क़ुली बेगार प्रथा कैं १०० साल पुर



शिवदत्त पांडे
ग्रा.-कफलनी, दन्या, अल्मोड़ा
मो.- 8859784649



    14 जनवरी 2021 हुं कुली बेगार आंदोलन कैं सौ साल पुर है गी। सन 1921 में मकर सङरांती दिन उत्तरैणी म्याल में बागेश्वर आई लोगनल बद्रीदत्त पांडे ज्यूक नेतृत्व में कुली बेगारक बिरोध करि बेर कुली बेगार रजिस्टरन कैं सरयू बगड़ में बगा दे और लोगनल आपणि एकता दिखै बेर अंग्रेजन कैं कुली बेगार प्रथा समाप्त करनै लिजी मजबूर कर दे। तब बटी पहाड़ा लोगना ख्वार माथ लागी कुली बेगार करनक कलंक मिटो। उत्तरैणी म्याला दिन यो इतिहासै घटना घटित हुना वील बागेश्वरक म्याव कैं ऐतिहासिक म्यावक दर्ज लै मिलौ। तब बटी हर साल उत्तरैणी म्याव हुं बागेश्वर में य इतिहासै घटना कें याद करी जां। जो लोगनल य म्याव में ब्रिटिश राजक खिलाफ कुली बेगार प्रथाक बिरोध करौ, उनर य साहस औनी वा्ल पीढ़ीनै लिजी बरदान साबित भो। आज ऊं साहसी लोग भले ही हमार बीच में न्हांतन पर उनर य साहस पीढ़ी दर पीढ़ीन तक याद करी जा्ल।



उसिक तो बताई जां कि जब हमार पहाड़ में कत्यूरी, चंद और गोरखा राज छी तब ले कुली बेगार कराई जांछी। तब य बेगार क्रूर रूपल नि कराई जांछी। सन् 1815 बटी जब हमार पहाड़ में अंग्रेजनक राज भो तब बटी कुली बेगार क्रूर रूप में कराई जाण लागो। अंग्र्रेजनल हमार पहाड़ा। प्रभावशाली लोगन दगड़ सांठ-गांठ कर बेर य प्रथा कैं कानूनी रूप दे। रजिस्टर बना बेर गौं-गौं बटी जमीनी हिस्सदारनाक मार्फत उनार असामिनक नाम कुली बेगार रजिस्टर में दर्ज करा। उ टैम में सड़क नि हुना वील अंग्रेज अफसरन कें, संभ्रांत लोगन कें सरकारि दौर में या सैर-सपाटा करनै लिजी मैलौं दूर-दूर तक पैदल जाण पड़छी। अंग्रेजनल दूर-दूर में आपण ठहरनै लिजी डांक-बंग्याल बणाई छी। जब य लोग दौरन में औंछी तो पटवारि, थोकदार, पधानन द्वारा बारि-बारिल कुलिन कैं अंग्रेजनक ब्वज बोकणै सूचना देई जांछी। चाहे गर्मी हो, जाड़ हो, ह्यूं पड़ो, बर्ख हो कुलि कें कोई दुख-तकलीफ हो, हर हाल में टैम पर उनर ब्वज बोकण हुं जा्ण पड़छी। जो कुलि ब्वज बोकण हुं नि जांछी तो उकें कठोर दंड देई जांछी और जरवान करी जांछी। अंग्रेज अफसर घ्वाड़न में बैठ बेर औंछी, जां घ्वाड़नै ब्यवस्था नि हुंछी तो वां कुलिन द्वारा उनन कैं डोलि कै लि जाई जांछी। डांक बंग्यालन में कुलिन कैं इनार खा्ण हुं गौं वालन बै मुफ्त में घ्यू, दै, दूद, साग-सब्जी, दाव, पिसू, चाङवक इंतजाम करन पड़छी। पाणि भरन, लकाड़ फाड़न, खाण बनून, चुल-भाण करन, उनार लात-लुकुड़ ध्वीण सब काम कुलिन कैं करन पड़छी। यां तक कि बा्ट-घा्ट बनून, डांक बंग्याल, इस्कूल बनूनक काम ले कुलिन थें बेगार में कराई जांछी। अंग्रेजन द्वारा करी जाणी वा्ल य अत्याचारा खिलाफ क्वे लै अवाज उठूणक साहस नि कर पांछी। पुर देश में जब अंग्रेज राजक खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम हुण लागौ तो वीकि लहर पहाड़ में लै फैलि गै। अंग्रेजन द्वारा वन कानून बना बेर जङवन बटी जब गौं वालनाक पारंपरिक अधिकार समाप्त हुन लागी और जङवन बटी इमारती लकाड़, जलौनी लकाड़ काटि बेर भ्यार हुं भेजीण लागी, गौं वालन कैं जङव बटी लकाड़ काटण पर जरवाना तौर पर उनन थैं बेगार में अंग्रेजन द्वारा लकाड़ कटान और मोटर मार्गन तक ढुलान कराई जान लागौ तो य अन्यायाक खिलाफकि सुगबुगाट लोगन में हुण लागै। सन् 1903 में लार्ड कर्जन कें अल्माड़ बु(िजीवीनक शिष्टमंडल य कुली बेगार प्रथा कें समाप्त करनै लिजी मिलौ, उनूल लार्ड कर्जन कें कुली बेगार प्रथा कें समाप्त करनै लिजी प्रत्यावेदन दे। सन् 1903 मेंई अल्माड़ में खत्याड़ी गौं वालनल सामूहिक रूपल बेगार नि करनक निर्णय ल्हे और बेगार नि करन पर आई जरवान कें नि भर और उनूल कुली बेगार प्रथा लिजी कोर्ट में रिट ले दायर करै। सन 1907 में श्रीनगर गढ़वाल में गिरजाप्रसाद नैथानी ज्यूनल ब्रिटिश हुकूमत कें कुली बेगारा विरोध में प्रत्यावेदन दे। 1916 में कुमाऊँ परिषदक गठन भो, यैक नेतृत्व करनी नेता बद्रीदत्त पांडे, हरगोविंद पंत, लाला चिरंजीलाल, लक्ष्मीदत्त त्रिपाठी, ज्वालादत्त जोशी, श्री कृष्ण जोशी, हरीराम पांडे, बद्रीदत्त जोशी ज्यूनल गौं-गौं में जै बेर कुली बेगार नि दिना बार में लोगन कें जागरूक करौ। बद्रीदत्त पांडे ज्यू उ बखत ‘अल्मोड़ा अखबार’ क संपादक लै छी, उनूल कुली बेगार प्रथा बार में ‘अल्मोड़ा अखबार’ में कई लेख प्रकाशित करी। सन 1918 में अंग्रेज डिप्टी कमिशनर जब स्याही देबी जङव में रंगरेली मनूण में लागि रौछी तो अल्माड़ बटी कुलि कें शराब और सोडा लौन में देर है पड़ी तो वील गुस्स में ऐ बेर बंदूक तानि दे और गोलि चला दे, छर्र कुलि कें लागि पड़ी। जब य समाचार बद्रीदत्त पांडे ज्यूल ‘अल्मोड़ा अखबार’ में प्रकाशित करौ तो डिप्टी कमिश्नरल ‘अल्मोड़ा अखबार’ कि छपाई बंद करा दे। फिर बद्रीदत्त पांडे ज्यूल लोगन थें चंद कर बेर अल्माड़ बटी 1918 में ‘शक्ति’ अखबार प्रकाशित करन शुरू करौ। जो आज ले प्रकाशित हुण लाग रौ। बद्री दत्त पांडे ज्यूल ‘ शक्ति’ अखबार में लै कुली बेगार प्रथा बार में कई लेख प्रकाशित करी। गुमानी पंत ज्यूल कुली बेगार प्रथा बार में कविता लेखी। धीरे-धीरे पहाड़ा गौं-गौं लोग कुली बेगार प्रथा बिरोधै लिजी जागरूक हुण लागी। 20 नवंबर 1917 हुं बीरोंखाल में, 28 अप्रैल 1918 में बेरीनाग, चमोली, गंगोली में कुली बेगार प्रथाक लोगनल प्रत्यक्ष बिरोध करौ। 1 जनवरी 19218 में बागेश्वर चामी गौंक हरज्यू मंदिर में करीब 400 लोगनल ठाड़ है बेर कुली बेगार नि करनकि शपथ ल्हे। कुमाऊँ परिषद बागेश्वर अध्यक्ष शिवदत्त पांडे ज्यूल बद्री दत्त पांडे और हरगोविंद पंत ज्यू कैं बागेश्वर औनक न्यूत दे। 10 जनवरी 2021 हुं लाला चिरंजीलाल, हरगोविंद पंत, बद्रीदत्त पांडे, चेतराम सुनार सहित कुमाऊँ परिषदाक 50 है लै जादा लोग कत्यूर घाटी होते हुए बागेश्वर पुजी। 12 जनवरी 1921 हुं एक विशाल जुलूस कुली बेगार प्रथाक बिरोध में बागेश्वरक बजार में निकालौ। 



14 जनवरी 1921 में मकर सङरांती दिन बागेश्वरा उत्तरैणी म्याव में बद्री दत्त पांडे ज्यूक नेतृत्व में करीब 10 हजार लोगनल कुली बेगार नि देई जानै शपथ ल्हीबेर जबर्दस्त बिरोध करौ। कुली बेगार रजिस्टरन कैं सरयू में बगा दे। कुली बेगार प्रथा विरोध में लोगनै एकता देखि बेर ब्रिटिश शासन हिलि पड़ौ। उकें पत्त भो कि पहाड़ै जनता हमन द्वारा कराई जानी वालि कुली बेगार प्रथा कें आ्ब सहन नि करलि, तब अंग्रेजन कें य कुली बेगार प्रथा कलंक कें पहाड़ै जनता ख्वार बटी हटूण पड़ौ। • 
पहरू’कुमाउनी मासिक पत्रिका , जनवरी २०२१ अंक बै साभार 

टिप्पणियाँ

Surjeet ने कहा…
यह ब्लॉग वाकई मेरे दिल को छू गया। आपने इसे बहुत सुंदर ढंग मेरा यह लेख भी पढ़ें बद्री दत्त पांडे जीवन परिचयसे लिखा है।

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