कुमाउनी ब्यंग : घरवाइ भाजि गे
प्रस्तुति- ललित तुलेरा
महेन्द्र ठकुराठी
ग्रा. बड़ालू (धपौट) जिला- पिथौरागढ़ ( उत्तराखंड)
मो.-9411126781
एक ठुल्लौ पीपला रूखक जड़पन बणी चबूतर में भैटी पाल गोंक खिलानंद जोर-जोरलि डाड़ मारनौछी। मैं झटपट वीक सामणि पुजी, वीक फरकी थोव और बानर कि चारि निपोड़ी गिजन कें देखि बेर त म्यर मन छकि बेर हँसण हुं करनौछी, लेकिन एक डाड़ मारण रई गरीब मैंसक अघिल हँसण क मतलब छी कि मैंल मजबूर लोगनकि खिल्ली उड़ूनकि डिगरी हासिल करि राखी। पच्चीस वर्षकि उमर में पुजी ढांट जस हट्ट- कट्ट ज्वान लौंड कें डड़यून देखि बेर मैं कें के कूणै नैं आ्य। लेकिन जसी-तसी मैंल हिकमत जुटै बेर सोचण शुरू करौ कि के करी जावो।
यो लै एक संजोगै छी कि मैंल आपण गावूनि अंगोछ लपेटि राखछी। म्यर मन भितेर लुकियां भल मनखील आवाज दे कि यो अंगोछ क सदुपयोग करि ल्हिण चैंछ। झटपट उकें निकाइ बेर मैंल खिलानंद क आँसु पोछी, फिरि सौदौ- ‘‘के भौ रे खिल्लू? डाड़ किलै मारनौछै?’’
‘‘अरे! जे हुण छी उ त है गय। आ्ब के करी जै सकींछ?’’ वील हिकुरि ल्हिण-ल्हिणै जबाब दे। वील जब आपण बकबकाण मुख मेरि तरफ रिटाय त मैं यसी झसकि पड़ी कि म्यर मन लै डाड़ मारण हुं हुण भैटो। मेरि समझ में यो नैं औणौछी कि किसमत मेरि फुटी छी या वीकि? अछयालना आदिमि सुख त यकल-यकलै भोगण चानी, लेकिन ख्वरपन जब दुखकि गाड़ बगैं त दुसरन कें लै हिस्सेदार बणै दिनी। आपण जरूरी कामन कें छोड़ि बेर लै यास मनखियों क मधतै लिजी कमर कसण पड़ैं।
मनै मन आपण इष्ट कें याद करि बेर मैंल बिनती करी कि- ‘‘हे देवो! हौर लोगनक बा्र में मैं के नैं जाणनू, अघिल कै औनेर वालि विपत्तियों बै मैंकें त बचैई दिया। इतनि ठुलि दुनी छु। कैकै ऊपर कसी गाड़ बगैं और कैकै ऊपर कसी। सबनकि जबाबदारी मैं कसिकै ल्ही सकूं। क्वै रूण-रूणै जिंदगी काटि ल्हिनी त क्वै हँसण- हँसणै। सब आपण-आपण करमनकि बात भै। कै कैं हँसि सकणकि गंुजाइशै न्हां तो वील डाड़ मारणै छु। उकें क्वे नैं हँसै सकन।’’
खिलानंदकि डाड़ सुणि बेर त यसै लागनौछी कि वीक ख्वरपन मुसीबतोंकि क्वे ठुलि-ठुली गाड़ बगणै हुनेलि। या्स किसमाक लोगोंकि खासियत यो लै हूं कि ऊं दुसर आदिमि कें देखि बेर जादे-जादे डाड़ मारनी। मैं कें जब वील सामणि आई देखौ त खूब हात-खुट टिलण भैटो। जैक वील वीक हात-खुटन पीड़ हुण फैगे और उ चानौछी कि मैं उकें यस करण बै रोकूं। मैंल सोची- मैं कें के जरवत उकें रोकणकि? जादेई पीड़ होलि त आफी रूकि जा्ल। नतिज यो निकलौ कि आ्ब उ आपण दुख कें भुलि बेर हात खुटनकि पीड़ ल डड़यून भैटो। मजबूर है बेर मैंकैं दयालु हुणक स्वांग धरणै पड़ौ।
‘‘त्यर घरपनकि कुशवबात सई छै? क्वे यो दुनी बै....’’ ओहो! के निकइ पड़ौ म्यर मुख बै यस? तात्तै पिनाउ खाई जस खापल किलै बुलै पड़ी मैं? यो जरूरी थ्वड़ै छु कि जस मैं सोचण रौछी उसै के भौ हुन्यल। फिरि लै आपणि सफाई दिण हुं मैंल पुरि कोशिश करी।
‘‘म्यर मतलब छु कि त्यर घरपन क्वे बुड़ बाड़ि रै राय हुन्याल, त कैं ऊं...’’ गैल गंभीर मुख मंडव बणै बेर कौ मैंल।
‘‘नैं-नैं तस के न्हा। अगर तस के है लै जा्ण त मैंकें इतुक दुख नैं हुन, जतुक आज है रौ।’’ वील आफूंकें थ्वड़ सम्हालते हुए कौ। उकें सई हालत में आते हुए देखण म्यर लिजी शुकूनकि बात छी। जतुक जल्दी बबाल खतम है जावो, उतुकै भल। लेकिन म्यर मन भितेर एक सवाल यो उपजण भैटो कि आदिमि क मरण है बेर ठुल दुख हौर के है सकूं, जै कारण यो इतुक परेशान छु।
‘‘तो इतुक डाड़ किलै मारौ पैं त्वील?’’ दुबारा सोदण में मैंल क्वै हर्ज नैं चितै।
‘‘मेरि मर्जी। म्यर मन करल त मैं आजि डड़यूंल। तुमन कें के कष्ट हुनौ?’’ वील चिढ़ि बेर कौ और आजि पैंली कि चारि रूण शुरू करि दे। यस देखि बेर आब म्यर मन लै महेशानी डङरी चारि कामण भैटो। लेकिन मैंल उजागर नैं हुण दे। हालातनल इतुक मैं कें लै सिखै हैछी कि मन भितेर क चोर, डर और रागस कें भैर नैं निकावण चैन।
‘‘अरे यार! तू डाड़ मारण बंद कर और सांचि-सांचि बतौ कि बात के छू?’’ मैंल हिकमत बादि बेर बुलाण शुरू करौ- ‘‘अछयालन कैक ऊपर भरौस नंै करी जै सकीन, भैर बै क्वै कसै रङ नाचनी, क्वै कसै रङ नाचनी। भितेर बै सब एकनसै हुनी। यानी हुड़ुक क वल पुड़ लै उसै पल पुड़ लै उसै।’’
‘‘सोदणै रौछा त आब बताई द्यूं। बखत कि मार झेलण पड़नै हो सैप मैंकें।’’ थ्वड़ शांत है बेर जब खिलानंद बुलाण भैटो त मैंकें लागो कि उ म्यर कयूं मानण फै गोछी। ‘‘स्यैणिल म्यर और पुर परिवार क नाक घालि है। सब गहन पत्त और पचपन हजार रूपैं नगद ल्हिजै बेर बरयात में नाचण हुं आई एक छलिया क दगड़ भाजि गै। तीन सालक नानू भौ छु, वीक लै मुख नैं देख उ कुजातल।’’ एकै झट्क में वील मन भितेरकि पुरि धौंकार म्यार सामणि निकाइ दे।
‘‘अरे भाई! यो क्वै ठुलि बात नैं भै। यो विकास क युग छु। उकें भाजियां स्यैणि न समझि बेर तू यस मानि ले कि वील उन्नति क नई आयाम खोलि हाली।’’ सयन्यौव दिखाते हुए मैं वीक लिजी भल मनखी कि भूमिका निभूण चानौछी, लेकिन वीक गवपन मेरि बात नैं उतरणैछि।
‘‘तस कि कूणौछा हो सैप? म्यार गव-गव ऐरै और तुमूकें येमें उन्नति क आयाम देखीणौ’’ उ द्विए हातनल मुनि पकड़ि बेर बुलाय।
‘‘सई त कूणयूं। अछयालना चेलि-ब्वारी पढ़ी-लेखी भा्य। नौकरी सबनक लिजी थ्वडै़ धरी छु। खेति-पाति उनूल करण नैं भै। फिरि एकै बा्ट त रै जां। समाज सेवा क बा्ट। कैलै कसीकै कैलै कसीकै समाजसेवा त करणै भै’’ मैंल शब्दनक एक तीर आजि छोड़ौ।
‘‘कसिकै....?’’ उ सिदमिती मेरि बात नैं समझि पाणौछी, उसिकै मेरि यो बात सिदै समझ में औण लैक छी लै नैं।
‘‘लोगबाग जागरूक हुण लागि रई। समाज बै धरम-पंथ, जात-पात, ऊंच-नीच और नान-ठुल क भेद मेटीणौ। तेरि बामणि ल जो करौ, रूढ़िवाद बै मलि उठि बेर करौ। किलैकी वीकि सोच प्रगतिवादी छु। उकें आजादी क महत्व मालुम छी, तबै त वील उ करौ जो उकें सई लागौ। आ्ब तू लै पुराण ख्यालातन कें छोड़ि बेर नई जमानक हिसाबल सोचण शुरू कर। ये में परेशान हुण वालि क्वे बात न्हा’’ मैंल उकें ठीक तरिक ल समझूण शुरू करौ।
‘‘छोड़ौ हो महाराज! मैं बामण मैंस ल जजमानी करि बेर जसी-तसी उकें खुश करि राखछी। म्यर है बेर जादे पढ़ी-लेखी छु कै बेर मैंल वीक ऊपर भरौस करौ। जसि लै छी, हमरि हैसियत इज्जतदार मैंसनकि छी। म्यर जस सिद-साद मनखी और नान भौ बै माय मोड़ि बेर वील उ घर-घर नाचनेर वाल छलियाक भितेर कि देख हुन्यल?’’ खिलानंद ल मेरि तरफ सवालिया नजरोंल देखौ।
‘‘भाई खिल्लू! प्यार मुहब्बत क सामणि हैसियत, उमर, सोच-विचार और रूप-रंग के महत्व नैं धरण। तेरि घरवाइ क दिल छलिया दगै लागि गो त न्हैगे। फिरि अछयालनकि दुनी कें त तू देखणै रौछै क्वे कसीकै त क्वै कसीकै, सब नाचण में मगन छन। हर कोई आफी लै नाचणौ और दुसरन कें लै नचूणौ। बरयात वालनल छलिया कंे नचाय, छलिया ल तेरि घरवाइ कें नचाय और तेरि घरवाइ ल आ्ब तुकैं नङ में नचै राखौ। मंै त यो कूण चां कि तू लै आफूं नाचण और दुनी कें नचूण सिखि ल्हे। त्यर और त्यर भौ क सेहतै थें योई सई रौल’’ मैंल चुटकी ल्हे।
‘‘था्ण में जै बेर रपोट लेखै ल्हिण पर कस रौल?’’ आपण डिमाक में जोर देते हुए वील मैंथें सोद।
‘‘हे पगला! था्ण में रपोट लेखूण पर त पुलिस और सरकार मिलि बेर तुकें जिंदगी भरिकि थें नचै द्याल। घरवाइ ल त्यर दगड़ रूण छु नैं। फालतू फंड में तू कतुकनक इशारों में नाचण चांछै?’’ मैंल उकें समझूण चा।
‘‘तो तुम के कूण चांछा? मैंल आपणि घरवाइ कें खोजि-खाजि फूलमाव पैरे बेर इनाम दिण चैंछ?’’ उ चिङी बेर जस बुलाण भैटो।
‘‘म्यर मतलब तस त नैं छी। लेकिन त्वील जिगर करि है त यो लै बतै द्यूं। तू आपण आँखनल देखि हाललै। एक बखत यस आल कि तेरि घरवाइ क चारि कदम उठूनेर वालि स्यैणियों कें ठुल-ठुल मंचों में संभ्रांत लोगों द्वारा सम्मानित करी जा्ल। उनूकें इनाम दिई जा्ल और हौर चेलियों कें लै उनूबै प्रेरणा ल्हिण हुं कई जा्ल। ठुलि जात छोड़ि बेर नानि जात दगै घरबार बसूणकि हिकमत हरेक स्यैणि नैं जुटै सकनि।’’ भौत पैंली बै खाप भितेर हालियां सुपारि क दा्ण कें चबाते हुए मैंल उकें भलीकै समझाय।
सैत मेरि बात वीक डिमाक में असर करण फैगेछि। किलैकी वीक मुखपन यस उज्याव देखीणौछी जसि कै घुप अन्यारि रात में एक लै हिटण रई क्वे आदिमि क पछिल बै अचाणचक क्वै दुसर मनखी मुछयाव ल्हि बेर ऐ जावो। शांत है बेर उ पीपल क जड़ बै टुक तक चाण भैटो।
‘‘तस किलै करनौछै यार तू? पीपल क पात गिणि बेर कि करलै? मेरि बातन कि तरफ ध्यान लगौ’’ मैंल वीक हात घचोलि बेर कय।
‘‘ठीक छु, मैं मानू कि आपूं सई कूणौछा। लेकिन यो लै त बतै दियो कि यास हालातन में आ्ब मैंल के करण चैंछ, जैल म्यर मन भितेर क यो कलेश खतम है सकौ’’ वील हाथ जोड़ि बेर मैं थें सोद। वीक दगड़ में फसक करण में मैंकें लै आब यस आनंद औणौछी जस क्वे प्रपंची जोगि कें मन मुताबिक दछिण दिनी सिद-साद भगत क मिलण पर ओं।
‘‘पैंली तू यो बता कि त्यर पास यस किसमक एंड्रौइड मोबाइल छु कि नैं?’’ मैंल वीक अघिल ओपो कंपनी क आपण कीमती मोबाइल निकाइ बेर हात में नचाते हुए पुछ।
‘‘ओहो! तस्सै फोन मेरि घरवाइ थें लै छी। वी कारण त आज म्यर लिजी सरगक छुट, अगास क फुट वाल किस्स है रौ। पत्त नैं छलिया दगै उ इंटरनैट में कस-कस किसमकि चैटिंग करनैछि, पंछी क चारि वीकै दगै उड़ि बेर न्है गे’’ ललाट में छनखान रेखाड़ निकाइ बेर उ बुलाय।
‘‘तबै त कई जां कि अकल रैगे सुङर थें और खुट रैग्या कांकड़ थें। अरे भाई, सारि दुणी डिजीटल है गे। नानतिन, स्यैणी, बुड़-बाड़ि सब कंप्यूटर युग में जीणई और तू कुँअ क भिखुन कुँअ भितेरै रै गोछै। यसै वील त त्यर आँखन में धूल खिति बेर तेरि घरवाइ आज एक मामुली छलिया क दगड़ माल पू खाणै। म्यर कयूं मान, भलि-भलि कंपनी क एक एंड्रौइड मोबाइल धरि ले और नई जिंदगी कि शुरूवात कर।’’ भलीकै वीकि मुनि मसारते हुए मैंल उकें हिदैत दे।
‘‘एंड्रोइड मोबाइल दगै नई जिंदगी क के रिश्त हूं हो सैप’’ वील एक सवाल आजि करि दे।
‘‘अरे! एंड्रोइड मोबाइल में इंटरनेट चलालै। वीक जरियल मेनका, रंभा, शुचिका, अरूणा, तिलोत्तमा, सोमी, सुप्रिया और हर्षा, यानी कयेक किसमकि मन मुताबिक अपसराओं दगै त्यर संपर्क होल। इनर दगड़ तू यसी मिसी जालै, जसिकै दूद में पाणि मिसी जां। तू बामण मनखी छै। हमर मुलुक धरमभीरू छू। लोगों कें आपण जाल में बादि राखणै थें गूगल में तुकें ठगविद्या क स्रोत लै खूब मिलि जा्ल। कलियुग में सफल हुण हुं ठग विद्या ई सबूं है बेर भल उपाय छु। अगर त्वील ठगि खाण सिखि है त समझ कि तेरि जिंदगी बै सब कलेश खतम है जा्ल।’’ मैंल लै पुरि हुस्यारी ल आपण भितेरक गूढ़ ज्ञान खिलानंद क सामणि धरि दे।
‘‘मैंकें त आपूंक भितेर नई जमानक महामनखी नजर औनौ हो महाराज! आस्ते-आस्ते म्यार आँख खुलण फैगई। आ्ब मैं तुमर बताई बा्ट केंई अपणूल और आपण नान भौ कें लै योई हुनर सिखोंल।’’ आ्ब वीक मुखमंडल चमकण लागि रौछी। मैंल लै च्याट्ट वीकि बातन कें बीच में काटि बेर अघिल कै बुलाण शुरू करौ।
‘‘ठुलि धोति वाल बामण छुं मैं। घर भैटी-भैटी शास्त्री और आचार्य कि डिगरी ल्ही राखी। पनर सालन बै बिरती करनयूं, लेकिन तेरि जसि फटेहाल जिंदगी नैं बितूणयूं। त्यर है बेर ज्यठ छूं और अनुभवी लै छूं, तुकें नक बा्ट किलै बतूंल? मेरि बातन कें एकचित है बेर सुण। पैंली और आजक मनखीनकि सोच मंे भौत फर्क छु। एक जमान छी, जब प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष क्वे रूपल लै चोरि करण पाप समझी जांछी। आब सिर्फ प्रत्यक्ष रूपल चोरि करण पाप छु। अप्रत्यक्ष रूपल जतुक जादे लुटि सकछा उतुकै भल छू। सिर्फ चोरि पकड़ में नैं औण चैनेर भै। आ्ब ईमानदार बणनकि क्वे जरवत न्हा, ईमानदारी क लबादा ओड़ि ल्हियो, इतुकै भौत छु। यानी बखत क दगड़ ईमान-धरम, सांचि- झुठि और भलाई-बुराई कि परिभाषा लै बदेईते जाणै। तबै त मैंल अछयालन ‘बखत क दगड़ हिटौ’ वा्ल अभियान छेड़ि राखौ। मैंथें बटी योई सि(ांत कें सिखि बेर कयेक लोग खुशी-खुशी जिंदगी बितूणई। ऊं लोगन में आ्ब त्यर नौं लै जुड़नौ। तेरि हालत पर मैंकें दाय ऐ पड़ी, तबै मैंल तुकें इतुक समझा, नतरि आपण घर खै बेर को कैकें भल बा्ट बतूं? अगर त्यर मन छु त तू म्यर रूजकार दगै लै जुड़ि सकछै।’’ मैंकें लागनौछी कि यो आदिमि मैंकें आपण धंद में लै भौत मधत करि सकूं।
‘‘अरे! यो त म्यर सौभाग्य होल। लूण-तेल क जुगाड़ त चैनेरै भै। आपूंक दगड़ मैंकें के करण पड़ल? बतै दियो महाराज।’’ वीक आँखन में चमक ऐ पड़ी।
‘‘धरम-करम, यानी घ्यू क घड़ किरमोड़ि क तलवार। कथावाचन और गुरूमंतर क जरियल लोगनकि कालि कमै कें स्यत बणूनक च्वख कारोबार। हमर पहाड़ों में मैदानी भागों क बनिस्बत कथाओं क कारोबार भौत कम देखींछ। हमूल उकें बढून छु। त्वील गों-गों घुमि बेर और यू ट्यूब चैनल क जरियल म्यर बार में यो परचार करण छु कि हमर यां पंडित कल्याणानंद ज्यू भौत ठुल ज्ञानी और तत्वदर्शी कथावाचक है रई। उनूकें भगवानल स्वीण में दर्शन दी बेर एक मंतर बतै राखौ और आदेश छु कि उकें गुरूमंतर क रूप में जादे है जादे लोगन तक पुजाई जाओ। जो लै लोग कल्याणा नंद ज्यूक मुख बै का्थ सुणनई और गुरूमंतर ल्हिणई उनर घरों में स्यैणि-बैगनक झगड़ कभै नैं हुन। भूत, प्रेत, पिशाचादि उनर पटांगणै बै भाजि जानी। चोरि-छिपि बेर उनूकें हर करम करणकि छूट छु। ऊं करमनक उनर ऊपर क्वै असर नंै पड़ौ। सात जनमों तक उनरि जिंदगी पाप करमों क असर बै फराङ रौलि और ऊं निझरक रै रौल।’’ अंगौछ ल मुखपन औण रई जंगली माखों कें भजाते हुए मैंल उकें समझाय।
‘‘तौ त भौत भलि बात समझा तुमूूल। आब उ मंतर लै बतै दिना त भलै हुन, जैकि आपूं इतुक महिमा बतूणौछा’’ वीकि जिज्ञासा और जादे बढ़न लागि गे।
‘‘उ गुरूमंतर छु, उकें फोकट में नैं दिई जा्ण। गुरू दच्छिन दिण पड़ें, लेकिन आज ब्याव हुं तू मैंकें फौजी हुस्की पिलै सकछै त मैं बतै द्यूं’’ मैंल वीथें यो बात आस्ते-आस्ते कै।
‘‘बिल्कुल, धौ करि बेर पिवोंल महाराज! मैंकें ततुक भलि चीज बतूणौछा’’ उ जोश में ऐ गई भ्यो।
‘‘ठीक छु पैं सुण, पैंली तुकें नियम बतै द्यूं। तू यो मंतर क्वै दुसर मनखी कें नैं बतालै। येकें मैंल साधि राखी, जैकें दिण होल मैं आफी द्यूंल, तबै यो आपण असर देखाल। यो मंतर कें ल्हियां बाद गुरू आज्ञा यानी म्यर आदेश में चलण जरूरी छु। येक नियम यो लै छु कि क्वै दुसर मनखी, उ चाहे कतुकै विद्वान किलै नैं हो, उकें आपण गुरू नैं बणून चैन। तुकें मंजूर छुई?’’ वीक का्न में हात धरि बेर मैंल कौ।
‘‘ठीक छु सैप! आज बै आपूं केंई मैं आपण गुरू मानुल। आपूं ई म्यर बर्मा, बिष्णु और महेश छा।’’ वील मेरि अघाड़ि जौंल हात करि हाली भ्या।
‘‘रात्ती-ब्याव मंतर क जप करण पर त्यर दुसर ब्या जल्दी है जाल और तेरि नई स्यैणि कैक दगड़ भाजलि लै नैं’’ मणी-मणी हँसते हुए मैंल कौ।
‘‘अरे! अगर तस जब है जांछी त रोज रात्ती-ब्याव मैं तुमरि चरण वंदना करछी। मैंकें झटपट मंतर बतै दियो। मैंकें भौत छटपटाट है रौ’’ उ फिरि हात जोड़न लागौ।
‘‘सुण, मंतर यस परकारल छु- हरि ओम करि ओम, त्यर घर भरि ओम म्यर घर सरि ओम। आपण मनकि करि ओम, कै दगड़ नैं डरि ओम।’’ मैंल वीक कान थें फुसफुसाट करि बेर कौ। बस तू यो मंतर कंे याद कर। घर जै बेर एंड्रौइड मोबाइल क जुगाड़ कर और झटपट इंटर नैट चलूण सिखि ल्हे। मंतर जतुक जल्दी सि( होल उतुकै जल्दी दुनी कें लुटण क मकसद में हमूकें कामयाबी मिललि। इतुक दच्छिन पाणि और खाणी-पिणी- चीज मिललि कि हमर लिजी हजम करण मुसकिल है जाल।’’
हमरि यो बातचीत चली रैछी कि म्यर पड़ौस में रूनेर लौंड रामदत्त सांकीण- सांकीणै दौड़ते हुए ऐबेर मैंथें कूण ला्ग- ‘‘ओ कल्याण का! तुमर कांस भै लछमका कि घरवाइ हरकू थोकदार क दगड़ भाजि गै। लछम का तुमूकें बुलूणौ।’’
यस सुणि बेर मैं आपण जाग बै उठण लागी त झटपट खिलानंद बुलाय- ‘‘किलै महाराज? आपूंल यो मंतर आपण कांस भै कें नैं दी राखी।’’
‘‘अरे यार! वील कभै मैंथें यो मंतर मांगै नैं त मैं खाली कसी दी दिछी? तू दुसरनकि चिंता छोड़ि बेर आपण बाट सुधार। हुस्यार आदिमि सिर्फ आपण भलाई लिजी सोचनी’’ मैंल कौ और रामदत्त क दगड़ घर हुं औनै रयूं। खिलानंद भौत देर तक हमूकें चाइए रैगोछी। जब हम वीकि डीठ बै छटकि गयां त आस्ते-आस्ते उ लै आपण घर हुं जा्ण लागौ। •
‘पहरू’ कुमाउनी मासिक पत्रिका अल्मोड़ा बटी साभार ।
टिप्पणियाँ