तमाख लगै रखनी। पैंली बटी रिखु लोग भौत लगाई करछी। रिखुन कें पेइ बेर गूड़ बनाई करछी। आ्ब रिखु पहाड़न में भौत कम लोग धार्मिक कामन लिजी या शो पीसा तौर पर लगै रखनी।
पहाड़न में खेति तली-मली या वलि-पलि सार बनै बेर करी जैं। चैमासि फसल द्विए सारन में हई करें । ह्यूनाइ फसल में एक सार कें खालि धरी जां। गरम इलाकन में जां फसल जल्दी तैयार है जैं वांपन ह्यूनाइ फसल ले द्वि सारन में करि रखनी। चैमासि खेति में काश्तकारन कें जादा बुति करन पड़ैं। गाड़न में जुताई करन है पैंली पैर-पघार लगून, गाड़-भिड़ना कान काटन, उनन कें एक जा्ग एकबटै बेर केड़ बनून और उकें अग्यूण, ढुङ-डाव टिपन, मैल-पर्स खितन, जुताई करन, पाट ;मैद्ध हालन, जिलूण, बुआई करन, दन्याव हालन, गोड़ाई, खेत सवाई- रोपाई करन, न्योवण, बाल टिपाई, कटाई, मड़ाई करन, नाजक घा कें लुटयूणक बुति हई करें। गोड़ाई, रोपाई, कटाई, मड़ाई बुति कई जागनाक काश्तकार वल्ट-पल्ट लगा बेर करनी। पैंली बटी जो लोगना पास जमीन बांकि हुंछि ऊं हुड़की बौल लगा बेर गोड़ाई-रोपाई करछी। आज लै कई जागन में काश्तकार गुड़ाई-रोपाई हुड़की बौल लगा बेर करनी। ह्यूनाइ खेति में यतुक बुति नि करन पड़नि। यमें बान-ब्वीण, मैल-पर्स खितन और कटाई,मड़ाई करनकी बुति हई करें।
पहाड़ में कृषि काम भौत कठिन काम छु। यैक वील एक किस्स लै प्रचलित छु कि पहाड़ में रौण-खाण छु तो ‘काठाक खुट, लुवक टिपाव’ हुन चैं। आज दुनी में एक तरफ रोबोट मनखी काम करन लाग री, यो रोबोट मैंसा जमान में लै हमार पहाड़ै खेति यांक मैंसौंक हाड़-तोड़ मिहनत और बल्दनै मिहनता सहारलि हुन लाग रै। जुताइक काम बल्दनली करी जां। कई-कई जागन में फसल मड़ाई काम ले दैं हालि बेर बल्दनै कै सहारल करी जां। पहाड़न में जो सरकारि कृषि फार्म छन या निजी और ट्रस्टी कृषि फार्म छन उनन में जुताई ट्रैक्टर, पावर टेलर ल, सिंचाई सैन्ट्री फ्यूगल पंपनल और मड़ाई थ्रैसिंग मशीनल करी जैं। पहाड़ै खेति में रसायननक उपयोग भौत कम करी जां। कोई-कोई गाड़न में जब फसल कें कुरमुल लागि जां तो लोग कुरमुला मार रसायनक उपयोग करि ल्हिनी। यूरिया खाद लै भौत कम लोग आपण गाड़न में डाली करनी। यांक लोग गुबर कैं एक जा्ग मेें थुपुड़ै बेर वीक जैविक खाद बना बेर गाड़न में खिती करनी। बीज ले यांक लोग आपनै बनाई इस्तमाल करनी, जैक वील पहाड़ै खेति पूर्ण रूपल जैविक खेति हई करें। येकै वील पहाड़क नाज, साग-सब्जी, फल भौत स्वादिष्ट हई करनी, जैक लोगन में भौत चाहत लै छु। 
पहाड़ में शहर-कस्बना नजदीका लोग साग-सब्जी, फल-फूल बेचि बेर आमद प्राप्त करनी। दिक्कत तब है जैं जब सब लोगना पास साग-सब्जी और फलनै पैदावार भलि है जैं तो उनन कें बजार में उचित भौ नि मिल पान। उनन कें आपन उपज कैं लागत है लै कम में बेचन हुं मजबूर हुन पड़ौं। कई जागन में लोग दाल, मसाल  बेचि बेर, काकुनिक घ्वाग बेचि बेर आमद प्राप्त करनी। अच्यालों मडुवकि ले भलि चैल है रै, जो लोगना पास मडू जादा हई करूं ऊं मडू बेचि बेर भलि आमद प्राप्त करन लाग री। आ्ब पहाड़ा काश्तकार चाय बिकास बोर्ड मददल आपन गाड़न में चहाक बगीच लगा बेर चहा लै बेचन लाग री। कई जागन में कास्तकार लोग मशरूम पैद करि बेर आमद प्राप्त करन लाग री। पहाड़ा काश्तकार आपन गाड़न में पौली हाऊस लगा बेर बेमौसमी साग-सब्जी उत्पादन ले करन लाग री । आपन मोवा आस-पासा बाड़न में नान-नान क्यार बना बेर उनन में साग-सब्जी, मसाल, तीर-नीस फलदार बोट-डा्व, भिड़न में किसम-किसमाक फूल, दूर-दूर बिखरी गाड़न में फसल लहरा बेर उनार-भिड़न में चारा पत्तीे वाल बोट-डा्व लगा बेर यांक काश्तकार प्रकृति कें श्रृगार दी बेर पर्यावरण कैं संरक्षित करि रखनी। यहै अलावा कृषि कार्य करनी वाल औजारनाक बीन बणून हुं जो लकाड़नै जरवत हुंछी वीक लिजी यांक काश्तकार जङव ले पालि रखनी।
पहाड़ में खेति करनाक कई परंपरागत नियम ले छन। उच्च जाति वाल हव नि बान। पैंली बटी ऊं हई धरि बेर जुताई करछी, आ्ब य काम क्वे ले मजुरि ल्ही बेर करन लाग रौ। स्याणिन कें लै हव बान बर्जित छु। हव बान न्हंु लै कई नियम छन। कुबारा दिन पैंल-पैंली हवजोत नि करी जानि। पौ-परबी, अमावस्या, बिरादरी में शुभ- अशुभ काम, सराद में बल्द अजोत धरी जानी। पहाड़ में काश्तकारन कें खेती कामै लिजी कतुक जाव-जुगूतै जरवत पड़ैं- जसिकै नहैड़, कहुंल, कुटव, दातुल ;आंसिद्ध, बहुंला, रमटक बीन, दन्यावा दन, लठयूड़, किल-पात, बौकिल हथरस, हथिन, जुआ स्वाल, जत्यूड़, ज्योड़, गयूं, माव, मुङर, गिर इननकें काश्तकार आपनै हस्त शिल्पल बनाई करनी। नाज कें चुटन हुं, सुखून हुं जो फड़-फिणकि जरवत हुं वीक लिजी यांक काश्तकार मोथ ;मोट घाद्ध लगाई करछी, वीक फिण, चटाई आपणै हाथल बनाई करछी। आज ले कई जागन में महट और फिण बनाई जानी। नाज धरन हुं बोरी, कुथाव बनूनी वाल शिल्पी लै कयेक जागन में हई करछी जो बोरी- कुथाव दि बेर काश्तकारन बै नाज ल्हिई करछी। पैंली बटी भकार बणून हुं बड़ई, चमड़क हवण बनूनी शिल्पी हुंछी ऊंलै यैक बदव में नाज ल्हिई करछी। आ्ब नाज धरन हुं बजाराक पलास्टिकाक कट्ट चल री और हवण ले काश्तकार पलास्टिकाक आपणै हाथल बनै ल्हिनी। यहै अलावा कृषि काम औनी औजार फा्व, दातुल, दतई, कुटव, कहुंल, छिन, बहुंल बणून हुं और कारन हुं ल्वार, हव, दन्याव, जू छेड़न हुं, नहैड़ लगून हुं, भकार बणून हुं बड़ई, डाल, उडई, छपरि, सुप, कोरिङ, डालि बणून हुं बारूड़ि लै हई करछी, जननकें य काम करियक काश्तकार लोग हर नाजक खव ;भागद्ध देई करछी, इनन कें खवकी कई जांछी। आ्ब य सब काम पैंस दि बेर हुन लाग रौ। कयेक जागन में आज लै यों लोग खवकी में छन। पैंली बटी नाज नापन हुं मा्ण, नाइ, दै- दूध धरनी भान-ठेकि, हड़पी, छां बनूनी डौकइ बणून हुं चुन्यार लै हई करछी, इननकें लै यैक बदव नाजक भाग देई जांछी। नाज कें पिसन हुं चा्ख ;जातरद्ध, कुटण, फोवण हुं उखव, मुसव बणूनी वाल शिल्पिन कें लै नाज देई जांछी। गाड़-गध्यारा जागन में नाज पिसन हुं घट हई करछी, इननकें लै नाज पिसाइक भाग देई जांछी। यैक बार में हमार पहाड़ में किस्स लै छु- ‘त्यर घट पिसियो, झन पिसियो, ला म्यर भाग’। कयेक जागन में आज ले घट चली छन। यहै अलावा पुरोहित,मंदिरनाक पुजारि, साधु- सन्यासी, दास, )तुरैण सुणूनी वाल लोग हर फसलक भाग ल्हिजाण हुं औंछी। पहाड़ पूर्ण रूपल कृषि पर निर्भर छी। यतुक सबन कें निपटाई बाद लै काश्तकारनाक पुर साल भरि खा्ण हुं खेति बटी है जांछी। ब्या-बरात जास कामन में लागनी राशन लै घर कै हुंछी। आज पहाड़ै कृषिक हालत यो है गे कि पुर परवारा साथ हाड़-तोड़ मेहनत करि बेर काश्तकारनाक द्वि-तीन महैनक खा्ण हुं लै नि है पानै। जबकि आज पहाड़ै खेतिक विकास करना पछिल राष्ट्रीय स्तरक विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्माड़ में, गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय पंत नगर में, राज्य सरकारक कृषि विभाग, उद्यान विभाग, विश्व बैंक बटी वित्त पोषित बखत-बखत पर चलाई जानी वाल परियोजनाओं और तमाम गैर सरकारि संगठन लागी छन, पर पहाड़ै कृषिक विकास हुना बजाय विनाश हुण लागि रौ। यांक कृषि बटी लोगनक मोह भंग होते जाना, ऊं गौं-घर छोड़ि बेर भ्यार हुं पलायन करनई। पलायना वील 1065 गौं यां बटी पूर्ण रूपल गैर आबाद है गी। एक लाख हेक्टेयर है लै बांकि कृषि योग्य भूमि बांजि पड़ि गे। आज पहाड़ै कृषि वी लोग करन लाग री जनर आजीविकाक कोई दुहर साधन न्हातन। आज इनर लिजी लै यां कृषि करन चुनौतीपूर्ण है गे किलैकी उनार-अगल-बगला घरन बटी और गौं बटी जो लोग पलायन कर बेर न्हैगी, उनार गाड़-भिड़ बांज पड़ि बेर उनन में कुरि, हिसाउ, घिङारु, किल्मड़, सिसुणा झाड़ि हैगी। इनार वील यथकै-उथकै जानी बाट लै बंद है गी, इनन में जङवाक जानवर लुकि रौनी जो खेति कें और पालतू जानवरन कें नुकसान पुजूनी।



पहाड़ै कृषिक आज तक बिकास नि है पानक मुख्य कारण यांक टुकुड़-टुकुड़ में बँटी और दूर-दूर बिखरी जमीन छु। जैक वील खेतिक देखभाल करन, उमें मैल-पर्स खितन, मेहनत करन में तमाम कठिनाई छन जो आजाक समय में बिखरी परिवार और लोगनकि काम करनकि उज, घटनै वील नि है पानै। यांक खेतिक विकासै लिजी एकै उपाय छु कि जमीनकि चकबंदी करी जाओ। हालांकि सरकार में बैठी लोग लै स्वैच्छिक चकबंदी अपनाओ कै कूण लाग री, यमें काश्तकारन कें प्रोत्साहित करी जानकि बात लै करन लाग री, पर यमें लै के सफलता नि मिलन लाग रै। किलैकी पहाड़ में चकबंदी करन में तमाम जटिलता छन, जननकें दूर करनक उपाय काश्तकारना बीच जै बेर सलाह-मसविरा कर बेर नि हुन लाग रै। पहाड़ में जो लोगना पास आपणि इकट्ठी जमीन छु, सरकारि या निजी कृषि फार्म छन, उनन में भलि उपज हुन लाग रै। पहाड़ै कृषि बटी मोह भंग हुन और वीक दिन पर दिन विनाश हुनक दुसर कारण खेति कें नुकसान पुजूनी वाल बरहा ;जंगली सुअरद्ध, गुणि, बानर, घुरड़, काकड़,सँस, सौल इत्यादि जङवाक जानवर और किसम-किसमाक चाड़ और कती-कती अबारा जानवर छन। पहाड़ में कुछ सालन बटी जङवाक जानवरनक आतंक यतुक है गो कि काश्तकारना खेति में हाड़-तोड़ मेहनत करना बाद यो फसल कैं यतुक बर्बाद करि जानी कि उनार खा्ण हुं एक ग्यड़ लै नि बचन लाग रै। कई फसलनाक पुस्तैनी बीज तक इनन उजाड़ हली। कई जागन में गौं में रै बेर लै लोगनल आपनि जमीन बां्ज धरि है लै। पहाड़ै खेतिक विकास यो भौतिकवादी सुख-सुविधाना जमान में जो खेति करनक परंपरागत तरिक चलते ऐ रौ वील हुन आ्ब मुसकिल लागना। पहाड़ै खेतिक विकासै लिजी यांक जमीन में चकबंदी करि बेर और वीक फार्मीकरण करि बेर उमें सहकारी ढङल खेति करी जान चैंछ और जङवाक जानवरन बटी खेति कें बचूनक पुख्ता उपाय करी जान चैंनी। •
‘ पहरू’ कुमाउनी मासिक पत्रिका , नवंबर २०२० अंक बै साभार 

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