कुमाउनी लोक कथा: हेड मास्टर ज्यूक पैजाम
शेरसिंह मेहता ‘कुमाउनी’
जनम - 18-3-1928
ग्राम - मैचोड़ (डीनापानी), जिला- अल्मोड़ा
छपी किताब - कुमाउनी व हिंदी में करीब एक दर्जन किताब छपी छन। कविता, कहानि, उपन्यास, गीत, भजन, कीर्तन सबै विधाओं में लेखि रखौ।
भौत पुराणि बात छ। हमा्र इस्कूल में एक हेड मास्टर सैप छी। ऊ भौतै सात्विक, धार्मिक, ज्ञान-वान और सिद-सा्द मैंस भाय, चतुराई, चालबाजी और बेईमानी तौ ऊ जा्णनेरै नि भा्य। उनर पैराव कुर्त-धोति और द्विकली टोपि भय।
उतकांन हमा्र देश में अंग्रेजोंक राज छी। कांग्रेस पार्टी स्वराज आन्दोलन चलूनैंछि। कदिन-कदिनै स्वराजी नेता हमा्र इस्कूल में लै अई करछी। उनूँल हमा्र हेड मास्सैप थैं लै कय कि ग्वारन दगै डरणकि के बात न्हाँ। आपूं लै कभै-कभै खद्दराक कुर्त-पैजाम पैर ल्हिई करौ। हेड मास्टर ज्यूक दिल में बात बैठि गेइ। तनखा मिलतेई उनूंल खद्दरक पैजा्म सिणै ल्ही। मैंसनकि सा्मणि यो अधेड़ उमर में पैजाम पैरण में शरम जै लागि गेइ। कभै पैरियकै नि भै। पैजा्म कें चुप-चाप बगसन लुकै दी।
आस्ते-आस्ते हमा्र हेड मास्टर सैप लै कांग्रेस कार्यक्रमों में रुचि ल्हिण फैटि गछी। एक दिन खबर ऐ कि कांग्रेसाक ठुल-ठुल नेता इस्कूल में ओंणी छन। दगा्ड़ में यो लै संदेश आ कि सबै लोग खद्दर पैरि बेर आला तो भल ह्वल।
खबर मिलतेई हेड मास्टर ज्यूल ना्नतिनों हतां इस्कूलकि साफ-सफाई करै दी। ना्न पंडित ज्यू और ना्नतिनों कें लै साफ-सफाई में खद्दर पैरि बेर औंणै लिजी और गों-पड़ोस पन सकारि दिणै लिजी कै दी।
दुसा्र दिन इतवार हुण पर हेडमास्टर ज्यूल आ्पण हाथ - खुटाँक नङ काटि जुङ-दाड़ि बणै पैरणी लुकुड़ लै आ्पण सब ठीक-ठाक करि ल्ही। फिर ख्याल आइ पैजा्म कंै लै एक बखत पैरि बेर द्यखि ल्हिण चैंछ। उनूल बगस खोलौ और पैजा्म निकालि पैरि ल्ही। पैजाम द्यखछिया, क्ये द्यखछी, उं चाइयै रै ग्याय। पैजाम भौत लड़बड़ान हई भइ। उनन कणि अफसोस जस है गोय। ‘गलती है गे, पंैलियै पैरि बेर देखि ल्हिण चैंछी। यदुकै में भ्यार बटि बौराणि ज्यू लै ऐ भैट। बौराणि ज्यू, हेडमास्टर ज्यून कैं चाइयै रै ग्या। हँसन-हँसनै बुलाण- ‘‘ओ बबा! आ्ब बुड़ि अकाल तसि सुर्याल पैरणक क्ये धक चड़ि तुमन कणि? सुद्दै रामलीलाक जोकर जा्स देखीनौछा। के कौल मैंस? खोलो तकैं खोलो!’’ कै बेर बौराणि ज्यूक खितखिताट पड़ि गोय। भितरकि अवाज सुणि बेर उनरि ठुलि च्येलि मधुलि लै ऐ गेइ। बौज्यूनक पैजा्म, इजक हँसण देखि बेर वीक लै हँसन-हँसनै भाँ्ट फरिकि ग्याय। हेडमास्टर ज्यू लै हँसण फैट, लेकिन खिसैनि जसि लागि गेइ। धोति पैरि बेर पैजाम झ्वालन खिति दी और पड़ोस पन घुमण हुणि ल्है गा्य। अन्या्र हई घर आछिया तौ बौराणि ज्यू और मधुलि कैं फिरि हँसि ऐ गेइ। थोड़ि देर बाद उनर हँसण बन्द भौछियो तो बौराणि ज्यूल उनरि तरफ देखि बेर कौय, ‘‘तुमा्र हात जोडू़ं तुम तौ सुर्याल कैं घर पन झन पैरिया। मैंस हँसि कराल, हमन कंै जै मुख देखौंण भारि है रौल।’’ हेडमास्टर ज्यूल मुनइ हलकै दि, बुलाण - ‘‘पैजाम तौ इस्कूलाक लिजी सिणैछि। आ्ब यसै औडर है गई। तौ पैजाम लै जिन्दगी में पैंल बेर सिणैछ, लम्बी घङणीन हैगे। भोल इस्कूल में नेता लोग औंणी छन। चार अंगुल कसिकै काटि बेर सिणि दिनां, काम चलि जाल।’’
बौराणि ज्यू हँसण फैटि, फिरि बुलाणि- ‘‘डिनापाणि में उदुक दरजी छन। या नैं कैंचि, नैं मशीन। तुमूल वें सिणै हुनलि, उधैं ठीक करै ल्हिया, उभतै करि द्यल।’’ हेडमास्टर ज्यू चुप है गा्य, फिरि ख्वर हलकै बेर बुलाँण- ‘‘अच्छा, वैं करवै ल्यूँल।’’ फिरि सबै काम में लागि गा्य।
हेडमास्टर ज्यू लै खै बेर स्ये ग्याइ। मधुलिल चुलि-भानि करि बेर देखौ तो घराक सब लोगना्क नीनक घुराट पड़ी भौय। उकैं आ्पण बौज्यूक उदास मुख याद ऐ गोय। वील सोच, कदुक सिद-सा्द छन म्या्र बौज्यू। आ्ब भोल हुणि उसिकै पैजाम लगै ल्हयाल। इजल लै टुक जस टोड़ि दे। मधुलिल झ्वालन है बेर पैजा्म निकाल, चार अंगुल नापि बेर दातुलल काटि बेर फिरि सिणि-साणि झ्वालन उसीकै धरि दी, फिरि पड़ि गेइ। आदुक रात में बौराँणि ज्यूकि लै नींन टुटि। सबन कैं कलटोव आई भइ। उना्र लै पति प्रेम और पतिव्रत धर्मल जोर मार। उनूल लै स्वच- ‘‘कदुक सिद-सा्द छन म्या्र स्वामी। कभै लै उनूल म्यर अपमान नि कर, हेडमास्टर होते हुए लै, नैं घमण्ड, नैं कैहंु ओछि बात। जे कौओ मानि जानी बिचा्र। आ्ब भोल कटौंणक टैम मिलछै जाणि नि मिलन। उसिकै पैरि ल्याल।’’ बौराणि ज्यूल लै झ्वालन बटि पैजाम निकालि बेर, तिख जस दातुल खुट मुणि दबै बेर, चार अंगुल खरकै दि। फिर सिणि-साणि झ्वालन धरि दी। उना्र दिल में बड़ि खुशि जै पैद है गेइ। खुशी-खुशी पड़छिया तौ फिर नीन पड़ि गेइ।
सोमबाराक रात्ती-ब्याण संदी-पुज करि बेर हेड मास्टर ज्यूल जल्दी-जल्दी तैयारी करि। झ्वल कानन, हाथ में छात ल्ही बेर इस्कूल हुणि जा्ण लागा तौ पछिल बटि बौराणि ज्यु बुलाणि- ‘‘तौ तुमर पैजा्म ........।’’
‘‘होइ देखि हैलो मैंल’’ कैबेर ऊ भ्यार कै ऐ गाय।
मधुलि गोठक मोउ निकालण में लागी भइ।
बौज्यून कैं जा्ण देखी तो उती बटि बुलाणि, ‘‘बौज्यू तुम पैजाम सिणन हुणि ....।’’
‘‘होइ च्यली’’ कै बेर हेड मास्टर ज्यू इस्कूल हुणि ल्है गा्य।
डिनापाणि - रौला खान में पुजतेई हेडमास्टर ज्यूल झ्वालन हैबेर पैजा्म निकालि और गंगासिंह ज्यु कैं दि बेर बुलांण- ‘‘ठाकुर सैप इकैं चार आङुल काटि बेर जल्दि सिणि दियो। जरूरी छु, नेता लोग औंणी छन।’’ गंगासिंह कंैचि चलौंन-चलांैनै बुलाण- कैकि छु, च्यलैकी? हेडमास्टर ज्यूल मुनइ हलकै दि और पैजाम सिणै बैर इस्कूल हुणि ल्है गा्य। इस्कूल में सब ठीक-ठाक करि बेर एक विद्यार्थी कणि इस्कूलाक हात्त में देखण हुणि भेज दि। थोड़ि देर बाद हात्तकि तरफ बटि अवाज सुणीन- ‘‘नेता लोग गंगनाथा्क थान धैं ऐ गई।’’ हेडमास्टर ज्यू पैजाम पैरण हुणि भितेर कम्र में ल्है गा्य। जल्दी में पैजामक लै अघिलक हिस्स पछिल ल्है गोय, ना्ड़ चांछिया तो मिलै नैं । हड़बड़ाट में धोति तो पैंलियै पली खेड़ी भइ, पैजाम द्वि हाथन थामि बेर उनूल अवाज दि- ‘‘अरे क्वे छा, एक जांणि भितेर आओ धिं!’’ मैं दौड़ि बेर भितेर गयूं तो ऊ बुलाण - ‘‘यैक नाड़ै सरकि गो सैद, मिलनै नि रौय। देखि बेर मैंल बताय - नाड़ तौ पछिल लटकि रई, तौ उल्टि पैरि हैलि, नेता लोग लै ऐ गई।’’ हेडमास्टर ज्यु बुलाँण-‘‘पछिलै कै बादि दे, जल्दी कर।’’
हेडमास्टर ज्यू कम्र बटि भ्यार आछिया तो बदरीदत्त पाण्डे ज्यू सामुणि ठा्ड़ हई भा्य। द्विये जाणियन में दुआ-सलाम भइ। पांडे ज्यू पैंली तो हेडमास्टर ज्यू कें चाइयै रै ग्या्य, फिर हँसन-हँसनै बुलांण- ‘‘पंडित ज्यू हमन कणि तसि पैजाम जेल में मिलछीं, तुमूल तौ घरै बटि तैयारी करि हैलि।’’
पांडे ज्यू कें हँसण देखि बेर हेडमास्टर ज्यूल पैजामैकि तरफ द्यखो तौ पैजाम सच्ची में जोकरनैकि जसि हई भइ। न जङी, न पैजाम। खिसान है बेर उनूल पाण्डे ज्यूक मुख चा्य। पाण्डे ज्यूल हँसन-हँसनै कौय- ‘‘जाओ महाराज! धोति पैरि ल्याओ।’’
हेडमास्टर ज्यु भितेर कै गोछिया तो सबनक हँसणक खितखिताट पड़ि गोय।
‘पहरू’ कुमाउनी मासिक पत्रिका जनवरी 2009 बै साभार ।
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