कुमाउनी इंटरव्यू : ‘पहरू’ प्रबंध संपादक महेन्द्र ठकुराठी दगाड़ राजेन्द्र ढैला कि बातचीत
इंटरव्यूकर्ता -
राजेन्द्र ढैला , काठगोदाम (नैनीताल)
य इंटरव्यू छु कुमाउनी कवि, साहित्यकार, रंगकर्मी श्री महेंद्र ठकुराठी ज्यूक। इनर जनम 2 अक्टूबर सन 1964 हुं ग्राम बड़ालू (धपौट), जिल्ल पिथौरागढ़ में ईजा श्रीमती कमला देवी व बौज्यू श्री मोहन सिंह ठकुराठी ज्यू (जोकि गौं घरपनाक साधारण पहाड़ी किसान छी) वाँ भौ। इनरी प्रारंभिक शिक्षा प्राथमिक विद्यालय बड़ालू, पिथौरगढ बटी और इंटरैकि पढाई जी आई सी पिपलकोट पिथौरगढ बटी संपन्न भै। ठकुराठी ज्यू तीस साल तक प्राइवेट अध्यापन करणा बाद वर्तमान में 'पहरू' पत्रिका'क संपादन कार्य में सहयोग दिण लाग रयी। इनार द्वी च्याल छन ज्यठ च्यल डॉ.पवनेश ठकुराठी अध्यापक और कांस च्यल कृश्नेश होटल व्यवसाय में कार्यरत छन। यौ अछ्याल अल्माड़ में आपण परिवार दगै निवास करनयी जाँ इनन दगै इनरी घरवाई श्रीमती नंदेश्वरी ठकुराठी और च्याल रौनी।
सवाल - रचना धर्मिता कब बटी और कसिक शुरू भै कुमाउनी लिखणैकि प्रेरणा कां बटी मिलै?
जवाब● विद्यार्थी जीवन बैई लेखण शुरू करि हैछी। पैंल लेख वर्ष 1983 में पिथौरागढ़ बै छपणी साप्ताहिक 'उत्तराखंड ज्योति' में प्रकाशित भई। कुछ सालन तक साप्ताहिक 'पर्वत पीयूष' कार्यालय में काम करी। पैंलि कुमाउनी कविता 'राखि दिय आज पहाड़ों कि लाज' वी दौरान 'पर्वत पीयूष' मेंई छपी। कुछ कुमाउनी कविता 'धर्मयुद्ध' और 'कत्यूरी मानसरोवर' पत्रिकाओं में लै छपीं। हालांकि यो पत्रिकाओं में हिंदी आलेख और कहानी ज्यादे प्रकाशित भईं। कुमाउनी भाषा में लेखणक ज्यादे जोर वर्ष 2008 बै 'पहरू' प्रकाशनक दगड़ै शुरू भौ।
सवाल- आपुण खास शौक के-के छन?
जवाब● ध्यान-योग, संगीत, अभिनय, लेखण-पढ़ण और टीवी देखण में रूचि रैं मैंकें।
सवाल - उ तीन मनखीनों नाम बताओ जनरी जीवनी और कार्य आपूं कें हमेशा प्रेरणा दिनी?
जवाब● यो म्यर सौभाग्य छी कि मैकें विद्यार्थी जीवन में एक हैबेर एक भौत भाल-भाल शिक्षकों बै ज्ञान मिलौ। मेरि आम् बजर कानि छी, फिरि लै वील पुर परिवार संभालौ। म्यर माकोटक बुबु भौत सिद-साद् मैंस छी। उनूबै लै मैकें भौत प्रेरणा मिली।
सवाल - आपुण लोकप्रिय मनखी को छन? क्वे एक' नाम बताओ।
जवाब● संत कबीर।
सवाल - आपूंल कुमाउनी और हिंदी'कि को-को विधाओं में आपणि कलम चलै राखै? आपणि लिखणेकि मनपसंद विधा के छ?
जवाब● कविता, कहानी, नाटक, व्यंग, आत्मकथा अंश, संस्मरण, लेख, निबंध, जीवनी, इंटरव्यू और पत्रलेखन विधाओं में लेखते औणयूं। कहानी, नाटक और संस्मरण मेरि मनपसंद विधा छन।
सवाल - आपुण हिंदी और कुमाउनी में प्रकाशित किताबों नाम कि -कि छ?
जवाब● फिलहाल संस्कृति विभाग उत्तराखंड द्वारा दिई अनुदानल एक कुमाउनी कहानी संग्रह 'ठुलि बरयात' प्रकाशित हई छु। बांकि सही मौक औण पर कुछ किताब आजि प्रकाशित करुंल।
सवाल - आपुण जिंदगी एक यादगार किस्स बताओ जो सबन दगड़ी साझा करण चाँछा?
जवाब● हाईस्कूल में म्यर विज्ञान वर्ग छी। हम जीवविज्ञान प्रयोगशाला में मेढक विच्छेदन सिखणाछी। म्यर एक बिगड़ैल दगड़ियक हातनल फार्मेलीन फोकी पड़ौ। सजा बटी बचणैथें वील गुरुजी सामणि यो गलतीक दोष म्यर ऊपर मड़िदे। झगड़ बै बचणैथें मैंल लै चुपचाप गलती मंजूर करि ल्हे। गुरुजील मेरि खूब कुटान करी। यो सब घटनाक्रम कें हर्षू नामक म्यर एक दुसर दगड़ू देखी भ्यो। म्यर सुभाव कें देखिबेर वीक दिल में यस असर भौ कि उ दिन बै हमरि भौत गैलि दोस्ती हैगे। उ दोस्ती हमेशा ज्यूनि रै। खुशीकि बात यो छु कि आज हर्षू अल्मोड़ा में जिला शिक्षा अधिकारी (माध्यमिक) क पद पर छु और हम द्विए एक-दूसरक नजीक छां।
सवाल - लेखन कार्य करते हुए आपूं कें आज तक के-के सम्मान और पुरस्कार मिलि रयी?
जवाब● असली सम्मान उ छु, जो एक रचनाकार दुसर रचनाकार कें दिल खोलिबेर भावनात्मक रूपल दी दियौ। सम्मानोंक लिजी म्यर मन में क्वै दिलचस्पी न्हा। फिरि लै आपूंक सवालक जवाब दिण मैं जरूरी समझणयूं। पिथौरागढ़ में मैकें तीन संस्थाओंल सम्मानित करी। छै साल पैंली अल्माड़ में मैकें बहादुर बोरा श्रीबंधु 'कुमाउनी कहानी पुरस्कार' मिलौ। कुमाउनी भाषा, साहित्य और संस्कृति प्रचार समिति द्वारा आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं में म्यर द्वी संस्मरण, द्वी व्यंग्य, एक नाटक और चिट्ठी पुरस्कृत है चुकि रई। प्रतियोगिताओं में भाग ल्हिण मैं भौत भल समझूं। यो आदत मेरि नानछना बैई छु।
सवाल - महोदय अगर अन्य उपलब्धीन पर बात करनौ त कि-कि ह्वाल उ?
जवाब● (१) मैं आकाशवाणी अल्मोड़ा दगै जुड़ी हुई लोकगायक छूं। यां बै म्यर कुमाउनी कविता, वार्ता और कहानियों'क नियमित प्रसारण होते रूं ❓
(२) अध्यापन व्यवसाय करते हुए विभिन्न संस्थाओं लिजी पिथौरागढ़ जिल्ल में सांस्कृतिक कार्यक्रमों, नुक्कड़ नाटकों और जन-जागरूकता अभियानों में नियमित प्रतिभाग करौ।
(३) इग्यार साल तक पिथौरागढ़ जिल्लक तल्ला जोहार क्वीटी (मुनस्यारी) क्षेत्रकि रामलीला में परशुराम और रावण जास महत्वपूर्ण किरदार निभाई।
(४) वर्ष 2006 बटी 2010 क बीच जिला पिथौरागढ़ में बनी तीन कुमाउनी फिल्मों 'डॉन उत्तरांचली', ‘तिकड़म' और 'काक भतीज 420' में लीड राॅल निभाई। पांच कुमाउनी एल्बमों में सह निर्देशन लै करी।
सवाल - आपुण हिंदी और कुमाउनी'क प्रिय लेखक को-को छन एक-एक नाम बताओ?
जवाब● हिंदी में- संत कबीर समेत सबै भक्तकवि, मुंशी प्रेमचंद, मक्सिम गोर्की। कुमाउनी में- कविवर गुमानी और बहादुर बोरा ‘श्रीबंधु’ ।
सवाल - आपण जिंदगी सबन हैं खुशीक एक मौक बताओ?
जवाब● ज्यठ च्यल पवनेश कें जब प्रवक्ता पद पर नियुक्ति मिली। किलैकी वी दिन मैकें हमर तीन पुश्तोंक दुख कटण देखीणाछी।
सवाल - नवोदित लेखक व रचनाकारों हूं कि कूंण चाला? नयी पीढी कस काम करनै साहित्याक क्षेत्र में?
जवाब● यो पुरि सृष्टि सबूं हैबेर खूबसूरत रचना छु और येकें रचनेर परमात्मा सबूं हैबेर ठुल रचनाकार। हम सब वीकि संतान और शिष्य छां। वीबै प्रेरणा लेते हुए निश्छल और निर्विकार हैबेरै रचनाधर्मिता निभूण चैंछ। रचना छपि जाण और खूब लोगों द्वारा पढ़ी जाण ठुलि उपलब्धि न्हातन बल्कि पाठकोंक दिलो दिमाग में असर देखूणी रचना लेखण ठुलि उपलब्धि छु। आब साहित्यिक क्षेत्र में भौत हुस्यार नानतिन औणई, लेकिन इनूकें संकीर्णताओं बै बचिबेर रौण चैंछ। ठुलि सोचल साहित्यकारोंकि स्वाब बढ़ें।
सवाल - आपण जिंदगी'क मूल मंत्र कि छ?
जवाब● तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु। (म्यर मन सुंदर और पवित्र विचारों वाल हवौ।)
सवाल - आपुण मन पसंद पहाड़ि खाणु के छ?
जवाब● आलुक गुटुक, भटिया, डुबुक, ग्यूं-मड़ुवक र्वाट, मसूरकि दाल, भात, जोहारी पत्यूड़, ल्यूण, झनकारक साग और क्वैरालक रैत।
सवाल - वर्तमान में के रचनौछा और आपुणि ऊणी वाली क्वे रचना?
जवाब● हालांकि तबियत पैंली जसि न्हा, लेकिन थ्वड़-थ्वड़ कैबेर के न के लेखते रौं। प्रबंध संपादक क रूप में आंशिक योगदान 'पहरू' पत्रिका लिजी लै चलिरौ। रचना भौत छन, मौक मिलते ही इनूकें पुस्तकाकार रूप दिई जाल।
सवाल - आपूं टीवी में के देखण भल मानछा?
जवाब● आध्यात्मिक भजन-प्रवचन, पारिवारिक धारावाहिक, ज्ञानवर्धक कार्यक्रम, समाचार और कभै-कभै सामाजिक फिल्म।
सवाल - सहित्य के छ आपुण शब्दों में बताओ?
जवाब● हमूल पैंली बै योई सिखौ और अनुभव करौ कि साहित्य समाजक दर्पण हूं। समाजक असली स्वरूप कें साहित्यै उजागर करूं।
सवाल - आपण पुर कुमाउनी समाज हूँ क्वे संदेश?
जवाब● हम भौतिक रूपल चाहे कतुकै ज्यादे उन्नति हासिल करि ल्हियूं, लेकिन आपणि जड़ों कें कभै नै भुलण चैन। असली भाग्यवान लोग ऊंई छन जनर घरों में आपणि दुदबोलि बोली जैं। हमरि जमीन-जाग, खेत, जंङव, प्रकृति-संस्कृति और बोलि-भाषा सब हमर गौरव छन। पुर संसार में हम सबूं हैबेर भाग्यशाली छां, किलैकी- हम कुमाउनी छां।
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• राजेन्द्र ढैलाकि फेसबुक पोस्ट बटी साभार ।
प्रस्तुत- ललित तुलेरा
tulera.lalit@gmail.com
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