कुमाउनी चिट्ठी: एक बैणिक आपणि दिदि हुं चिट्टी
हंसा बिष्ट, नैनीताल
स्वस्ती श्री सर्वोपमा योग्य श्री पांच,
दिदिज्यू-भिनज्यू कणि मेरि हाथ जोड़ि पैलाग। हम यां पिंगला मय्याकि किरपाल ठीक छौं, तुम सबोंकि कुशवाक लिजी मय्या थैं प्रार्थना करनू।
दिदी ! त्यार ना्न फोन करि बेर कुशव-बात दिनै रौनी, पै आज मंैकणि तेरि भौतै याद ऐगै। मैं चिट्ठी लेखि बेर पिरेमाक उ पलों कैं याद करनऊँ। कसिक हम सब भै-बैणी नानि-नानि चीजों कैं बांटि बेर खांछियां। तू हमन है ठुलि भई, आपणि थैं नि बचै बेर सब हमनकैं दि दिनेर भई। मैं शरीरल कमजोर भई, क्वे लै ना्न मैंकैं मारल, धां्क-मुक लगालौ तू ढाल बणि बेर म्यर बचाव करनेर भई। जब हम मणि ठुल दर्ज में पढ़न लागां, तू हमेशा रत्तै ब्याण चहा बणै बेर हमनकैं पढ़नाक थैं उठूनेर भई। पढ़न दिना जतुक मेहनत हमूल करि उ है बांकि तपस्या हमार लिजी त्वील करी भै।
दिदी! उ दिन कां हराण ह्वाल जब रात हैं हम भै-बैणी ईजा-बौज्यूक सिती बाद चोरि बेर निमू सानि खांछियां। दिन में टैम लै नि भै। भै-बैणी रातै एकबटिनेर भै। एक बार मैंकणि पड़ोसियोंक ब्याई कुकुरल बुकै दि, तु मैंकणि पुठ में धरि बेर चार मैल दूर अस्पताल लि गेछै। तब इलाज करौ। हर मुसीबत बटि उबारणी तू भई दीदी। नान भुलि हिमू त्वैकैं कतुक भल मानछी। तेरि बरात जाई बाद उ रूणै में रै गै। तिसार दिन जब तू दुर्गूण लौटूण ऐ छै तब हिमूल त्वै दगाड़ खा्ण खा। आजाक नान सब आपूं-आपूं में मगन छन। पिरेम-भावकि बातै नंै जाणन। उनर दगडू,भै-बैणि और मै-बाब सब मोबाइलै भै। दीदी! उन दिनों जब तुम सब धुर-जंगव जांछिया, वांकि हँसि-मजाक, गीत-बैर गाते हुए घा-लकाड़ लौंछिया, उ बातों कैं सुणि बेर मैंकणि हौसि लागनेर भै, कतुक भाल भै उ दिन। होइ दी, कौतिक, होलि, चैतोल, दशंै, दुती, हरयाव, दिवाइ, घुघुती क्वे लै त्यार आयौ, हम कतुक फुरमी जांछियां। होलिन में त्यार स्वांगन कैं याद करि बेर आज लै गौं पनकि काखी, ठुलिजा, भौजि हौर हँसन-हँसनै फुराड़ी जानी।
दीदी! कतुक लंब बखत बिति गौ, त्वील नाति-प्वाथ बिवै-बरतिए लै हाली , हम आजि लै त्वैकैं उसै देखनू। दी ह्यौन हिङाव लै जरूर इथां नसि आए, चार दिन यां दगड़ै भैट रौंल, ना्न छना बात लगौंल, कतुक भल लागल।
अच्छा दी! घर पन च्याल-ब्वारिन कैं, नाति-प्वाथन कैं मेरि आशीष दिए। सबनकैं याद करि दिए, तू जरूर आए।
तेरि नानि बैणि-
हंसा बिष्ट
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• ‘पहरू’ कुमाउनी पत्रिका मार्च २०२१ अंक से साभार
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