ख्यातिनाम हिंदी कथाकार शैलेश मटियानी की मातृभाषा 'कुमाउनी' में लिखी कविता
शैलेश मटियानी
जनम- 14 अक्टूबर 1931
निधन- 24 अप्रेल 2001
जन्मस्थान- अल्मोड़ा (उत्तराखंड )
छपी किताब: 28 कहानी संग्रह, 7 लोक कथा संग्रह, 30 उपन्यास, 16 बाल साहित्य, 3 संस्मरण साहित्य समेत करीब एक सौ किताब।
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हिंदीक नामी कथाकार शैलेश मटियानी ज्यूकि मातृभाषा कुमाउनी छी । उनर जनम अल्मोड़ा जिल्ल में भौछी। उनरि अापणि मातृभाषा कुमाउनी में लेखी ‘शिवहरी कैलाश बटी’ कविता ‘शिखरों के स्वर’ किताब में संकलित छु।
शिवहरी कैलास बटी
शिवहरी कैलास बटी ऐ गेछ पुकार हो,
उठो ज्वानो हई जाओ लडै़ हूँ तैयार हो।
जो चीन हुँणी हमूँल, भाई-भाई कौछ रे,
वी हमरि छाती मणि बन्दूक धरनौछ रे,
हिमाल में घुसि गेछ, दुश्मण की फौज रे,
शांति-शांति कून-कूनै यस जुलुम भौछ रे।
हाथ में थमून पड़ी गया हथियार हो,
शिवहरी कैलास बटी ऐ गेछ पुकार हो।
हाथ जै मिलाधें कौछी, चुली थमै देछ रे,
चाऊ की चण्डाल चाँनी यसि फुटि रैछ रे,
बानर कैं ठेकि देछी खै ल्हे यमें दै छ रे,
दै ले फोक, ठेकि लै फोड़ि, यो जै भलि भै छ रे।।
भलि कि बुरी, छाति में छुरी, यसो अत्याचार हो,
शिवहरी कैलास बटी ऐ गेछ पुकार हो।
दुश्मण को जोर जुलुम कब तक चलल रे,
जब तक हमरि भूमि में है नि हटल रे,
संकट को यो अन्यार तबै जै टलल रे,
वीरन को खून जब दी-जस जलल रे।।
मिलै दियौ माट मणी चीन को हंकार हो,
शिवहरी कैलास बटी ऐ गेछ पुकार हो।
दुश्मण कैं यदि हम दूर नि हटूँल रे,
कायर-कपूत बणी के मुख देखूँल रे,
बैंणी तो दोछण देली, माई कैं लजूँल रे,
स्यैंणि कौलि नामरद, कसिक ज्यूँन रूँल रे?
लागी जालो कलंक को टिक चानी पार हो,
शिवहरी कैलास बटी ऐ गेछ पुकार हो।
आपुणि धरती नि द्यूं, दी द्यूंल पराण रे,
ऊ अमर हई जालो, जैकि जाली ज्यान रे,
शत्रु हुणी सिर झुकूण है तौ मरी जाँण रे,
कायर की स्यैंणि हुंछौ, छन खसमै राँण रे।
उठो ज्वानो हई जाओ लडै़ं हूँ तैयार हो,
शिवहरी कैलास बटी ऐ गेछ पुकार हो।
चीन कि यो फौज याँ हूँ किलै ऐ हुनेली रे,
छनजरै कि दाश वी हूँ रिटि रै हुनेली रे,
हिमाल में फोड़ि दियो माऊ की मुनेली रे,
वी कै संग खड्यै दियो चाऊ की कुनेली रे।
करी दियौ दुश्मण की फौज को संहार हो,
शिवहरी कैलास बटी ऐ गेछ पुकार हो।
गंगा ज्यू को जल ल्हियौ, पाड़ि दियौ पाणि रे,
धरती में छोड़ि जाओ वीरों की निशाणि रे,
देश की आजादी है तौ बाँकि नैं पराणि रे,
करि दियौ चाऊ-माऊ द्वीनै की निखाँणि रे।
गूँजै दियौ भारत भूमी को जै-जै कार हो।
शिवहरी कैलास बटी ऐ गेछ पुकार हो।
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‘य कविता पहरू कुमाउनी मासिक पत्रिका अक्टूबर 2009. अंक बटी ल्हि रै। )
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