कुमाउनी लोक कथा : अमरू और आ्म
गीतम भट्ट शर्मा, अल्मोड़ा
लक्ष्मेश्वर,अल्मोड़ा, मो.- 9690889963
एक अमरू भै, वील एक आमक गुठयल लगै। उ गुठयल कैं रोज देखनेर भै, पर गुठयल जामन नि लागी भै।
एक दिन अमरूवल कै-‘‘आ्ब तू नि जामलै जब, मैं तुकैं काटि-कुटि बेर गाड़ बगै द्यून।’’ दुसार दिन बोट जामि गै।
आब अमरवल कै- ‘‘तुमें हाङ-फाङ नि लागा तो मैं तुकैं काटि-कुटि बेर गाड़ बगै द्यून।’’ दुसर दिन बोट ठुल है गे, उमें हाङ-फाङ ला्ग गै।
आ्ब अमरूवल कै-‘‘तुमें फूल और फल नि लागा त मैं तुकैं काटि-कुटि बेर गाड़ बगै द्यून।’’ दुसर दिन बोट बै फूल लागि बेर फल लै लागि गै।
एक दिन अमरू बोट में चढ़ि बेर पाकी-पाकी आम खा्ण में लागी भै। पार बै एक आ्म ऐ गै। आमलि कै- ‘‘ अमरूवा एक दा्ण पाकी जस मैंकैं लै दिनै।’’
अमरूवल एक दा्ण टिप बेर दियौ, उ ‘गू’ में न्हैगै। दुसर दा्ण टिप बेर दियौ, उ ‘गुबर’ में न्हैगै। तिसर दा्ण टिप बेर दियौ उ ‘थूक’ में न्हैगै। आंखिर में एक दा्ण कुथव में पुज गै जो आमलि बोटाक तलि बै छोड़ी भै।
अमरूवल आ्म थैं पुछ -‘मैं बोट बै कसिक उतरूं?’
आमलि कै -‘‘सुकी फाङ में हाथ हाल, का्च फाङ में टिका।’’ अमरूवल सुकी फाङ में हाथ हालौ जब तो फाङ टुटौ उ कुथव में छुटि गै, जो आमलि बोटाक ताउ बै खोली भै।
आ्मलि कुथवक मुठ पाड़ौ, अमरू कैं उमें भर बेर, आपण पुठ में लगै बेर ल्हिनै गै। बा्ट में आ्म कंै भारि है गै, वील कुथव भिमें धर दी। उति पन क्वे ग्वाव गोरू बकार चरूनेर भै, उनन धैं कै य कुथवकि फाम करि दिया, मैं पाणि पि औनू।
आ्मक जाते ई अमरूवल ग्वावन धैं कै- मैं तुमार गोरू-बकार चरै द्यून, मैंकैं खोलि दियो। ग्वावनि अमरू कैं खोलि दी। अमरूवल उमें ढुङ-डा्व, का्न, झाड़ -पात भर दी और एक-द्वि झिमौड़ाक पूड़ भरि दी।
आ्म जसै ल्हिजाण लागि, आ्म कैं भौत भारि है गे। जसिक-तसिक आ्मलि उ कुथव घर पुजायो, जसै खोलो जब आ्म कैं झिमौड़नि चटकै दी, आ्म उसै गै।
दुसर दिन फिर आ्म अमरूवक बोट धैं पुज गै। आज लै अमरू आम खा्ण लागी भै। आ्मलि कै-‘‘इतखै लै दिनै धैं एक-द्वि दा्ण।’’
अमरू समझ गै, आ्म आज लै उसै करलि। वील कै-‘‘तू बेइयकि बुढ़ी हुनेली।’’
आ्मलि कै -‘‘ना, उ पतइ छी मैं मोटी छुं, वीक नाक तुरतुर छी म्यर चिपड़ छु, उ फुसेरि ;गोरिद्ध छी, मैं लाल छुं।’’
अमरू मानि गै, वील फिर आ्म कैं आम दी और पुछ-‘‘मैं कसकि उतरूं’’ आ्मलि कै -‘‘सुकी फा्ङ में हाथ हा्ल, का्च फा्ङ में टिका।’’
अमरू फिर कुथव में छुटि गै। आ्मलि कुथवक मुठ पाड़ौ, सिध घर ल्हिगै। आपणि नातणि धैं कै -‘‘मैं हल्द-मस्याल ल्हिबेर औंछूं तू य अमरू कैं काटि-कुटि बेर मांज में धर दिए। ’’ आ्म ल्हैगे मस्याल ल्हिण हैं।
अमरू कैं आ्मकि नातणिल खोल जब, अमरूवाक बावों कैं चाइए रै गे। वील कै- ‘‘अहा! कदुक भाल बाव छन त्यार। मैंकैं लै बता, कसिक भई यतुक ठुल’’?
अमरूवल कै-‘‘मैंल उखव में रोज-रोज कुटी, तबै त इदुक ठुल और सुंदर भई।’’
आ्मकि नातिणिल सांच्ची मानि और अमरूवल कै- ला त्यार लै कुट द्यून, त्यार बाव लै ठुल और सुंदर है जा्ल।
अमरूवल वीक कुट-कुट बेर शिकार बणै बेर चुल में चढ़ै दी। आपूं पा्ख में लुकि गै।
आ्म आई जब त आमलि कै-मेरि नातणि कदुक हुशियार भै, कस भल-भल काम करनेर भै। आ्ब शिकार लै पाकि गै। जसै आ्म खा्ण लागि, एक-द्वि टुकुड़ खाया जब त अमरूवल पा्ख बै म्याऊँ-म्याऊँ करि।
आ्म- ‘‘सिरू-सिरू... झन खै जाए म्यार नातणिक बानक।’’
अमरू-‘ आपणि नातणि खै है लै...
ओ हो आपणि चेली खै है लै...।
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• ‘पहरू’ कुमाउनी मासिक पत्रिका मार्च २०२१ अंक से साभार
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