घुघुती त्यार बै जुड़ी एक लोक का्थ
(चित्र: devbhoomi.xyz पेज बै )
काले कौव्वा काले!
घुघुती मावा खाले!!
ले कौव्वा पूरी,
मैं कैं दे सुनू छूरी।
ले कौव्वा बड़,
मैं कैं दे सुनू घ्वड़।
काले कौव्वा काले!
घुघुती मावा खाले!!
ले कौव्वा ढाल,
मैं कैं दे सुनू थाल।
ले कौव्वा लगड़,
मैं कैं दे सुनू सगड़।
काले कौव्वा काले!
घुघुती मावा खाले!!
०००
(चित्र: इंटरनेट बटी साभार )
रतन सिंह किरमोलिया
गरूड़ (बागेश्वर )
माघक महैंण एक पैट मकर सङरांती दिन हुंछ यौ घुघुती त्यार। य दिन नानाकि है जैं बहार। ग्यूंक पिसूं और गूड़क पाग ओलि बेर बणाईं जानी घुघुत। यैक दगाड़ डमरु, हुड़ुक, ढाल, तलवार, दाड़िमाक् फूल और जाणि के के। दिन में घाम में सुकै बेर फिरि उं उलाई जानी गरम-गरम तेल में और बणाईं जां त्यार। त्यार में किसम-किसमाक् पकवान।
फिर नारीङाक् दाणा दगै गछ्याई जैं माव्। मा्व में घुघुतांक् दगाड़ि गछ्याईं जानी- ढाल-तलवार, हुड़ुक, डमरू, दाड़िमक फूल। माव् बणाई जानी च्यालांक, चेलियांक, देश, परदेश जाईंयांक लिजी। उनूँ नाति-नातिणां लिजी लै जो देश-परदेश में आ्पण मै-बाबों दगाड़ि छन और ब्यवाई चेलियांक और उनार नानतिनाक लिजी लै। त्यार दिणांक दिन यौं भेजी जानी उनार् लिजी।
माव् बणौनक लै एक आ्पण आनंद छू। अयाण-सयाण सबै बणूंनी माव्। परवाराक् नानतिन आपण-आपण लिजी ठुल-ठुल माव् बणै बेर धरि दिनी, काव बुलौंणाक दिनै लिजी। पकवानों में लगड़, हलू, बड़, पू जांणि के के भौत परकाराक पकवान बणाई जानी। सबै खुशि है बेर मनौंनी य त्यार। माव् बाटण, धरण है पैंली हिस्स कावक् लिजी धरी जां। यौ दिन घुघुतै किलै बणाईं जानी? फिर उं कावांकणी किलै खवाई जानी? फिर नानतिनै काले कौवा .... काले-काले, घुघुती मावा खाले ..... किलै कूनी। नानतिनै कावां कैं घुघुत किलै खवोंनी? कावांक, घुघुतिक गीत गै-गै बेर। यैक पिछ्याड़ि एक दंत काथ् छू कि -
चंदबंशी एक राज् भई कल्याण चंद। वैकि भौत उमर तालै क्वे औलाद नि भइ। उकैं बताई गो कि तुम बागनाथ (बागश्यर) ज्यूक दरबार (थान) में मनौती मांङौ। वैल वसै करौ। साल भरि में वैक एक भौत देखण चांण च्यौल (भौ) है गोय। भगवान बागनाथ ज्यूल राजकि विपदा सुणि दी। भौ साकसात बागनाथ ज्यूल देई भौय यैक लिजी राजल वैक नौं निर्भय चंद धरि दी। राज् और राणि द्वियै भौ कें भौतै भल माननेर भाय्। राणिल भौक गावैकि लिजी कीमती है कीमती हीरा मोत्योंकि माव् बणवै और भौ कैं पैरै दी। भौ कैं यौ माव् भौतै भलि लागि। उ माव दगै खूब खेल लागि रूनेर भौय। कभतै-कभतै जब भौ डाड़ मारनेर भयौ तो वैकि मै राणि उकैं डरूनेर भइ कि मी कावांकैं बुलै तेरि माव् दि द्योंल। कावां क नौं सुणि उ जिद करनेर भौय बुला। वैल कावां कैं बुलोंण शुरू करि दी। आब् भौ माव् दगै कावां कैं ले भौत भल मानण भै गोय्। माठु माठ, कै भौ कि और कावांकि भौत गाड़ि दोस्ती है गेइ। आब् काव् बिनै बुलाईं आफी-आफी ऊंण भै ग्या्य। भौ हात उनू कैं टैम-टैम पारि किसम- किसमा्क पकवान लै खां हैं मीलि जानेर भाय्। ‘भात जै आपण पास भयौ कावां के अटक’ वालि बात भइ। य सिलसिल चलते रईं भौय्। मणि-मणि कै भौ सयांण जस लै हुण भै गोय्।
राजक मंत्री य सब देखि भौत खार खाण भै गोय्। उ ईर्ष्यालु और भौत लोभी छी। उ चांछी कि राजकि क्वे संतान नि हुनी तो राजक बाद सार्रै राजपाट वैकै है जांछी। यैक लिजी उ भौ कैं देखि भौत खार खाण् भै गोय्। आब् उ भौ कैं मारणक पलान सोचण भै गोय्।
एक दिन मौक पै बेर वैल भौ कैं पकड़ौ, सिद्द एक घनघोर जङव में ल्हि जाण भै गोय। वां ल्हिजै बेर मारणैकि सोची भइ वील। काव लै भौत हुशियार हुनी। उनूल आङण में भौ कैं नि द्यखौ तो उं वैकि खोज में लागि ग्याय। सार्रै जाग जागां है फैलि ग्या्य। कावांकि नजर मंत्री और भौ में पड़ि गेइ। उनूल जोर जोरैल कांव-कांव करि बेर सार्रै जङव गज्यै दी। सब काव् वां जाम है ग्याय्। एक द्वि कावां ल मंत्री कैं ठुङयै दी। उ घैल है गोय। वैल भौ छोड़ि दी। आब् उकैं आपणि ज्यान बचूंणि धौ है गेइ। एक द्वि कावांल भौ कि गावैकि माव लझोड़ि ल्ही और उं सिद्द राज क दरबार में ऐ ग्याय्। माव् उनूल वां खेड़ि दी। माव् देखि सबै अचंभ रै ग्याय्। इथकै भौ हरै गो-भौ हरै गो कै हकाहाक हई भइ। मंत्री कैं बुलाइ गोय् तो उ वां नि भौय्। राज् कैं शक ज है गोय्। कावां ल्याई माव् देखि उनर भैम मंत्री पारि न्है गोय। हो नि हो इमें मंत्री क हात तो न्हैंत, भौ कै के नुकसान पुजौंणक लिजी मंत्री उकैं कैं ल्हि जै तो नि गोय् ....।
काव् उड़नै जङव उज्याणि जाण् लाग्। तो उनार पछिल-पछिलै राजल आपणि फौज लै भेजि दी। अघिल बै काव् जाणी उड़नै, पछिल बै फौज। जान्-जानै वां पुजि ग्याय् जां मंत्री भौ कैं ल्हिजै रौछी। तब तांलै देखना सैकड़ों कावांल मंत्री घेरी भौय्। वैक उनूल ठुङयोंन-ठुङयोंनै ल्वे बिताव करी भइ। भौ कावां दगै खेल लागी भौय्। फौजल मंत्री कैं पकड़ि ल्ही। भौ कैं और मंत्री कैं ल्हि बेर सार्री फौज राज दरबार लौटि ऐ। हजारों हजार काव दगड़ै ऐ ग्या्य। सार्रै राज दरबाराक चारों ओर काव भैटि ग्याय्। कावांल मंत्री कैं ज्यौंनै उचेड़ि खै है छी।
मंत्री कैं सजा देई गेइ मौतकि। मरी बाद वैक टुकुड़- टुकुड़ करि खै दी उन हजारों हजार कावांल मिनटों में। मंत्री नौं छी घुघुती। जब कावांल वैक चुन बात् नि धरा तो इदू कावां कां पेट भरी छीं। तब राजल किसम- किसमाक् पकवान बणै बेर कावां कैं खवाय्। राज क भौ - निर्भय चंद कैं बचोंण में कावां क भौत ठुल हात हुणक लिजी राज् हर साल य दिन कावां कैं घुघुती मंत्री क प्रतीक रूप में पिसुवाक् घुघुत बणै बेर लै खउनेर भौय। य संजोगैकि बात छू कि उ दिन मकर सङरांत छी। सूर्जक उत्तरायण में परवेश करणक दिन। कूनी कि तबै बटी यौ पर्व चलि ऐ रौ। आज यौ हमरि संस्कृतिक रूप में हर वर्ष माघक महैंण एक पैट मकर सङरांत क दिन मनाई जां। आब् घुघुती मंत्री तो नि मिलि सकन पर पिसुवाक् घुघुत बणै बेर नान-तिनाक् हात् आज लै कावांक और घुघुतियक गीत गै-गै बेर घुघुत कावां कैं खवाई जानी।
य त्यारक एक पक्ष पौराणिक लै बतौंनी। यैक मुताबिक सराद पक्ष में पितरोंक तरोतारणक लिजी कावां कैं बइ ;बलि-भागद्ध दिणक लै विधान छू। मानी जां कि कावां कैं देई भाग-बलि ;बइद्ध पितरों कैं मिलूं कै। उसी लै काव् यमराजाक् दूत मानी जानी। यम कैं सूर्जक पुत्र बतोंनी। यै कै लिजी यम कैं खुशि करणकि लिजी जब सूर्ज उत्तरायण में प्रवेश करूं तब सूर्ज कैं अर्घ और यम कैं पकवान देई जानी। काव् जिंवाई जानी।
(चित्र: सोशल मीडिया बै साभार )
जे लै कारण रौय् हनौल पर य दिन नान् भौतै खुशि है जानी। कावां कैं घुघुत, डमरू, हुड़ुक, ढाल, तलवार और लै पकवान खवोंनी। रत्तै ब्यांण उठि जानी। नै-ध्वे बेर चाकव-बाकव पिठ्यां लगै, घुघुतां माव् गावनि घालि उच्च जाग् में जै बेर जोर-जोरल कावां कैं बुलै बेर घुघुत खवोंनी और जोर-जोरल कूनी - काले कौवा काले/घुघुती मावा खाले ... असल में लागों यौ नान्तिनां कै त्यार छू। यैक एक वैज्ञानिक पक्ष लै छू। पथीलों कैं प्यार करौ। आपणी चार उनूकैं लै खवाओ। हँसो/खेलो/नाचो/कूदो/खुशी मनाओ। चाड़-पथील, नान्तिन खुशि रौला तो य संसार खुशि रौल। हमर पराकृतिक परिवेश लै संतुलित और ज्योंन रौल। •
(‘पहरू’ कुमाउनी मासिक पत्रिका जनवरी 2009 अंक बै साभार )
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