कुमाउनी लेख: सेहतै दगाड़ अर्थव्यवस्था लै चमकै सकूं सिसूण
शशि शेखर जोशी
मकीड़ी, अल्मोड़ा, मो.-9084488511
उत्तराखंडक पहाड़ी इलाक में बा्ट घाटनाक इनार-किनार या फिर टा्न में भिड़न पन अक्सर दिखाई दिणी सिसूण कैं को नि जाणन। नानतिननक सिसूण दगाड़ पैंल परिचय तब हूं जब ऊं चाइपाति में लक्ष्मण रेखा पार कर दिनी। मैंकैं याद छ कि नानछना हमनकैं डरूणक लिजी सिसूणक डर दिखाई जांछी और खास मौकन पर तो कई जांछी कि पाणि में भिजै बेर सिसूण लागल। छूते ही झणझणाट पाड़नी सिसूणक प्रताप यस भै कि कोई लै डर जाओ। परंतु हमार पुरूख यैकैं सिर्फ नानतिनकैं डरौणक लिजी न बल्कि अलग-अलग रूप में यैक इस्तेमाल सदियों बटि करते आई छन। उनन आपण अनुभव और जरूरत हिसाबलि यैक इस्तेमाल करौ। उनन कैं यैक चमत्कारी गुण पत्त छी जैकि पुष्टि आधुनिक विज्ञान लै करण लाग रौ। गौं-घरन में आज लै हाथ-खुट अमड़की जा्ण पर सबन है पैंली उ जा्ग में सिसूण झपोड़न हैं कई जां और उ भौत जल्दी असर लै करौं।
के छू सिसूण:- कुमाऊँ में सिनु, सिन या सिसूण गढ़वाल में कंडाली नामलि जाणनी। सिसूण थैं हिंदी में बिच्छूघास कई जां। अंग्रेजी में यथैं नेटल (छंजजसम) कई जां और वैज्ञानिक लोग यकैं ‘आर्टिका डाईओका’ तौर पर जाणनी। सिसूण एक बारोमास हरी रौणी पौंध छ जो करीब एक मीटर तक उच्च हुं। दुनी भरि में यैकि सैकड़ों किसम पाई जानी। दरसल यो आर्टिका परिवारक एक सदस्य छू। उत्तराखंडक मध्य हिमालय क्षेत्र में समुद्र सतह बटि 800 मीटर बै 3000 मीटर तक ऊंचाई में पाई जां। यैक पात, डंठल में स्यूड़ है लै मसिण रोम जास का्न हुनी जनन में फार्मिक अम्ल और हिस्टामाइन हुं। यई कारण छू कि यकैं हाथ लगूण पर झणझणाट पड़ जां।
सिसूण एक बहुउपयोगी पौंध छू जैक इस्तेमाल पहाड़ी जनजीवन में दवाई, भोजन, चारापत्ती तौर पर करी जाते ऐरौै। हमार यां जादा ठंड हुण पर सिसूणक साग खाणक रिवाज भौत पैंली बटी चली ऐरौ। सिसूणाक नई और कोंव गुफाउन कैं टोड़ बेर उनर साग बणाई जां जो विटामिन ए, बी. सी. दगाड़ आयरन, पोटेशियम, कैलसियम, मैगनीज जास तत्वन भरपूर हूं। यैमें पच्चीस प्रतिशत तक प्रोटीन हूं, जो यैकें एक बढ़िया शाकाहार बणू। भौत सजाग यैक डंठवन कैं उबाल बेर स्वादिष्ट और पौष्टिक सूप लै बणाई जां। सिसूणक सागक बार में मानी जां कि यो ठणखांसि, जर, सर्दी-जुखाम, गठिया बात, पीलिया बीमारिक इलाज में मधतगार हूं। जो लोगों कैं भूख न लागणकि और गैसकि समस्या हैंछ उननकैं सिसूणक साग खाणकि सलाह दी जैं। आपणि गरम तासीरक वील यो ठंड क लै रामबाण उपाय छू। अच्याल सिसूणक चहा लै खूब प्रचलन औण लाग रौ। बिदेशन में यैकि भौत मांग छू। यमें सिसूण कैं सुकै बेर चहा बरि इस्तेमाल करी जां। सिसूणक चहा कैं पेशाब संबंधी रोग, ब्लडशुगर, गठीबात, हृदयरोग और मोटापाकि रोकथाम में भौतै कारगर मानी जां।
अगर सिसूण कैं एक चमत्कारी जड़ी-बूटी कई जाओ तो कोई अतिशयोक्ति नि हो कोई लै प्रकारकि पीड़ हो, पूठ में पीड़ हो या फिर कमर पीड़ हो सिसूण दूर कर सकौं। सिसूण में पाई जाणी तत्व खाल संबंधी बीमारी लै दूर कर सकनी यैक दगाड़ बावनक लिजी लै यकैं लाभकारी मानी जां। सिसूण माहावारी दौरान स्यैणियों कैं हुणी दर्दकि रोकथाम में लै सहायक हूं। सिसूण कैंसर रोधी तत्वन लै भरपूर छू, यैक बीजन कैंसरकि दवाई लै बणन लाग रै।
हमार पहाड़ी इलाकन में सिसूणक इस्तेमाल चारै लिजी लै करी जां, यकैं जानवरनकि लिजी बढ़िया हरी चार मानी जां। सिसूण फाईबरक लै एक बड़ी स्रोत छू, यैक ल्वैहत खूब मजबूत और बढ़िया मानी जां।
जां एक तरफ सिसूण सेहतै लिजी भौत फायदेमंद छू वांई दुसरि तरफ यो पहाड़कि अर्थव्यवस्था कैं मजबूत करण में लै आपण योगदान दी सकों। सबनहै जादा संभावना छू यैक चहा में। उत्तराखंड में कुछ लोग सिसूणक चहा बणै बेर बेचनई। अल्माड़क नजीक चितई में एक उद्यमी सिसूणक चहा बणै बेर उकैं बिदेशन में बेचण लाग रौ। भौत सा लोग सुखाई हुई सिसूण लै खरीदण लाग रई और भौत सा लोग यैक पांैध लै खरीदण लाग रई। बजार में सिसूणक चहा लगभग तीन हजार रूपैं किलो तक मिलण लाग रौ। अगर हमरि सरकार यो तरफ ध्यान दियो तो यो एक कुटीर उद्योगक रूप ल्ही सकों। येक लिजी गौं स्तर पर नान-नान समूह बणै बेर उननकैं उत्पादन और पैकिंगकि ट्रेनिंग दी जाओ और ब्लौक स्तर पर खरीदकि ब्यवस्था करी जाओ तो यो कई लोगन कैं रोजगार दी सकौं।
बढ़िया रेसा वाव सिसूणक ल्वैहत भौत मजबूत और टिकाऊ हूं। दुनियांक कुछ देशन में ल्वैहतकि लिजी सिसूणकि खेति लै करी जैं। यैक ल्वैहतलि कई लोग जैकेट, बैग, वाल हैंगिंग जसि नमान चीज बणून लाग रई।
यां ध्यान दिणी बात यो छू कि यो दिशा में कुछ लोग और संस्था काम करण लै लाग रई। उनार प्रयास सफल लै हुनई पर जब तक सरकार यैक लिजी अघिल न आओ तब तक यकैं ठुल स्तर पर करण मुसकिल होल। •
(‘पहरू’ , कुमाउनी पत्रिका , फरवरी २०२१ अंक बै )
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