कुमाउनी व्यंग्य : मारो ज्वा्त

मोहन चंद्र कबड्वाल 
 मुक्तेश्वर, नैनीताल 
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 भौत लोग हुनी जो एक्कै शब्द कें बार-बार कूनी। उर्दू में ये थें ‘तकिया कलाम’ कौनी। म्यार पड़ोसाक बुजुर्ग बार-बार ‘मारो ज्वा्त’ कौनेर भै। एक दिन मैंल कौ-कसि तुमरि घरवालिकि तबियत? ऊं बुलाणी- घरवालि कें मारो ज्वा्त। ऊ आ्ब ठीक हुणी जसि नी रैगै। यौ बात घरवालिल सुण ली। बिगड़ि पड़ी- आ्ब तुम लोग म्यार हाताक चप्पल खाला। मैं वां बै भाज गयूं। 
ज्वा्त भौत जरूरी हुनी। खुटांकि रक्षा करनी। हांत यौ बात अलग छ कि ख्वार में लै पड़ि सकनी। कभै-कभै भा्व बणि बेर गाव में लै पड़ि जानी। भौत लोगोंक पास एक्कै जोड़िक ज्वा्त हुनी और भौतोंक पास दर्जनों। रोज नई ज्वात पैरनी, चमचमान। ये में ऊं आपणि शान समझनी, भले ही ज्ञान-ध्यान दगड़ि उनर के मतलब नी रौन।
क्भै-कभै ठुल आदमीक ज्वा्त लै उठौण पड़नी। तबैत एक बुजुर्ग मुख्यमंत्रील एक युवा नेताक ज्वात उठै बेर, उनर पिछाड़ि चलि बेर उनरि कृपा प्राप्त कर ली। मंदिरों-गुरूद्वारों में ज्वात सााफ करण पर पुण्य थ्मलों। ऊं अलग बात छ कि कुछ लोग भा्ल-भा्ल ज्वातोंकें पुर कै ‘साफ’ करि दिनी। हमार मुहल्लाक एक सज्जन भा्ल-भाल सेंडिल साफ करि बेर आपणि प्रेमिका कें दिई कर छी। बरातों में वरज्यूक ज्वात साफ करणकि रिवाज आ्ब सबै जा्ग चलि गौ। ऊं ज्वताक बदाव में साड़ी भौत रूपैं मांगनी और पुर ढेपू नी मिलण पर नराज हुनी। बर ज्यू सार्ड पर खुश ह्वै बेर कौनी- अरे दी दियो तनार डबल। मैं पर तनर हक लै बणनै छ। 
ज्वात राजकाज लै करनी। भरत रामचंद्र ज्यूक खड़ाऊं लाइ और राज गद्दी में धरि बेर चैद साल भौत बढ़िया राज-काज चला।
ज्वात बहुरूपिया हुनी। रंग बिरंगा। किसम-किसमाक नाक मुख वा्ल। क्वे अघिल बै स्यूड़ जस तिख, क्वे चपटी चिपड़ू। क्वे फित वा्ल, क्वे इलास्टिक वा्ल। ज्वात किसम-किसमाक आवाज लै करनी। बल्दोंक चार ज्वातां में लै दैण-बौं हई करों। ज्वातां में बड़ी एकता और पक्क दगड़ हई करों। एक ज्वत अगर बीमार है जौ तो दुसर लै हड़ताल करि द्यों। आदमीक चारी ज्वात ‘पार्टनर’ या पार्टी नी बदलन। ये मामुल में मनखी कैं उनू बटी सीख लिण चैं। हमार यां रामलिल में एक जोकर छी, एक खुट में लाल, एक में का्व ज्वत पैरछी। कौंछी- दुणी में लोग लै द्वी रंङाक हुनी, क्वे खै-पी बेर लाल है रौनी, क्वे थकी-पटाण का्व पड़ि जानी। आंखिर में सबोंकि गत एक सा हैंछ।
नई - नई ज्वात भौत इज्जत पानी। उनू कें भौत भा्ल ढंगल धरी जां। बाद में आस्ते-आस्ते  उण-कुण पन खेड़-बखेड़, बेइजत्ती। घरों फना मैंसोंक लै तसै हाल हुनी।
ठुल-ठुल नेताओं कें निशाना बनै बेर ज्वा्त मारण लै दुणी भरि में चलन में छ। कुछ लोग ये मौक पर पुराण खेड़ी-खाड़ी ज्वात झ्वाल में धरि राखनी और उनरि समाव अस्त्र-शस्त्रोंक चारी करनी। कुछ लोग ज्वातां कें मा्व बणौनाक लिजी धरि राखनी ताकि मौक लागण पर पैरी या पैराई जै सका। मौक पर कुछ लोग सेल्फी लै खेंचनी।
गोपाल सौज्यू कई करछी- ज्वा्त बढ़ियां  और चमचमान हुन चैनी। डिबली जब पैलाग कौनी तो उनरि नजर सिद ज्वातां में पड़ों। भा्ल ज्वतां कैं देखिबेर ऊं मैंस कैं लै देखि लिनी। समजो ज्वतांक पैंस वसूल है गै।
स्यैणियां-जूता मारूंगी, सेन्डिल मारूंगी खूब कौनी।  क्वे -क्वे स्यैणी मारि लै दिनी। हां कुछ यास योद्धा  लै हुनी जो यौ मार कें फूलोंकि मार समजि बेर बार-बार अवसरक लाभ उठै लिनी।
भौत घरों में लोग भितेर जै सकनी लेकिन ज्वा्त बिचार भितेर नि जै सकन। यां मंदिराें वा्ल नियम लागू रौनी। ज्वात बरंड में या दरवाजोंक भ्यार बटी मलिक लोगोंकि प्रतीक्षा करनी, बिल्कुल शांत और निर्विकार। लोगों कें ज्वातांकि यौ स्थिति बै लै सीख लिण चैं। भितेर मिठाई-नमकीन, मुर्गा-मीट उड़ाई जां और ज्वात भ्यार बै धूल खाते रौनी, लेकिन कभै कोई शिकैत नैं। ड्राइवर बिचार लै गाड़ि में भैटि बेर ज्वातांकि सहनशक्ति कैं धन्य कौं।
ज्वा्त दुकान में सुंदर मखमली शोकेस में छजाई रौनी। दुकानदारज्वात कें बड़ी शानल उठों, हंतरल पोछों और फिरि बतों- ये पीस आपके लिए। और कहीं नहीं मिलेगा ये। यस लागों जो कौल यो नमूनक ज्वत एक्कै बण हुनल। ग्राहक उ कैं हाथ में ली बेर देखों। वीकि राव छुटि जैं और डरन-डरनै दाम पुछि ल्यों। दाम कतुकै लै है सकनी किलैकी अच्याल आदिमि सस्त है गई, ज्वात अकार।
पैंली बटी द्वी प्रकाराक ज्वात हुंछी, या त चमड़ाक या कपड़ाक। आज जतुक किस्माक आदिमि है गई उतूकै किस्माम ज्वात लै है गईं। आ्ब आदिमिकि इच्छा छ उ कस ज्वत कां बटी खरीदों। दुकान में जां या औन लाइन। मंगौ। हिंदुस्तान में एक जाग यसि छ बल जां लोग दुकान में जै बेर कौनी- साब को चाय मारो। तो चाय मिलि जैं। साब को खाना मारो तो खा्ण मिलि जां। लेकिन यौ प्रयोग सब जाग अजमौण नी भै। मारो ज्वात लै है सकों।
मैं जस्सै भ्यार निकलों मैं कें उ पड़ोसी देखी गई और कौण लागी- मुहल्ल वालां कैं मारों ज्वात यों अच्याल आपणि मनकसि करण लागि गईं।
ततुकै में मली बटी एक आदमिल एक ठुल्लौ ज्वत पुरि ताकत लगै उनर ख्वार में मारि दे- ओ ‘मारो ज्वा्त’ लै आपणि बात जबाब। ज्वत उनर चानी  में यस बैठौ कि ऊं गल्ली में बैठि गेई और कौण लागी- माफ करो यार, आब मारो ज्वात नी कों, खाओ ज्वात कोंल।
ज्वा्त मारणी आदिमिकि समझ में के नी आय। मारो ज्वात, खाओ ज्वात बात त एक्कै छ।  क्वे मारल, क्वे खा्ल। काम चलते रौल। दल द्वी ह्वाल लेकिन उद्देश्य एक्कै ह्वल। सरकार कोई हो ज्वा्त त काम आते रौल। संसद और विधान सभाओं में लै। • 
(‘पहरू’ कुमाउनी पत्रिका , फरवरी २०२१ अंक बै) 

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