कुमाउनी और हिंदी भाषा कैं डाॅ.केशवदत्त रुवाली ज्यूक योगदान

 
-डॉ. देव सिंह पोखरिया 
से.नि. आचार्यः हिंदी, 
‘शिवाय भवन’ खत्याड़ी, अल्मोड़ा 
मो-9412976889



 उत्तराखंडक प्रसिद्ध भाषाविद रुवाली ज्यूक कुमाउनी और हिंदी भाषा कैं भौत ठुल योगदान छू। उनूल कुमाउनी भाषा और कुमाउनी भाषा विज्ञान में भौत स्तरीय और महत्वपूर्ण किताबनक प्रणयन करौ। उनार पचास-साठ है जादे कुमाउनी भाषा और हिंदीक उच्च स्तरीय शोध निबंध आज लै भाषाक क्षेत्र में मील स्तंभ छन। उनार किताबनकि संख्या लै पचास है जादे छु। हिंदी भाषा और ब्याकरण पर लै उनूल महत्वपूर्ण पुस्तकोंकि रचना करी। रुवाली ज्यू विश्व प्रसिद्ध भाषा  विज्ञानी डाॅ. हेम चंद्र जोशी ज्यूक संपर्क में रई। ऊं डाॅ. हेम चंद्र जोशी जी कैं भाषा संबंधी अध्ययना लिजी आपण प्रेरणास्रोत माननी।
विभिन्न महाविद्यालयों में प्रवक्ता पद पर काम करते हुए उनूल कुमाऊँ विश्वविद्यालयक अल्मोड़ा परिसर बै आचार्य और अध्यक्ष पद बटी अवकाश प्राप्त करौ। ऊं अल्मोड़ा परिसर निदेशक लै रईं। भाषाक क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान देते हुए रुवाली ज्यू 13 सितंबर, 2018 हुं दिवंगत भई। 
रुवाली ज्यूक सबन है ठुल काम उनर द्वारा प्रणीत ‘कुमाउनी हिंदी व्युत्पत्ति कोश’ छु। यो कोश कार्य अंतराष्ट्रीय स्तरक छु। येमें उनूल कोश विज्ञानक सर्वमान्य सिद्तधांत कैं आधार बणै बेर सबन है पैंली कुमाउनी शब्द संपदाक व्युत्पत्तिपरक अध्ययन करि राखौ। ये व्युत्पत्ति कोशक बार में प्रसि( कोशकार हरदेव बाहरी कूनी- ‘‘इसमें कुमाउनी शब्दों का संस्कृत-प्राकृत अपभ्रंश से विकास तो बताया ही गया है, साथ ही अन्य भारतीय आर्य भाषाओं-बंगाली, असमी, उड़िया, मराठी, गुजराती, पंजाबी, लहँदी, सिंधी और हिंदी एवं पड़ोस की नेपाली भाषा के समस्रोतीय शब्द भी दिए गए हैं। यत्र-तत्र आवश्यकतानुसार कुमाउनी और हिंदी के समांतर शब्दों में निहित अर्थ भेद भी प्रस्तुत किए गए हैं। हिंदी की किसी बोली में आज तक ऐसा कार्य नहीं हुआ है, और मानक हिंदी में भी किसी ने ऐसा साहस नहीं कियाऋ इसलिए हिंदी जगत के लिए इस कोश का विशेष महत्व है। इस दिशा में काम करने वालों के लिए यह एक आदर्श है।’’
ये व्युत्पत्ति परक कोश में लगभग 5500 कुमाउनी शब्दनकि प्रविष्टि छु। उनर यो व्युत्पत्तिकोश 1983 में नवयुग प्रेस महावीर गंज, अलीगढ़ बटी प्रकाशित छु। यो कुमाउनीक पैंल कोश छु। येमें न तो सामासिक और संधिगत शब्द ऐ सकछी और न शब्दनक प्रयोग और दगडै़ चित्र या लोकोक्ति और मुहावरोंक समावेश है सकछी। य विशुद्ध रूपल कुमाउनी शब्दोंक व्युत्पत्तिपरक कोश छ। कुमाउनीक वर्णिक उच्चारणक कारण रुवाली ज्यू कैं वीक वर्तनी और लेखन संबंधी कई कठिनाइनक सामना करण पड़ौ। उनूल आपण य कोश ग्रंथकि भूमिका में प्रसि( भाषाविद स्कैलीगरक यो कथन उद्धृत करि राखौ-
‘‘अगर कै अपराधी कैं ठुलि है ठुलि सजा दिण छु त वी कैं कोश निर्माणक काम दि दिण चैं। ’’ 
ये कोश में उनूल कुमाउनी दीर्घस्वरोंक ह्रस्व उच्चारणाक लिजी दीर्घ स्वराक तलि बै तिर्छ रेखड़क ;आऋद्ध प्रयोग करि बेर वी ध्वनिविशेषकि प्रवृष्टि करि राखी। दीर्घ स्वरोंकि य ह्रस्व प्रवृति कती कैं केवल ह्रसत्व और कती कंै स्वतंत्र स्वनिम कैं द्योतित करँछि, जसिकै मा्म= मामा, केवल ह्रसत्वद्ध और आम= आम्रफलम् , आम= दादी, नानी। आ्म क तलि बै अंकित त्यर्छ रेखड़कि सुविधा नि हुणाक कारण रुवाली ज्यू कैं मैंल कतुक बखत भौत परेशान देखौ। ऊं बार-बार ये ध्वनि चिन्हक बार में चर्चा करनै लिजी उन दिनों कुमाउनी आश्रम में बालम सिंह जनौटी ज्यूक घर ऊंछी। जनौटी ज्यू और म्यर दगाड़ चर्चाक बाद उनूल य तय करौ कि दीर्घ स्वरक तलि बै त्यर्छ रेखाड़क बदयाल हलंत चिन्ह लगै बेर काम चलै सकीं। आपन पश्चातवर्ती ग्रंथन में उनूल येई हलंत चिन्हक प्रयोग करौ। जसिक छा्न (गौशाला), छा्ज (झरौखा), का्न ;कांटाद्ध आदि। यद्यपि यो हलंत चिन्ह व्यंजन पर लागण पर वीक स्वरराहित्य प्रकट करूं, किंतु दीर्घ स्वरक तलि बै लागण पर वीक ट्ठसत्व और स्वतंत्र स्वनिम रूप कैं प्रकट करूं।
ये व्युत्पत्ति कोश में रुवाली ज्यूल 174 पृष्ठनकि विस्तृत भूमिका दी राखी जैमें कुमाउनी भाषा क्षेत्र, कुमाउनीक विकास, कुमाउनीकि भाषिक संरचना, कोश विज्ञान और व्युत्पत्ति विज्ञानाक विषय में व्यापक विचार-विमर्शक दगड़ै कुमाउनी साहित्य और कुमाउनी संस्कृतिक लै परिचय दी राखौ।
य कोश ग्रंथ में कुमाउनीक मानकीकरणक लिजी रुवाली ज्यूल मानकीकरणक सि(ांतनक अनुरूप कुमाउनीक दस मुख्य बोलिन में खसपर्जिया बोलि कैं आधार मानि राखौ और वीकैं मानक मानि बेर शब्दनकि प्रविष्टि करि राखै। दगड़ै उनूल कुमाउनीक सहयोगी बोलिन बटी लै कुछ न कुछ ग्रहण करि बेर ये कोश कैं मानक रूप दिणक प्रयत्न करि राखौ।
रुवाली ज्यू वास्तव में शब्द साधक छी, विशेष रूपल कुमाउनी कैं भाषाक रूप में स्थापित करण में उनर भौत महत्वपूर्ण योगदान छू। ऊं कुमाउनी शब्दावलीक भौत गंभीर और विश्लेषणपरक शोधकर्ता छी। 1975 में मैंकैं याद छु कि अल्माड़ में कुमाउनी भाषा और संस्कृति विषयक भौत ठुल सम्मेलन भौ, जैमें प्रो. रुवाली और प्रो.बटरोही जा्स विद्वानोंल आजकि कुमाउनी भाषाकि दिशा निर्धारित करनै लिजी भौत महत्वपूर्ण वक्तव्य दिईं। कुमाऊँ विश्वविद्यालय में एम.ए. पाठ्यक्रम में कुमाउनी कैं समुचित जा्ग दिलूणै लिजी उनूल भौत प्रयास करौ। उनरै प्रयासल हिंदी साहित्य विषय में कुमाउनी भाषा साहित्य और संस्कृति विषयक द्वी प्रश्न पत्रनक रूप में कुमाऊँ विश्वविद्यालयाक पाठ्यक्रम में समावेश भौ। उनूल ‘कुमाउनी हिमालयी भाषा साहित्य एवं संस्कृति ज्ञान कोश’ नकि एक लम्बी शोध परियोजना में काम करौ और हिंदी भाषा व कुमाउनी भाषाक कई अनछुई संदर्भों पर मौलिक शोधपत्र प्रस्तुत करी। कुमाउनी भाषा और अन्य भारतीय भाषाओंक तुलनात्मक अध्ययन पर उनूल दर्जनों शोधार्थियों कैं मौलिक शोध करा। ऊं ‘कुमाउनी भाषा एवं संस्कृति समिति’ अल्माड़क अध्यक्ष छी। ये समितिक तत्वावधान में 1995 में उनूल ‘कुमाउनी भाषाक मानकीकरण’ विषय पर एक अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार करौ।
कुमाउनी भाषा में कुमाउनी हिंदी व्युत्पत्ति कोश क अलावा कुमाउनी भाषा, कुमाउनी हिंदी शब्दकोश, कुमाउनी भाषा एवं संस्कृति, मानक कुमाउनी शब्द संपदा, कुमाऊँक त्यार-बार, आदि महत्वपूर्ण ग्रंथनकि रचना करी।
कुमाउनी भाषाक दगड़-दगड़ै रुवाली ज्यूक हिंदी भाषा और भाषा विज्ञानक क्षेत्र में लै महत्वपूर्ण योगदान छू। उनूल हिंदी भाषाक विद्यार्थिन बटी लि बेर भाषा और भाषा विज्ञानीयों लिजी कई किताबनकि रचना करी। रुवाली ज्यूल भाषाक शु( प्रयोग और वीकि अभिव्यक्ति में महत्व कैं देखते हुए सरल भाषा में हिंदी व्याकरणक ज्ञान प्राप्त करणक लिजी सामान्य हिंदी भाग -एक और सामान्य हिंदी भाग- दो पुस्तकनकि रचना करी। सामान्य पत्र व्यवहार और कार्यालयी पत्र व्यवहारै लिजी लै पुस्तकोंकि रचना करी। प्रतियोगी परीक्षा और लोक सेवा आयोगनकि परीक्षान लिजी रुवाली ज्यूक किताब भौत महत्वपूर्ण व उपयोगी छन। भाषा संबंधी इन किताबनक माध्यमल भाषा प्रेमी लोगन कैं भाषाक सम्यक संकल्पना, वर्णमालाक सही ज्ञान, उच्चारण, वर्तनी और लेखनकि सही जानकारी, भाषाकि प्रयुक्ति और प्रोक्तिकि जानकारी और व्याकरणक सम्यक ज्ञान है जां। योई कारण छु कि हिंदी भाषा और व्याकरणाक अध्येताओं बीच डाॅ. रूवाली ज्यू द्वारा लेेखी किताब भौत उपयोगी और लोकप्रिय छन।


भारतीय भाषाविदों और साहित्यक इतिहास लेखकनकि परंपरा कैं अघिल बढ़ाते हुए रूवाली ज्यूल ‘हिंदी भाषा का इतिहास’ और ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ नामक किताबनकि रचना करी। भाषा और साहित्यकि इतिहास लेखन में हिंदी में उनर नाम सदा अविस्मरणीय रौल। 
हिंदी भाषाक इतिहास कैं उनूल सर्वबोधगम्य बणूनै लिजी सरल भाषा शैली में हिंदी भाषाकि विकास यात्रा कैं उकेरि राखौ। भाषाक विकास में रूप तत्व, अर्थ संरचना, ध्वनि तत्व, शब्द समूह, शब्दोंक इतिहास आदि कैं भौत भल ढङल  समझाते हुए हिंदी स्वनिम और संस्वन, उनर वर्गीकरण और ध्वनि वैज्ञानिक विवरण लै प्रस्तुत करि राखौ। अक्षर कैं स्पष्ट करते हुए हिंदी स्वर और विकासाक बार में पुर जानकारी दी राखी। दगड़-दगड़ै संसारकि भाषानक परिचयक दगड़ भारतीय आर्य भाषान में हिंदीक स्थान निर्धारित करते हुए हिंदीकि पांच उपभाषा और 17 बोलिनक लै परिचय येमें मिलूं। हिंदी भाषा और भाषा विज्ञान पर लेखी उनरि यों किताब बी.ए., एम.ए. स्तर पर भारतक अनेक विश्वविद्यालयन पाठ्यक्रम में पढ़ाई जानी। उनरि हिंदी भाषा संबंधी अन्य किताबन में सामान्य हिंदी, मानक हिंदी ज्ञान, हिंदी भाषा और व्याकरण, हिंदी भाषा संक्षिप्त परिचय, हिंदी भाषा शिक्षण,हिंदी भाषा संरचना और प्रयोग आदि प्रमुख किताब छन। हिंदी भाषाकि सही जानकारी और गहन अध्ययन विश्लेषण लिजी इन किताबनक भौत जाधे महत्व छु।
हिंदी भाषा में यतुक महत्वपूर्ण कामक दगड़-दगड़ै उनूल भाषा विज्ञानक क्षेत्र में लै कई किताबनकि रचना करी। रुवाली ज्यू मूलतः भाषा विज्ञानी छी। भाषा और भाषा विज्ञान पर जसि पकड़ उनरि छी, उसि पकड़ भौत कम विद्वानन में मिलैं। भाषा विज्ञान विषयक किताब पैंली अंग्रेजी मेंई जादे छी। डाॅ. भोलानाथ तिवारीक बाद हिंदी में भाषा विज्ञानकि किताब लेखनकि परंपरा चलि पड़ै। वी परंपरा में रुवाली ज्यूल लै हिंदी में ‘भाषा विज्ञान और हिंदी भाषा’, ‘हिंदी भाषा और नागरी लिपि’ किताबों में भाषा विज्ञान जस दुर्बोध और कठिन विषय कैं वीक सर्वमान्य सिद्तधांतन कैं ध्यान में राखि बेर बड़ भल ढङल विषय कैं समझै राखौ। उनूल इन किताबन में जो उदाहरण और दृष्टांत दी राखी और सिद्तधांतनकि जो व्याख्या करि राखी वी में सब जाग मानक हिंदी कै उदाहरण छन।




हिंदी में भाषा विज्ञानक अध्ययन- अध्यापनकि दिशा में उनूल इन किताबनक माध्यमल विषय प्रवर्तनक भगीरथ प्रयत्न करौ। भाषा विज्ञान जस वैज्ञानिक और पारिभाषिक शब्दावली युक्त विषय कैं रोचक और अध्ययनीय बणून में रुवाली ज्यूक योगदान कैं कभै भुली नि जै सकीन। उनूल इन किताबों में भाषा विज्ञानक संक्षिप्त परिचय, पुर संसारकि भाषानक वर्गीकरण और भाषा परिवारोंक तात्विक विवेचन करि राखौ। भारोपीय भाषा परिवार और हिंदीकि स्थिति पर विचार करते हुए आर्य भाषान में हिंदीक महत्व कैं प्रतिपादित करि राखौ। हिंदीक स्वन विज्ञान, शब्द विज्ञान आदिकि संरचना कैं स्पष्ट करते हुए वीक स्वनिमिक, रूपिमिकि और ऐतिहासिक विश्लेषण प्रस्तुत करण में उनूल भाषा-विज्ञानक पारिभाषिक शब्दनक प्रयोग में आपण भाषा कौशल व्यक्त करि राखौ। हिंदीक स्वन, वाक्य और अर्थ संरचना कैं भौत भल ढङल विवेचित करण में रुवाली ज्यू सिद्हधस्त छन। आधुनिक भाषा विज्ञानाक ऐतिहासिक विकास क्रमकि समीक्षा करते हुए उनूल शैली विज्ञान, लिपि विज्ञान, भू-भाषा विज्ञान, समाज भाषा विज्ञान, भाषिक भूगोल आदि भाषा विज्ञानकि कई नई शाखान पर लै विस्तार में प्रकाश डालि राखौ। भाषा विज्ञानकि वर्तमान में जदुक अध्ययन पद्धति, वर्णनात्मक भाषा विज्ञान, ऐतिहासिक भाषा विज्ञान, तुलनात्मक भाषा विज्ञान, अनुप्रयुक्त भाषा विज्ञान आदि छन, उनार दगड़ै आधुनिक भाषा विज्ञान में प्रचलित विभिन्न भाषा विज्ञान संप्रदायनक विवरण लै उनरि भाषा विज्ञानकि किताबन में मिलंू। ये प्रकारल कई जै सकीं कि रुवाली ज्यूक हिंदी भाषा और भाषा विज्ञानाक क्षेत्र में करी काम कैं सदा याद करी जा्ल और कुमाउनी व हिंदी भाषाकि जब लै बात आलि रूवाली ज्यू सदा अविस्मरणीय रौल। एक भाषाविद, एक कोशकार, एक शब्द विज्ञानी, एक अर्थ विज्ञानी, भाषाकि वैज्ञानिक पकड़ राखनेर रुवाली ज्यू कैं स्मरण करते हुए उनार द्वारा कुमाऊँ विश्वविद्यालयक हिंदी और कुमाउनी पाठ्यक्रम में निरंतर सुधार और परिमार्जनक काम लै हमेशा याद रौल। उनूल भाषा परिमार्जन और संशोधन कैं ध्यान में रखते हुए हिंदी और कुमाउनी भाषाक उन्नयनक लिजी दर्जनों भाषा साहित्यकि पाठ्यपुस्तकनक निर्माण करौ। अपन अवसान है कुछ दिनों पैंली 2017 में हिंदीकि एक सहभाषा ‘गढ़वाली’ पर उनूल केंद्रीय साहित्य अकादमी नई दिल्ली लिजी लै एक पुस्तकै रचना करी।• 

पहरूकुमाउनी मासिक पत्रिका , सितंबर २०२० अंक बै साभार 

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