कुमाउनी उपन्यास अंश : कौशल्या
प्रस्तुति- ललित तुलेरा
उपन्यासकार -
गिरीश चंद्र बिष्ट ‘ हँसमुख’
रोहिणी, दिल्ली
मो.-9818273327
(1).
चैमासा्क दिन। बादवोंक घड़घड़ाट। खेतों और बा्ड़-ख्वाड़ां में भूड़भाड़, स्याप-किड़ां डर अलग। राताक नौ बाजि रई, पिरमू आइ लै घर नि ऐ रय। स्याव-फ्यून बासणई, कुकुर हुकणई, पिरमूवकि स्यैणि आलु-मुव क थेचू में लूण-मर्च डाइ बेर ढटवाणि जस बणै बेर अपण कुड़िक चाखा्क कुण में एक लम्फू जगै बेर भैरै, अपण ननाक बाज्यूक इंतजार में। पिरमू दिनाक बार बाजी बटि घट मडू पिसू हैं जैरौ। पिरमुवा क तीन ना्न ;एक चेहड़ि जो दस-इग्यार वर्षकि छ और द्वि चोहाड़, जो चेहड़ि है ज्या्ठ छीद्ध चाखक एक भिड़ में आड़ लि बेर लमतम है रई।
अचानक यसि अवाज है भड़- भड़ भड़ भड़.... यस लागौ जसै क्वे बाड़- ख्वाड़ांक भिड़ उधर गो हुनल। पिरमुवकि स्यैणि भगाल भ्यार तेदरि क द्वार खोलि बेर देखौ तो वीकें अन्यारपट रात में के अंदाज नि आ्य। बर्ख बंद है गेछी, जोर-जोर कि हा्व चल रछी। पिरमुवाक कुड़िक काख बटि पिरमुवक ठुल दा्द लै अपण कुड़ि भितेर पसरी हा्य। भागुलिल देखौ कि वीकि जिठाण भ्यार झाड़ि फिरणाक लिजी अपण खव में ऐ रै और वीक ज्याठ ज्यू मा्थ बै वीक दगड़ करणई।
भागुलि- ओ दिदी! है गे खवाई-पिवाई?
पुष्पा ;जिठाणद्ध- होय खै है, किलै तुमूल नि खायो आइ?
भागुलि- ना! किलै कति बै, ऊं घट जैराछी, आदु रात है गे, पत्त नैं कथां फतोड़ी रई जाणि। पिसियक बुर नि छ, साग पकै बेर भै रयूं। ना्न भुक्कै से गई।
पुष्पा- किलै पैंच दिणा्क लिजी हमूल कधिनै मना करौछ? भुक्कै से गई कूणछै, हमूकें भल लागलौ जब त्या्र ना्न भुक्कै से जाला? जाग! मैं एक ब्या्ल पिसी लिबेर ऊणयूं, नना कें खवै दे।
पुष्पा एक फरू ब्या्ल में ग्यूंक पिसी ल्यै बेर भागुलिक भितेर धरि जैं और कें-‘‘आइंदा यस झन करिए, या्स अटक-बिटक में हम का्म नि ऊंला पैं गौं वा्ल आला के? पका नना कें खवा, प्रेम लै ऊणी हुनाल। द्यो मारी कें ओड्यारों पर लुकि हुनाल, मैं जाणयूं हाँ....।’’
‘‘ठीक छु दिदी.... तुम जी रया’’ भागुलिल जबाब दे।
भागुलि फटाफट पिसी ओलि बेर अपण नना कें उठें और उना्र अघिल र्वाट-साग पसक दीं। ना्नतिन खाहणि खाणै राछी तालै पिरमू द्वारों कें ठा्ड़ है बेर-
ओ भगा! द्वार खोल धैं। भागुलि द्वार खोलैं और कें- आज अधरात है गे, घट में जादा भीड़ छी के? चान- चानै म्या्र आँख लाल और म्यार फिकरल बिडौव है गई।
लै यो पिसियक कट्टाक माथ बटि बोरी हटा धें, के पिसी ले भिज गो भलै? पिरमुवल कौ।
ना ना पिसियक कट्ट क्वरै छ, ल्याओ मैं तुमूकें बिसै द्यूंल। यो कै बेर भागुलि पिसियक कट्ट भितेर रस्या में धरैं और कें- हाथ-खुट ध्वै लियो, तौ बाल्टी में पाणि और लोटी धर राखी, मैं साग गरम करनू फटाफट खाहणि खै ल्यला, भूक लै रै हुनेलि।
पिरमू- भागा! मैं भिजि बेर फुतफुत है रयूं, तू पैंली मणि चहा बणा, मैं लुकुड़ बदइ बेर ऊनू।
भागुलि चहा बणै बेर ल्यें, पिरमू लुकुड़ बदल बेर ऐ जां। तब उ भागुलि हैं पुछूं- किलै यो ग्यूं पिसी कां बटि ल्याछै, पैंच करछौ के? अगर पैंच करौछ तो वापस कां बटि करली, मैं त मडू पिसि बेर ल्यै रयूं।
भागुलिल सारि बात पिरमू कें बताइ और कै- तुम अब खा्ण खै लियो, रात है गे।
खाण-पिण खै बेर पिरमू और वीक नानतिन सब से जानी।
पिरमू- ओ भगा! से गछै के? नीन ऐ गे छ? मणि बात करनी धैं, जादा थकि बेर लै नीन गायब है जंै, अब पत्त नैं नीन कथां भाजि गे?
से जाओ, जोगिया बाज्य! रात्ती काम पर जाला, तबै त के कमाला। आज चार दिन है गई, तुम काम पर नि जाणया। ठेकदार सब डबल काटि द्यल, पैं घरक खर्च कसिक चलल? भागुलिल कौ।
पिरमू- भगा! मैं यो सोचणयूं जां चार दिन छुट्टी है गे तो एक दिन और सही, मैं आज रात्ती पधान ज्यूक घर गयूं। ऊं कूणाछी- अरे प्रेम! आजकल परिवार नियोजन वा्ल ऐ रई तो तुम लै परिवार नियोजन अपनाओ या तुम आपरेशन करै लियो या घरवाइक आपरेशन कराओ। तो मैं सोचणयूं तीन ना्न भौत छीं, मैं अपण आॅपरेशन करै लिनू।
भागुलि- अपण किलै, म्यर आपरेशन कराओ।
पिरमू- चल ठीक छ भगा। भोवकि भोवै देखी जालि, आ यथां आ धें, मणि म्यार खुटां कें च्याप धैं, खवाइ जसि है रै।
भागुलि- जागो झिट घड़ि, मैं एक लोटी पाणि तुमार सिराण धर दिनू, तुमूकें अल्लै तीस लै जालि।
जरा देर बाद द्विए स्यैणि-मैंस से जानी, थकी-मादी शरीर, घोर नीन में पिरमू घुराट-भुराट करण लागौ।
ओ जोगिया बाज्यू! मणि घुराट कम करो, नानतिन डरन है जानी। भागुलिल पिरमू कें झकोइ बेर कौ।
पिरमू एकदम चड़म कै ठा्ड़ हौं और भागुलि कें अवाज द्यूं, ओ भगा! उ पाणिक लोटी कां धर राखी त्वील? जरा पाणि दे धें। किलै धोंपण किलै रौछा? क्वे स्वैणै रछिया के? भागुलि पिरमू कें पाणिक लोटी वीक हाथ में पकड़ाते हुए वीथें पुछें।
पिरमू ;पाणि घटकाते हुएद्ध- ओम! हे भगवान भल करिया कून-कूनै फिर से जां और भागुलि सानीसानि अपण तेदरि क द्वार खोलैं, चाड़-माड़ बासण फै जानी। भागुलि एक पाणिक गागर ख्वार में धरि बेर धा्र कें पाणि ल्यू हैं द्वार यकार करि बेर न्है जैं। जरा देर में पाणि ल्हि बेर जस्सै घर पुजैं तो पिरमू स्वैणै रूं और जोर-जोरल ह्वां.... ह्वां करूं। भागुलि डरन है जें, नानतिन लै चितै जानी और पिरमुवाक होस देख बेर सब घबड़ै जानी। भागुलि पाणिक गागर गोसल में धरैं और पिरमू कें झकोवैं- किलै के हौ जोगिया बाज्यू? के स्वैण देखौछ या क्वे और बात छ? मैं मलबाखइ हरियाक बाज्यू कें बलै ल्यूनू, मैंकणि लागणौ बेई रात तुमूकें कें झपट-हपट नि लै गइ। ऊं मणि मास- चाङव परखि द्याल।
पिरमू- अरे पगली यसि के बात न्हैं, मैं पर क्वे नि लै रय, मैं स्वैणै रौछी। मैंल भौतै नक स्वैण देखौ। रात्ती पर देखी स्वैण सांचि हूं कूनी, बांकि भगवान जाणौ भगा।
भागुलि- किलै यस के स्वैण देखौ तुमूल जो यतुक घबड़ै रौछा?
पिरमू- भल स्वैण न्हैं भगा! म्यर मन अब डरन है गो।
भागुलि- बताओ त सही, यस के देखो तुमूल?
पिरमू- तू सुणली भगा! तू लै परेशान है जाली, तू रहण दे, उसी लै कूनी बल कि रात्ती पर देखी स्वैण घर वालों कें नि बताई जा्न। पैंली गोरूबछां कान में चुपचाप कै ऊनी बल, पैं घर वालां कें बतूनी बल। भागुलिक आतुरता और बड़ि गे कि आँखिर के स्वैण देख हुनौल यनूल।
जाओ पैं जाओ गोठ जै बेर गोरूक कान में कै आओ, पंै मैंकें बताओ।
पिरमू गोरूबाछांक गोठ जां और गोरूक पुछड़ में हाथ धरूं, वीक पुठ मिनू पंै वीक गव में कनून-कनूनै वीक कान पर गिच लगै बेर कूं- गोधुली तू गोमाता छै तू दैण है जै, दबड़-दबड़ लैण है जै, यो म्यर अल-बल स्वैण लिजै, म्यार घर में शांति दिजै। वीक बाद पिरमू गोधुलिक कान में अपण पुर स्वैण वीकें सुणै द्यूं। वीक बाद गोरूक पुछड़ पकड़ि बेर कूं- सत्ती गौंत सत्ती गौंत, दूर कर दे छल-छित्तर छौंत’’ गोरू गौंत द्यू और पिरमू हाथ में गौंताक छिट अपण ख्वर-बदन में छड़ि ल्यूं और भितेर ऐ जां।
भागुलि- ऐ गछा, लियो चहा पि लियो, मैंल चहा बणै है।
पिरमू चहाक गिलास हाथ में लिबेर सोचूं कि भागुलि जिद्दी छ, यो बगैर स्वैण सुणिए क्वे काम नि करलि, उ चहा घुटुक मारनै जाणौ और भागुली तरफ चानै जाणौ। वीक भावनाओं कें समझणौ, वीकि आतुरता कें परखणौ, यो आवश्यक समझ बेर उ अपण गिच बटि वाच निकावणकि कोशिश करूं और उ स्वैण कें याद करि बेर भावुक है जां। अपण आँखां आँसु दबूनै वीक गव भरी जां, गिचम बटि बाच निकालते उ भागुलि थें कूं-
भौतै भयानक स्वैण छी भगा। सुणि बेर त्यर दिमाक लै काम नि करौ। फिर लै सुणण चांछै तो सुण। स्वैणा में मैं आपण बाबुक सराद करणयूं। सराद भ्यार खव में हुणौ। खव में एक उखव छ जमें एक मुसव बगैर सहारै ठा्ड़ है रौ। अचानक उ उखव बटि पाणि क धार निकवण फै जैं और सा्र खव में पाणि भरी जां। हमा्र दस-बार पितर अगास बटि हमा्र खव में ऐबेर उ पाणि में उछयाव जसि मारणई, सरादाक निमतल जो लै पकवान बणै राखौ, पितर उ पिंड-पातइ कैं उल्ट-पुल्ट करणई। यतुकै में दुनी भरिक का्व काँव-काँव करि बेर सब पकवान जुठै दिनी। तब उ मुसव जो उखव में बिना सहारै ठा्ड़ छी, हा्व में बड़ाण फैजां, तब डरा्क मारी का्व सब दक्षिण दिशा हैं भाजण फै जानी। हम सब तुलै, मैंलै, नानतिन, गौंवाल, गोरू-बाछ, भैंस, बल्द हमा्र पछिल-पछिल भाजते-भाजते वड़ाण फै जानी परंतु हमरि चेलि कौशि ;कौशल्याद्ध एक गोरूक किल जो खव में घैंटी छ, वी में बदि जैं। कौशि उड़ि नि सकनि और हमूकें धात लगें, पर वीकि अवाज हमू तक नि पुजनि। मैं वापस ऊणकि कोशिश करनू लेकिन ऊं का्व जनार पछिल हम भाजणयूं, मैं पर जै लाग जानी, अपण दगाड़ खदेड़ लि जानी। मैं जतुक दूर जाणयूं मेरि नजर बस कौशि पर छ, कौशि अपण दांतोंल, उ ज्यौड़ जैमें उ बादी छ काटणकि कोशिश करणै लेकिन बेबस छ। डड़ा-डाड़ रोवा-रोव करणै, परंतु वीकि डाड़ सुणणी अब क्वे न्हैती। भगा! अगर यो स्वैण सांच है गोय तो मेरि कौशि कैक सहारल ज्यून रौलि।’’ यतुक कै बेर पिरमू जोर जोरल डाड़ मारण लागौ। दगाड़ में भगा और वीक ना्न लै डाड़ मारण फै गा्य। परवार में डड़ा-डाड़ रोवा-रोव सुणि बेर पार बटि पिरमुवक दा्द और बौजि पिरमुवाक कुड़ि तरफ दौड़ि आई। रूणक कारण पुछि बेर उनूकें समझा। अरे पागल है गछा के? अल्ल-बल्ल स्वैण देखि बेर यतुक हल्ल-गुल्ल, किलै को मर गो तुमर? नादानीकि लै क्वे हद हैं, चुप करो। उठो अपण-अपण काम पर जाओ। ननाकें इस्कूल भेजो, जा दुल्हैणी ननाक लिजी कल्यो बणा। पिरमुवा जा ना-धो, काम पर जा। बेकूफों सींग जै के हुनी, हिट परिए इजा ;अपणि स्यैणि हैं इशार करते हुएद्ध तू लै ननाकि इस्कूलकि तैयारी कर। मैं लै काम पर जाणकि तैयारी करनू। सब अपण-अपण दिनचर्या में लै जानी।
(2).
पिरमुवाक द्वि लोंड अपण गोंक ननाक दगाड़ इस्कूल जाणई। पिरमुवकि स्यैणि घाक जाव हाथ में और कमर में दातुल खोसि बेर धुर ;जंगलद्ध जाणकि तैयारी में छ। अपणि चेलि कौशि ;कौशल्याद्ध कें आवाज दिणै।
ओ कौशी! त्या्र बा्ब क्वे कामल पंचैत घर जै रई। मैं धुर जाणयूं, तू जरा देर में गोरूबछां कंे बण ;गोचरद्ध हकै ओं हां। और सुण त्यार द्वी दा्द जब इस्कूल बटि आला तू उनूकें खाहणि गरम करि बेर दि दिए और तू लै खै लिए।
ठीक छ इजा! कौशिल ल जबाब दे। लगभग आदुक घंट बाद कौशि अपण कुड़िक द्वार ढकैं, द्वारों में साङव लगै बेर गोठ जैं, एक-एक कै गोरू, बाछा, बल्दों कें खोलि बेर भ्यार खव में ल्यंै और पौइयक सिकड़ ;गोरूं कें हकूणाक लिजी एक लाकड़ या डंडद्ध हाथ में लिबेर गोरू बाछां कें तलिकै खदेड़ैं और फिर भैंस कें भ्यार खव में एक किल में बादि बेर गोरू-बाछां पछिल बण हैं बा्ट लै जें।
होय-होय कूनै उ दस-इग्यार बर्षकि चेलि देखण में काइ-सुवांइ पर नैन-नक्श भौतै सुंदर, चंचल सुभाव धमाधम बण हैं बा्ट लै रै। मनमनै एक पहाड़ि गीत - ‘‘छट्ट छोड़ी टप्प टीपी, हो नरैण यो रूमाला कैकी बिद बांजा जङव में’’ गुनगुनानै कौशि बण ;गोचरद्ध पुजि जैं। जानवरों कैं मणि अघिल कै हकै बेर कौशि एक तप्पड़ में बोरी बिछै और आरामल उ बोरी में भै जें।
अचानक चारों ओर बटि अगास में बादल देखां है जानी। बिजली चमकण फैजें, हा्व चलण फैजें, घनघोर घटा अगास में देखां है जें, यस लागूं जस कैं न कैं बज्रपात हुणी छ।
कौशिक मन में ना्क-ना्क विचार ऊनी। अपण बाबूक स्वैण देखण और डड़ाडाड़ करण वीक मन में घर कर दिनी। वील देखौ कि पारा फाट बटि द्योक तहौड़ शुरू है गो। मणि-मणि कै द्यो स्वैर वीक सामणी देखां है जानी। तब कौशि उ बोरी उठें और वीक ट्वौप बणै बेर अपण ख्वर में ढकण फैजें। अब उ अपण घर जाणा्क लिजी अघिल खुट बढ़ैं और फटाफट माथ धार में ऐ बेर सड़क-सड़कै अपण घर जा्ण शुरू करैं लेकिन जोरकि बर्ख वीकें एक ओड्यार भितेर जाणा्क लिजी मजबूर कर दीं। लगभग द्वी घंट तक लगातार मूसलाधार बारिश हुणाक वील कौशि कें उ ओड्यार भितेर नीन ऐ जें।
अचानक जोरकि बिजली चमकी और एक भयंकर अवाज लगभग बीस सेकिंड तक घड़घड़ाट, यस लागणय जस आसमान फटि गो हुनल। द्योक तहाड़ और जोर पकड़नी, एकदम बादल फटण जसकि अवाजल कौशिक नीन खुल गे और उ डरा्क मारी घबराण फै गे, सोचणै मैं अब कथां जूं। अन्यार पट, द्योक सुसाट-मिसाट देखि बेर कौशि थरथरान है गे। कूण लागी- हे भगवान मैं अब घर कसिक जूं। सड़क पाणील भरी गे। कें यौ ओड्यार माथ बटि उधर गोय तो मैं लै यैं च्यापी जूंल। यो सोचि बेर उ ओड्यार बटि भ्यार ऐ जें और देखैं कि वीक गौं जो पहाड़क तलहटी में बसी छ, उ पहाड़ धँस बेर तलि ऐगो, चारों ओर पाणी पाणि। उ डराक मारी दुबारा उई ओड्यार भितेर न्है जें। सोचें, अब जे लै हो्ल देखी जालि। हिम्मत करैं और वी भितेर ठा्ड़ है जैं। बादल फिर गरजनी, बारिश जोर पकड़ लीं। देखते-देखते उ पहाड़ जै में पांच-छै गौं बसी छी, बगि बेर लगभग दस मील दूर खाई में समै जानी। या्स प्रलय पहाड़ों में युग-युगों बटि ऊनै रूनी और सैकड़ों घर बरबाद है जानी। हजारों इंसान या्स प्रलय में दबि बेर मरि जानी।
अचानक तेज रफ्तारल हा्व चली और सब बादल छट जानी। सूरज अपणि चमचमाट घाम लिबेर प्रकट है जानी। कौशि ओड्यार बटि भ्यार ऐं और दूर बटि अपण गों तरफ नजर डालैं। उकणि अपण गों के बांकि गों लै अदेखां है गा्य। उ अपण आँखां कें मिनै, सोचैं म्या्र आँखां में बादव पड़ि गो, के? विकणि के पत्त वीक घरबार, इज-बा्ब, दा्द-भुलि सब धरती मां कि काखि में समै गई। उ यथां-उथां नरज दौड़ें कि कें वीक आँखां में के कमी ऐ गे या वीक दिमाग शून्य है गो। सोचनै- सोचनै कौशि अवाक रै जें, सब होश- हवास खतम है जें और उ जोर-जोरल डाड़ मारैं, वीकि डाड़ सुणनी लै अब क्वे न्हैं। वीक आँसु बतूनी कि पीड़ कसि छ। रूनै-रूनै कौशि अब हँसण लागी, वीक मानसिक पीड़ल वीकें कौशि बटी कौशि बौया बणै है। जरा देर में वीक गोरू-बा्छ वीक नजीक ऐ जानी और अमा... अमा... कि रट लगै दिनी। कौशि एक गोरू क कान में हाथ लगैं और हँसण शुरू कर दीं। गोरू-बाछ उ धार बटि आपणि नजर दौडूनी और सोचनी कि हम आज गलत बा्ट में कसिक ऐ गा्य। कौशि गोरू-बांछां हें कैं-
तुमार गुसें मर गई, अब तुम लै यो भ्योव में घुरी बेर मर जाओ नतर तुमूकें स्याव-कुकुर ज्यूनै उचेड़ि द्याल। यो सुणि बेर एक गोरू रतुलिक आँख में लै आँसु देखि बेर कौशि फिर डाड़ मारण लागी और गोरू-बाछां कें उतकें छोड़ि बेर कें दुहार गोंक तरफ भाजण लागी। वालपलांक घरों बटि जुठ पिठ मांग बेर खा्ण लागी। ‘मरछ्या के नि करछ्या’ वालि कहावत यतकें चरितार्थ है जें। वा्ल गों बटि पा्ल गौं, वाल कुड़ि बटि पा्ल कुड़ि जां बटि जे मिल गोय। अब वीक जीवन में के उद्देश्य नि रै गोय। केवल भूख मिटूण और यथां बटि उथां डोई रूण।
एक दिन एक सज्जन मैंसकि वी पर नजर पड़ी, उ मैंस कौशि तरफ इशार करि बेर कूं- आओ बेटा इधर आओ, क्या नाम है तेरा? कहां से आई हो? पहले इस गांव में कभी नहीं देखा तुमको, कौन से गांव के हो? क्या नाम है तुम्हारा? उ मैंसल कतुक सवाल कर दी, पर कौशिल एक जबाब नि दी और चुपचाप उ मैंसाक तरफ चै रै जसै उ मैंस कें कौशि पन्यारनै। उ मैंसल फिर पुछौ- बता चेली तू कां बै ऐ रछै और कां जाणछै? मैंकणि बाब जस समझ और बता, कें तू भबरी रछै या तू अपण मै-बाब है बिछुड़ गछै, तू बता, मैं तूकणि त्यार घर पुजै द्यूंल। अब ब्याव हुणी छ, मैं टैम पार तुकणि त्यार घर पुजै द्यूंल। कौशि जोर-जोरल डाड़ मारण लागी और उ मैंसाक खुटां मुनइ धरि बेर लम्त है गे। उ मैंसल सड़कम बटि अपणि स्यैणि कें धात लगै और आपणि स्यैणि कें तलिकै बुला। जरा देर में वीकि स्यैणि अपण एक पांच वर्षक भौक हाथ पकड़ि बेर उतकें ऐ गे जतकें उ मैंस कौशि दगाड़ बातचीत करणौछी। उ मैंसल अपणि स्यैणि हैं कौ- ‘‘तू यौ भाऊ कें लै अपण दगाड़ घर लि जा, जरा देर में मैं लै घर ऐ जूंल, तब तक तू यकणि के खा्ण- पिणी चीज दी दिए। यो पत्त नैं कैकि चेलि छ, कांकि छ, मैं यैक पत्त लगै बेर भोव यैक घर पुजै द्यूंल। यतुक कै बेर उ मैंस एक दुहार गौं में एक भैंस खरीदणाक लिजी न्है जां।
उ मैंसकि घरवालि कौशि कें लिबेर अपण घर ऐ जैं और कौशि कंे पाणि और चहा पेवें, चहा दगा्ड़ कुछ बिस्कुट दीं। कौशि द्वि हाथोंल बिस्कुट उठै बेर खाणै, चहा पिणै यस लागणौ जसी कतुक दिन बटि भुखि हुनेलि, उ स्यैणि कौशि हैं प्यारल पुछणै- खा चेली खा, आइ ल्यूं बिस्कुट? कौशि ख्वर हिलै बेर संकेत दीं कि होय आइ दी दियो। उ स्यैणि एक पैकिट बिस्कुट आइ खोल बेर वीकें दि दीं। कौशि पचापच उ बिस्कुटां कैं लै खै लीं। वीक बाद उ स्यैणिल कौशि हैं पुछौ- चेली के नाम छ त्यर बबा?
कौशि नि बलानि और के जबाब नि दिनि। उ स्यैणि ल फिर कौ- चल के बात नंै, तू यो म्यर भौ दगाड़ खेल, मैं ब्याव कि खा्ण-पिणकि तैयारी करनू। यतुक कै बेर उ स्यैणि अपण भितरक कम्र में जें और अलमारि में धरी एक पुन्तुरि निकाल बेर वीकें खोलैं, वीमें बटि एक झगुल निकाइ बेर कौशि सामणि जें और वीहें कैं- ले चेली यो अङपोछ और यो झगुल पकड़। गोसल में जै बेर नै ले और यो झगुल बदइ ले। कौशि हाथ में अङपोछ और झगुल ल्हिबेर उ स्यैणिक तरफ चै रें लेकिन भितेर गोसल में नि जानि। तब उ स्यैणि कौशिक ख्वर पलासैं और हाथ पकड़ि बेर गोसल में लि जें। वीक लुकुड़ खोलि बेर वीकें नवैं-धोवंै। वीक ख्वार में तेल खिति बेर ख्वर कटोरैं। कांइल में जूं-लिखा पूड़ देखि बेर हैरान है जें और भ्यार बरंड में वीक ख्वर कटोरण फै जें। कौशिक ख्वार में ठंडी पड़ जें। उ भिड़ाक सहार लधरि जें। जरा देर में कौशि कें नीन ऐ जें। उ स्यैणि कौशि कंे उठै बेर भितेर बिछाई खाट में सेवै दीं और अपूं भ्यार ऐ बेर अपण भौ कें एक गिलास दूध पेवैं, और आपण काम पर लै जें।
ओ.... हेमा! भ्यार आ, देख मैं के ल्यै रयूं। हेमा समझि गे कि बेई रात ऊं भैंस खरीदणकि बात करण छी, शायद भैंस ल्यै गा हुनाल। उ एकदम भ्यार खव में ऐं और देखैं वीक घरवा्व एक लैण भैंस दगाड़ में एक थोरि ल्यै बेर भ्यार खव में ठा्ड़ है रौ। तब उ खुशी जाहिर करनै कंे-लि आछा हो, भल करौ तुमूल। पंैल भेदक छ या....।
पैंल भेदक छ होय, वीक मंैसल कौ। ले यकें गोठ बादि दे, मणि हरी घा यैक मुखाक अघिल धर और बाल्टी लि आ। यो स्यैणियां हाथक सौणी छ, तू यकें पेवै ल्याली।
होय ठीक छ मंैं यसै करूंल, वीकि स्यैणिल कौ। हेमाक दुल्हौ अपण घर भितेर जां, अपण च्यल कें अपण काखिम धरि बेर अपणि स्यैणि हें पुछूं-ऊ भाऊ कां छ? वील के खाछ या नि खा्य? मैंल वीकें नवैं-धोवै है, वीक लुकुड़ बदलि हली और चहा-बिस्कुट खवै हली। मैंल वीक ख्वर लै कटोरौ। वीक ख्वार में जूं-लिखां क पूड़ छी। अब वीकें ठंडी पड़ि गे और उ से रै। अब तुम भैटो भौ दगा्ड़ मैं भैंस पेवै ल्यूनू। यो कै बेर हेमा गोठ जै बेर भैंस पेवै ल्यें। उ देखैं कि वीक घरवावल अपण भौ काखिम धरौ और वीकें ल्हिबेर कौशिक पास न्है गई। वील देखौ कि उ चेलि कौशि गहरी नीन में से रै, वील वीक ख्वर कें पलासौ और कूण लागौ- ओ इजा यतुक दर्शनदार भाऊ यो कैकि हुनेलि। अब यैक मै-बाबूक पत्त कसी चलल। हे भगवान! यो भाऊ क मै-बाब कैं जरूर मिलै दिया या फिर यकणि पावणकि जिम्मेदारी मैंकें सौंप दिया। के पत्त तुमूल यो चेलि, मेरि चेलि लीला, जैकणि मरी आज सात बरस है गई, मेरि घरवाइक मन बहलूणाक लिजी हमार घर भेजि राखी। भगवान यस जै है जानौ तो मैं कणि बांकि के चैंछी। मेरि घरवाइ कें मेरि चेलिक मरियक दुख वीकें हँसण नि दिन। आज जब मैं यो चेलि कें घर ल्यायूं तब सात साल में आज यैल अपण गिच ताणी। मेरि चेलिक सब लुकुड़ मेरि घरवाइल एक पुंतुर बणै बेर अलमारि में लुकै राखी यो सोचि बेर कि हमरि चेलि वापिस आलि। आपण चेलिक उ झगुल जो आज कौशील पैरि राखौ वीमें हाथ लगाते उ मैंस डाड़ मारण फैजां और वीक सकसकाट सुणि बेर कौशि जाग जैं और चड़म ठा्ड़ है बेर कूण लागी- म्यार बा्ब कां छन, मेरि इज कां छ? मैं यां कसी आयूं? तब उ मैंस अपण आँसु पोछते-पोछते कूं- फिकर नि कर चेली! मैं त्यार इज-बाब कें ढुनि ल्यूंल, तब तक तू हमूकणि अपण इज-बाब समझ और यो भौ त्यर भै जस छ यै दगाड़ तू खेल करिए। तू मैं पर विश्वास करिए। यतुकै में उ मैंसकि स्यैणि भैंस पेवै बेर ऐ जैं और कें‘- बेटा उठ गछै तू। आज हमा्र गोठ नई भैंस ऐ रौ। आज मैं त्यार लिजी खीर बनूल, तू खीर भल मानछै? लेकिन कौशि के जबाब नि दिनि, उल्ट डाड़ मारण लागी। चुप कर चेली डाड़ नि मारन यो सांझ पड़न तक। उ चेलिक बगल में उ स्यैणि भैजंे, वीक आँखांक आँ्सु अपण धोतिक टुकल पोछण फैजें। जरा हँस दे बेटा! कतुक भल लागल हमूकें, जब तू हँस देली।
कौशि अपण मुख में हल्की मुस्कान भरैं तब ऊं स्यैणि-मंैस लै हँसण लै जानी। उ मैंस कोशिश करूं और उ चेलि हें पुछू-चेली! त्यर नाम के छ बबा?
कौशल्या, म्यार इज-बा्ब मैं हूं प्यारल कौशि कूनी। यस कैते-कैते उ जोर जोरल हँसण फै जें और कें-ऊं सब मर गई। फिर जोर-जोरल डाड़ मारण फैजें। ऊं द्वि स्यैणि मैंस जसी-तसी कौशि कें शांत करनी और कौशिक दिमागी असंतुलन देखि बेर चिंतित है जानी।
कौशि ना्न भौ दगाड़ भैरै। स्यैणि मैंस खा्ण-पिणकि तैयारी में लै रई। यूं द्वी स्यैणि-मैंस छन वीमें हेमा नाम मलि चर्चा में ऐगो, अब यतकें वीक मैंसक नाम लै उजागर करण ठीक हो्ल। तो हेमाक उ जो आदिम छ वीक नाम हरीश छ। हरीश अपणि स्यैणि हेमा कें भौतै प्यार करूं, वीक सुख औ खुशी लिजी उ कौशि कें अपण घर ल्यैरौ। हेमा कौशि कें और अपण मैंस कें आवाज दीं।
कौशी आ चेली आ खा्ण खै ले, तौ अपण भै कें लै लिआ आपण दगा्ड़। ओ मनुवां बाबू आओ तुमलै आओ रस्या में, मैंल खा्ण पसकि है। थकि बेर ऐ रछा, पैं आराम करला। कौशि मनू दगाड़ रस्या में ऐ जें। हरीश लै एक चैक में भै बेर कौशि तरफ चैरों और कूणौ- खा चेली खा, य मनू कें लै ना्न-ना्न गास डोबि बेर खवा और तू लै खा। शाबास खा चेलि। यस लागणौ कि कौशिक मन में मणि परिवर्तन ऊणौ। उ भौ वीक लिजी एक खिलौण जस छ। भौ लै कौशि देखि बेर खुशि छ। किलैकी ना्नतिनाक अगर दगड़ मिल जां तो उनर ध्यान एक तरफ बटि जां और उनरि मानसिक स्थिति सामान्यता तरफ जा्ण लागैं।
अब सबासब खै-पिबेर एक कम्र में ऐ जानी। हेमा सबूं कैं एक-एक गिलास दूध दीं, तब सबासब सेतणकि तैयारी करनी तो उ ना्न भौ कूं- मैं त अपणि दीदी दगाड़ सेतुंल, आज बटि मैं इज-बाब दगाड़ नि सेतुंल।
हेमा हँसते हुए कैं- ठीक छ च्यला! तू अपणि दिदि दगाड़ से जा। चल उठ उ सामणी वालि खाट में से जा। उठ कौशि, तू लै ये दगाड़ पड़ि जा। कौशि दैण तरफ बीच में ना्न भौ और बों तरफ हेमा सेरै। तो यतुकै में ना्न भौ कूण लागौ- इजा! आज का्थ किलै नि सुणूनई। तू का्थ सुणा, दिदि लै सुणलि। अच्छया ठीक छ। कौशि तू लै सुणली का्थ, हेमाल पुछौ। होय इजा मैंकें का्थ भल लागनी।
तो सुणो बेटा- ब्योलिक बिदाइ क टैम, अछयत परखी जाणई। सबूं कै आँखां में आँसु, भौतै भावुक दृश्य छ। ढोलक ढमढमाट में बिनबाजकि अवाज दबि जाणै। शगुनाखर दिणी गिदारोंक केवल थोव हिलण देखीणई। शंख बाजण फैजें, बरयात बिदा हैजें। सा्र परवार अपण आँखा कें पोछन-पोछनै घर भितेर ऐ जानी।
इजा! यो का्थ बेकार छ, तू कोई और का्थ सुणा। मनू चिचाट पाड़ों और नाराजी दिखूं।
हेमा- यो शुरूवात छ च्यला! तू अघिल कै का्थ सुणलै तुकैं भल लागलि। तू ध्यान लगै बेर सुणा। मनू अपणि इजकि बात मान ल्यंू, तब हेमा अघिल कै का्थ शुरू करैं-बरेति ब्योलि कें डोलि में भैटाइ दिनी और द्वि डन्येरू डोलि का्न में धरनी और अघिलां बढ़नी। उना्र पछिल बटि ब्यौल जाणौ। ब्यौलाक हाथ में एक रंगीन छा्त छ। बांकि सब बरेती पछिल बटि जाणई। शंख ध्वनि हुणै, ढोल, मसकबीन, नङार, तुतुरि बाजणई। ब्यौल-ब्यौलि, बरेति सबै रात भरिक उन्त छी, उनूकें नीनकि झपक लागणै। बरेती जो बेई नाचन-कुदन छी, आज लुत-लुत है रई।
बरयात ब्यौलाक घर पुजण है पैंली एक गाड़ पार करैं। उ गाड़ा्क काख बटि एक तिथाण लै छ। गाड़ पार करण तक एक डन्यरूवक खुट मड़की जां और उ बखत ब्योलिकि डोलि कैं एक झट्क जस लै जां और ब्योलि झस्स करैं। उ डरन है जें। लचकन-लचकनै डन्येरू ब्यौलि कें वीक सरास पुजूनी। बरयात वापस ब्यौला्क गों ऐ जैं।
सबूंक नवदम्पति घर में स्वागत हूं। चावल परखी जानी, शगुनाखरों क गान हूं। ब्यौलि अपण सरास में प्रवेश करैं। सब कें यथायोग्य पैला्ग-नमस्कार दीर्घायु कि आवाज बुलंद रें। थ्वड़-भौत मंत्रोच्चारण क बाद संकल्प आदि परंपरा बाद ब्यौलि कें पाणिक धा्र में मुकुट खोलणाक लिजी भेजी जां। नंद, दिराणि, सासु व अन्य रिश्तेदारों द्वारा धा्र कें ब्यौलि कें नचई जां। ब्यौलि घर वापस एंे, ब्यौलि चहा पिणक लिजी कें। चहा बणाई जां, ब्योलि कें चहा दिई जां और चहा पीते ही ब्यौलि बेहोश है जें। लगन में बिघन वालि कहावत चरितार्थ है जंे। सबासब घबरै जानी, क्वे पाणि पेवूणौ तो क्वे मोर पंखील रखवाइ करणौ। लेकिन सब का्व करणा्क बाद लै ब्यौलि होश में नि ऊनि। तब गौंक एक सयाण मैंस कूनी कि जैकिशन त्याड़ज्यू कैं बुलाओ, ऊं रखवाइ कर द्याल तो ब्यौलि होश में ऐ जालि।
जरा देर में जैकिशन ज्यू एक झिटालुक सौंव लिबेर ब्या कुड़ि में ऊनी और ब्यौलिक रखवाइ शुरू करनी।
पहाड़ में अनिष्ट रोकणा्क लिजी रखवाइ प्रथा प्रचलित छ। यमें बभूत ;राखद्ध या माजुणक प्रयोग करी जां और जो मैंस-स्यैणि कें अनिष्ट है बचूण हंु, वीक कपाव में बभूतक टिक लगाई जां। बभूतक यो टिक कें कैं चुटकी लै कई जां। यस लागूं कि यो प्रथाक गुरू गोरखनाथ कि शक्ति दगा्ड़ के न के संबंध हुनल। यो मंत्र कें पड़ि बेर यो राख कें टिक योग्य बणई जां और फिर मंत्र पढ़ते-पढ़ते अनिष्ट है बचूणाक लिजी प्रार्थना करी जें। मंत्र तलि दरशै राखौ।
ओऽम नमो बभूत,
माता बभूत पिता बभूते
तीन लोक तारणी सकल निवारणी
चढ़े बभूत न पड़े हा्व,
रक्षा करे गुरू गोरखराऊ
चढ़े बभूत तीन लोक को,
चार वेद को पंद्र देव को
कां कौ छै, कतिकौ छै,
तू में महादेव जी की आन
गाड़ को छै, धार को छै,
तुझे गोरखनाथ की आन
गैलगजार को छै, सेना सिमार को छै
सवासेर खिचड़ी द्यूंला।
समसाण को छै,
लाल कपड़ा को टांको द्यूंला।
तेरो राणो द्यूंला,
तुझे अपने गुरू की आण
भलीका जांछै, पुजि पठौंला,
भलिका नि जालै रगड़ि पठौंला,
गुरूमुखी हलै, भलिका जालै
सवासेर खिचड़ी खालै
निगुरो हलै, नि जालै मार खालै
जां बटि आछै उत्ती जा,
तुझे महादेव की आण
गुरू ग्यानी नाथ जी की आन
गुरू गोरखनाथ जी की आन
इस पिण्ड की अमर काया,
सद्गुरू सद्गुरू।
रे सौकारा! गाड़क सुसाट पाणिक भिभाट, गाड़ पार करण में येल न यथां चा्य न उथां चा्य, पीपव पेड़ छी, यौ सौन्याइल द्वि आँचुइ पाणि घटकै दे। जो यकणि पिड़ै गै। मैंल रौखाइ करि है बांकि राम मालिक छ। सब भलै होल।
हेमा- कौशी कसि लागी बेटा का्थ और तुकणि रे मनुवा?
द्वियां लै के जबाब नि दी। हेमा कें यो पत्तै नि ला्ग कि ऊं द्वी झणि कता से गा्य। हेमा कै काख बटि वीक मैंस लै तलि फर्श में सेती हय और घुराट लगूणय।
हेमा आपण मैंस कें झकोवणै और कूणै- सुणो हो-तुम यतुक घुराट नि पाड़ो, यूं ननाकि नीन खुलि जालि तो डरन है जा्ल। तुम पल तरब पटखाट में से जाओ, जाओ।
अरे यार त्वील मेरि नीन खराब कर दी खांमुखां। म्यार घुराट पाड़ि में हौ मनू कभै नि डरछी। आज वीकि बैणि दगाड़ में छ, देख धें कसि वीक पुठम हाथ धरि बेर से रौ। के नि डरन ना्न, से जा, मैं लै यतिकै से जानू, हरीशल कौ।
तुम यार म्यर कौय किलै नि मानणया? कौशिल अल्लै कुछ देर पैंली कसि का्व करी, अब आइ डराक मारी उसी का्व कर देलि तो पैं रात कै कां जाला, के करला? जाओ से जाओ पटखाट में, हेमाल कौ।
हरीश- हेमा एक बात बता अगर मैं पटखाट में से बेर यकलै डरन है गोय पैं मैंकणि को देखल?
हेमा- तुम चुप करो, मैं तुमरि बहा्नबाजी सब जाणनू। जाओ से जाओ।
हरीश- अच्छा तू मैंकणि पलतरप पटखाट तक छोड़ि दे, पैं मैं से जूल। यकलै डर लागणै।
हेमा- होय मैं सब जाणनू, यतार छै फुटा मैंस, को खाणौ तुमूकैं? हेमाल अपणि हल्की हँसि दिखै बेर कौ, हिटो तुमूकें जै पैंली पुजै दिनू।
हेमा आपण मैंसक हाथ पकड़ि बेर वीकें बगल वा्ल कम्र में छोड़ि बेर अपण ननाक दगाड़ से जैं । •
‘पहरू’ कुमाउनी मासिक पत्रिका , अल्मोड़ा बटी साभार
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