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इस्कूलों में कुमाउनी भाषा पढ़ाई जाण चैं

भारती पांडे, देहरादून  कांवली, देहरादून , मो.-7983841395  कमला पंत ज्यू दगाड़ भारती पांडे ज्यूकि बातचीत Kumauni Interview सा हित्य, संस्कृति, शिक्षा-भाषा और जतुक लै सामाजिक सरोकार छन, उनर लिजी मुखर, आफूं आफ मजि एक संस्था मानी जाण वालि दिदि छन कमला पंत ज्यू। इनन कैं देखि महादेवी वर्मा ज्यूकि रचना याद ऊणै - ‘‘ दीप मेरे जल अकम्पित घुल अचचंल पथ न भूले एक पग भी घर न खोये लघु विहग भी स्निग्ध लौ की तूलिका से आंक सबकी छांह उज्जवल।’’ दीपशिखाक कवियित्री लोक कल्याणक अघिल ब्यक्तिगत मोक्ष कैं कोई वकत नैं दिन। ठीक उसै सबनक दुख-सुख बांटण मजि सुख पौनेर वालि कमला पंत ज्यू लै छन। कौंल ह्यू और कड़क लै। यस सुभावक जुगलबंदी कम देखण में मिलैं। गुरू कुमार शिशु कुंभ... । वा्ल कहावत लै उनर लिजी कै सकनू। अपुण नानि उमर बै आज जांलै उनूल समाज-साहित्य, भाषा-शिक्षा क्षेत्र मजि बम्त काम करी छौ। उनर कामक ना्न परिचय साक्षात्कारक जरियल आपूं सामणि धरण लाग रयूं- सवाल- दीदी! मैंल तुमनकैं 2003 में पैंल बखत धाद महिला कवियित्री सम्मेलनक मुख्य अतिथिक रूप में देखौ। उदिन तुमूल धाद कैं आपणि कविता माध्यमल जो परिभ...

कुमाउनी लोक कथा : अमरू और आ्म

  गीतम भट्ट शर्मा, अल्मोड़ा  लक्ष्मेश्वर,अल्मोड़ा, मो.- 9690889963   ए क अमरू भै, वील एक आमक गुठयल लगै। उ गुठयल कैं रोज देखनेर भै, पर गुठयल जामन नि लागी भै। एक दिन अमरूवल कै-‘‘आ्ब तू नि जामलै जब, मैं तुकैं काटि-कुटि बेर गाड़ बगै द्यून।’’ दुसार दिन बोट जामि गै।  आब अमरवल कै- ‘‘तुमें हाङ-फाङ नि लागा तो मैं तुकैं काटि-कुटि बेर गाड़ बगै द्यून।’’ दुसर दिन बोट ठुल है गे,  उमें हाङ-फाङ ला्ग गै। आ्ब अमरूवल कै-‘‘तुमें फूल और फल नि लागा त मैं तुकैं काटि-कुटि बेर गाड़ बगै द्यून।’’ दुसर दिन बोट बै फूल लागि बेर फल लै लागि गै।  एक दिन अमरू बोट में चढ़ि बेर पाकी-पाकी आम खा्ण में लागी भै। पार बै एक आ्म ऐ गै। आमलि कै- ‘‘ अमरूवा एक दा्ण पाकी जस मैंकैं लै दिनै।’’ अमरूवल एक दा्ण टिप बेर दियौ, उ ‘गू’ में न्हैगै। दुसर दा्ण टिप बेर दियौ, उ ‘गुबर’ में न्हैगै। तिसर दा्ण टिप बेर दियौ उ ‘थूक’ में न्हैगै। आंखिर में एक दा्ण कुथव में पुज गै जो आमलि बोटाक तलि बै छोड़ी भै। अमरूवल आ्म थैं पुछ -‘मैं बोट बै कसिक उतरूं?’ आमलि कै -‘‘सुकी फाङ में हाथ हाल, का्च फाङ में टिका।’’ अमरूवल सु...

कुमाउनी चिट्ठी: एक बैणिक आपणि दिदि हुं चिट्टी

हंसा बिष्ट, नैनीताल   स्वस्ती श्री सर्वोपमा योग्य श्री पांच, दिदिज्यू-भिनज्यू कणि मेरि हाथ जोड़ि पैलाग। हम यां पिंगला मय्याकि किरपाल ठीक छौं, तुम सबोंकि कुशवाक लिजी मय्या थैं प्रार्थना करनू। दिदी ! त्यार ना्न फोन करि बेर कुशव-बात दिनै रौनी, पै आज मंैकणि तेरि भौतै याद ऐगै। मैं चिट्ठी लेखि बेर पिरेमाक उ पलों कैं याद करनऊँ। कसिक हम सब भै-बैणी नानि-नानि चीजों कैं बांटि बेर खांछियां। तू हमन है ठुलि भई, आपणि थैं नि बचै बेर सब हमनकैं दि दिनेर भई। मैं शरीरल कमजोर भई, क्वे लै ना्न मैंकैं मारल, धां्क-मुक लगालौ तू ढाल बणि बेर म्यर बचाव करनेर भई। जब हम मणि ठुल दर्ज में पढ़न लागां, तू हमेशा रत्तै ब्याण चहा बणै बेर हमनकैं पढ़नाक थैं उठूनेर भई। पढ़न दिना जतुक मेहनत हमूल करि उ है बांकि तपस्या हमार लिजी त्वील करी भै।  दिदी! उ दिन कां हराण ह्वाल जब रात हैं हम भै-बैणी ईजा-बौज्यूक सिती बाद चोरि बेर निमू सानि खांछियां। दिन में टैम लै नि भै। भै-बैणी रातै एकबटिनेर भै। एक बार मैंकणि पड़ोसियोंक ब्याई कुकुरल बुकै दि, तु मैंकणि पुठ में धरि बेर चार मैल दूर अस्पताल लि गेछै। तब इलाज करौ। हर मुसीबत बटि उबा...

कुमाउनी लेख : पर्यावरण संरक्षण

डॉ. दीपा गोबाड़ी प्रोफेसरः हिंदी, एम.बी.राज. महा. हल्द्वानी, मो.-9412944710 • प र्यावरण  • पर्यावरण संरक्षण • पर्यावरण संरक्षणकि भारतीय परंपरा • अलग कालक्रमन में पर्यावरण संरक्षण  • धर्म,संस्कार और साहित्य में पर्यावरण संरक्षण • पर्यावरण संरक्षण लिजी प्रमुख सुझाव       पर्यावरण - पर्यावरण शब्द द्वी शब्दोंल बणी छ- परि + आवरण। यैक मतलब छ- चारों तरफ बटी ढकी रई। (परि- चारों तरफ, आवरण-ढकी रई)। यो अर्थ में मैंसोंक चारों तरफ जो लै भौतिक और अभौतिक चीज छन, उ वीक पर्यावरण छ। मैंस चारों तरफ चंद्रमा, तार, सूरज, पृथ्वी, हाउ, पहाड़, नदी, जङव, जलवायु, ताप क अलावा समाज, समूह, संस्था, प्रथा, परंपरा, लोकाचार, नैतिकता, धर्म और सामाजिक मूल्योंल घिरी छ। पर्यावरण क्षरण- कुदरत हमेशा हमर लिजी उदार रैं, लेकिन मैंसल लालच, आपुण स्वार्थ और विकासक नाम पर उकें भौत नुकसान पुजाछ। जसी-जसी मैंस विकासक तरफ बढ़ौ हमर पारिस्थितिक तंत्र गड़बड़ै गौछ। आज धरतीक तापमान भौत बढ़ गो, यैक वीली जलवायु, बनस्पति, जीव जंतु, मैंस, वीक समाज और संस्कृति सबन में दुष्प्रभाव देखीण लाग रौ। यो पर्यावरण क्षरण मैंसल खुद उपजा ...

कुमाउनी लेख: सेहतै दगाड़ अर्थव्यवस्था लै चमकै सकूं सिसूण

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शशि शेखर जोशी  मकीड़ी, अल्मोड़ा, मो.-9084488511 उ त्तराखंडक पहाड़ी इलाक में बा्ट घाटनाक इनार-किनार या फिर टा्न में भिड़न पन अक्सर दिखाई दिणी सिसूण कैं को नि जाणन। नानतिननक सिसूण दगाड़ पैंल परिचय तब हूं जब ऊं चाइपाति में लक्ष्मण रेखा पार कर दिनी। मैंकैं याद छ कि नानछना हमनकैं डरूणक लिजी सिसूणक डर दिखाई जांछी और खास मौकन पर तो कई जांछी कि पाणि में भिजै बेर सिसूण लागल। छूते ही झणझणाट पाड़नी सिसूणक प्रताप यस भै कि कोई लै डर जाओ। परंतु हमार पुरूख यैकैं सिर्फ नानतिनकैं डरौणक लिजी न बल्कि अलग-अलग रूप में यैक इस्तेमाल सदियों बटि करते आई छन। उनन आपण अनुभव और जरूरत हिसाबलि यैक इस्तेमाल करौ। उनन कैं यैक चमत्कारी गुण पत्त छी  जैकि पुष्टि आधुनिक विज्ञान लै करण लाग रौ। गौं-घरन में आज लै हाथ-खुट अमड़की जा्ण पर सबन है पैंली उ जा्ग में सिसूण झपोड़न हैं कई जां और उ भौत जल्दी असर लै करौं।  के छू सिसूण:-  कुमाऊँ में सिनु, सिन या सिसूण गढ़वाल में कंडाली नामलि जाणनी। सिसूण थैं हिंदी में बिच्छूघास कई जां। अंग्रेजी में यथैं नेटल (छंजजसम) कई जां और वैज्ञानिक लोग यकैं ‘ आर्टिका डाईओका ’ त...

कुमाउनी लेख: कोरोना और क़ानून

डॉ. के.सी. जोशी दयाल विहार, हल्द्वानी मो.-8958955266  •••   अ च्यालों भारतै में नैं बल्कि सारै संसार में एक अणकसी बीमारी फैल रै। यकैं कोरोना नाम दि राखौ। य यसि बला छू जैल अमेरिका जस ताकत देश लै हिलै हालौ। य कोरोना बिषाणु जैकैं कोविड-19 नाम दि राखौ, देखण में नी ऊन और मैंसों कणि बिमार कर द्यूं। बिषाणु एक आनुवंशिक सूक्ष्म टुकुड़ हुं जो प्रोटीनकि परतलि ढकी रौं। य बिषाणु स्वस्थ कोशिकाओं अपहरण करि बेर आपणि तादाद बणै ल्यों। जब य बिषाणु जीवित अवयवों में जै बेर बणन लागों तब संक्रामक बीमारी है जैं। कोरोना महामारी में यो बिषाणु श्वास संबंधी लक्षण पैद करनी जो भौत कष्टवाल हूं। य बीमारीक पैंल मामिल दिसंबर 2019 में चीन देशक बुहान शहर में पत्त लागौ और यस मानी जां कि य वां 17 नवंबर 2019 में है गोछी और चीनल यकणि छिपै दे।  दुसर महायुद्धक बिनाशल दुनी कणि य सोचण पर मजबूर करि दे कि बिना संगठन बणाइए संसार में शांति और सुरक्षा नि है सकनि। यैकै लिजी संयुक्त राष्ट्र संगठन (यू.एन.ओ.) बणाई गोछी। य संगठन दुनी में शांति, सुरक्षा अलावा आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक काम लै करूं। संसार में सेहत संबंधी क...

कुमाउनी व्यंग्य : मारो ज्वा्त

मोहन चंद्र कबड्वाल   मुक्तेश्वर, नैनीताल  •••  भौत लोग हुनी जो एक्कै शब्द कें बार-बार कूनी। उर्दू में ये थें ‘तकिया कलाम’ कौनी। म्यार पड़ोसाक बुजुर्ग बार-बार ‘मारो ज्वा्त’ कौनेर भै। एक दिन मैंल कौ-कसि तुमरि घरवालिकि तबियत? ऊं बुलाणी- घरवालि कें मारो ज्वा्त। ऊ आ्ब ठीक हुणी जसि नी रैगै। यौ बात घरवालिल सुण ली। बिगड़ि पड़ी- आ्ब तुम लोग म्यार हाताक चप्पल खाला। मैं वां बै भाज गयूं।  ज्वा्त भौत जरूरी हुनी। खुटांकि रक्षा करनी। हांत यौ बात अलग छ कि ख्वार में लै पड़ि सकनी। कभै-कभै भा्व बणि बेर गाव में लै पड़ि जानी। भौत लोगोंक पास एक्कै जोड़िक ज्वा्त हुनी और भौतोंक पास दर्जनों। रोज नई ज्वात पैरनी, चमचमान। ये में ऊं आपणि शान समझनी, भले ही ज्ञान-ध्यान दगड़ि उनर के मतलब नी रौन। क्भै-कभै ठुल आदमीक ज्वा्त लै उठौण पड़नी। तबैत एक बुजुर्ग मुख्यमंत्रील एक युवा नेताक ज्वात उठै बेर, उनर पिछाड़ि चलि बेर उनरि कृपा प्राप्त कर ली। मंदिरों-गुरूद्वारों में ज्वात सााफ करण पर पुण्य थ्मलों। ऊं अलग बात छ कि कुछ लोग भा्ल-भा्ल ज्वातोंकें पुर कै ‘साफ’ करि दिनी। हमार मुहल्लाक एक सज्जन भा्ल-भाल सेंडिल स...