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कुमाउनी यात्रा बृतांत - लंदन जस मैंल देखौ- डॉ. मनोहर जोशी

         डॉ. मनोहर चंद्र जोशी   मल्ली बमौरी, हल्द्वानी,  मो.- 7579232500              जी वन में कभै-कभै यसि घटना लै घटित है जैं जैक बार में हमूकें पैंली के पत्त नि हुन। मैंल लै कभै यो नैं सोच राखौछी कि मैं लै कभै बिदेशकि यात्रा करूंल। हमर च्यल लंदन में एक कंपनी में काम करों। उ आपणि घरवालिक दगाड़ लंदनाक हैटफील्ड नामक जाग में रौं। वील हमूथें  आपण पासपोट बणौनै लिजी जोर करौ, तब मैंल और मेरि घरवाइ ल आपण पासपोट बणै ल्हि। पासपोट आइया बाद वील हमर लंदन क बीजा लै बणै दी और हमूथें कौन लाग कि लंदन औनकि तैयारी करौ। फिर एक दिन वील म्यर और मेरि घरवाइ द्वियां कै लंदनक टिकट भेजि दे।                                                तारीख 05 अप्रैल 2019 हुं हम दुवै हल्द्वानि बै संपर्क क्रांति रेलल दिल्ली हुं रवान है गयां, उ रात हम आपण चेलि क यां नोएडा में रयां। अघिल दिन 06 अपै्रल 2019 हुं हमरि लंदन यात्रा शु...

कुमाउनी किताब समीक्षा-भाग-३ । 'बोध का्थ' व 'ऐपण'

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          (किताब पर चर्चा  (भाग-३) में आपूं लोगनक भौत स्वागत छु। यां आज ' बोध का्थ '   और ' ऐपण'  किताबों पर चर्चा करी जाणै। चर्चा करण लागि रीं युवा  कुमाउनी समीक्षक - ललित तुलेरा । )  बोध का्थ : कुमाउनी गद्य साहित्य में नई परयास बो ध का्थ जनूकैं हिंदी में ‘ बोध कथा ’ कई जांछ। असल में यों मनखी कैं असली मनखी बणून व गुणवान, संस्कारवान बणून में भौत कारगर हुनी। यैकै वजैल इनरि अहमियत कैं देखि बेर बोध (नैतिक) का्थ इस्कूली कोर्स में नानतिनों कैं लै पढ़ाई जानी। डाॅ. पीताम्बर अवस्थी ज्यू द्वारा लेखी ‘ बोध का्थ’ किताब कुमाउनी में नई परयास रूप में देखां है रै। हिंदी व संस्कृत साहित्य में बोध काथोंक भरमार छु। ‘हितोपदेश’, ‘पंचतंत्र’ जा्स कएक किताबोंकि सैकड़ों बोध का्थ पढ़न में मिल जानी पर कुमाउनी साहित्य में बोध काथोंकि क्वे किताब ऐल तक देखण में नि आई छी। य किताब में बिबिध बिषयों पर गुण, संस्कार दिणी 40 बोध का्थ एकबट्याई छन। इमें शामिल हर बोध का्थ आपुण में खास छु। यां शामिल हर बोध का्थ एक ठुल सीख हमूकैं जरूड़ दींछ । •••••• बोध का्थ • लेखार- ड...

किताब पर चर्चा : भाग दो । उत्तराखंडाक लोकभाषाओं पर जुड़ी द्वी खाश किताब- ललित तुलेरा

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 (  किताब पर चर्चा (भाग-२) में आपूं लोगनक भौत स्वागत छु। यां आज \" हे जन्माभूमि\"  और "\" उत्तराखंड लोकभाषाओं के सृजनरत रचनाकार\"  किताबों पर चर्चा करी जाणै। चर्चा करण लागि रीं युवा कुमाउनी समीक्षक - ललित तुलेरा । )       एक तरफ \"हे जन्माभूमि!\" कुमाउनी कबिताओंक हिंदी अनुवाद रूप में कुमाउनी अनुवाद साहित्य में नई प्रयासों में एक छु। तो वांई दुसर तरफ \"उत्तराखंड के सृजनरत रचनाकार\" लै उत्तराखंडाक लोकभाषाओं में कलम चलूण लागी लेखारोंक परिचय दिणी किताब रूप में सामणि ऐ रै जो य क्षेत्र में नई प्रयास प्रयास छु। यों दुवै किताब हमुकैं आपणि भाषाओं में भौत कुछ करणकि सीख दिनी।    हे जन्माभूमि ! : राणा ज्यूकि हियकि बात हिंदी में लै         आ पणि प्रतिभाक दम पर कुमाउनी पद्य साहित्य व लोक साहित्य कैं नई मुकाम तलक पुजूणी प्रतिभाक सेठ रचनाकार हीरा सिंह राणा ज्यूकि 51 कुमाउनी कबिताओंक हिंदी अनुवाद रूप में ‘ हे जन्माभूमि ! ’ किताब उज्याव में ऐरै। राणा ज्यूल कुमाउनी भाषा में सैकड़ों कबिता लेखीं और उनूल उनूकें आपणि अवाज दे। उनरि...

कुमाउनी समीक्षा : कुमाउनी शब्दों पर द्वी किताब। समीक्षक-ललित तुलेरा

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( ' किताब पर चर्चा ' में आपूं लोगनक स्वागत छु। यां  कुमाउनी शब्दों पर लेखी द्वी नई   किताब 'प्यौलपिटार' व ' कुमाउनी बोली शब्द संग्रह हिंदी अर्थ के साथ’ पर चर्चा करी जाणै। समीक्षक छन- ललित तुलेरा । ) कु माउनी में शब्दकोशकि शुरूवात 1983 ई. में ‘ कुमाउनी हिंदी व्युत्पत्तिकोश ’ नामल भै, जकैं डाॅ. केशव दत्त रुवाली ज्यूल तैयार करौ। यैक बाद कुमाउनी में ऐल तलक द्वीभाषी व बहुभाषी ना्न-ठुल करीब 8 है सकर शब्दकोशोंकि रचना है गे।          कुमाउनी शब्दकोशोंक य क्रम में ‘ प्यौलपिटार ’ हमर सामणि छु। ‘प्यौलपिटार’ उकैं कूनी जो ब्या में बर/ब्योलिक ब्याक समान धरणी बगस (टरङ) हुं, इकैं ‘ब्यौलपिटार’ लै कई जां। कोशाक लेखार कुमाउनीक नामी लेखार पूरन चंद्र कांडपाल छन। कांडपाल ज्यूकि कुमाउनी साहित्याक तमाम बिधाओं व ‘कुमाउनी भाषाक ब्याकरण’ समेत कुमाउनी भाषा में य चौदूं (14) किताब छु। बिकासक बा्ट में बटयोर भाषा में शब्दकोश रचण बौं हातक काम नि हुन।  परसिद्ध भाषाविद स्कैलीगरक कथन छु- ‘‘ अगर क्वे अपराधि कैं ठुलि है ठुलि सजा दिण छु तो उकैं कोश निर्माणकि बुति ...

ललित तुलेरा की 5 कुमाउनी कविताएं

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ललित तुलेरा की 5 कुमाउनी कविताएं ललित तुलेरा जनम - 25 जून 1999 निवासी - ग्राम- सलखन्यारी, गरूड़ (बागेश्वर) उत्तराखंड लेखन- कुमाउनी व हिंदी में कविता, लेख, समीक्षा आदि। मो.-7055574602 ईमेल- tulera.lalit@gmail.com ब्लाॅग- Kumaunibhasa.blogspot.com 1. पछयाण पहरूवो!  कां गेछा रे? किलै बुज री आँख? किलै फरकै रौ मुख? अणपूछ किलै है रै ? किलै डौंसी रछा निझरक ? कलटोव, निमुजि, बेफिकर किलै ? मट्टीपलीत, जड़उबाड़, कुकुरगत किलै ? चहान-चहौता किलै ना ? निग्वाव गुसैंक किलै बणै रौ ? जड़ बुस्यै घाम किलै लगूंछा। धार वौर, ढीक नजीक आओ उघाड़ो आँख, चिताव हवो। तुम उनर औलाद छा जो तुमर भरौस सौंप जैरी पछयाण, संस्कृति, दुदबोलि। खड़पट्ट, बजी जा्ल        निखाणि हलि, गाड़ बगल सब। के जबाब देला भोवक दिन आपणि आनि-औलाद कैं?  2. धाद माइक लालो!  धौंस, डोंडारी, ऐंठ बजरमुखी किलै? चुईक बा्ट निकवल। छम-बिछम, तड़ी, नड़ि-बेद किलै? मनखी छा यार। बुथ्यै खाणी,  मौकै-मौकै बेर किलै? द्वि र्वटै तो खाला। छरब हंकार,  द्वछै बेर किलै? मा्ट है जाला। धौ-धीत में आओ थिर -थाम मे...

कुमाउनी ब्यंग्य : अमरीकन एंटीवायरस कच्छ

डॉ. पवनेश ठकुराठी         ग्राम-बड़ालू, पिथौरागढ़          मो.-9528557051        ब्या वक टैम छी। शर्मा ज्यू आपण लिंटर में लाल रङक नानू-नान जङी पैरि बेर यां बै वां रिटन राछी। उ जङी जै कि भै सेम टू सेम बाबाज्यूक लंगोट भै। उनूकैं देखि बेर पैंली मैंकैं बिश्वासै नि भै। तौ शर्मा ज्यू छनी या क्वे एक्टर छन। कती फिलमकि शूटिंग त नि करनाय। उसि कै लै अछालून सिनेमा-फिलमक जमान छ। सिनेमा-फिलम ले यसि जै में सब नाङड़ है बेर नाचते रूनी। फिर मैंकैं ख्याल आ, कती शर्मा ज्यू जङीयक एडबरटाइज त नि करनाय, किलैकी  शर्मा ज्यू कैं तस चीजोंक भौत शौक छी। मैंल आपण आँखा तीन-चार फ्यार चिम-चिम कै बेर चिमी, फिर भौपरीना मैंस जै यथकै- उथकै नजर दौड़ै। वां क्वे और नि छी। हां बगल वाल मकानक लिंटर में द्वी छ्योड़ी मुबाइल कान में लगै बेर चैटिंग-सैटिंग जरूर करनाछी। आ्ब मैं निझरक है गैछ्यूं कि यां तसि क्वे बात नि है रै। मैंल शर्मा ज्यू कैं गौरल चा। ऊं पुर नाङडै़ छी। बस, तल आङ में उ लाल रङक जङी छी। सांचि कूं त मैंकैं शर्मा ज्यू कैं देखि बेर शरम ऐ पड़ी, ठीक उसीकै जस...

कुमाउनी इंटरव्यू : आपुणि भाषा में कई बात जल्दी समझ में ऐंछ - देवकी महरा

देवकीनंदन भट्ट 'मयंक'  तीनपानी, हल्द्वानी, मो.-99177441019ग उ सी तो कुमाउनी भाषाकि ‘महादेवी’ नामल बिभूषित देवकी महरा क्वे परिचयक मोहताज न्हांतिन। उनर लिजी योई नौं ‘देवकी महरा’ सारगर्भित और स्वनाम धन्य छु। उनूथें ‘कुमाऊं कोकिला’ लै कई जां। फिर लै देवकी महरा कैं बिभूषित करणी सार्थक नामों में एक नाम ‘नारी बिमर्शकि साहित्यिक धारा: देवकी महरा’ और जुड़ सकौं तो यमें क्वे अतिशयोक्ति नि होलि, किलैकी ऊं आपुण शैशव काल बटी आज 84 सालकि उमर तक उरातार ऊर्जावान है बेर हिंदी और कुमाउनी जगत कैं सुवासित करण लागि रई। पिछाड़ि दिनौ उनू दगै बात चीत करणक मैंकें मौक मिलौ, जो पाठकों सामणि प्रस्तुत छ- सवाल- देबकी दी! मातृभाषा कुमाउनी में गीत और कबिता लेखणकि परेरणा आपूं कैं कां बै मिली? यो बात मैं आपुण कुमाउनी कबिता संग्रह ‘निशास’ और ‘पराण पुंतुर’ क संदर्भ में जाणन चानू। जबाब- जब बटि होश समालौ, मैं हमेशा संस्कार गीत, झोड़ा, हुड़की बौल, जागर आदि कार्यक्रमों में भाग लिई करछी। उनूकैं याद करणकि कोशिश लै करछी। नई-नई गीत बणौणकि कोशिश करछी। यो गीत, यो धुन सब म्यार मन में रची-बसी छी। हमेशा नई-नई रचना बणै बेर...