‘बिरत्वाइ’ : प्रयोगधर्मी कलमल लेखी नाटककि किताब
समीक्षक-
ललित तुलेरा
(बागेष्वर)
कुमाउनी नाटक संसार में ‘बिरत्वाइ’ शुरवाती किताबन में एक छु। य किताब रंगकर्मी, पत्रकार व कुमाउनी लेखवार नवीन बिष्ट ज्यूल लेखि रै, जो साल 2017 ई. में छपै। किताबकि भूमिका में कुमाउनी साहित्यकार श्याम सिंह कुटौला ल कलम चलै रै व कबर दिगविजय सिंह बिष्ट ल बणै रौ। अस्सी पेजकि य किताब में चार नाटक शामिल छन। उत्तराखंड कुमाऊँ में प्रचलित प्रसिद्ध चार लोक गाथा ‘बाला गोरिया’, (पेज-1-6), ‘बैरागी कल्याण’, (पेज 17-44), ‘नारद मोह’ (पेज 45-56) ‘राजुला मालूशाह’ (पेज- 57-81) कैं गीत नाट्य रूप में पेश कर रौ।
बिष्ट ज्यू माननी कि लोक गाथाओं कैं ज्यून धरण और लोकप्रिय बणूनै लिजी उनर असली रूप कैं बणाई धरते हुए मर्यादा में रै बेर नई प्रयोग है सकनी, य सोच उनूल यों चार नाटकों में साकार करि रै। उनूल आपणि बुद्धि व कलम कौशलल नई रूप में पढ़नेरों (पाठकों) सामणि नाटकों कैं पसक री। इन नाटकोंकि खास बिशेषता य छु कि एक तो लोकगाथाओं कैं नाटक रूप में बणै बेर मंचन लैक बणै रौ यै और दुसरि य कि नाटक गद्य में ना बल्कि गीतात्मक व पद्य रूप में पेश करी छन। जमें लाईनों में तुकबंदी लै दिखाई दीं। हालांकि नाटकों में बीच-बीच में वातावरण कैं समजूणै लिजी हिंदी गद्यक प्रयोग करी छु। बिष्ट ज्यूक लेखी इन चारै नाटकोंक उत्तराखंडाक कतुकै मंचों में मंचन लै हई छु।
किताबकि सबन है ठुलि बिषेषता यई छु कि गीतात्मक व गेय पद्य में नाटक पेष करी छन। इन चार गीत नाटकों में कुमाउनी लोक साहित्याक कई रूप देखण में मिलनी। यां कुमाउनी लोककि स्योव ज्यून है उठैं। बिष्ट ज्यूल इन नाटकों में कुमाउनी लोक साहित्याक रूपोंक सितिल भानि इस्तमाल करी छु जो इन नाटकों कैं एक अलग पछयाण व रूप दिनी। उनूंल गीत, झ्वड़, जागर, जागर धुन, न्योलि, जोड़, लोरी, चैती, बैसी आदिक शैली व धुनोंक तर्ज पर नाटककि कहानि कैं रची छु।
गीतोंकि बात करी जाओ तो इन चार नाटकों में करीब 45 ठौर पर नाटकोंकि कहानि कैं गीत रूप में रची छु। ‘बाला गोरिया’ नाटक में रा्ज झालराईक आपण दरबारक मंच में पधारण बखत रा्जक यषोगान में गाई जाणी गीतक एक नमुन य छु-
‘‘सूर्ज जस तेेजवान राजा झालराई,
कुमू चंपावत, राजधानी बरदाई-2
प्रजा छी सुख्यारी बली, राजा न्यायकारी
सुखी छिया नर नारी नि छी क्वे दुख्यारी
जै हो राजा महाराज राजा झालराई।’’
(‘बिरत्वाइ’ पृ.01)
‘बाला गोरिया’ नाटक बै ‘सूत्रधार’ क मंच में प्रवेष करण बखतकि जागर शैली य एक गीत य परकार छु-
‘‘दिन बिता पाख बिता महैण बीती गई
संतो बाणी सांची-सांची भाग जागि गई
धुमली कोटै राणि कलिंका कणी महैण है गई
य खबर सुणी राजा भौतै खुषी है गई।’’
(बिरत्वाई, पृ.-05)
‘बैरागी कल्याण’ नाटक में गौं वालोंक तरफ बै कल्याण सिंह बिष्टक लिजी गाई जाणी ‘झ्वड़’ क नमुन-
‘‘भाबरा बै एगे कल्याणा तेरि भैंसोंकि बागुड़ि छम,
बजै दे मुरूलि कल्याणा, बलैहारी ल्यूंल छम।
बैरागी बांसुइ का सोराक भिजै देक क्वाउ उमाक छम,
दातुल की धार कल्याणा दातुलै की धारा छम।
जी रया अमरै रया, गोपीचनै चारा छम, ’’
( ‘बिरत्वाइ’, पृ.-25)
‘राजुला मालूषाही’ गीत नाटक में मालूषाह कैं खा्ण में बिष डालण बखतक ‘बैसी’ क एक नमुन-
‘‘ए म्यारा दर्षको,
अणहोति है गे भोट देष में
ए स्वैण है गो धर्मा देवी कैं
पै रे मालू कि हँसणी न्हैगे
बैराठ में अधरात बीच में
ईजूली कि नीन जो टुटि गेछ...
सुनपति लै विष खवै मारि है मालू कैं
पैरे के धना करनू कुनै धर्मा देवी
पै रे बैखता बीच में
बुलै हालो बगस्वाड़ की विधी को
जानकर गुरू, नौ लाख,
कत्यूर बुला हाली, पै रे अबिदे की...
( ‘बिरत्वाइ’, पृ.-78)
कुमाउनी में नाटककि य किताब सामणि ऊण है पैंली ‘आपणि पन्यार (2006 ई.), ‘सुरजू कुंवर’ (2014ई.) किताब देखां है गई।
मिलै-जुलै बेर य कई जै सकीं कि लेखवार बिष्ट ज्यूल प्रयोगधर्मी कलम चलै रै, जो कुमाउनी नाटक संसार में नई प्रयोग छु। गीत नाटकों में कुमाउनी लोक साहित्याक बिधाओंल इस्तमाल एक अलगै स्तर पर नाटकों कैं पुजै दीं और य लकार दिखींछ कि कुमाउनी में लै प्रयोगधर्मी कलम चलाई जै सकी जैल कुमाउनी और निखरलि।
21x13 से.मी. आकारकि व 82 पेजकि य किताब ‘अल्मोड़ा किताब घर, माल रोड, अल्मोड़ा द्वारा मुद्रित व लक्षित प्रकाशन माल रोड, अल्मोड़ा द्वारा प्रकाशित छु, जैक मोल 250 रूपैं छु।
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