कुमाउनी कहानी : टिरेल
प्रस्तुति - ललित तुलेरा
दिवालिक जस त्यार। बगवाई दिन। खड़कू एक हफ्त बटी घर नैं आई भय। घर में कि छु, कि न्हां, ऊ कैं के सुज नैं। भागुलिल जुमूकार उठि बेर, दुती जगै, नै-ध्वै, नानतिनों कें नवै-धुवै, द्याप्ता थानों भेट-पखोव दी, त्यार बणै हा्ल। खीर, लगड़, बा्ड़, पू, परसाद सब बणाई भय। नानतिनों कें च्यूड़ पुजि, जसै त्यार खवौन कै उठी, गोंन बै लछिया बा्ब दिखाव है गाय। पछिल बै नरी और शोबी लै भा्य। तीनों कै मुखौन चुरैन पड़ी भइ। ज्वत्याया्क जा्स खमाखम बा्ट लागी भा्य। खा्व में पुजा, तीनै जाणि भिड़ि में भैटि गा्य। चैंथार में ठाड़ि लछिए इज थैं खड़कुवल कै-दरपट द्वि गिलास चहा बणा धैं वे।
चहा पी सकौ, शोबियल कै-‘‘ख्वल हो भैंस, आ्ब देर हुनै।’’
खड़कू उठौ ग्वठ हुं जा्ण फैट।
भागुलि बुलाणि- किलै ग्वठ कि छु?
भैंस ख्वीन छु- खड़कुवल कै।
किलै ख्वीन छु?
इतुक में नरू जरा नरकि बेर जस बुलाण- ‘‘जू में भैंस हारि रौ खड़कू। हम भैंस ल्हिजाण हुं ऐ रयां। तब ख्वलन छु, और किलै ख्वलन छु।’’
नरूवक बुलाण सुणि, भागुलि कैं निगुरि घुरङ चड़ि गइ। वील कै-खबरदार! म्यर भैंस कैं हात लगाला...।
नरूवल कै-किलै नैं लगून हात? मैं जू में जिति रयूं। भैंस कैं अल्लै ल्हिजाण छु। जू में तो यई शर्त है रैछि।
मैं के नि जाणनी तुमरि शर्त-फर्त। जै दगड़ि शर्त है रै, उथैं बै ल्हि जौ। भैंस तो म्यर छु। तैकैं हात नैं लगै सकना।
खड़कू उज्याणि चै बेर नरू बुलाण-किलै रै खड़कू! आ्ब चै कि रौछै? ला ख्वल भैंस। चाल दिण बखत नैं सोचछिए, कि ह्वल कै? उभत तौ कौंछिए- ले एक चाल और, एक चाल और। चाल पर चाल देते जानौछिए। जब खल्दियौन पैंस निमड़ि गा्य और कैल कर्ज नि दी, तब त्वैल दूण भैंसकि चाल आई कौ। मैंल उभतै कै हाछी, सोचि ल्हे रे, आजि जे सोचि ल्हे। हप है जांछै है जा। तब त्वील खुदै खुला्स करौ। किलै हूं हप यार। हारि जूंलौ रत्तै हूं दस बाजी भैंसौ गयूं त्यार हा्त में थमै द्यंूल। आ्ब कि चैरछै, कि सोचनछै? थमा भैंसक गयूं म्यार हा्त में। किलै यौ घर त्यर न्हां? तौ भैंस त्यर न्हां? ला जल्दी कर, ख्वल भैंस कैं।
खड़कू फिरि ग्वठ हुं जा्ण फैटौ, भागुलिल कै- खबरदार हाँ! भैंस कैं हात झन लगाया। त्यार-ब्यारक दिन छु। मैं या तो आपणि ज्यान अपघात करि द्यूंल या भैंस कैं हात लगौनी ज्यौन नैं रौ आज। नानू-ना्न दूदपिनी थ्वर बै, मरि -मरि बेर मैंल य भैंस कैं पाइ राखौ। कतू सालों बटी धिनाई खोंल कें आ्स लागि रयां। आज धिनाइ वा्ल है सक्यां जब, तुम म्यार नानतिनौ मुख में म्वाव लगौनी को छा? तुमर कि लागि रौ यो भैंस में? कदीनै नवा-धुवा कौन नैं, सेवा-टहल करै कौन नैं। कदीनै घा-सुतर काटि बेर खवा-बिछा कौन नैं, कदीनै वीक गोंत-गुबर पोछौ कौन नैं? आंखिर तुमर अधिकार कि छु यो भैंस में? तुमुकैं तौ घर-बार के चैन भय नैं। सब मैंकणी चैन भय। तुम जू खेलौ बस। हारौ-जितौ तुम जाणौ। पर मेरि चीज पर हात झन लगाया।
नरूवल निगुरि कुकड़ैन छोड़ि- ‘‘तबै तो या्स स्यैणी गुलामौं दगाड़ भैटन हुं मन नि करन। इन सालोंकि आन-जबान के भई नैं। आ्ब स्यैणि देखि मुति भरीनौ।’’
शोबियल कै-‘‘को लागि रौं यार यो कुचड़याट में। इनरि स्यैणि-बैगकि पंचैत जै कि करन हैरै हमूल। हिट हमी ख्वै लौनौं भैंस कैं।’’
भैंस ख्वीनकि थैं शोबी और नरू भिड़ि बै उठ, ग्वठ हुं जा्ण फैटा- भागुलि हात में दातुल ल्हि बेर ग्वठै देइ में ठाड़ि है गै। वील जोरल कै-‘‘आओ रणकारौ अघिल कै बढ़ौ धैं-एक-एक कै गिणै नैं द्यूंलौ, मैं लै आ्पण बाबुकि चेली नैं भईं।’’
नानतिनौक झनकार पड़ि गोय। हल्ल-गुल्ल सुणि वली-पली पड़ोस बटी लै मैंस एकबटी गा्य। खा्व में गिरदम है गोय। लोग तमाश देखण में लागी भाय। भागुलि रणचंडी बणि गइ। वीक आङ देबुत जै ऐ गै। ऊ रीसल कामन-कामनै, कौन न कौन बकते जनै। कौरबोंकि औलाद सालो, औ धैं म्यार ग्वठ, हात लगौ धैं भैंस कैं। रणकारों कंै चिरि बेर चार नैं करि द्यूंलौ, तब कया। स्यैणी गुलाम कौनी सा्ल। कि समझछा तुम स्यैणियों कें। कि जाणछा तुम स्यैणियोंकि कदर। काम करोें हम, रात-दिन मरों हम, और तुम हमरि मरि-मरि बेर कमाई कैं- एक चाल आई में गँवै दियो। तस कसी है सकूं?
नरूवल कै -तसि हुस्यार जै छी तू आपण बैग कैं समावनी। हमू थैं कि कूनौछै। त्यर बैगल लगा, भैंस कैं दौ में। हमरि कि गलती छु?
होइ! तुमरि के गलती न्हां। दीवाली त्यार आयो, घर बार छोड़ि सब सा्ल जू में भैट जानी। मैं अल्लै जां पटवारि ज्यू पास। जो-जो जू में भैटि रछी, सब सालोंकि रपोट करूं। हम स्यैणी घर-बार चलूनयां कै हमूकैं बेकूफ समजछा? अल्लै सब सालों कें हतगड़ि लगै बेर जेल नैं भिजवै द्यूंलौ, मैं लै आपण बाबुकि चेलि नैं भई। सारि दुणी दीवालि जगूनै, बम-पटाखा छोड़नै, हमार नानतिन टुआन करि राखी। फिरि लै तुमरि के गलती न्हां? किलै म्यर भौ-बाज्यूल इकलै ख्यलौ जू? तुम और न्हां छिया उना्र दगाड़?
यतुकै में गोंन बटी भागुली भै बिशन दिखाव है गोय। मोव थैं गिरदम देखि बिशनकि गुदि सटकि गइ। वील मनै मन सोचै-के नैं के खुमाच है रौ। पौण औन देखि सबै लोग चुप है गा्य। भागुलि लै चुप है गइ। भागुलिक रीसल तमतमान मूख देखि, वील पुछौ- ‘‘दीदी ! कि बात है रै?’’
कि बात हैं भया? हए बात छु। म्यर कपावै यसै छु। म्यार करम फुटी भा्य, तब या्स घर म्यर पा्ल पड़ौ। म्यार इज-बौज्यू भलीकै देखि-सुणि भा्ल घर ब्यवै राखना, ऐल हमलै त्यार मनौन छोड़ि, यस दिन जै कि देखना? कैते-कैते ऊ जोरलि डाड़ मारन फै गइ। बिशनकि समझ में के नि ऐ। ऊ बुलाण-आंखिर बता तो सई, कि भौ? खालि डाड़ मारि बेर तो के हो नैं।
कि बतूं भया! कि ख्वर नंै खाण दिन, कि स्वर नैं खा्ण दिन। बड़ मुसकिलल एक दूण भैंस ग्वठ भय। आ्ब वीकि धिनाइ लै नैं खा्ण दिना कौनई। भैंस जू में हारि राखौ बलि। ल्हि जानू कौंनई।
बिशनकि समज में बात ऐ गै। वील कै -तू चुप रौ। मैं आफी करूंल। बुलाण- भिनज्यू लोगो को जिति रौछा जू। नरूवल कै- मैं जिति रयूं यार मितुर। बिशनल आपण भिनज्यू उज्याणि चै बेर मजाक करि-आंखिर भिनज्यू आपूं लोग पांडवोंकि सांची औलाद भया हो। उनूल जू में राज-पाट सब हारि बेर आंखिर में आपणि स्यैणि द्रौपदी लै दौ में लगै दी। तुमूल एक दूण भैंसै जै हारी भय। खैर, के बात नैं भइ। जि है गो, है गो। शर्त तो माननै पड़लि आ्ब। वील नरू थैं पुछ- ‘‘अच्छया चाल में भैंसक मोल लै लगाई भय के?’’
नरूवल कै-‘‘मोल नैं लगाई भय। तैल कै म्यर घरक दूण भैंसकि चाल ऐगै। हारन पर ऐल दस बाजी दिणक वैद करि राखौछी। आ्ब दस कां बार बाजि गई।’’
बिशनल कै-‘‘यार पैं भैंस तो भौत कीमतक भय। चाल उभत कतुककि चलि रैछि।’’
नरूवल कै-‘‘तैक के सवाल नि हुन। चाल उ है पैंली कतुककी हो, उभत तो दूण भैंसकि चाल आई भइ। उसिक लै द्वि हजार है बांकि तौ भैंसक मोल को घाग लगूं? कि दौणी छाजौ, कि रौली बाजौ। तस के भय नैं। भैंस या तो भल घाट-बाटक हो या फिरि धिनाइ-पाणि भलि हो, तब मोल लागनेर भय। हमर तो रोज देखियकै भय। धिनाइ-पाणि के खास नई भइ, नैं दूद, नैं घ्यू। घाट-बाट लै तस-तसै भय। मोल लगूनी लै, केक मोल लगूं?’’
बिशनल कै- अच्छया! पैं द्वि हजार भइ यो भैंसकि कीमत, बस ।
नरू बुलाण- तहै बांकि और कतुक हैं पैं?
बिशनल जेब बटी द्वि हजार रूपैं गाड़ा नरू कैं थमै दी और हात जोड़ि बेर कै-तुम लै म्यार भिनै भया यार। माफ करि दियो आज उनूकैं। तुुम भैंसकि कीमत धरि ल्हियो।
टसली में भैंस तो आठ-दस हजारक भए। नरूवल बिना सोची-समजिए खालि कै दी-द्वि हजार। वील बिशना हात में रूपैं देखि कै-नैं नैं मैं रूपैं के थैं पकडंू? चाल तो दूण भैंसकि छी, मैं दूण भैंसै ल्हिजूंल।
यार भिना! म्यार कैल जस म्यस है सकछी, मैंल करि हालौ। तुम नैंई पकड़ना, मैं कि करूं? तुमरि मरजी भइ। आ्ब म्यार कैल ये है बांकि के नि है सकन।
मैंसों में गलबल-गलबल है गइ। लोग फुसफुसाट करनै। जाते धन है, आते धन भल। तौ नरू तस बेकूफी कि करनौ? थामि ल्हिन चैंछी द्वि हजार रूपैं।
यो क्वीड़ नरूवाक कान लै पड़ि गा्य। पर नरूवै लिजी मुसकिल है गइ। कसी कौ आ्ब, ला द्वि हजारै सई। नरूवै हालत देखि शोबी बुलाण- एक बात मैं लै कौं हौ पें? लोगोंल कै-कौ हौ कौ। शोबियल कै- ला हो सावा! द्वि हजार थमा यो नरदा कैं। पौण आदिम भया तुम। तुम लै तैक भागल कां बै ऐ पड़छा ऐल। लाओ, निपटौ, यो भीड़-भड़ाक खतम करौ। तुम लै आपण त्यार मनौ, हमलै आपण त्यार मनौनू।
बिशनल जेब बै द्वि हजार रूपैं गाड़ा, नरूकैं थमै दी। सब लोग जाते रै।
खै -पी बेर बिशनल भिन दगै मजाक करि-यार भिना! अली बेरै दिवालि तौ तुमार ख्वार यसी गै, अघिल कै जि हूं। बा्छ खाइयक दुख जै कि भय, बाग पवकियक दुख भय। खड़कू बुलाण- यार! साल भरि में मरदोंक एक त्यार हुनेर भय दिवालि। मैंस कौनी दिवालिन में जो जू नैं ख्यलौ, ऊ मरद केक। मरदों कै लिजी बणी भा्य सब खेल-तमाश। दिवालिन में जू तो सबै खेलनेर भा्य। मैं लै हर सालै खेलनेर भयूं। पर अली बेर घाटै कुछ यसै ऐ पड़ौ। मेरि पास बेगमै टिरेल आई भइ। बड़ मुसकिलोंल तौ टिरेल ऐ। मैंल सोचै ये है ठुल पत्त जै कि ह्वल नरूवक पास। दिल में धुक-धुक तो वीकि लै हयेकी भइ। पर हुणिहार देखौ-वीक पास फसी भइ बासा टिरेल। तब गच्च खै गयूं। नतरि पत्त तो म्यर पास लै ठुलै भय।
बिशनल कै- यार भिना! पत्त ठुल हो या ना्न। जू लै कैक भयो आज तक। यो जुअल जतुक लै भई घर उजड़ी। कैको घर बणछौ, तुमी बताओ। एक साल क्वै जिति लै जालौ, फिरि दुसार साल उसै हुनेर भय। हारी जुआरि कैं तो फिरि बांकि रफत चड़ौं। अत्तर मीठी खार, जू मीठी हार कौनी। मैंल जतुक लै जुआरि देखी, सबनाक परवार परेशानै रई। यो जुअल पांडवोंक राज-पाट ल्हैगै, द्रोपदी कि बिजत है गै। महाभारतक उतन यु( है गोय। फिरि लै हमूकैं अकल नि ऐ।
खड़कू बुलाण- हम के जुआरि जै कि भयां यार। दिवालिन में द्वि-चार दिन बैठनेर भयां। फिरि, मैंस यो लै कौनी, जो जू नैं ख्यलन, ऊ गनेलै जून जां। यो तर्क सुणि बिशनाक हँसण-हँसण बिडौव है गा्य। ऊ बुलाण- यार भिना! हमा्र धरम में चैंरासि लाख जून हुनी कई जां और यो लै कई जां हर पराणी कैं हर जून में एक बखत जरूड़ जा्ण पड़ौं। अगर तुम यो बात पर विश्वास करछा, तो सबन कैं एक बारी गनेल तो बणनै पड़नेर भय। फिर अघिल बण भलै, पछिल बण भलै, वील फरक कि पड़ूं? जां तक गनेल बणनक सवाल छु, आंखिर हमरि धरती में गनेल लै तो एक पराणी छु और पर्यावरणै लिजी धरती में गनेल हुण लै जरूड़ी छन। आंखिर कोई गनेल लै है जालौ, वील कि बिगडूं। मरी बाद जाणी को कि बणू, कै कैं कि पत्त छु? अच्छया तुम यो बतौ-तुमार गौं में के सब मरद जू ख्यलनी? कभै नैं। द्वि-चार तुमू जा्स घर-फुकू मिलि गा्य, जमि गै खइ। तौ गनेल बणनकि और दिवाली में जो जू नैं ख्यलौ, ऊ कस मरद वालि बकवास कें छोड़ो। कान में चिङोटि दियो, आज बै जू नैं ख्यलौं कै। घर-बार चैंछौ यो लत तो छोड़नै पड़लि। आज तो जसी-तसी टोपि बचि गै, अघिल कै नैं बचलि। यतुक कै बेर बिशन आपण घर हुं ल्हैगै।
• इंद्र सदन-सुनारीनौला, अल्मोड़ा
मो.-9412924897
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