कुमाउनी प्रेम कहानी : त्यर मुलमुल हँसण


कुमाउनी प्रेम कहानी kumauni story

कहानीकार


डॉ. आनंदी जोशी 
( न्यू सेरा, पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) निवासी डॉ. आनंदी जोशी ज्यू रिटायर शिक्षक छन, यों कुमाउनी भाषा में एक भल कहानीकार, कवयित्री रूप में जाणी जानी । कुमाउनी भाषा कैं अघिल बढूण में ठुल भूमिका निभूनई ) मो.-9411517434

( य कुमाउनी कहानि कैं  ‘पहरू’ कुमाउनी पत्रिका द्वारा आयोजित  ‘बहादुर सिंह खनी स्मृति प्रेम कहानी लेखन योजना 2019’ में पुरस्कार मिली छु ) 
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   रोजै चार रात्तै झुखमुखै उठि बेर बीरूल ना-ध्वै, चहा बणै बेर पे और ख्वा्र में टायर-ट्यूब राखि बेर पुजौ कालि गङाक किनार। टायर ट्यूब कें बगड़ में राखि बेर ऊ एक उच्च ढोव में बैठि बेर इंतजार करन बैठौ यात्रीनक। आज रात्तै बै वीक दैण आँख फुरान लागि रौछी लगातार। ऊ बैठि-बैठी सोचण लागि रौछी कि जाणि कां बै मिलैं आज क्वे भलि खबर। या क्वे मितुर त नी ऊन आज मिलनै थें? नैं-नैं को छू म्यर अपण ये दुनी में, जो मिलनैं थें आल। मतारि पैद करन-करनै भगवानाक घर न्है गै और बाबू पांच सालकि उमर में अपण दगाड़ नैपाल बै भारत लै बेर, नौ सालकि उमर में भौनी सुबदारा्क वां छाड़ि बेर जाणि कां अलोप है गई। वीकैं भली कै याद छन अपण बाबुक शब्द-
 बिरूवा! मैं दस-बार दिनै थैं घर जै ऊं च्यला! झट वापिस ऐ जूंल। तू यें रऐ। रोजै चार सुबदार सैपनाक गोरू बकार चरै लाए, गौंक ना्नतिनाक दगा्ड़। ऊं त्वैकें खा्ण दी द्याल। पड़ि रए थ्वाड़ दिन उनारै चाख में। मैंल उनन कैं सब बतै है। भौतै भा्ल मैंस छन सुबदार सैप और सुबदारनी ज्यू। ऊं त्वैकैं के कष्ट नी हुन दिय। तू बिफिकर रये हां च्यला! थ्वाडै़ दिनकि बात छ।’’ बीरूवल ले बाबुक दगाड़ जानकि जिद करी, पर बाबुल कौ- ‘‘तू नी हिटि सकै बीरू! झुलघाट बै द्वी दिनक पैदल बा्ट। चैमासाक दिन छन। कैं घाम छ, कें द्यो। गाड़-गंग असमान पुजि रई। तू मानि जा बीरू।’’ आज बीरू सोचण लागि रौ कि कां हुन्याल वीक बाब? ज्यून ले हुन्याल कि नैं? ज्यून जै हुना त एक बखत त जरूड़ै ऊन मिलनै थें। यसी पीठ थोड़ी फरकून परा्य देश, परा्य गौं में, परा्य मैंसनाक बीच छाड़ि बेर? कैं रूपा त नी हुनेलि याद करनी? नैं-नैं ऊ ले किलै करलि याद मैं कें? वीक कभै ब्या है ग्यो हुनल। मस्त हुनेलि अपण घरबार में। उ जै किलै आलि इतुक दूर ये तिथाण में? जां ले छ, खुशि रौ बिचारि।


(फोटो- रेखा पाटनी)

बीरू कैं याद ऊन बैठी ऊं दिन एक-एक कै तब बठे, जब ऊ अपण बाबुक दगाड़ पांच सालकि उमर में रूपाक गौं में पुजौ। मणी नानि हुनेलि रूपा वी है। वीक बाबू तब एक झड़छ्यूंकि झुपड़ि में रूंछी और सा्र गौंक काम करछी। नानछना बै मिलते रूंछी रूपा और बीरू। कभै पन्यैर, कभै गाड़-खेत और कभै ग्वाव। एक दुहराक प्रति सद्भाव द्वीनाकै मन में छी। योई सद्भाव एक दिन उना्र मन में प्यार क बीज हङुरि बेर मन कैं बेचैन करल, ये बातक अंदाज वी बखत एक कें ले नी छी। भौनी सुबदाराक गोरू-बकार चरून-चरूनै बीरू ज्वान भौ। सुबदार सैपनलि वीकें घरै में पढ़न-लेखन और हिसाब-किताब करन सिखा। अठार सालक भर-खर ज्वान हुन पर बीरूल सुबदार सैपनक पुरा्ण मकान क एक कम्र लिपि-घंैसि बेर वीमें रून-खान शुरू करौ। जेठ-कातिक द्वी तूव मुफ्त में ऊ उनार वां हव बै दिछी। हौर ले ना्न-ठुल काम उनार वां टैम-बिटैम करि दिई करछी। धीरे-धीरे पुर गौं में मेहनत मजदूरी करन बैठो बीरू। जैल वीकि भलि आमदनी हुन लागी। अपण कमाई डबलन कें ऊ सुबदार सैपना पास जा्म करन बैठो।



बीरू कें घड़ि-घड़ी याद ऊनी ऊ दिन जब ऊ तलि बाखइक खड़कू (खड़क चंद) पधानाक खेतन में हव बानै थें और काटन-चुटनै थें जांछी। कतू भलि लागन बैठी वीकें पधानकि चेलि रूपा। एक खुट गरणा छी रूपाक गर्भे बठे। पुर खुट ठीक छी, पर वीमें पंज नी छी। काम त ऊ सबै करि ल्हिछी पर हिटन में खुट लचक-लचक करछी। भौतै देखनि चानि और भल सुभावकि छी रूपा। वीक घर में जि चीज ले पाकलि या कैं बै आलि त ऊ बीरूक बानक लुकै बेर लै वीकें  दिई करछी, गा्ड़-खेतन ल्हिजै बेर। शैत आब वीकें ले भल ला्गन बैठो छोरमुया नैपालि बीरू थापा। एक बीरू ई त छी जो वीकें सम्मान और प्यार कि नजरलि देखछी। और लोगनकि त ऊ रूपा डुनी भै। ना्न-ठुल सबै लोग वीकें ह्याव समजछी, यां तक कि वीक दा्द और इज-बौज्यू ले वीथें डुनी कई करछी। खुटकि कमी वीक जीवनकि लिजी अभिशाप छी। वीकै कारण ऊ पांच है मलि इस्कूल नी पढ़ि सकि, किलैकी वीक दगडू वीकें डुनि कै बेर चिढ़ाई करछी। इस्कूल छाड़ी बाद रूपाल अपणि इजाक दगाड़ पाणि-पनेर, उखव-जातर, खेति-पाति, बण-जङव क काम करन शुरू करि दे। बीरू जब पधान ज्यूक खेतन में काम करछी त रूपा वीकि थें चहा-पाणि और खा्ण ल्हिजै बेर जांछी। रूपाक कमजोर खुट और उदास मूख बीरूक मन में गैलि पीड़ जै पैद करछी। रूपाक प्रति दया और सहानुभूति कि भावना कब प्रेमकि भावना में बदली गै बीरू कें के पत्तै नी ला्ग। बीरू कें चहा-पाणि और खा्ण दी बेर जब रूपा वापिस जांछी त बीरू दूर तक वीकें चाइए रूंछी। रूपा ले फरकी-फरकी बेर चांछी बीरू कि तरफ, पर ऊं एक-दुहार थें कै के नी सकछी। बीरू कैं रूपा आज ले भौत याद ऊंछि। वीकें कै बखतै आफी-आफी हँसि ऊंछि कि कसी वील रूपाक दगाड़ घरबारक स्वीण देखि हुन्योल? कतू नादान छी ऊ ले। कां राजा भोज कां गंगू तेली। कां रूपा गौंक पधान चंदकि चेलि और कां ऊ डोटयाल छोर मुया, बिघरबार बीरू थापा। उ दिन आज ले बीरूक मन में धकधकाट पैद करूं जै दिन वील ता्ल इजर च्यूराक बोटाक स्योव बैठि बेर भारि हिम्मत जुटै बेर रूपा थें कौ- ‘‘तू मैंकें भौत भलि लागछी रूपा! मैं त्वैंकें अच्याल स्वीण में ले देखी करूं। मैं सोचूं कि त्वै है अलावा ये दुनी में म्यर क्वे अपण न्हां।’’ रूपा के नी बुलै सकि। वील भा्न-कुन उठाई और जानी रै घर उज्याणि। एक दिन फिरि बीरूल अपण शब्द दोरयाई त बड़ि मुसकिलल वीक मुख बै शब्द निकली- ‘‘मैं कैं ले तू भौत भल लागछै बीरू!’’ बीरूल कौ- ‘‘के तू मेरि नी है सकनी रूपा।’’ रूपाक आँ्ख डबडबै पड़ी। ऊ बोली- ‘‘तस कभै नी है सकन बीरू! हमार मन में एक दुहरकि थें प्यार है सकूं, पर हम एक दुहराक कभै नैं है सकना। कां तू भए छोरमुया, बेघरबार नैपालि थापा और मैं धन-दौलत और जमीन-जैजाद वा्ल पधान चंदकि चेलि। मैं जाणू कि खुट कमजोर हुनाक कारण मैं कें भल घर-बर नी मिलौ, पर मैं कें यो ले मालुम छ कि म्यार बाबू स्वीण में ले त्वै कें अपण जमै स्वीकार नी करि सकन।’’ बीरूल कौ- ‘‘के बात नैं रूपा! मैं तेरि यादनाक सहार जिंदगी बितै द्यूंल, पर तू कि करली? रूपाल आँचवाक टुकल आँसु पोछन- पोछनै कौ- ‘‘हम चेली त बलिक बकार भयां बीरू! जां चाल वां चढ़ाल हमार मै-बाब। जै किल लै बादाल वीकै चारों तरफ रिटन हो्ल पराण छन तक। 




तू मैंकें गैल मनल प्यार करछै त मेरि उज्याणि आँख उठै बेर जन चाए आज बठे। लोगन कें पत्त चलल त एक कवा्क नौ का्व और स्यूड़क साबव हुन में देर नी लागौ। तू म्यर और आपण भल चांछै त न्है जा अपण मुलुक कालि पार। कें म्यार भै और बाबू कें पत्त लागल त त्वैकें काटि बेर खड़यै द्याल। बात बढ़न है पैंली तू यां बै न्है जा बीरू। यई में तेरि भलाई छ। ज्वान-जमान छै, कैंले खै ल्हेलै काम करि बेर।’’ बीरू बोलौ- ‘‘त्यार कून पर मैं तस ले करि ल्यूंल रूपा! पर त्यार बिना जिंदगी पहाड़ है जालि।’’ रूपा बोली-‘‘ समजदार छै, देखन-चान छै, कामदार छै, को नी द्यल त्वैकें चेलि? भलो भल घरबार मिलल त्वै कें। ये बात कें तू गांठ पाड़ि ल्हिए बीरू!’’ बीरूल कौ- ‘‘खैर मैं त जिले करूंल पर जा्न है पैंली एक बात त्वै थें कून चांछू कि जै दिन ये दुनी में त्वैकें क्वे लै अपण जस नी लागो, वी दिन तू मैं कें एक बखत याद करि लिए।’’ एक गैलि नजर डाली बीरूल रूपा पर और चम्म ठा्ड़ उठ जानै रौ वां बै। रूपा दूर जान तक वीकें चाइए रै। बीरूल ले कई बार फरकी-फरकी बेर चा रूपा उज्याणि।



अब एक रात ले वां रूनक मन नी छी बीरूक। वील कम्र में जै बेर बैग में अपण थ्वाड़-भौत समान राखौ, भौनी बू थें अपण रूपैं मांगी और निकइ पड़ौ एक अनजान यात्रा में। भौनी बूल वीकें रोकन चा, पर एक जाण-पछयाण वालाक घर जानक बहान बणै बेर भोवै लौटि ऊनकि बात करि बेर ऊ निकइ पड़ौ पिथौरागढ़ कि तरफ। पनर बर्ष उ गौं में बितै बेर अचानक वां बै चल दिन वीकें लै भल नी ला्ग, पर रूपाक खातिर वीक यस करन जरूरी छी। दुहार दिन बै फिरि कभै नी देखीन बीरू वी गौं में। किलै गो बीरू अचानक गौं छाड़ि बेर, ये बात कैं रूपा है अलावा और क्वे नी जाणि सकछी। एक रात पिथौरागढ़ में बा्स रौ बीरू। दुहार दिन पंचेश्वर पुजि बेर वील भा्न माजनक काम शुरू करौ खिमुवाक ढाबा में। कामाक दगाड़-दगाड़ै वील तीन-चार साल में कालि गंग में बौं काटन सिखि ल्हे, वांक लौंड-मौंडनक दगाड़। धीरे-धीरे एक दिन वील टायर ट्यूबाक सहार यात्रीन कें गंग पार करूनक काम शुरू करि दे और खूब डबल कमून बैठो। अपणि कमैक डबलनल वील कालि गंगाक पार एक गौं में नानू-ना्न दुमंजिल मकान खरीदि ल्हे और जरूरत क सब समान धरि बेर वैं रून बैठो, अपण देश अपणि जनम भूमि में। संपर्क में ऊनी कई लोगनल वीक दगाड़ अपणि चेलिक ब्याक प्रस्ताव राखौ पर ऊ राजि नी भ्यो किलैकी वीक मन में रूपाक प्रति बैठी प्यार क बीज, जो जामि बेर आ्ब बोट है गोछी, वीकें जा्ड़ बै उपाड़न वीक बशकि बात नी छी। रूपाक मुलमुल हँसण वीक क्वाठ में बैठि गोछी।



बिती बखतकि यादों में डुबी बीरू कें एक स्यैणि ऊन देखीनी भारतकि तरफ बै, जो बड़ि तेज रफ्तारल गंग ज्यूकि तरफ ऊन लागि रैछि। बीरूल यो सोचि बेर कि सैत ऊ गंग वार ऊन चानै, जोरल सिटि बजै टायर-ट्यूब हात में थामि बेर। लेकिन यो कि, वील गंगाक किनार में पुजि बेर अचानक फाव हाणि दे पाणि में। बिना देर करिए बीरूल ले टायर-ट्यूब में बैठि बेर बीच गंग बै खेंचि बेर वीकें किनार लगै दे। फिरि वीकें उल्ट कै पड़ै बेर वीक पेटक पाणि निकालौ पीठ दबै बेर। थ्वाड़ै देर में ऊ स्यांक्क-स्यांक्क करन बैठी त बीरूल वीकें एक ढुङ लै लधरयून चा। पर यो कि, जब अचानक बीरूकि डीठ वीक खुटन में पड़ी त वीकें के कूनै नी ऐ। बिना पंजक खुट कें देखि बेर वीकें समझन में देर नी लागि कि यो त रूपा छ। वी रूपा, जैक ख्यालन में ऊ डुबी छी आज रात्तै बै। होश में आते ही रूपा चिल्लान बैठी- ‘‘मैंकें छाड़ि दे पापी! तू मैंकें हात नी लगाए। मैं मरन चांछंू। को हुंछै तू मैंकें बचूनी? बतौ को छै तू? म्यर क्वे न्हां अपण यो दुनी में। मैंकें मरन दे। को हुंछै तू म्यर अपण? म्यर क्वे न्हां, क्वे न्हां म्यर।’’ बीरू बोलो- ‘‘त्वील मैं नी पछयाणयूं रूपा! मैं बीरू छूं, बीरू थापा, छोरमुया बीरू डोटयाल। मैं वी बीरू छूं जो त्यार कून पर तेरि जिंदगी है दूर.... भौत दूर ऐ पुज्यूं रूपा! पर तू कां बै ऐछै ये तिथाण में गङ फाव हाणनै लिजी? इतू दूर तू कसी ऐछै रूपा?’’ रूपाल एक गैलि नजर बीरू पर डाली और कून बैठी- ‘‘मैं भौतै अभागि छंू बीरू! पिछाड़ि सात सालन में मैंल सर्ग-नरक सबै देखि सकि है ये दुनी में। एक अधेड़ चार ना्नतिनाक बाबुक दगाड़ म्यर ब्या करौ, म्यार निर्दई बाबुल। पर ब्या हुन-हुनै ऊ ले मरि पड़ौ भ्योव घुरी बेर। सासु-सौर कून बैठी कि तू अलछिणि छै। त्वील टोकि खै है हमर च्यल। सासु-सौरनल ब्वारिक और ना्नतिनौल मतारिक दर्ज कभै नी दी मैंकंे। दिन-रात उनरि सेवा करि बेर मैंल भौत कोशिश करी उनन कें खुशि करनकि, पर उनूलि बदा्व में मैंकें इतुक दुख देई, मैंकें इतुक प्रताड़ित और अपमानित करौ कि तू सांचि नी मानै बीरू। मैतिनल लै कैदे कि आब सौरासै त्यर घर छू। एक बखत मैत ले गयूं। इज बौज्यू सर्ग न्है गोछी। भै-भौजी नल साफ कै दे कि तू भलि जै हुनी त अपणै घर खानी। एक रात कि थैं ले ठौर नी दी उनूल मैंकें। हारि थकि बेर आजि सौरासै ऊन पड़ौ। 


(फोटो- रेखा पाटनी)
आज जब मैंकें लागौ कि आ्ब क्वे न्हां म्यर अपण ये दुनी में, त हारमान है बेर मैंल गङ फाव हाणनक फैसाल ल्हे। अपणि जिंदगी खतम करनै लिजी ऐ पुज्यूं मैं अपण सौरास बै बार मैल दूर दौड़नी- लफावीनी। तू मैंकें किलै निकाइ लाछै बीरू? मैंकें फिरि पाणि में डुबै दे। मरन दे मैंकैं। मैं आ्ब ज्यून नैं रून चानू।’’ बीरू बोलो- ‘‘तू म्यार मुख चा रूपा! तेरि यादनाक सहार मैंल सात साल कसी काटी ऊ मैंई जाणू। हर बखत मैंल त्वैकैं याद करौ। के तू आज ले म्यार सुख-दुख कि साथी नी बणि सकनी? के आज ले डर छ त्वैकें अपण भाई-बंधुनकि?’’ ‘‘नंै बीरू आज मैं कें मलि वालाक है अलावा कैकि डर न्हां। जनरि डर छी उनूल मैं कें ह्याव बणा, दूद में है माखकि चार पर लफा। या्स बचन लगाई जनूल म्यर कल्ज छलनी करि दे। एक त्वी त छै जो जिंदगी में मैंकें अपण जै लागछै, पर त्यार प्रति दिल में जो प्रेम पैद भौ, ऊ तेल सकीनी बातकि चार आज धप-धप करन लागि रौ। वी कें निमान दे बीरू! वी कें निमान दे’’ रूपाल कौ। ‘‘वी प्यार क बात कें मैं निमान नी द्यूं रूपा। मैंल त्वै थें पैंलिए कै राखछी कि जै दिन त्वै कें दुनी में क्वे अपण जौ नी लागो, तू मैंकें याद करिए। आज अमूसी रात में पुन्यू जून जै तू म्यार जीवन में ऐछै, येक लिजी मैं भगवान कें धन्यवाद द्यूं। भगवाना घर देर छु पर अंधेर न्हां। ये बात कैं गा्ंठ पाड़ि बेर औ, एक नई जिंदगी कि शुरूवात करनू’’ बीरूल रूपाक हात पकड़ि बेर कौ। रूपा बोली- ‘‘नैं बीरू! मैं आ्ब ऊ रूपा नंै रै गयूं, जो कभै त्यार दगाड़ बोलछी, हँसछी और त्यार दगाड़ गृहस्थी बसूनाक स्वीण देखछी। आ्ब मैं त्यार लैक नैं रै गयूं बीरू! मैं एक बेवाई, सत्याई, परेशान अलछिण बिधाव स्यैणि छूं। म्यार कारण तू परेशानी में पड़ि जालै। मन त के लै सोचि सकूं पर मनक सोच्यूं सदा सांचि नी हुन। सयाणनल कै राखौ- जी मन कौ, ति जन हौ। तू मैंकें म्यार हाल पर छाड़ि दे ताकि मैं मुक्ति पै सकूं, ये पापी जीवन बै।’’ बीरूल कौ-‘‘पर मैं त आजि ले वी बीरू छूं रूपा! जो कभै त्वैकैं एक झलक देखनै थें तरसी करछी। अंतर इतुकै छ कि आज मैं अपण मुलुक में छूं और मेरि पास म्यर अपण घर छ। वी बखत मैं बिघरबार और बिदेशी छी। बखत कि बलै छ रूपा। हुणि कैं क्वे टालि नी सकन। माया अपार छ मलि वालकि। दिन हमेशा एकनसै नी रून। हर राताक बाद दिन ऊंछ और दिनकि सामणि रातक अन्यार कभै टिकि नि सकन।



 त्यार जीवन बै रातक अन्यार आ्ब दूर है गो। तू समझि ल्हे कि दुहर जनम दी है त्वै कें ये कालि गंगाक पाणिल। आज बै मैं तेरि जिंदगी में कभै नि ऊन द्यूं दुखकि रात। जब तक मेरि तड़ि में तराण और घांटि में पराण रौल, मैं त्वैकें कभै रून नी द्यूं रूपा। तू भुलि जा बिती बातन कें एक खराब स्वीण समझि बेर।’’ का्ल बादलनाक बीच बिजुलिक चार द्वीनाकै मुरझाई मुख में एक चमक जै ऐ पड़ी। मुलुक्क हँसि पड़ी द्विए।

कें दूर बाजणी टेप रिकार्डर बै गीतकि अवाज ऐ पड़ी- 
‘‘त्यर मुल-मुलू हँसणा, म्यार दिल में बसी गै।’’

‘पहरू’ कुमाउनी मासिक पत्रिका फ़रवरी २०२० अंक बटी साभार

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प्रस्तुति- 


ललित तुलेरा  
tulera.lalit@gmail.com
मो.-7055574602 

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