‘कौ सुआ का्थ कौ’ कुमाउनी गद्य साहित्यकि ठुलि उपलब्धि

 
 

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समीक्षक- 

ललित तुलेरा 
उप संपादक- ‘पहरू’ कुमाउनी मासिक पत्रिका 
मो.- 7055574602 
   कुमाउनीक नामी - गिरामी साहित्यकार मथुरादत्त मठपाल ज्यूक मिहनत व लगनल ‘‘कौ सुआ, का्थ कौ’’ किताब हमर हाथों में छु। जमें कुमाउनी भाषाक सन् 1938 बटी 2018 तक अस्सी साल में लेखी 100 कहानीकारोंक 100 कहानि एकबटयाई छन। कुमाउनी साहित्य में य पोथि बिशेष अहमियत धरणा दगड़ै कुमाउनीक ताकत लै बढूनै।
कुमाउनी साहित्य संसार में ‘कौ सुआ, का्थ कौ’ जस ठुल संकलन कुमाउनी कैं देशाक हौर भाषाओं सामणि ठड़यूणक ठुल सबूत लै साबित हुणौ और उ सोच कैं मा्ट में मिलूणै जनर नजरों में कुमाउनी ह्याव है गेछी या के लै न्हैंती।
बर्ष 2020 में छपी पैंल संस्करण में य ग्रंथ हिंदीक नामी कथाकार शैलेश मटियानी कैं समर्पित कर रौ। ग्रंथकि भूमिका लोक साहित्याक विद्वान डाॅ. प्रयाग जोशी द्वारा आपण अंदाज में लेखि  रै। ग्रंथक कबर फोटो युवा चित्रकार भास्कर भौर्याल द्वारा बणाई छु। कहानी शुरू करण है पैंली कहानीकारोंक कम शब्दों में परिचय लै दी रौ। ग्रंथ में शामिल 100 कहानियों में करीब 22 कहानि ‘अचल’ (कुमाउनीक पैंल मासिक पत्रिका) टिपि रीं। बांकि आँखर, दुदबोलि, पुरवासी, ‘पहरू’, कुमगढ़ आदि पत्रिकाओं बै एकबटयै री।
य ग्रंथ में पैंल कहानि नामी हिंदी नाटककार गोविंद बल्लभ पंत ज्यू द्वारा लेखी ‘एक रूपैंक चित्र’ शामिल छु। य कहानि कैं संपादक मठपाल ज्यू कुमाउनी में छपी हुई पैंल कहानि लै आपुण संपादकीय में अंताजन बतूनी (य कहानि ‘अचल’ फरवरी 1938 में निकली पैंल अंक में छपि रै )। भूमिका में डाॅ. प्रयाग जोशी ज्यू लेखनी कि 1938 है पैंली 1936 में बाबू राम सिंह पांगती द्वारा ‘छितकू की कथा’ कहानि लेखी छु, जो य ग्रंथ में शामिल छु लै। बात करी जौ पैंल कुमाउनी कहानिकि तो यां मामिल अलझी जां और लेखकोंक आपण मत देखीण में ऊनी। विद्वान लेखक डाॅ. शेर सिंह बिष्ट ‘जनपदीय भाषा साहित्य’ किताब में पेज नं.-63 में जयंती देवी द्वारा लेखी ‘राधि बुलै दि’ कहानि कैं लोकप्रिय बतूनी तो वांई डाॅ. प्रीति आर्या ज्यूल ‘पहरू’ जनवरी 2020 अंक में पेज नंबर 17 में छपी ‘कुमाउनी कहानिक उद्भव और विकास’ नामल समालोचना में यई कहानि ‘राधि बुलै दि’ कैं पैंल लिखित कहानि बतै रौ। उनूल जयंती पंतकि ‘राधि बुलै दि’ कहानिक जिगर ‘कुमाउनी कहानी संचयन’ (कुमाऊँ विश्वविद्यालय में तिसर सेमेस्टर में लागू किताब) पेज नंबर 26 में पैंल कहानिक रूप में करि रौ। यां कुमाउनीक पैंल लिखित कहानिक सवाल अलझी गो। ‘कौ सुआ, का्थ कौ’ ग्रंथ में कैं लै य कहानिक जिगर नी ऐ रइ, हां जयंती पंतकि ‘जूँ हो’ कहानि शामिल छु जो कुमाउनीक प्रसि( लोक कथा मानी जैं।


‘मेरि कुड़ कां छ’ नामल दिनेश कर्नाटक द्वारा लेखी चौउद पेजकि कहानि सबूं है लम्बी व श्यामाचरण दत्त पंत द्वारा लेखी ‘ज्याठज्यूक किस्स’ कहानि डेढ़ पेजकि सबूं है नानि कहानि शामिल छन। शेरदा ‘अनपढ़’ द्वारा लेखी ‘मेरि कहाणि’ गद्य रचना आत्मकथा तर्ज पर लेखी कहानि मालुम पड़ैं। आंखिरी 100ऊं कहानि गीतम भट्ट कि ‘मधदा’ नामकि कहानि शामिल छु।
13 महिला कहानिकार य ग्रंथ में शामिल छन जनूमें एक सुश्री वीणा कांडपाल नामकि कहानिकार छन जनरि ‘खै हालौ वे ऽऽ ’ कहानि शामिल छु परंतु य कहानि डाॅ. दीपा कांडपाल (नैनीताल) कि ‘उज्याव’ (कहानि संग्रह) में पेज 42 में सतूं नंबरकि कहानि छु और ‘पहरू’ मार्च 2015 में लै छपी छु। वीणा कांडपाल नामकि क्वे कहानिकार आज तक देखण में लै नि ऐ।
ग्रंथ में 10 कहानिकार उप नामल शामिल छन जो य प्रकार छन- फक्कड़, भाषा प्रेमी, पर्यटन प्रेमी, सेवक, दत्त, फसका, मनमौजी, बड़बाज्यू, कथा प्रिय। एक तरफ जां उप नामल नई कहानीकार शामिल छन वांई दुसर तरफ कई खास कहानिकारों कैं जा्ग नि मिल रइ, जनूमें रतन सिंह किरमोलिया (गरूड़) डॉ. आनंदी जोशी (पिथौरागढ़), स्नेहलता त्रिपाठी बिष्ट (हल्द्वानी), प्रकाश पुनेठा (पिथौरागढ़), डाॅ. नेहा पालनी भाकुनी (बागेश्वर), भागीरथी पंत (हरिद्वार), डाॅ. विष्णु दत्त भट्ट ‘सरल’ (चंपावत), ब्रिगे.धीरेश जोशी (हल्द्वानी), सोनू उप्रेती ‘सांची’(अल्मोड़ा), हंसा बिष्ट (खुर्पाताल), डाॅ. देव सिंह पोखरिया (अल्मोड़ा), डाॅ. प्रदीप उपाध्याय (हल्द्वानी), ज्योतिर्मई पंत (गुड़गांव), नवीन बिष्ट (अल्मोड़ा), ललित सिंह सिराड़ी (हल्द्वानी), दीपक कार्की (अल्मोड़ा) आदि । इन कहानिकारोंक कहानि 2018 तक ‘पहरू’ व हौर पत्रिकाओं में छपि रईं। ग्रंथ में कांई लै इनर जिगर लै नि है रइ।
कुल मिलै बेर ‘कौ सुआ, का्थ कौ’ कुमाउनी गद्य साहित्य में एक नई व ठुल उपलब्धि छु, जो एक नई प्रयास छु जैकि आपणि अलग विशेषता छु। 
कुमाउनी साहित्य में विशेष योगदान दिणी य किताबक प्रकाशन ‘समय साक्ष्य’15 फालतू लाइन, देहरादून-248001 द्वारा करी रौ। 8.5 x 5.5 इंच आकारकि य ग्रंथ 454 पेजक छु, जैकि कीमत 445 ( चार सौ पैंतालिस )  रूपैं छु।• 

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