कुमाउनी संस्मरण : कां बटी कां पुज्यूं


गौरीदत्त ओझा
पीलीकोठी, हल्द्वानी
मो.-9756082461 
मेरो जनम पिथौरागढ़ जिला कि तहसील डीडीहाट में स्थित एक गौं कफलौली (ओझा मल्ला) में बौज्यू श्री बालादत्त और इज श्रीमती नंदा देवी घर में 9 अक्टूबर 1934 में भ्यो छियो। बौज्यू लोग सात भाई छिया। म्यार बौज्यू का परिवार में हम छै भाई और एक बैनि छी।

हमारा बौज्यू ले नियमित पढ़ाई दर्जा चार तक करीयकि भै। लेकिन उनले घर में संस्कृत, हिंदी तथा अंग्रेजी की पढ़ाई ले स्वाध्याय करि बेर आपुनी योग्यता बढ़ा बेर प्रथम विश्वयु( में असैनिक कलर्क बनि बेर रक्षा मंत्रालय में सेवा आरंभ करीछ। उन वारंट आफीसर बना बेर विदेश सेवा में भेजी गया। ईरान, ईराक और मध्य एशिया का अन्य देशन में उनले आपुनी सेवा दीछ। द्वितीय विश्व युद्ध तक उनले बरमा में अपनी सेवा दीछ।
घर आई बाद एक नयो मकान सिंगाली में बनाछ और दीदी को कन्यादान ले सम्पन्न कराछ। खेती-पाती हालत ले के खास नी भै। वी बखत सरकारी डाकघर अस्कोट में छियो, उनरा प्र्रयास ले 1945 में सिंगाली में शाखा डाकघर खुलो और ऊं पैंला ब्रांच पोस्ट मास्टर बनी। मैंले 1946 में सिंगाली प्राइमरी स्कूल बै दर्जा चार पास करि बेर मिडिल स्कूल गर्खा में पांच में प्रवेश ल्हीछ। गरखा को इस्कूल सिंगाली है सात किलोमीटर दूर छ। दर्जा सात करी बाद 1949 में श्री नारायण हायर सेकण्डरी स्कूल नारायण नगर अस्कोट में कक्षा 8 में प्रवेश ल्ही और वर्ष 1952 में हाई स्कूल परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण भयूं। वी बाद इंटर पिथौरागढ़ में छ्यू। मैं एडमिशन नैं ली सक्यूं। हाईस्कूल पास करि बेर मैंले घर मेंई एक नानि नानि दुकान खोल दीछ। 10 मार्च, 1953 हुं दुकान वास्ते सामान खरीदना लिजिया पिथौरागढ़ गयूं। वां जाबेर मैंकन मालुम पड़ौ कि दिनांक 11 मार्च का दिन फौज कि भरती हुनेर छ। मैं 11 मार्च का दिन भर्ती का लिजिया ठाड़ है गयूं। करीब डेड़ हजार लौंड लाइन में हुन्याला। दिन भरि कि भाग दौड़ बाद ब्याल तक मात्र 50 युवक उपयुक्त पाई गया। उन पचास युवकन में मैंले एक छियूं। 12 मार्च का दिन हम सबन को मेडिकल जांच करी गै। उनन में 10 युवक असफल रई। 40 युवकों मध्ये 30 युवक कुमाऊँ रेजिमंेट रानीखेत का वास्ता चुनी गयां और शेष 10 युवक ई.एम.ई. सेंटर सिकन्दराबाद का लिजिया भर्ती छिया।
दिनांक 12 मार्च कि ब्याल कुमाऊँ रेजीमेंट का वास्ता भर्ती 30 युवकन 5 रूपांया अग्रिम तथा एक-एक कम्बल दिई ग्यो। चूंकि 30 युवकन का बैच में मैं एक मात्र मैट्रिक पास छियूं। अस्तु मूवमेंट आर्डर तथा बस पास म्यारा नामो को बनायूं छ्यू। भर्ती अधिकारी ले हम सबै 30 युवकन कुमाऊं रेजीमेंट सेंटर रानीखेत में उपस्थिति दिना को आदेश दीछ। तब तक मात्र टनकपुर-पिथौरागढ़ रोड तैयार हई भई। अल्माड़ का लिजिया पैदल यात्रा करनी पड़छी। हम सबै 30 युवक नई उमंग में छियां। रात्ती पांच बाजिया पिथौरागढ़ बै रवाना भयां। ब्याल गंगोलीहाट पुज्यां, एक झोपड़ीनुमा होटल में रूनकि व्यवस्था त है गैछी लेकिन खानकि के ले व्यवस्था नी भै। फिर दुकानदारल चावल-दाल आदि सामान खरीद बेर हम सबै जनन खिचड़ी खिला दीछ। 14 मार्च करीब 4 बाजी अल्मोड़ा पुज्यां और वां बठे बस में बैठ बेर 6ः30 तक रानीखेत पुज्यां। बस है उतरी बाद करीब एक डेड़ किमी. पैदल चलि बेर कुमाऊँ रेजीमेंट सेंटर में उपस्थिति दीछ।
करीब एक महिना बाद हमरि ट्रेनिंग शुरू भै। एक वर्ष कि टेªनिंग बाद हम सब लोगनकि पोस्टिंग 14 कुमाऊँ रेजिमेंट में भई छ। वी बखत यानी मार्च 1954 में 14 कुमाऊँ अमृतसर गोबिन्दगढ़ किला में छी। 14 कुमाऊँ में रहते हुए मैं बी कम्पनी में भेजी गयूं। कम्पनी में ले मैं एकमात्र मैट्रिकुलेट छियूं। कंपनी में कलर्क नि हुना ले मेरी ड्यूटी औफिस में लगा दीछ। कंपनी कमांडर मेजर नकवी साहब छिया। उनले बड़ प्रेमले कार्यालय को काम सिखाछ और अल्प समय में कार्यालय को कामचलाऊ ज्ञान ले प्राप्त है गिछयो। कार्यालय में काम करनाका कारण रातकि ड्यूटि तथा अन्य कामन बठे मुक्ति ले है गैछी। अमृतसर में करीब तीन महैण बाद 14 कुमाऊँ, जम्मू-कश्मीर का रजौरी क्षेत्र का कैरी मार्ग नामक स्थान पर तैनात करी गै। बटालियन को कार्यक्षेत्र लगभग पंद्रह किमी. का रेडियस में फैल्यू छियो। यद्यपि 14 कुमाऊँ में मेरो काम ठीक-ठाक चल्यूक छियो लेकिन पढ़न लेखनकि कोई सुविधा नीछी। भाग्यवश इंटलीजेंट कोर में स्थानान्तरण वास्ता मांग आगै। मैंले तुरंत उक्त कोर में जानक आवेदन भेजि दी और चुनाव ले है गिछयो। इंटलीजेंट स्कूल और सेंटर पूना में 16 हप्तकि ट्रेनिंग बाद मेरी पोस्टिंग 19 डिवीजन इंटलीजेंट सेक्शन श्रीनगर (जम्मू एवं कश्मीर) में भैछ। इंटलीजेंट में सिविल ड्रैस पैरि बेर आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी निभूनि पड़छी। ये काम में पढ़न-लिखना ले पर्याप्त अवसर मिल जानेर भयो। इंटलीजेंस कोर में रहते हुए मैंले अगस्त 1956 में यूपी बोर्ड द्वारा सम्पन्न हुनेर इंटर परीक्षा को फार्म भरि दी। नवम्बर दिसम्बर में वार्षिक अवकाश जान पर द्वि वर्ष को अवकश इकट्ठा जानेर भयो। मैं दिसम्बर 1956 में चार महिना की छुट्टी स्वीकृत करा बेर घर गयूं। घर जाई बाद मैंले आपूनो निवास ले विद्यालय का नजदीक बनाछ। मार्च/ अप्रैल 1957 कि परीक्षा सम्पन्न हई बाद मैं वापस यूनिट में पुज्यूं। वांका अधिकारी ले मैंस ए.ई.सी. में यू.ई. आई. कोर्स करना लिजिया पचमढ़ी (म.प्र.) भेज दीछ। 14 सप्ताह कि ट्रेनिंग बाद वापस श्रीनगर गयूं। चूंकि पचमढ़ी टेªनिंग का दौरान मैंले ए.ई.सी. हवलदार बननकि धें भेजि छियो। शिमला ;हि.प्र.द्ध में फाइनल साक्षात्कार बाद ट्रान्सफरी कोर्स का लिजिया मेरो चयन है गिछयो। अक्टूबर 1957 में मैंले आपुनी उपस्थिति उक्त कोर्स का लिजिया ए.ई.सी. टेªनिंग कालेज एवं सेंटर पचमढ़ी में दीछ। 16 हप्ताकि ट्रेनिंग बाद मेरो स्थानान्तरण ले कोर्स कि आरम्भिक तिथि बठे ए.ई.सी. हवलदार गु्रप बी में है गैछि। ए.ई.सी. हवलदार बनी बाद मेरी पैंलि नियुक्ति 58 गोरखा रेजिमेंट सेंटर देहरादून भैछ। देहरादून में सेवारत रहते हुए मैंले 1962 में आगरा विश्वविद्यालय बठे बी.ए.पास करि छियो। संभवतः ए.ई.सी. में मेरो स्थानान्तरण म्यारा जीवन को एक महत्वपूर्ण मोड़ छियो। वां जाई बाद मैंकें अपुनो ख्वाब पूरो करनाको अवसर प्राप्त भ्योछ।



तीन वर्ष कि सेवा बाद मेरो स्थानान्तरण अति दुर्गम क्षेत्र 3 डिब सिगनल रेजिमेंट लेह ;जम्मू एण्ड कश्मीरद्ध भ्योछियो। संभवतः लेहकि आबोहवा मैंकि धें उपयुक्त नी छी। एक रात अचानक मेरी तबियत खराब है गेछि। खूनकि उल्टी हुनाले पूरो शरीर पीलो पड़ि गिछयो। स्वांस लिनो ले अत्यन्त कठिन हयूं भ्यो। रात में मैं मिलिट्री अस्पताल लेह भेजी गयूं। दुसरा दिन मैंस अस्पताल वालानले हवाई जहाज द्वारा चंडीगढ़ मिलिट्री अस्पताल में भेजी दीछ। तीन महिनान को इलाज बाद मैंकन एक वर्ष लिजिया कैटेगरी सी बनाई गयो। सेना में जवान या अधिकारियों क लिजीया चार मेडिकल कि कैटेगरी बनी छन। कैटेगरी ए-सब जगह और सब कामन में फिट। कैटेगरी बी- कुछ विशेष कामन लिजिया अपूर्ण फिट। कैटेगरी सी- हल्की ड्यूटि सम्पन्न करि सकनान, लेकिन फील्ड ड्यूटी लिजीया सर्वथा अयोग्य। कैटेगरी डी- सैनिक सेवा के लिए सर्वथा अनुपयुक्त।
कैटेगरी सी हुना का कारण अस्पताल ले मैंस फील्ड सर्विस लेह न भेज बेर एईसी ट्रेनिंग कालेज एवं सेंटर पचमढ़ी भेजि दीछ। लगभग एक महिना बाद मेरो स्थानान्तरण सिख रेजिमेंटल सेंटर मेरठ भ्यो छियो। मेरठ में सेवारत रहते हुए मैंले वर्ष 1967-68 में मेरठ विश्वविद्यालय बै एम.ए. ;इतिहासद्ध परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण करि छियो। 1968 में मेरो चुनाव ले बीएड कोर्स का लिजिया भ्यो छियो। वर्ष 1968-69 में एईसी ट्रेनिंग कालेज एवं सेंटर पचमढ़ी है सागर विश्वविद्यालय की बी.एड. परीक्षा ले उत्तीर्ण भयूं। चूंकि मैं वर्ष 1966 में पैंलि बार कैटेगरी सी भयूं। यो अवधि लगातार चार साल एक-एक साला कि लिजिया बढ़ाते गई। अंत में 1970 में मैंस उनले स्थाई कैटेगरी सी में डालि दीछ। वर्ष 1971 में कैटेगरी सी हुना का कारण पदोन्नति ले मैंकन नी मिलि सकि। अस्तु मैंले पेंशन का लिजिया प्रार्थना पत्र सबमिट करि दीछ। जून 1971 में मेरी प्रार्थनानुसार मैं घर भेजी गयूं। 1971 में ही मेरा गौं स्थित विद्यालय कैं हाईस्कूल कि मान्यता ले मिली गैछी। वी विद्यालय में प्रधानाचार्य को पद रिक्त छियो। घर जाई बाद मैंले उक्त पद का लिजिया आवेदन करि दियो। उन दिनों मान्यता प्राप्त हाई स्कूल व इंटर कालेजन में सह अध्यापकों कि नियुक्ति त प्रबंध समिति द्वारा करी जांछि लेकिन वीको अप्रूबल जिला विद्यालय निरीक्षक द्वारा हुनेर भ्यो। लेकिन प्रधानाचार्य को चुनाव मंडलीय उप शिक्षा निदेशक द्वारा नामित प्रतिनिधि द्वारा सम्पन्न करी जांछियो और मंडलीय उपशिक्षा निदेशक कि अंतिम स्वीकृति बाद नियुक्ति दी जांछी।

उपशिक्षा निदेशक कुमाऊँ मंडल नैनीताल कि अंतिम स्वीकृति बाद मेरी नियुक्ति दिनांक 21 जुलाई 1971 बढ़े प्रधानाचार्य उ.मा.विद्यालय सिंगाली ;पिथौरागढ़द्ध में भैछि। दिसम्बर 1975 में हमारा स्कूल को प्रान्तीय करण भ्यो छियो और विद्यालय में कार्यरत पूरो स्टाफ ले सरकारी सेवा में संविलियन मानी गो। प्रांतीयकरण का बाद दीर्घ ठहराव का कारण 1982 में मेरो स्थानान्तरण एक अति दुर्गम विद्यालय खेला में है गिछयो। अत्यन्त पिछड़ीना क्षेत्र हुनाले कोई ले प्रधानाचार्य वां जान नी चानेर भयो। लेकिन मैंले वी विद्यालय में पूरी निष्ठा और ईमानदारी ले कार्य आरंभ करौ। ग्रामीण लोगन का सहयोग ले गौं का पंचायत घर में द्वी अस्थाई कमरा और जोड़ बेर जूनियर कक्षाओं को संचालन आरंभ करि छियो। वी है पैंली कक्षा-6 बठे 10 तक कि पांच कक्षाओं की पढ़ाई द्वि कमरा और एक बरंडा वाला प्राथमिक विद्यालय में हयूंक भ्यो। जूनियर कक्षाओं क लिजिया अलग व्यवस्था हुना ले अब पढ़ाई ठीक ढंग ले आरंभ है सकि। इन द्वि वर्षों में गौं वालान का सहयोग ले विद्यालय भवन का लिजिया जागा चुनाव ले सम्पन्न करा बेर वी जागा को पंजीकरण ले स्कूल का नाम पर सम्पन्न कराछ। विद्यालय की जागा को निर्धारण होते ही मेरी प्रोन्नति ले प्रधानाचार्य राजकीय इंटर कालेज खटीमा है गैछी। अस्तु अगस्त 1984 में मैं ले रा.इ.का. खटीमा में पदभार ग्रहण करि छियो। खेला बटि विदाई का दिन खेला आस-पास तीन ग्राम सभा का खास- खास लोग तथा विद्यालय का सबै छात्र तथा अध्यापक लोग मैंस विदा करना लिजिया तवाघाट बस  स्टेशन तक आयान। अधिकांश विद्यार्थीन आँखान आँसू छिया।
खटीमा कालेज वी बखत संभवतः कुमाऊँ को सब है ठूलो विद्यालय छियो। वी समय विद्यालय की छात्र संख्या लगभग 2000 छी। लेकिन अध्यापक संख्या मात्र 28 छी। प्रत्येक कक्षा में छात्र संख्या निर्धारित संख्या है भौत जादा छी। काफी संघर्षक दिन चरिया छी। विद्यालय कि हालत अत्यन्त दयनीय छी। विद्यालय में बिल अदायगी समय पर न हुना ले बिजली कनेक्शन ले बिजली विभाग ले काटियो भ्यो। विद्यालय में लागीना पंखा ले सही हालत में नि भ्या। चपरासी, चैकीदार आदि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारीनकि संख्या पन्द्र छी परंतु ऊं के काम नी करन्या भ्या। नियमित बंटवारा कामो को नि करयो भ्यो। करीब एक वर्ष बाद विद्यालय व्यवस्था सुचारू है सकि। अभिभावकोंन दिल खोल बेर आर्थिक मदद दीछ। लगभग साठ हजार रूपैं जामा भ्यान। वीले विद्यालय में रंग-रोगन, विद्यालय- बिजली बिल को भुगतान, पंखांे कि मरम्मत आदि काम सम्पन्न कराई बाद विद्यालय सुचारू संचालन भ्योछ।
खटीमा कालेज में सेवारत रहते हुए मैंले दिनांक 27 जनवरी बटी 31 जन, 1987 तक पांच दिवसीय नैतिक शिक्षा प्रशिक्षण करि छियो। तब उ.प्र. सरकार में श्री जे.सी. पंत प्रमुख शिक्षा सचिव छिया। उनूले आपुना कार्यकाल में शिक्षा विभागाक सबै प्रधानाचार्य एवं उच्च शिक्षाधिकारिन यो प्रशिक्षण करा छियो । यो प्रशिक्षण ले म्यारा जीवन कि एक महत्वपूर्ण उपलब्धि छी। शांतिकुंज हरिद्वार को प्रशिक्षण लीई बाद मैंले धुम्रपान, मद्यपान, पान-गुटका आदि समस्त व्यसनन है मुक्ति प्राप्ति करि छी। वां जाना है पैंली मैं आफूंस फन्ने खां प्रधानाचार्य माननेर भयूं। जै जै विद्यालयन में रयूं उनरि व्यवस्था ठीक करते रयूं। शिक्षक और अन्य कर्मचारीन को सहयोग ले मैंकन भरपूर मिल्यूक भ्यो। परीक्षाफल ले सदैव उत्कृष्ट रूनेर भ्यो। वां जाई बाद मैंले महसूस करिछ्य कि आज तक मैं एक सिद्धांत विहीन प्रधानाचार्य रयूं। वापस आई बाद एक सात्विक और पवित्र जीवन क प्रक्रिया आरंभ करीछ। प्रातः चार बाजिया उठि बेर स्नान ध्यान तथा योगादि बठे निवृत है बेर दैनिक कार्य सम्पन्न करना को अभ्यास। ये परिणाम यो भिछ कि हजारों लोगन ले धुम्रपान, मद्यपान आदि को परित्याग करि छियो। यो नियमितता म्यारा जीवन को एक आवश्यक अंग बनि गयो।
खटीमा में चार सालकि सेवा बाद मेरि बदली हल्दूचैड़ इंटर कालेज में करि दी। अगस्त 1988 में मैंले विद्यालय में प्रधानाचार्य को पदभार ग्रहण कर छियो। हल्दूचैड़ में आई बाद हल्द्वानी क्षेत्र का गायत्री परिवार का परिजन हल्दूचैड़ में एकत्रित हुन शुरू है गई। कालेज में प्रधानाचार्य आवास गायत्री उपासना को केन्द्र बनि गयो। लगभग 50 परिजन हर रविवार कालेज में आ जान्यां भ्या। शनै-शनै तैयारी करि बेर वर्ष 1989 में एक चैबीस कुंडीय गायत्री यज्ञ सम्पन्न करवाछ। मेरा साथी अध्यापक श्री नवीन चंद्र जोशी ज्यूले आपनी लगभग एक बीघा जमीन ले गायत्री शक्तिपीठ का लिजिया दान करि दीछ। एक बीघा जमीन वीका बगल में खरीदि बेर भवन निर्माण को कार्य आरंभ लै है गिछयो। यो कार्य लिजिया एक कमेटी बनाई गैछि जै को अध्यक्ष हरीशचंद्र दुर्गापाल और मैं सचिव छियूं। कार्यकर्ता ले इकट्ठा होते गई। कमेटी रजिस्टर करी बाद मेरो प्रमोशन ले है गिछयो। पदोन्नति कि साथ मेरो स्थानान्तरण मंडलीय सहायक शिक्षा निदेशक मुरादाबाद का पद पर भ्यो छियो। ये पद में मैं लगभग पौने द्वि वर्ष सेवा बाद 31 अक्टूबर 1992 में सेवा निवृत्त भयूं।
सेवा निवृति बाद वापस आपुण पैतृक गौं में गयूं और क्षेत्र का लगभग सपै विद्यालयन में जाबेर गायत्री प्रचार-प्रसार आरंभ करि छियो। सन् 2000 बटे 2005 तक 5 वर्ष गायत्री शक्तिपीठ में समयदानी बनि बेर रयूं। यसै बीच शक्तिपीठ चल-अचल संपत्ति वेदमाता गायत्री ट्रस्ट शांतिकुंज हरिद्वार कें सौंप बेर वापस अपुनो गौं गयूं और इलाक में रहते हुए गायत्री प्रचार-प्रसार तथा समाज सेवा में समय व्यतीत करि छियो। ये बीच एक मारूती वैन खरीद बेर लगभग छै साल तक शांतिकंुज साहित्य को प्रचार-प्रसार ले करिछ और अखण्ड ज्योति व युग निर्माण योजना  नामकि मासिक पत्रिकान वार्षिक ग्राहक बनायान।



अपुना जीवन में घटित घटनान का आधार पर मैं यो कून चांछंू कि जो तुम बनन चांछा वीकि तैं सदैव प्रयत्नशील रून चाईछ। वी अनुसार परिस्थिति ले बनते जांछि। मेरि दिली इच्छा छी कि मैं उच्च शिक्षा ग्रहण करि बेर शिक्षा क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य करि सकूं। घरकि परिस्थिति अनुकूल न हुन पर लै मैं सदैव प्रयत्नशील रयूं। विषम परिस्थितियों में लै कभै पढ़ाई है विमुख नि भयूं। परिणाम स्वरूप सेना में विभिन्न शहरों और क्षेत्र में सेवा करते हुए एम.ए., बी.एड. करि सक्यूं और उसै विद्यालय में प्रधानाचार्य बन्यूं, जै में मैंल हाईस्कूल पास करी। • 

पहरूकुमाउनी मासिक पत्रिका बटी साभार । 

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