सुमित्रानंदन पंत ज्यूकि 1938 में छपी कुमाउनी कबिता ‘बुरूंश’


जनम - 20 मई 1900, कौसानी ( अल्मोड़ा)
मृत्यु
-  28 दिसंबर 1977, प्रयागराज
पुरस्कार
- ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्म विभूषण
( • ‘चिदम्बरा" रचनाक लिजी 1968 में ज्ञानपीठ पुरस्कार बै सम्मानित। • "कला और बूढ़ा चांद" क लिजी 1960 क साहित्य अकादमी पुरस्कार। यैक अलावा कई प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कारों बै सम्मानित। ) 
उनरि आपणि मातृभाषा 'कुमाउनी' में लेखी कबिता ‘ बुरूंश ’ य परकार छु -   

बुरूंश 
सार जंगल में त्विज क्वे न्हां रे क्वे न्हां 
फुलन छै के बुरूंश जंगल जस जलि जां ।
सल्ल छ , द्यार छ , पई, अयांर छ 
सबनाक  फाड.न  में पुड.नक  भार छ ।
पै त्वि में दिलैकि आग , त्वि में छ ज्वानिक फाग 
रगन में नई ल्वै छ, प्यारक खुमार छ 
सारि दुनी में मेरी सू ज क्वे न्हां 
मेरि सू कैं रे त्योर फूल जै अत्ती भां 
काफल कुसुम्यारु छ , आरु छ , आखोड़ छ 
हिसालु , किलमोड़ छु, पिहल सुनुक तोड़ छ 
पै त्वि में जीवन छ , मस्ती छ , पागलपन छ 
फूलि बुंरुश ! त्योर जंगल में को जोड़ छ ?
सार जंगल में त्विज क्वे न्हां रे क्वे न्हां 
मेरि सू कैं रे त्योर फुलनक म सुंहा। 

•••
    कबिबर पंत ज्यूकि य कबिता ‘अचल’ (कुमाउनी मासिक पत्रिकाक अप्रैल 1938 में श्रृंग ३ में छपी छु। कुनी कि सुमित्रानंदन पंत ज्यूल य कबिता अचल संपादक जीवन चंद्र जोशी ज्यूक कूण पर लेखौ । उनूल य कबिता 38 सालकि उमर में लेखि हैछी । 'अचल' में उनरि य कबिता य परकार छपी छु - 
सुमित्रानंदन कुमाउनी कविता kumauni Kavita(‘अचल’ कुमाउनी मासिक पत्रिका बै साभार )
०००

हिंदी भावार्थ
 कवि ने 'बुरांश' पुष्प की सुंदरता का वर्णन करते हुए लिखा है-
          हे बुरांश! सारे जंगल में तेरे जैसा सुंदर कोई नहीं है । जब तू (बुरांश) फूलता है तो मानो संपूर्ण जंगल अहंकार से जलता है । यहां चीड़, देवदार, पय्यां, अंगयार के वृक्ष हैं लेकिन सभी के शाखाओं में कलियों का भार है। पर तुझमें दिल की आग है , जवानी का फाग (फाल्गुनी रंग) है । तेरे रगों में नयां खून है, प्यार का खुमार है । सारी दुनिया में मेरी प्रेमिका से सुंदर कोई नहीं है उसे तू भाता है, उसे बुरांश बहुत प्रिय है । यहां जंगल में काफल हैं, कुसुम्यारू हैं, आड़ू है, अखरोट है , हिसालू है। सोने के पीले रंग का तोड़ है पर तुझमें जीवन है , मस्ती है, पागलपन है । हे बुरांश! जब तू फूलता है तो तेरे मुक़ाबले में कौन तेरे समान है । सारे जंगल में तेरे जैसा सुंदर कोई नहीं है । मेरी प्रमिका को तेरे फूलों का रस/शहद अती भाता है । 

- ललित तुलेरा
● ई मेल- tulera.lalit@gmail.com


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