‘राम चरित गीत’ : एक मूल्यांकन

       
  डॉ.गीता खोलिया
 सह प्राध्यापकः हिंदी, 
सोबन सिंह जीना परिसर, अल्मोडा़
मो.- 9412042208
  (  ‘रामचरित गीत’ कुमाउनी साहित्यकार पं. राम प्रसाद आर्य ज्यू द्वारा लेखी किताब छु। ) 
‘राम चरित गीत’ नामक पुस्तकक शुरूआत में कुमाऊँ भूमि, कुमाउनी बोलिक प्रति भौतै श्रद्धा और आस्था ब्यक्त करणी वा्ल पं. राम प्रसाद आर्य ज्यूल श्री रामचंद्र ज्यूक का्थ कैं कुमाउनी में शुरू बटिक आंखिरी जांलै संक्षेप में लेखि राखौ। यमें न तो कोई सूची पत्र छु, न अध्याय छन और नाई कांड छन। य किताब कैं लेखणक मुख्य उद्देश्य लेखकक यई छु कि जब हमर देशक हर राज्यक, हर क्षेत्रक लोग अपुण-अपुण बोलि में बात करनी त हम कुमाउनी अपुण कुमाउनी बोलि में बात करण में शरम किलै करनू? हमन कैं लैं अपुण कुमाउनी कैं अघिल बढ़ौन में सहयोग करण चैं। लेखक य पुस्तक द्वारा आपणि मनकि भावना कैं मैंस-मैंस जाणै पुजौण चानी।



पुस्तकक शुरूवात राम ज्यू प्रति अपुण अपार भक्ति और श्रद्धा करते हुए करनी लेकिन यैकै दगड़ कुमाऊँक भौगोलिक स्थितिक वर्णन करते हुए यांक समाज में फैली हुई बुराईनकि तरफ लै पााठकनक ध्यान आकर्षित करनी और इन दुर्व्यसनोंक त्यागकि लिजी प्रार्थना लै करनी-
मनुष शरीर भयो, देवता समान।
शराब पी बेरै हुनी, राकशै समान।।
भारि हुं जुलुम भाई, जो जुवा खेलनी।
नाना तिना, इजा बौज्यू, दुखिया है जानी।।
     
म्यारा भाई बैणा तुमी, छोड़ौ कु करम।
हाथ जोड़ी बेर कौंछूं, यो मेरो धरम।।
राम ज्यूक का्थ लेखणकि शुरूआत गायत्री मंत्र बटिक करनी। गणेश ज्यू कैं याद करनी। सत जुग पुर हुण बाद त्रेता युग आ, धरमक काज लिजी भगवानल अजुध्या कैं बसा। अजुध्या नगरीक पछाणक लिजी रेशमी बस्तुर में सूरजक निसाण बणाई गो, तब बटि यो कुल सूर्यवंशी कुल है गो, जैक राज इक्ष्वाकु भई। यैक बाद महादानी रघुराज पैद भईं जो अपुण बचनक पक्क छी। तबै बटिक य उक्ति चलि ऐ रै-
     ‘रघुकुल रीति सदा चली आई, 
प्राण जाई पर वचन न जाई।’
यैक बाद राजा सागीरथ, भागीरथ पैद भईं। भागीरथक कुल में राजा दशरथक जनम भौ। राजा दशरथक कुल में भगवान राम ज्यूल जनम ल्हे, जो भगवान बिष्णुक अवतार छी। राजा दशरथक तीन च्याल और भई-लछीमन, भरत और शत्रुघन। दुहर तरफ जनकपुरी में माता लक्ष्मील सीताज्यूक रूप में जनम ल्हे। दिन, महैण और बरष बीतते गई। चारों भै दगड़-दगड़ै गुरूकुल में पढ़न हूं गई। विद्याध्ययन पुर करि बेर अयोध्या न्है गई। महामुनि विश्वामित्र ज्यूक जग्य कैं राक्षसों बटि रक्षा करणकि लिजी राम लछीमन आश्रम में औनी। मुनियों को दुख हरि बेर ताड़का बध करनी। जनकपुरी में शिव धनुष कैं तोडि ़बेर सीता दगड़ ब्या रचैनी। लछीमन, भरत, शत्रुघन लै उर्मिला, मांडवी, सूर्ति-कीर्ति दगड़ ब्या करि बेर अयोध्या ऐ जानी। का्थ अघिल बड़ते गै। मंथरा दासी कैकई कें सिखै पढ़ै बेर राम कैं बनवास और भरत कैं राजगद्दी दिलवा दीं। राम, लक्षमन और सीता बण हूं न्है जानी। चित्रकूट पुजि बेर कुटिया बणै बेर रौण लागि जानी। अयोध्या में च्यालाक वियोग में बौज्यू मरि गया, इज बिधौ है गई, भरत भौतै दुखी है गई, राम ज्यूक पादुका गद्दी में धरि बैरागी बण गई।
गोदावरी नदी तीर पंचवटी वन में लकाड़-पताड़ काटि छप्पर बणै सीता, राम, लछीमन उमें रौण लागी। हँसि-खेलि दिन जाण लागा लेकिन करमकि लेख यां लै सुख नी छी। एक दिन सुरपनखा छोरि ऐ बेर राम लछीमन कैं दिख कर दीं। लछमन वीक नाक काटि दीनी। सुनुक हिरण बणि बेर मारीच ऐ जां। राम ज्यू मारीचक बध कर दिनी। जोगीक भेष बणै बेर रावण ऐ जां और सीता हरण कर लीजां। बा्ट में जटायु सीता कैं बचैणक चक्कर में मारी जां। रावण पंपापुरक पहाड़न मली बटिक लंका हूं बा्ट लागूं। सीता अपुण जेवरन कैं भीं में खितते रैं। बानर जेवरन कैं देखि बेर आकाश में रावण और सीता कैं देख लीनी। रावण अशोक वाटिका में सीता ज्यू कैं धर द्यूं। 
पंचवटी में सीताज्यू कैं नि देखि बेर राम भौते दुखी है जानी, डाड़ हालनी। द्वीनू भाई सीताज्यूक खोज में निकल पड़नी। जङव में शबरी, सुग्रीव और हनुमान ज्यू दगड़ उनरि भैंट हैं। राम बालीक वध कर दीनी और किषकिंधा नगरीक राजपाट सुग्रीव कैं सौंप दीनी। यांई नल-नील, जामवंत, अंगद, बानर दल, संपाति आदि सबनै दगड़ मिलाप हूं और सबै सीताज्यू कैं चाणै लिजी बा्ट लाग जानी। हनुमान ज्यू नानूना्न रूप धरि बेर लंका नगरी भितेर न्है जानी। वांई सुरसा राक्षसी दगड़ लड़ैं करनी। अशोक वाटिका में सीताज्यू दा्स देख बेर भौतै दुखी है जानी। राम ज्यू दी हुई मुनड़ि सीता कैं दी दीनी। अशोक वाटिका कैं उजाड़ बेर मेघनाद और भौतै राक्षसनक दगड़ यु( कर दीनी। लंका कैं जलै बेर सीताज्यूक कंगन ली बेर वापस राम ज्यूक पास ऐ जानी। बानर सेना, रीछ सेना दगड़ राम लछमन लंका पर चढ़ाई कर दीनी। लंका में मंदोदरी रावण कैं समझंै, रामज्यूकि वीरता और गुणन कैं बतैं, सीताज्यू कैं वापस रामज्यू कैं सौंपणक लिजी प्रार्थना करैं। भाई विभीषण लै रावण कैं बार-बार समझूं लेकिन घमंडी रावण लात मारि बेर विभीषण कैं निकाल द्यूं। विभीषण रामज्यूक शरण में ऐ जां। यई बीच समुद्रकि पुज, रामेश्वरम में शिवज्यूकि पुज और शिवज्यूक प्रसन्न है बेर दिव्य अस्त्र-शस्त्र और यु( जितणक आशीर्वाद प्रसंग औनी। अंगद रावण संवाद, लछमन कैं शक्ति लागण, हनुमानज्यूक संजीवनी बूटी लौण, सुषेण वैद्य द्वारा लछमनक उपचार करण, कुंभकरण वध, मेघनाद वध, मंदोदरीक विलाप, सुलोचनाक सती है जाण, राम रावण यु(, विभीषणक रावण कि न्योटि में अमरित हुणक राज बतौण, रामज्यू द्वारा रावणकि न्योटि में बाण चलौण, रावणकि मौत। रामज्यूक विजय हुण पर स्वर्ग बटिक द्याप्तनक फूल बरसौण, आशीष दिण आदि प्रसंगनक बाद मंदोदरीक मुख बै लंकाकि दुरदासक और कुलक विध्वंशक दोष रावण कें दिणक वर्णन छू-
को करँछ अब स्वामी ऽ ऽ, तेरि सत गत ऽऽ।
राम का विमुख भया, कुल नटी ऽऽ गयोऽऽ।
      दिया बाती जलूण की ऽ, क्वे लैकै नी रयोऽऽ।
अघिलकि का्थ में विभीषण कैं लंकाक रा्ज बणै दी जां। हनुमान ज्यू अशोक वाटिका में ऐ बेर सीताज्यू कैं रामज्यूकि जीत और रावणकि हारक बार में खबर दीनी। सीताज्यू खुश है बेर भली कै बटी बेर, सिंगार कर बेर रामज्यूक सामणि औनी। रामज्यू सीताज्यू तरफ पुठ कर दीनी। सीता ज्यू समझ जानी कि रामज्यू कैं मेरि पवित्रता पर शक छू। सीताज्यू अग्निपरीक्षा दिणै लिजी चिता में बैठ जानी। अग्नि परीक्षा बटि चोख निकलनी और द्वीनौक मिलाप है जां-
सीता राम मिलाप कैं, जो लै कै देखनी।
हिय भरी जांछ रामा, आँसु लै झड़नी।।
लंका बटिक विभीषण थैं भेंट स्वरूप पुष्पक विमान, हीरा-मोती, रत्न, मणि, सुनु-चांदि, ढाल-तलवार आदि ल्ही बेर राम चंद्र ज्यू अयोध्या हुं वापसी करनी। सीताज्यू, लछमन, सुग्रीव, विभीषण, हनुमान दगड़ पुष्पक विमान में रामज्यू अयोध्या लिजी बा्ट लागनी। अयोध्या पुजि बेर भै भरत, इज कैकई, सुमित्रा और कौशल्या, उर्मिला, सूर्ति-कीर्ति, मांडवी आदिनक दगड़ मिलाप हूं। रामज्यूक राजतिलक करी जां, जैमें देबी- द्याप्त, )षि- मुनि शामिल हुनी। राम ज्यू बानर सेना, रीछ सेना आदिन कैं भेंट दी बेर बिदा करनी। सीता ज्यू गर्भवती है जानी लेकिन यां लै दुर्भाग्य उनर पिछ नी छोड़न। एक धोबिक द्वारा राम ज्यू कैं ब्यंग करी जां। राम ज्यू बिवश है बेर सीताज्यू कैं जङव में छोड़नक लिजी लछमन कैं भेज दीनी। जङव में महर्षि बाल्मीकि सीता ज्यू कैं आश्रय दी दीनी। यांई लव और कुश पैद हुनी। महर्षि द्विए नानतिननकैं शिक्षा-दीक्षा दीनी, धर्नुविद्या में पारंगत बणै दीनी।
अयोध्या में राम ज्यू अश्वमेघ यज्ञक आयोजन करनी। देवलोक बै सबै देवी देवता, )षि मुनि औनी। लव कुश लै महर्षि बाल्मीकि दगड़ औनी। अश्वमेघ यज्ञक घ्वड़ लव कुश पकड़ लीनी। लछीमन घ्वड़ कैं छुड़ौनकि कोशिश करनी लेकिन सब बेकार जां। लछीमन घायल है जानी। राम ज्यू य समाचार सुणि बेर औनी, लव कुशक दगड़ यु( करनी। सीता ज्यू कैं जसी पत्त चलूं कि लव कुश रामज्यू दगड़ यु( करनई ऊं महर्षि दगड़ वां पुज जानी। राम ज्यू सीता कैं पछाण जानी। महर्षि बाल्मीकि लव,  कुशक परिचय राम ज्यू कैं दीनी। सीता ज्यू लव, कुश कैं उनर बौज्यू ;राम ज्यूद्ध कैं सौंप बेर धरती भितेर समै जानी। यो देखि बेर राम ज्यू, लव, कुश और  महर्षि डड़ा-डाड़ करण लाग जानी। राम ज्यू लव, कुश कैं ल्हिबेर अयोध्या ऐ जानी। अयोध्यावासी ऊं सबनक स्वागत करनी, लव, कुशकि प्रशंसा करनी। घर का बौड़िया चंदन, पिठियां लगौनी, आरती करनी, गुरू वशिष्ठ  द्विए भाइन कैं महल में ली जानी। यतिकैं ‘रामचरित गीत’क समापन है जां। का्थक आंखिरी में पं. राम प्रसाद ज्यू राम का्थ कैं जीवनक परम साध्य बतै बेर अपुण आशीर्वाद सबन कैं दीनी-
भाई बैणा बचि रया, लाख सौ बरीश।
राम गीत सुण बेर ऽऽ, जग रया जिति ऽऽ।
अब करी दिछुं गीत ऽऽ, यति कणी इतिऽऽ।।
ओऽम भुर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गाे देवस्य धीमहि धियो यो न प्रचोदयात।। ऊँ।। गायत्री मंत्र द्वारा ‘राम चरित गीत’ क समापन है जां।
य त य रचनाक संक्षेप में कथानक छी। य रचना कैं पढ़न बखत जो-जो विशेषता म्यार समझ में आई, उनर संक्षेप में वर्णन करनयूं।
राम ज्यू और लछीमन ज्यूक गुण गान-
 ‘राम का बिगर इजा, कैं सुख न्हैंती कै बेर य रचना में शुरू बटिक आंखिर जाणै राम और लछीमन ज्यूक गुण गान करि राखौ। राम ज्यूक राज पाट छोड़ि बेर बन न्है जाण पर पुर अजुध्यावासी दुखी है जानी-
भरत जी रूण लागा, आँसु छण-छण।
सारि प्रजा रूण लागी,रूंछ कण-कण।
   
क्या दुख ऐ गयो शिवौ, राम रघुवीरा।।
नल, नील, हनुमान, सुग्रीव, जामवंत सबै राम लछीमन ज्यूकि जय जय कार करनी और कौनी-
राम जी की जय-जय, लछीमन वीरा ऽऽ। 
जय -जय-जय-जय, रघुवंशी वीरा ऽऽ।
मनोहर छवि देखी, राम रघुऽऽवीरा ऽऽ।।
मितुर त राम और लछीमन ज्यूक गुणगान करते रौनी, सतुर ल उनरि महिमाक गुणगान करि बिना नी रौंन। मारीच कौनी-
राम लछीमन छन, अवतारी पुरूष।
उनू हुणि बैर करी, कुल को छ नाश।।
कुंभकरण लै रामज्यू कैं बिष्णु अवतार बताते हुए कूं-
विष्णु अवतारी छन, अजुध्या का राम।।
हनुमान ज्यू लै राम कंै नारायण अवतार बतूनी। राम ज्यूकि मनोहर छवि देखि बेर खुश है जानी-
राम का रूप में आज, नारायण मिला
भौतै खुशी है गया, हनुमानऽ वीरा।।
मनोहर छवि देखी,राम रघु वीराऽऽ।।
रचनाकारल लछीमन ज्यूक चरित्र कैं लै भौतै महान दिखौणक प्रयास कर राखौ। जा्ग-जा्ग में उनर उदात्त रूप देखौणक लिजी कतुकै उदाहरण दी राखी। सीता हरण बाद जङव में बानरों द्वारा सीताज्यूक जेवरन कैं पछाण लिजी देखौण बखत लछीमन जेवर नी पछाण सकन किलैकी उनूल त सीता कैं हमेशा इज रूप में देखौ, कभै उनर मुख या शरीर कैं नी चैं। यदि कभै देखी तो उनर खुट,उ लै पैलाग कौण बखत, तबै कौनी-
मैंले नैं पछियाण दाज्यू, कान का कुंडला।
खुटांका बिछुवा दाज्यू, भौजी का तो होला।।
यो ले नैं पछियाण मैंलै, हाथों का जेेवरा।
क्वै लै नैं देखौ मैंलै, हाथ तो उनारा।।
पैलाग मैं कौंछी जब, भौजी का खुटान।
खुटा का बिछुआ मैंलै, तब तो देखान।।
सीताज्यू प्रति लछीमन ज्यू आपुणि इजकि चारि भौतै आदर भाव धरनी और कौनी-
लछीमन कौनी भौजी! नैं मारौ तौ बोली।
जेठि पाठी भौजी मेरी, इजा जसी होली।।
सीता ज्यू लै बखत-बखत लछीमन ज्यूक बढ़ाई करनी, उनर पराक्रमक वर्णन करनी-
महाबली छन .........म्यरा, द्योरा लछीमन।
बोटि-बोटी काटि दिला, ज्यौनै नी धरन।।
युद्धै लिजी जाण बखत लछीमन ज्यूक वेशभूषाक और बीरताक बखान करते हुए कौनी- 
कान में धनुष धरौ, हाथ लियो तीर ऽऽ।
लड़ाई में जानी इजा, लछीमन वीर ऽऽ।।
मेघनाद वधक बाद सुलोचना लै राम और लक्ष्मण ज्यूकि महिमा वर्णन करते हुए कौनी-
राम दरशन होला, मैं तो जूंलौ तरी, 
प्रभु राम जी का  इजा, मैं जोडंूली हाथा।।
राम भगवान छन, त्रिलोकी का नाथा।।
महाबली छन इजा, लछीमन वीरा।
भौतै दयालु छन, राम रघुवीरा।।



सीताज्यूक वर्णन- 
‘राम चरित गीत’ में सीताक वर्णन लै एक पतिब्रता, आदर्श स्यैणिक रूप में है रौ। शुरू बटिक आंखरी जाणै सीताज्यू चरित्रक उत्कृष्ट रूप य में देखीं। सीता रामज्यूक लिजी भौतै परेशान है जानी और गुस्स है बेर लछीमन थैं कौनी-
सीता जी तो कौंछी तब पापी लछीमन।
मैंले जाणी हैछौ अब, कि छु तेरा मन
किलैक नैं, जाना तुमी, राम जी की खोज।
    
राम जी की रीस कैंछा, आपण मन में।
सीताज्यूक पतिव्रता स्यैणिक रूप जा्ग-जा्ग में देखीं। रामज्यू थैं मिलाप करण चानी और कौनी-
स्वामी जी छें कई दिया, मैं जल्दी ली जावो।।
एक घड़ी धो काटण, तुमारा बिगर।
लंका जीतणैक बाद राम ज्यू थैं भैंट लिजी सीताज्यू खुश है जानी, नै- धो बेर, सिंगार करि बेर बटी जानी-
नायो धोयो सीता जी ले, श्रृंगार कराया।
रेशमी कपड़ा पैरा, जेवर पैराया।।
अजुध्या पुजण पर राम ज्यूक राज्याभिषेक बखत सीताज्यू कंै फिर सिंगार कराई गो। उनर सिंगार और रूपक वर्णन करनी-
रेशमी कपड़ा पैरा, पैरा हीरा मोती।
गाव में बैजंती माला, पीङली छ धोती।।
सीता जी ले पैरी तब, मोतीन की माव।
हीरा की मुनड़ी पैरी, गुलूबंद गाव।।
धोबी द्वारा सीताज्यूक चरित्र में लांछन लगौण पर राम ज्यू उनन कैं वन में भेज दीनी। उ बखत सीताक दुखी मनकि पीड़ इन पंक्तिन में देखीं-
मेरी मुक्ति करौ प्रभू, मैंकंे बाटो दियो।
हे ईश्वर य  पराण , तुमी हरी लियो।।
मैं पापिना किलै भयूं, यतुक अभागी।
पतिब्रता सीताज्यू मन में हर बखत राम ज्यूई रौनी, तबै त कौनी कि रामज्यू अलावा कोई लै पुरूषक ध्यान मैंकें स्वैण में लै नी ऐ-
स्वीणा ले नंै देखा मैंले, पुरूष पराया।
नाका भाला ख्याल कबै, मन में नैं आया।।
भरत- 
राम, लछीमन और सीताज्यू अलावा य रचना में भरतक चरित्र लै भौतै भल दिखै राखौ। भरत कैं राम ज्यूक परम भक्त, आज्ञाकारी भै रूप में प्रस्तुत कर राखौ, तबै त रामज्यूक बनवास और आपुण राजगद्दी बात सुणि बेर गुस्सल भरी बेर अपुण इज कैकई थैं अपशब्द कै दीनी-
ओ  इजा डंकणि इजा, तू बात नैं कर।
त्वीले तो उजाड़ि दियो, यो हमर घर।।
रामज्यूकैं देखण लिजी भरत ज्यू भौतै 
ब्याकुल छन तबै तो बार-बार राम ज्यू थैं गुहार लगौनी-
जल्दी आवो घर रामा, यूऽ तुमर ऽ राज।
भौत मैं थकि गयूं, करि राम काज।।
एक दिन हई रयो, बरस समान।।
यई कारण छु कि ‘रामज्यू अयोध्या वापस औनई’ य समाचार सुणि बेर खुशि है बेर नाचण लाग जानी-
भरत पगला भया, खुशी का कारण।
दौड़ी-दौड़ी भ्यार आया, लागनी नाचण।।
राम आया राम आया, जोर लै धतौनी।
भरतकि खुशिक के ठिकाण न्हांतिन, तबै त धात लगै-लगै बेर सबन कैं बुलौनी-
ओ इजा ओ ठुलि इजा, राम आया कौनी।।
नानि इजा ठुलि इजा, सबै इजा आया।।
                         
शहर खबर दिनी, शत्रुघन वीरा ऽऽ।
आज घर आई जानी, राम रघुवीरा ऽऽ।।
लव कुश- 
‘राम चरित गीत’ में लव कुश कैं लै उदात्त रूप में प्रस्तुत कर राखौ। य द्विए भाई गुणनकि खान छन। इनर रूप दिव्य, अलौकिक छू। यास च्याल पै बेर त मै-बाब धन्य है जानी-
मनुष्य जन्म आई, जो पुण्य करनी।
लव कुश जसा च्याला, उ भागी मिलनी।।
लव कुश देखण में भौतै बान छन। जो लै इननकैं देखूं उ  देखियै रै जां-
लव कुश द्वी भायों कैं, सबै देखी राया।।
कान में धनुष छियो, हाथ पर तीरा ऽऽ।
कि भलौ लागनी इजा, लव कुश वीरा ऽऽ।।
अश्वमेघ जग्य बखत लव कुशाक मिठौ-मिठ गीत सुणि बेर राम ज्यू खुश है जानी। खुश है बेर हीरा-मोती दिण चानी लेकिन अपुण संस्कार और भलि परिवरिशक परिचय देते हुए इनाम लिण में इंकार कर दिनी-
लव कुश कौनी प्रभु, माफ करि दिया।
हीरा मोती सुनू चांदी, तुमि धरि लिया।
       
हमन कैं दियो प्रभु, आपण आशीष। 
सीताज्यू कैं राम ज्यूल घर बटि निकाल देछी, य का्थ लव कुशल सुणि राखि छी। आज राम ज्यू कें आपुण सामणि देखि बेर मर्यादा पुरूषोत्तम राम कैं उनरि मर्यादा याद दिलूनी-
रघुकुल राजा छिया, दयालु व दानी।।
पतिब्रता नारी सीता, तुमूलै छोड़ी छ।
आपण कुल की रामा, मर्यादा टोड़ी छ।।
अन्याई राजा को हमी, विरोध करूंलो।
योई लव कुश आपणि इज सीता ज्यूक धरती में समै जाणक बाद भौतै दुखी है जानी और डड़ा-डाड़ करण लाग जानी-
    भिकुरि -भिकुरि शिवौ, ऊं डाड़ डड़ौनी।
    व इजा व मेरि इजा,कथ गई कौनी।
 उनरि दास पाणि बटि अलग हई माछ जसि है जैं-
माछ जासा तड़पनी, लव कुशा वीरा ऽऽ।
विभीषण-
अन्य राम कथा संबंधी जो ग्रंथ लेखी रई उनन में जो रूप विभीषणक दिखा राखौ, लगभग उई चरित्र य ‘राम चरित गीत’ में लै छू। राम ज्यूक परम भक्त, धर्म, न्याय और मर्यादा में चलणी वाल चरित्र विभीषणक छू। मर्यादा पुरूषोत्तम रामक परम भक्त छू तबै त अपुण भाई रावणक यज्ञ हवन कंै रामज्यूक विजय श्री लिजी भंग करणक प्रार्थना करूं।
हाथ जोड़ी बेर कौनी, राम रघुवीरा ऽऽ।
झट भेजो बानरों कैं, जग्य करो भङ।
यो जितण यु( होलौ, रावण का सङ।।
रावण- 
रावण नामक पात्र लै अन्य राम कथा संबंधी गं्रथनक चारि य रचना में लै प्रस्तुत करि राखौ। रावणक अहंकारी, गुस्सैल, दुष्टता भरी रूप देखीं। य रावण कांई त सीता हरण करणक लिजी साधुक भेष में दिखाई द्यूं त कांई लंकाधिपति रावणक रूप में-
सिर पर जटा छन, गेरूवा लुकुड़।
हाथ पर कमंडल, जोगि है रौ ठाड़।।
यई बहुरूपी रावण भौतै दुष्ट छू। सबै जनता यैक दुष्टताल भौत दुखी छ-
रावण दुष्ट करँछ, भौतै जुलम।
      
भौतै दुखिया छन, तुमर स्यौकार।।
अहंकारी, गुस्सैल रावण मारीचक द्वारा समझौण पर, राम ज्यू थैं बै नैं लियौ कौण पर गुस्सल कामण लाग जां, मारीच कें ज्यानल मार दिणकि धमकी द्यूं-
रीस ले कामण लागौ, दशानन तब।
आँख ताणि बेर वीले, खैंचि चंद्रहास
तलवार धरि हली, गरधन पास।।
होस में रौ तू मारीच, मारि द्योंलौ ज्यान।
रावणक य रूप देखि बेर मारीच भौतै डर जां और मन में सोचण लागूं-
यो पापी रावणा हाथ, मैं तो जूंलौ मरी।।
कि धाना करूँछ अब, कसिकै बचुंलौ।
मंदोदरी जब रामज्यूकि बढ़ाई करैं त रावण अपुण अहंकारी रूप दिखै दूं और कूं-
राम लछीमन कि तो, मैं न्हैंती डर।
उनू कंै पुजाई द्योंलौ, यम राजा घर।।
        
दुनिया में क्वे लै नैं छौ, म्यारा बराबरी।।
यां तक कि भै विभीषणक समझौण पर लै अहंकारी रावण अपुणि तारीफ करण ला्ग जां और भै कैं लतिया द्यूं-
रावण नैं लागी भलै, विभीषण बात।
रीस लै कामण लागो, उठि मारी लात।।
अंगद रावण संवाद में लै रावणकि यई अहंकारी रूप देखीं-
नैं जाणनै तू बानरा, मैं छुं महाबली,
      
राम लछीमनकि तो, मंै न्हैंती डर।
राम प्रसाद ज्यूल कई-कई प्रसंगनन में रावण कैं महाबली रूप में लै दिखै राखौ-
महाबली रावण छौ, अति धनुर्धारी।
घायल बानरा करा, वीले मारि मारी।
यई नैं रावणक भक्ति भाव, भगवानकि प्रति निष्ठा, आस्था लै कई जाग देखीं-
होम जग्य पूजा कोछ, शिव जी का थान।
महामंत्र वेद माता, उ  करँछ ध्यान।।
हनुमान- 
हनुमान ज्यूक पात्र एक रामभक्त हनुमानक पात्र छू। महाबली हनुमान राम ज्यू परम भक्त छन। आज्ञाकारी छन। यई कारण छू कि राम लै उननकंै भौतै भल माननी, अपुण भक्त रूप में उनर सम्मान करनी। सीता ज्यू कैं अपुण इजक रूप में देखणी वाल हनुमान सीता ज्यू खोज में लाग जानी। अनेक संकटों सामना करते हुए अंत में लंका पुजि बेर सीता ज्यू कैं खोजि लीनी। हनुमान ज्यू कैं रचनाकारल एक वीर सैनिक रूप में चित्रित कर राखौ। कुमाऊँक परिप्रेक्ष्य में हनुमान जी कैं रक्षा मंतरि रूप में चित्रित करते हुए कौनी- 
रक्षा का मंतरी छन, हनुमान वीरा।
यई हनुमान वीर हमर देशक रक्षा कराल, य रचनाकारक पूर्ण विश्वास छु-
सागर कैं तरि बेर, जो दुष्ट ले आल ऽऽ।
हमारा सिपाइ वीका, खैंचि द्याल खालऽ।।
जामवंत, सुग्रीव, बानर सेना, रीछ सेना, संपाति, जटायु, मंदोदरी, सुलोचना, मेघनाद, कुंभकर्ण, जटायु, उर्मिला आदि पात्रनक वर्णन लै य रचना में है रौ। पात्रनक चरित्रक दृष्टिल य रचना सफल देखीं।
वियोग वर्णन- 
पं.राम प्रसाद आर्य ज्यूल य रचना में वियोग वर्णन कैं भौतै सुंदर रूप में प्रस्तुत कर राखौ। य वियोग रामज्यूक वियोग छू, सीता ज्यूक छू, लक्ष्मण, भरत, सुमंत और समस्त अयोध्या वासियोंक, पशु पक्षी, जड़ चेतनक वियोग छु। राम ज्यूक वनवास जाण बखत सुमंत ज्यू दुखी है जानी और कौनी-
तुमन कैं छाड़ि रामा, वापिस नंै जानी।
तुमर बिगर मैं तो, खाण लै नंै खानी।।
दुष्ट रावणल जब सीताज्यूक हरण करौ उ बखत सीताज्यूक दुखक भौतै मार्मिक चित्रण है रौ- 
भौतै तड़पि शिवौ, सीता उ बखत।
सीता छु अबला नारी, रावण सखत।।
           
हे राम हे शिव य ले, क्या जुलम भयो।
सीता का उपर आज, क्या दुख ऐ गयो।।
सीता ज्यू राम ज्यूक वियोग में भौतै दुखी है गई और पक्षिन थैं लै अपुण दुख कौण लागनी-
हे खगा बुलाइ दियो, मेरा पती राम।
मैं भारी संकटा आयो, को लागला काम।।
         
हवा देवा रूकि जाओ, मैं दुखै ऐ गयो।
यो दुखा बखत मेरो, क्वेलै कै नी भयो।।
रावणकि लंका में सीता कैं कैद कर दी गयौ। सीता डड़ा-डाड़ करण लागी-
रावण महल सीता, कैद हई गई।
द्वी हाथों ले मुख ढकी, राम राम कई।।
        
करम की लेख शिबौ, कैले कंै नी देखी।
दुख का सागर डुबी, व जानकी देवी।।
अशोक वाटिका में हनुमान ज्यू द्वारा राम ज्यूकि मुनड़ि दिण पर सीता भौतै दुखी है जानी-
मुनड़ि कंै देखि देखी, लागैंछी अलाण।
मुनड़ि कंै बार-बार, छाति लै लगौंछी।।
        
राम जी का दरशन, मैं कैं कब होला।
यो पापी रावण हाथ, मैं कब छुड़ाला।।
सीता ज्यू हरण है जाणक बाद राम ज्यू विलाप करनी-
    यो मेरि जिंदगी अब , कसि कै बितली ।।
    सीता का बिगर म्यरौ , नि रयो सहारा ।।
हनुमान ज्यू थैं रामज्यू अपुण मनकि बात कौनी-
कसिकै भुलुछूं मैं तो, वीका तसबीरा।
डाड़ै ले मारण लागा, राम रघु वीरा ।।
सीता ज्यू द्वारा दी गई कंगन कैं जब हनुमान ज्यू राम ज्यून कैं दीनी त राम ज्यू डाड़ हालण लागनी-
कंगना छाति लै च्यापौ, हाय सीता कौनी।
कंगना कैं देखि देखी, डाड़ ले मारनी।।
चक्रवर्ती रा्ज हुणक बाद लै राम ज्यू सीता ज्यू लिजी दुखी छन और बार-बार उनरि याद कर बेर डाड़ हालनी-
चक्रवर्ती राजा भया, रामा रघुवीरा ऽऽ।
फिरि ले दुखिया छन, राम रघुवीरा ऽऽ।।
        
कुशा का बिस्तर पर, रौनी रघुवीरा ऽऽ।
हँसि ले हराणी इजा, त्यारा रघुवीरा ऽऽ।।
सीता ज्यूक धरती में यस जाणक बाद राम ज्यू भौतै दुखी है जानी और सीता कैं याद करि बेर डाड़ हालणी-
मेरि प्यारी सीता प्यारी, तू किलै ल्है गई।।
डाड़ ले डड़ौनी शिवौ, राम रघु वीरा ऽऽ।
दुखिया है गया इजा, त्यरा रघु वीरा ऽऽ।।
        
भिकुरि भिकुरि शिबौ, ऊं डाड़ डड़ौनी।
व इजा व मेरि इजा, कथ गईं कौनी।।
महर्षि बाल्मीकि ज्यू जब रामज्यू कैं सीताज्यूकि पवित्रता बा्र में बतूनी त राम ज्यू पश्चाताप करनी और डाड़ हालनी-
मुनि जी ले समझाया, राम रघुवीरा ।
झर-झर आँसू आया, राम रघुवीरा ।।
नारी सौंदर्य- 
‘राम चरित गीत’ में रामप्रसाद ज्यूल जतुक लै स्यैणी पात्रनक वर्णन कर राखौ उनन में सीता ज्यू मुख्य छन। इनर अलावा सुर्पनखा, मंदोदरी, सुलोचना, उर्मिला आदि पात्रनक वर्णन त ऐरौ लेकिन जादा न्हातिन। रावण मारीच थैं सीताज्यूक सुंदरताक बा्र में बात करूं-
दगाड़ा में लाई रया, जनक कि चेलि।
उ तो मैंले देखि राखी, भौतै बान होलि।।
जोगी भेष बणै बेर जब रावण पंचवटी में ऊं त भौतै बान सीता कैं देखि बेर चाई रै जां-
हाथों पर कंगना छ, कानों पर हीरा।
मणियों की माला छन, सीता जी का अंग।
सीता माई देखि बेर, रावण छ दंग।।
राम ज्यू लै हनुमान ज्यू थैं सीता ज्यूक बा्र में बात करनी और कौनी-
ताला काना कनफूला, माला काना बाली।
कसिकै भुलूं छुं मैं तो  वीका तसबीरा।।
सीता ज्यूक अलावा सुर्पनखाक सुंदरता कै ल रचनाकारल य रचना में बतै राखौ-
कि भली छ बान उ तो, नैं काली नैं गोरी।।
गुलाबी छ रङ वीकौ, बाटियो शरीरा।।
आँखा छन हिरण जसा, बाल सुनहरा।।
एक जा्ग में तो रचनाकार सुर्पनखा सुंदर मुखड़ि कैं देखि बेर उकैं पुन्यू जून बताते हुए कौंनी-
सुनु कसी गेलि होली, पुन्यू कसी जून।
मोहनी को रूप धरी, बाटा लागी रई।।
प्रकृति चित्रण-
‘राम चरित गीत’ में पं. राम प्रसाद आर्य ज्यूल जा्ग-जा्ग प्रकृतिक सुंदरताक वर्णन लै करि राखौ। लेकिन य प्रकृति सौन्दर्य भौत न्हाती। य रचनाक शुरू में अयोध्याक वर्णन करि राखौ। जङव में गोदावरी नदीक तीर पंचवटी वनकि सुंदरताक वर्णन करनी-
गोदावरी तीर लागो, पंचवटी वन।
सुंदर छ वन रामा, लागी गयो मन।।
सीता ज्यू कैं बण में ढुणन बखत राम ज्यू बण में फूल-फल, बोट, पशु- पक्षिन कैं देखनी और उननथैं सीता ज्यू बार में पुछनी-
कांकड़, हिरन आया, चाड़ा प्वथा मोर।
           
ओ बाटा बताइ दियो, ओ फूलों की कली।
कदमा का बोट बता, सीता कथ होली।
मोर ले बासण लागा, जंगला का चाड़।।
अशोक वाटिका में हनुमान ज्यू फल-फूलनक बोटन कैं देखि बेर खुश है जानी और फल खाणक लिजी सीता थैं आज्ञा मांगनी-
फलों का बगीचै में तो, फल पाकी रया।
          
फल-फूलनै मंे मेरौ, लागि गयो मन।
अजुध्या नगरी क फल-फूल, अन धन, हरी भरी खेतों लै परिपूर्ण हुणक वर्णन लै करि राखौ-
अन धन फल फूल, खेत भरी रया।
           
अनाज ले खेत छन, हरिया भरिया।।   
                        
फूल फल लागि रया, बोटन डाइ में।
रचनाक आंखिरी प्रसंगन में जै बखत सीताज्यू धरती भितेर समै जानी उ बखत उ जाग में फूल खिलणक वर्णन लै देखीं-
सीता ज्यू बीवर गई, धरती गे मिली।
उ बखतै उ जागा में, फूल गया खिली।।
यदि )तु वर्णनक दृष्टिल देखी जौ तो यमें-चैमासक वर्णन जादा देखीं। किषकिंधा नगरीक वर्णन करण बखत एक शीर्षक ‘वर्षा )तु वर्णन’ दी राखौ जैमें चैमासै बखतकि सुंदरताक वर्णन करि राखौ। चैमासै )तु में धरती में छाई हुई हरियालीक वर्णन लै करनी-
चैमासै की ऋतु भुला, अब आई गई।
झुण मुण झुण मुण , बरखा है गई।।
        
चम चम चम चम बिजली चमकी।
छम छम छम छम, पाणिकि छमकी।।
          
हरियाली औण लागी, धरती उपर
अजुध्या में राजतिलक हुण बाद धोबिक ब्यंग करणक बाद राम ज्यू सीता ज्यू कैं बनवास दी दीनी। उ बखत लै चैमासकि ऋतु में राम ज्यू सीता ज्यूक लिजी दुखी है बेर कौनी-
महैण लै बिति गया, बर्षा ऋतु आई।
भौतै उदास भई, व जानकी माई।।
सौण को महैण इजा, मुखै छंै ऐ गयो।
गर्भवती सीता जी को, पूरै मास आयो।।
महामुनि बाल्मीकि ज्यूक आश्रम में लै फल-फूल, जंगली बेर, तरूड़, कंद फूल आदि चीजनक वर्णन देखीं-
फूलों का बगीचा बटी, फूल चुनी लाई।
        
जङलै में जाई बेर, तरूड़ा खणछी।
कंद फल चाई बेर, घर हुणी लौंछी।।
रस, अलंकार, छंद- 
‘राम चरित गीत’ में मुख्य रूपल भक्ति रस, श्रृंगार रस ;संयोग-वियोगद्ध, करूण, वात्सल्य, भयानक व वीर रस देखीनी। रामज्यू प्रति भक्ति, राम ज्यूक शिव ज्यूक प्रति भक्ति, रावणक शिवज्यू प्रति भक्ति भाव यमें देखीं। इनर कुछ उदाहरण-
भक्ति रस- 
जागा-जागा मंदिरों में, पूजा हुण लागी।
शंख घंटा बाजि गया, दीप गया जगी।।
          
      आओ दाज्यू पूजा करो, राम जी की कौंछी।।
संयोग वात्सल्य-
ठुमुक-ठुमुक तब, आंगन हिटनी।
राजा राणी गुरू देवा, खुशी लै हँसनी।।
तालि बजै-बजै बेर, मुखै छैं बुलौनी।
चारों भाई मिलि जुली, खेल ले खेलनी।।
वियोग वात्सल्य-
भिकुरि-भिकुरि इजा, रूधना करैंछी।
          
इजा तो है गई तब, भौतै उदास।
          
इजा कौंछी मेरि चेली, मैं ल्यिौनौ अदींन।
संयोग श्रृंगार-
हाथों पर कंगना छ, कानों पर हीरा।
मणियों की माला छन, सीता जी का अंग।।
वियोग श्रृंगार- 
हे खगा बुलाई दियो, मेरा पती राम।
        
हवा देवा रूकि जाओ, मैं दुखै ऐ गयो।
यो दुखा बखत मेरो, क्वे लकै नी भयो।।
वीर रस- 
राम रावण को युद्ध हुण फै गया ।।
राकशों कैं चुटण लागा, राम जी का वीरा ऽऽ।।
तीरों की वारिश कनी, राम रघुवीरा  ऽऽ।।
वानरों लै चिरि दियो, राकशों को दल।
भयानक रस-
जुलुक भितेर सीता, बहतै डरैंछी।।
घुना मुना एक करी, भलि कै लुकैंछी।।
हे भवानी करि दिया, नानी नानि रात।
‘राम चरित गीत’ में छंदनक प्रयोग भौत स्पष्ट न्हातिन। पं. राम प्रसाद आर्य ज्यूल कांई त चार पंक्तिनक पद लेख राखी, कांई आठ पंक्तिनक, कांई कांई दस पंक्तिनक, कांई बार-चैद और कांई-कांई पैंतीस-छत्तीस पंक्तिनक लै पद छ। इननमें गेय पद लै कांईं-कांई लेख राखी। एक जा्ग में दोहा देखीनौ लेकिन य कुमाउनी में न्हांती हिंदी में छु-
दैत्य वध किया राम ने, दिया बैकुंठ धाम।
रामी दुर्गुण छोड़कर, नाम भजे श्री राम।।
लंका में राम रावण युद्धक अंत में ‘तुलसी रामायण’ बटिक एक छंद यमें ली राखौ-
जय जय धुनि पूरी ब्रह्मांडा।
जय रघुवीर प्रबल भुज दंडा।।
वरषहिं सुमन देव मुनि वृंदा।
जय कृपाल जय जयति मुकुंदा।।
यदि अलंकार प्रयोगकि दृष्टिल देखी जौ तो य पुस्तक में अनुप्रास अलंकार लगभग पुरि पुस्तक में देखीं। अन्त्यानुप्रास अलंकार भौतै देखीं। यैक अलावा उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, पुनुरूक्ति प्रकाश आदि अलंकारनक प्रयोग जा्ग-जा्ग देखीं। उदाहरण देखौ-
उपमा- 
आँखा छ हिरणा जसा, माछ जस तड़पनी, धरती में गिरि पड़ौ, जस झड़ौ पात, पुन्यू जून जसि मुखड़ि, रात जस काव।
उत्प्रेक्षा-
 उडियार भितेर जस , टिड्डी दल जै।
बानरा ले टुटि पड़ा, जासा छन बाज।।
राहू आई गयो जस, सूरज कंै खाणा,
मंदोदरी राणि आँखा, द्यो जसौ झुराण।।
रूपक-
माया रूपी नागिन कैं, सब खाई गया।
काल रूपी राता।
अनुप्रास-  
अन्त्यानुप्रासकि झलक लगभग पुरि पुस्तक में देखीं। अनुप्रास- जा्ग-जा्ग में देखीं।
पुनरूक्ति प्रकाश-
घ्ज्ञर-घर, कुड़ि-कुड़ि, खैंचि-खैंचि, धुकुड़ा-धुकुड़ा, भिकुरि-भिकुरि।
इनर अलावा कांई-कांई संदेह और श्लेष अलंकार लै देखीनी।
ध्वनि सौंदर्य-
ध्वनि सौंदर्यक भौत सुंदर प्रयोग लै य पुस्तक में करी राखौ। कुछ उदाहरण छन-
चैमासै कि ऋतु में द्यौ लागणकि आवाज-
झुण मुण, झुण मुण, बरखा है गई।।
आकाश में बिजुलि चमकनै द्यौ बरसनौ-
चम चम चम, बिजुलि चमैकी।
छम छम छम छम, पाणिकि छमैकी।।
कुंभकर्ण दैत्यकि हँसणकि आवाज-
   हू ऽ ऽ हा, हू ऽऽऽ हा, करि करी, जोर लै हँसछ ऽ।
  हू ऽ ऽ हा, हू ऽऽ हा, हू ऽऽ, हा, हा ऽऽऽ।
यु( क्षेत्र में राम ज्यू और रावणकि सेनाक तलवारनकि ध्वनि-
खन खन खन खन , तलवार बाजा।
                     
  रथ का निशाण उड़ा, फर्र ऽ, फर्र ऽ, फरऽ।
कहावत और मुहावरे- 
य किताब में रचनाकारल जा्ग-जा्ग कुमाउनी कहावत और मुहावरनक प्रयोग लै करि राखौ। कुछ उदाहरण-
भा्ङ फुलौ, म्यारा ख्वारा पड़ि रैछौ रात, तिरिया की चाल, तिरिया की हट, ख्वार में रात पड़न,धो थामण, खाड़ हालि दिन, खाल खींचूं नैं धरनी ल्वत, हिरद में धीर, माटि में मिलाइ देछौ। खा्ेर में धरण, भा्ंग फुटण, आँख बुजिना, पाणि का बिगर जसौ तड़पँछ माछ, घुना मुना एक करी, छाति लै लगाया, बलिहारी लिछूं, करम की गति टालि नैं टलनी आदि।
कुमाउनी शब्द संपदा, रीति-रिवाज, परंपरा, खान-पान, वनस्पति, शकुन अपशकुन आदि-
य पुस्तककि सबसे ठुल विशेषता य छु कि यमें रचनाकारल कुमाउनी रीति रिवाज, परंपरा, शब्द संपदा, खान-पान, कुमाउनी वनस्पति, पेड़-पौंध, शकुन-अपशकुन आदि कैं राम ज्यूक का्थ दगड़ जोड़ राखौ। 
कुमाउनी शब्द-
तिनाड़ा, शिबौ, काण, ब्याखुलि, जुलुक, लकाड़ा-पताड़ा, गठौइ, पाल खन, ढोक, कुड़ि-कुड़ि, भिकुरि-भिकुरि, रूजौनि-बुजौनि, पोछि- पलासि आदि।
खान पान- 
बरतिया खाणा लागा, हलुवा लगड़ा।
छत्तीस ज्यौनार पाका, पाकि गई खीर।
वनस्पति पेड़-पौंध आदि-
राम जी तो बैठी रया, सला का रूखै छैं।
कुमाऊँ वनस्पति-सिसौणक वर्णन लै यमें ऐ रौ-
    लात मारी खेड़ि द्योंलो, सिसौणा का भूड़ा।
    यसीकै पीपलक रूख, बुरांशक फूल आदिक वर्णन लै ऐरौ-
    राम जी बैठिया छिया, पीपला रूखै छैं।
    बुरूंसी को फूल।
पक्षी-घुघुती, कफुवा और न्योली आदिनक वर्णन लै करि राखौ।
    कुमाउनी यंत्रनक लै कई जागन में जिक्र कर राखौ-
सारंगी हुडुक बाजा ऽ, हाथ पर लाया।
सारंगी की तान छेड़ी, हुडुक ले बाजा।।
राम ज्यूक राज्याभिषेक समय लै कुमाउनी वाद्य यंत्रनक वर्णन ऐरौ-
ढोल व दमुवां बाजा, बाजि गया बाजा।
कुमाउनी रीति रिवाज और परंपरा दगड़ लै ब्याक प्रसंग कैं जोड़ि राखौ-
पतड़ देखनी गुरू विचार करनी।
चिन पाती देखी-देखी, लगन करनी।।
सीता ज्यूक हरण हुणक बाद लंका में सीताज्यू वियोग और विलाप कैं कुमाऊँक चेलिक पीड़ दगड़ जोड़ राखौ-
चैत को महैण आलौ, मेरी सीता कौला।
बड़ा भगुनाली जब, घुघुती घूराली।
उ बखत मेरि इजा, तू कसिकै रौली।।
       
चैतकि भेटोइ इजा, लगड़ पकाए।
बलिहारी ल्यूनौ इजा, बाटुइ लगाए।
कुमाऊँ में हुनेर मसाणकि पुजक लै यमें जिक्र कर राखौ-
मसाण की पूजा कनी, करमा का नीचा।।
चेलिक विदाई बखत इजक बिलापक सही चित्र प्रस्तुत कर राखौ-
भिकुरि-भिकुरि इजा, डाड़ ले मारेंछि।
                    
चेलिनै कैं समदी जी, दुख झन दिया।
‘राम चरित गीत’ में पं. राम प्रसाद ज्यूल कई जागन में अन्य राम काथक ग्रंथन है बेर कुछ परिवर्तन कर राखी। सबसे पैंल यमें कोई शीर्षक, अध्याय और कांड न्हांतिन। केवल शिव पूजन, अंगद रावण संवाद, वर्षा )तु, यु( खंड लेख राखी। राम जै बखत अयोध्या लिजी प्रस्थान करनी, उ बखत ऊं श्री सीता राम चंद्राय नमः लेख राखौ। कुछ-कुछ पंक्तिनक बाद ‘ऊं’ लेख राखौ लेकिन य पंक्ति लै बराबर न्हांतिन। कांई चार पंक्ति छन, कांई आठ दस, कांई बार-चैद और कांई कांई त पैंतीस-छत्तीस पंक्तिनक बाद ‘ऊं’ लेखी छू। बीच-बीच में कांई-कांई गायत्री मंत्र और दुर्गा सप्तशतीक श्लोक लै छन। पंचवटी में सीता, राम और लक्ष्मणक चित्र तथा रामेश्वरम में शिवपूजाक चित्र लै पुस्तक में छन।
     कि भलौ लागनी इजा, त्यरा रघुवीरा ऽऽ।
    कि भलौ लागनी इजा, लव कुशा वीरा ऽऽ।।
राम प्रसाद ज्यूल कई अवसरन में गीत लै लेख राखी।
1. राम जन्म दिनकि खुशी में लेखी गीत-
करूंलो ऽऽ जन्म दिनं श्री रामं ऽऽ...
जन्म ऽ दिनं श्री राम ऽऽ म ऽऽ ऐऽ जावो...
2. केवटक नाच गीत-
क - पैंली मैं त खुटा ध्वींलौ, तो पारै उतारूंलौ...
ख-हे ऽऽ हे गंगा मैया ऽऽ पार लै गै दे तू मेरी नैया 
3. सूर्पनखा गीत-
ओ ऽऽ हो ऽऽ ओ ऽऽ, धनुष होलौ ऽऽ सांवली ऽऽ सूरत ऽऽऽ
हिरद में बसि गया, आई जावो म्यारा दगाड़ा...
4. राम ज्यूक राज्याभिषेकक गीत-
 राम ऽऽ राज ऽऽ हइ ऽऽऽ गया ऽऽ ऐ गई बहाऽऽर।
हिटो हो साधू ऽऽ अवध जानू, राऽऽ म कें ऽऽ देखनू।
रामेश्वरम् में शिवपूजनक बखत भजन हिंदी में लेखि राखौ-
जय शिवशंकर, हे प्रलयंकर, कृपा सिंधु भगवान...
पं. राम प्रसाद आर्य ज्यूल वर्तमान परिस्थितिन में राम राज्य कैं देखणक प्रयास कर राखौ। ऊं लेखनी-
जब-जब धरती में, भयो अधरम 
राकशा करण लागा, अति कु कुरम।।
तब तब प्रभु जीले, अवतार ऽऽ लियो।
धरम की रक्षा करी, पाप कैं मिटायो।।
महाबली हनुमान ज्यू कैं लै रक्षा करणी मंत्री रूप में देखनी और कुमाऊँ वीर योद्धनकि प्रशंसा करनी-
भारत देश में भयो, अब राम राज
दुनिया का मैंसा तुमी, आइ जाया बाज
रक्षा का मंतरी छन, भारता का वीरा।
रण बांकुरा तो छन, कुमाऊँ सैनिका।।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारत भूमिक रक्षा लिजी कुमाऊंक वीर सपूतन कैं उद्बोधित करनी-
मातृ भूमि रक्षा करौ, कुमाऊं का वीरा ऽऽ।।
पुरि पुस्तकक पढ़नक बाद निष्कर्ष रूप में कई जा सकंू कि सीता ज्यूक प्रति लेखककि भौतै आस्था और श्र(ा छु। शुरू बटिक आंखिरी जाणै सीताज्यू दुखै दुख भोगनी। सीता हरण,अशोक वाटिका में सीता ज्यू दुख, अग्निपरीक्षाक प्रसंग, राम ज्यू द्वारा गर्भवती सीता कैं वनवास दिण, आंखिर में सीताज्यूक धरती भितेर समै जाण आदि प्रसंग भौतै मार्मिक और हृदय स्पर्शी छन। सीता ज्यूकंै लेखक भारतीय संस्कृतिक प्रतीक माननी, तबै कौनी-
हमरि संस्कृति सीता, उ लि गयौ चोरि।।
सीता ज्यू पर अपार प्रीति छू तबै त उनर दुखल दुखी है बेर लेखक एक कुमाउनी गीत लेख दीनी-
सीता का दगाड़ा मेरी बहुतैऽ पिरीत।
रामी लेखी दिछुं इजा, कुमाउनी गीत-
विधाता की ऽऽ लेख कैकैं, समझै नंै ऽऽ आयोऽऽ।
महलों की ऽऽ राणी आज बनवास ऽऽ पायो ऽऽ।
      



राम ज्यू सीता ज्यूक धरती में समै जाणल भौतै दुखी छन। लव कुश और महामुनि बाल्मीकि लै उदास है बेर डाड़ हालण लागनी-
भिकुरि-भिकुरि शिबौ, उ ऽ डाड़ डड़ौनी।
व इजा व मेरि इजा, कथ गई कौनी।।
               
महामुनि बालमीकि, उति कणी औनी।
आँखों पर आँसु लाया, छण छण रूनी।।
सीता ज्यू प्रति य प्रीति, सीता ज्यूक अपार दुख और दयनीय दा्स कैं देख बेर त रचनाकार लै राम ज्यू थैं य प्रश्न करण लिजी बिबश है जानी-
राम जी का राज पर, तुमि सबै सुखी।
जनक की च्येलि रामा, किलैकी छ दुखी।।
लव कुशक चरित्र द्वारा य संदेश पाठकन कैं मिलूं कि य संसार में सुपुत्र इज बाबुनक जीवन धन्य कर द्यूं।
मनुष्य जनम आई, जो पुण्य करनी।
लव कुश जसा चेला, उ भागीऽ मिलनी।।
राम चंद्र मिलि गया, द्वी च्याला सपूत।
कपूत जनम ल्हिबेर घर कैं नरक बणै द्यूं। लेखक कौनी कि संतान कैं अपुण इज बौज्यूक सेवा करण चैं। जो सबनक भल करूं उ य जनम में तो सुखी छू, मर बेर लै स्वर्ग में जां-
भारि दुख औंछ इजा, जै घरा कपूत
        
इजा बौज्यू न कैं च्याला जो लोग सतौनी।
हजारों  बरस तकऽऽ, नरक में ऽऽ रौनी।।
रचनाकार ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ क भाव मन में धरनी तबै त कौनी-
सब प्राणी का लिजिया, जो भल करँछ।
य जनम सुखी रौनी, स्वरग मिलंछ।।
पं. राम प्रसाद आर्य ज्यूक य पुस्तक लेखणक उद्देश्य अंत में स्पष्ट है जां। उ कौण चानी कि राम ज्यूकि का्थ कैं कौणी वाल, सुणनी वाल लोग भाग्यशाली छन। 
भाई बैंणा बचि रया, लाख सौ बरीश।
राम गीत सुण बेर, जाग रया जिति।
    अब करी दिछुं गीत, यति कणी इति ऽऽ।।
 ••

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट

कुमाउनी जनगीत : उत्तराखंड मेरी मातृभूमि , मातृभूमी मेरी पितृभूमि

अमेरिका में भी उत्तराखंड की ‘ऐपण कला’ बनाती हैं डॉ. चन्दा पन्त त्रिवेदी

बिहार की विश्वप्रसिद्ध ‘मधुबनी’ पेंटिंग के साथ उत्तराखंड की ‘ऐपण’ कला को नया आयाम दे रही हैं जया डौर्बी

कुमाउनी शगुनआँखर गीत

कुमाउनी भाषा में इस वर्ष की आठ लेखन पुरस्कार योजनाएं

कुमाउनी भाषा में लेखी किताब और उना्र लेखक

खसकुरा (पुरानी पहाड़ी) शब्दकोश : 'यूनेस्को' से सहायता प्राप्त कुमाउनी शब्दकोश

सुमित्रानंदन पंत ज्यूकि 1938 में छपी कुमाउनी कबिता ‘बुरूंश’

दूर गौं में रूणी हेमा जोशी कि ऐपण कला

‘मीनाकृति: द ऐपण प्रोजेक्ट’ द्वारा ऐपण कला कैं नईं पछयाण दिणै मीनाक्षी खाती