कुमाउनी संगीत व कविता कैं ढाई में पुजूणी कलाकार : हीरा सिंह राणा


     कुमाउनी लोकसंगीत व साहित्य संसार में ‘हीरा सिंह राणा’ एक जाणी - मानी नाम छु। आपण कुमाउनी गीत व कविताओंल कुमाउनी भाषा, संस्कृति कैं देश-दुनी में नाम और पछ्याण दिलूणी हीरा सिंह राणा ज्यूक जनम 10 सितंबर, 1942 हुं अल्मोड़ा जिल्लक सल्ट पट्टिक डढोली (मानिला) गौं में किसान परवार में भौ । उनर इजक नौं श्रीमती नारंगी देवी व बौज्यूक नौं श्री मोहन सिंह राणा छी । प्राथमिक शिक्षा उनरि मानिला में भै और प्राइमरी तकै इस्कूल पढ़ौ ।


     उनूल दिल्ली में सेल्समैनकि नौकरी करै लेकिन य नौकरी में उनर मन नीं लाग । संगीत में रूची हुणा कारण उनूल संगीतकि स्कालरशिप ल्हे और  कलकत्ता ऐ ग्याय वां संगीत में उनर मन भल लागौ और हनरक बदौलत संगीत में भल नाम कमूण लागीं । कुमाउनी साहित्य मंडल, दिल्ली में लोककला निर्देशक पद पर लै राणा ज्यू रई। 
         बर्ष 1961 बटी उनूल कुमाउनी कविता लेखण शुरू करौ। संगीतक व साहित्य में उनरि ख़ूब मन लागछी । गीत लेखन और गायन उनार खास शौक छी । कुमाउनी भाषाक बिद्वान साहित्यकार डॉ. नारायण दत्त पालीवाल ज्यूक स्योव में  उनूल कुमाउनी साहित्यक में क़लम चला और एक है बेर एक भा्ल कुमाउनी कविता व गीत लेखीं । 

• ‘कुमाउनी साहित्य’ कैं हीरा सिंह राणा ज्यूक योगदान :-
         उनार तीन कुमाउनी कविता/गीतोंकि किताब छपीं छन। जो य प्रकार छन-
१. ‘प्योली और बुरांस’ (1971 ई. )
२. ‘मानिलै डानि’ और
३. ‘मनखों पड़्योव में’ (1987 ई.) 
         हीरा सिंह राणा ज्यू करूणानिधि और पीड़ाक कवि छन , उनरि कविताओं में संयोगकि मधुरता, बियोगकि पीड़ , हास्यक पुट और आपण अंचल व देशक प्रति समर्पण भाव छप। पहाड़कि पीड़ व कष्ट उनरि कविताओं में झलकैं। 
   
 ‘कुमाउनी लोकसाहित्य’ कैं हीरा सिंह राणा ज्यूक योगदान :- 
  कुमाउनी भाषा , संस्कृति कैं उनूल आपस मिठ अवाजल नई पछ्याण दिणक काम करौ और नई मुकाम पर पुजा । पुर कुमाऊँ ना बल्कि दिल्ली , मुंबई , चंडीगढ़ , लखनऊ, जयपुर समेत देशभराक कई महानगरों में ला उनूल कुमाउनी में कार्यक्रम करीं।उनार कुमाउनी लोकगीतोंक कैसिट य प्रकार छन-
१. ‘रंगीली बिंदी’
२. ‘रंगदार मुखड़ी’
३. ‘सौमनों की चोरा’
४. ‘ढाई बिसी बरस हाई कमाल’
५. ‘आहा रे जमाना’, 
६. ‘न्यौली पराणा’ 




         इन कैसिटों में उनार कई चर्चित गीत छन । उनर द्वारा गाई कुछ चर्चित गीत -
१. आलिली बाकरी लिली छ्यू छ्यू
२. रंगीली बिंदी घागर काई 
३. यौ जौभन छा जोभन हिट माठू-माठू
४. गर हम पहाड़ी भला हन् रिवाड़
५. धना धना धनुली
६. शराबैकि थैली
७.गोपुली बोराणा बिंसर न्है जानू धुरा
८. हे माँ दूनागिरी की माई तेरी जै-जैकारी हो
९. ऐ जाये बसंतिया होलि खेलूंल होलि
१०. आ म्यारा नजिक सुवा क्यलै रैछैं दूर
११. तेरी खूबसूरती की खबर गरमा गरम छै
१२. आनी जानी सांस छै तू
१३. त्वीलै धारू बोला मधुली हीरा हिर मधुली
१४. अल्मोड़ै बजार हिट नंदादेवी म्यल देखूंला
१५. रूपसा रमूली घुङर न बजा छम-छम
१६. आहा रे जमाना ओहो रे जमाना। 
१७. शिवहरी कैलाश तेरो डमरू बाजो
१८. के सन्ध्या झूली रैछ
१९. आजकल हरै ज्वाना मेरि नौली पराणा
२०. धध्यूणो हिमाल चलो ठाड़ उठो
२१. आजादी मिलिया पचास साल हैंगी 
२२. दिन आनै जानै रया
२४. लस्का कमर बांदा, हिम्मत का साथा
२५. क्या भलो मान्यौछा हमर पहाड़ मां ।


        उनूल ई. टीवी द्वारा चलाई ‘झूमैलो’ कार्यक्रम में कुमाउनी गढ़वाली लोकगायकों  कैं अघिल ल्यूणक काम लै करौ।
कुमाउनी लोकसंगीत व साहित्य में योगदानै लिजी उनूकैं कई सम्मानोंल सम्मानित करी गो। कुमाउनी साहित्य में  उनरि रचनाधर्मिता कैं देखिबेर ‘कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति कसारदेवी अल्मोड़ा तरफ बटी दिल्ली में ‘गणतंत्र दिवस समारोह २०२०’ में ‘शेर सिंह बिष्ट ‘अनपढ़ कुमाउनी कविता पुरस्कार’ल पुरस्कृत करी गो । 

             वर्तमान में ऊं दिल्ली सरकारकि कुमाउनी, गढ़वाली और जौनसारी भाषा अकादमी में उपाध्यक्ष पद पर छी। दिलकि धड़कन रूकणक वजैल य महान कलाकारक आज 13 जून, 2020 हुं निधन है गो । 
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ललित  तुलेरा 
लाहुर घाटी,  बागेश्वर

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