कुमाउनी लेख : को जाणल पीड़ कुमाउनीक ? -ललित तुलेरा
-ललित तुलेरा
लाहुर घाटी, बागेश्ववर
मो.-7055574602
कि हमुकैं कुमाउनी कैं ल्हिबेर फिकरकि जिगर करण चैं? कि जो कुमाउनी 25 लाख है सकर मनखियोंकि मातृभाषा छु उ खत्र में छु? जो कुमाउनी में 500 है सकर लेखवार कलम चलूनई वीक भविष्य कस छु? कि जो कुमाउनीक आपुण 35 सालक फिलमी करियर छु जमें 35 है सकर नान-ठुल पर्दकि फिलम बणि गेई उ को हालित में छु ? जो कुमाउनी में पिछाड़ि 200 सालन बै साहित्यकि गङ बगि रै उ साहित्यकि कि कदर छु? जो कुमाउनी में पत्र-पत्रिकाओंकि लंबी गणती छु उ कदुक मधतगार छन कुमाउनीक बिकास में? कुमाउनी कैं बचूण और बिकासकि कसि नौमत छु ? कि जो शोध हई छु व हुनौ और पाठ्यकरम बणनई उ कदुक कारगर साबित ह्वाल ? कुमाउनी आदिम आपणि कुमाउनी कैं कदुक लाड़ करूं ? कुमाउनी लोक साहित्यकि परंपरा कसि चलि रै ? या्स किसमाक कएक सवाल बाजि बखत मुनव में उपजनी। पर इनर जबाब बखतै बतै सकल।
आजक जमान में हमरि नई पीढ़ी आपणि जड़ौं बै टाड़ (दूर) हुनै जाणै या करी जानै य आज एक ठुल सवाल छु। भलेई हमर समाज कुणौ कि हमरि नई पीढ़ी आपणि जड़ौं बै दूर भाजणै, उकैं आपणि भाषा संस्कृति, समाज दगाड़ के मतलब न्हां पर हमुकैं य लै नि भुलण चैंन कि नानतिनान कैं आपणि भाषा संस्कृतिक, संस्कारोंक ज्ञान आपण मै-बाप और समाज बै हैंछ। हमूंल य पर जादे सोचण चैं कि आजाक मै-बाब आपण नाननिनान दगै को भाषा में बात करनी, को भाषा सिखूनी कस संस्कार दिनी।
ऐलक बखत में अङरेजी नौं पर दुनी मेें जो अन्यारपट्ट दौड़ चलि रै वील नानतिनान में लै अङरेजोंक जस संस्कार तीज-त्यार, पैरावकि सार पड़नै, य दिन पर दिन बढ़नै जाणै। नानतिनै ना बल्कन हमर समाजक पढ़ी-लेखी मनखी लै आपणि संस्कृति, बोलि भाषान बै, आपण जड़ौं कैं काटते जाणई। के हमूंल आपण दोशकि और दुनियांकि हौर भाषा नि सिखण चैंना? हमूंल अङरेजीक दगाड़-दगाड़ै आपणि भाषा, देशकि भाषा और दुनियाकि हौर भाषाओं कैं लैं समान वकत (महत्व) दिण चैं, एक नजरल देखण चैं। सैद यैक पिछाड़ि हमर स्वार्थ कई जाण चैं किलैकी हम उ पर जादा मतलब धरनू जां हमूंकैं आपुण भलाई देखीं।
जै बखत जिगर पहाड़ी भाषानकि हैंछ त कुमाउनीक नौ लै खाश पहाड़ि भाषान में ल्हिई जांछ। आर्य भाषा परिवारकि भाषान में यैक गणती हैंछ। एक क्षेत्रीय भाषा हुणक बाद लै कुमाउनीक आपण खाश बिशेषता छन यैक आपण इतिहास और लिखित साहित्यकि अलगै कहानि छु। कुमाउनीक मूल स्रोत कैं ल्हिबेर बिद्वानन में द्वि मत छन- एकक हिसाबल य दरद खस प्राकृत बै जुड़ी छु, दुसरि बिचारधारा य छु कि हिंदी कैं चारि यैक उद्भव ऐलक हिंदीक चारि शौरसेनी अपभ्रंश बै छु। कुमाउनीक पैंल नमुन 989 ई. (शाके 911) रेवाधर जुकरिया ज्यूक संग्रह में लुटाघ (चंपावत) में मिली छु। यैक बाद कयेक अभिलेख चंद राजाओंक शासन करियाक 1790 ई. तकाक मिलनी। यों अभिलेख य साबित करनी कि कुमाउनी राज- काजकि भाषा लै रई छी। कुमाउनी भाषाक लिखित साहित्यक परचार में ‘अल्मोड़ा अखबार’(1871 ई., संपादक’-बुद्धिबल्लभ पंत), ‘कुमाऊं-कुमुद’, ‘शक्ति’, स्वाधीन प्रजा’, जनजागर, समता, हिलांस, 'पुरवासी' जास कयेक पत्र पत्रिकाओंल ठुल योगदान दे।
कुमाउनी में साहित्यकि शुरवात लोकरत्न पंत ‘गुमानी’ (1790-1846 ई.) ज्यूकि कलम बै मानी जैं। ऊं पैंल कुमाउनी लेखवार मानी जानी जो करीब 1800 ई. बाद पद्य में कलम चलूनी। इनर बाद कृष्ण पांडे, चिंतामणी जोशी, नैन सुख पांडे, शिवदत्त सती, श्यामाचरण दत्त पंत, रामदत्त पंत ‘कविराज’, पार्वती उप्रेती, चिंतामणी पालीवाल, पीतांबर पांडे, चंद्र सिंह तड़ागी, चंद्र लाल चैधरी आदि दर्जनों रचनाकारोंल कुमाउनी साहित्यक बिकास में आपण योगदान दे। ऐल तक उपलब्ध परमाणोंक हिसाबल कुमाउनी लिखित गद्य साहित्यक पैंल नमुन रामभद्र त्रिपाठी ज्यू द्वारा ‘चाणक्यनीति’ (1728 ई.) क गद्यानुवाद मानी जां। 1832 ई. में सिरामपुराक ईसाईयों द्वारा ‘न्यू टेस्टामेंट’ क कुमाउनी में अनुवाद करणक परयास करी गो पर अनुवादककि मौत हुणक कारण य काम पुर नि है सक फिर सन् 1876 ई. में मैथ्यू क प्रवचनोंक दुसर अनुवाद लखनऊ बै छपौ। 1850 ईसवीक बाद कुमाउनी में अनुवादक लै खूब भौ। ज्वालादत्त जोशी ल ‘दशकुमारचरित’ (1892 ई.), लीलाधर जोशी ल ‘मेघदूत’( 1894 ई.), चिंतामणी जोशी ल ‘दुर्गापाठ सार’ (1897 ई.) में अनुवाद करौ। 1900 ई. बाद लै कुमाउनी में कविताक दगड़ै अनुवाद लै भई। इंद्र सिंह नयाल ज्यूल ‘श्रीमद्भागवत गीता’ (1902 ई.) क गद्य में अनुवाद करौ, लीलाधर जोशी ज्यूल ‘श्रीमद्भगवत गीता’ (1908 ई.), श्यामाचरण दत्त पंत ज्यूल लै श्रीमद्भागवत गीताक ‘अमृत कलश’ नामल छंदबद्ध अनुवाद करौ। यैक अलावा लै अनुवादक क्षेत्र में काम करी गो। कयेक किताबोंकि रचना कुमाउनी में भै।
कुमाउनी भाषाक पैंल बैज्ञानिक अध्ययन करणक श्रेय गंगादत्त उप्रेती ज्यू कैं जां, उनूल लै ‘द बुक ऑफ ईस्थर’ किताबक कुमाउनी अनुवाद ‘फारस का महाराज की रानी असतर को इतिहास’ नामल करौ और परसिद्ध भाषा बैज्ञानिक डाॅ. जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ज्यूल बाइबिलकि ‘जड़ाऊ पूत’ कहानि कैं कुमाउनीक पिथौरागढ़, अल्माड़, दानपुर, सल्ट कि बोलिन में अनुवाद करवै बेर किताबक आकार में छपवा।
1950 ई. बाद लै कयेक रचनाकारोंल आपणि कलम उठा और कुमाउनी साहित्य कैं अघिल बढ़ा जनूमें चारू चंद्र पांडे, ब्रजेन्द्र लाल साह, नंदकुमार उप्रेती, बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’, गोपाल बाबू गोस्वामी, मथुरादत्त बेलवाल, कुलानंद भारतीय, ताराराम आर्य, गोपालदत्त भट्ट, मथुरादत्त मठपाल, देवकी महरा, भवानी दत्त पंत ‘दीपाधार’, हीरा सिंह राणा, गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’, दुर्गेश पंत, अनिल भोज, राजेन्द्र बोरा (त्रिभुवन गिरि), बालम सिंह जनौटी, जुगल किशोर पेटशाली, एम.डी.अंडोला, बहादुर बोरो ‘श्रीबंधु’, मोहन राम टम्टा ‘कुमाउनी’, डॉ. हयात सिंह रावत, दामोदर जोशी 'देवांशु' जास कयेक नाम छन जनूल कुमाउनी गद्य और पद्य साहित्य कैं अघिल बढ़ा।
कुमाउनी पत्र-पत्रिकाओंक आपण इतिहास छु। फरवरी 1938 ई. में अल्माड़ बै कुमाउनी भाषाक पैंल मासिक पत्रिका ‘अचल’ (फरवरी 1938 ई.- जनवरी 1940 ई.) निकलै जैक संपादक जीवन चंद्र जोशी छी। जो कुछ कारणोंल जनवरी 1940 ई. में बंद है पड़ी। यैक बाद लंब टैम बाद ‘बास रे कफुवा’, (1977ई.) में कुमाउनीक पैंल साइक्लोस्टाइल में हातल लेखी पत्रिका अल्माड़ बै निकली जैक संपादक सुधीर शाह छी। ‘धार में दिन’,(1978 ई.) ‘रत्तै ब्याल’(1979 ई.) नामल यैक द्वी और अंक निकलि सकीं। ‘ब्याण तार’, (1990ई.) में अल्माड़ बै निकलै जो पैंल फोल्डर पत्रिका छी। ‘आंखर’ (जन.1993-1995ई.) बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’ ज्यूक संपादन में लखनऊ बै निकलै। जो पैंली महैनवार छी फिर तिमाही निकलै। ‘बुरांश’ (1996 ई.) राजस्थान बै जीवन खरकवाल और दगड़ियोंल मिलबेर निकालै। 2000 ई. में मथुरादत्त मठपाल ज्यूल ‘दुदबोलि’ नामल तिमाई पत्रिका रामनगर बै निकालै जो 2006 ई. बै सालाना रूप में निकाली जांछी। ‘धाद’ नामकि जनवरी 2004 में पत्रिका अल्माड़ बै निकलै जैक संपादन डाॅ. हयात सिंह रावत ल करौ। यैक सिरफ एक्कै अंक निकलौ। ऐलक बखत में ‘पहरू’ महैनवार पत्रिका (नवंबर 2008 ई. बै) (अल्मोड़ा) संपादक-डाॅ. हयात सिंह रावत, ‘आदलि-कुशलि’ (जुलाई 2015 ई. बै) (पिथौरागढ़), संपादक-डाॅ. सरस्वती कोहली, ‘कुमगढ़’ (हल्द्वानी) संपादक-दामोदर जोशी ‘देवांशु’, ‘कुर्मांचल अखबार’ (2011 ई. बै) (अल्मोड़ा) संपादक-डाॅ. चंद्रप्रकाश फुलोेरिया, ‘कुर्मांचल अखबार’ कुमाउनी भाषाक पैंल हफ्तवार अखबार छु। कुमाउनी भाषाक पैंल ई पत्रिका ‘प्यौलि’ जनवरी 2020 में निकलै। जैक मई 2020 तक सिरफ 5 अंक निकली जैक संपादक डाॅ. पवनेश ठकुराठी छी।
कुमाउनी भाषा में 400 है सकर रचनाकार ऐल साहित्य भकार कैं भरण में जुट रई। ‘पहरू’ पत्रिका में लेखवारोंकि गणति 750 है सकर पुजि गे। आज कुमाउनी भाषा में साहित्यकि करीब-करीब सबै बिधाओं में रचना लेखिनई। पद्य साहित्य में कबिता, गजल, गीत, महाकाब्य, खंडकाब्य आदि तथा गद्य साहित्य में कहानी, उपन्यास, निबंध नाटक, ब्यग्य, जीवनी, संस्मरण, यात्राबृतांत, अनुवाद, शब्दचित्र, डायरी, समालोचना, रिपोर्ताज, इंटरब्यू आदि बिधाओं में रचना हुण लागि रीं। कुमाउनी में कबिता संग्रह किताब- 100 है सकर, महाकाब्य-तीन, खंडकाब्य-एक दर्जन है सकर, गजल-एक, कहानी संग्रह-25 है सकर, उपन्यास-10 है सकर, नाटक- 4 है जादे किताब लेखि हैंली। स्मारक साहित्य और शब्दकोष, ब्याकरण, अनुवाद बिधाओंकि किताब मिलै बेर ढाई सौ है सकर किताब ठेठ कुमाउनी भाषा में लेखी चुकि गई। ऐल सैकड़ों लेखवार कुमाउनीक साहित्य कैं समृद्ध करण और बिकास में योगदान दिणई।
कुमाउनी में पैंल शब्दकोश 1983 ई. में ‘कुमाउनी हिंदी व्युत्पत्तिकोश’ नामक डाॅ. केशवदत्त रुवाली ज्यूल तैयार करौ। यैक बाद उनूंल द्वी और शब्दोकोश तैयार करीं। यैक बाद शब्दकोशों पर भौत काम हई छु। ऐल कुमाउनी में नान-ठुल शब्दकोशोंकि संख्या 9 है सकर पुजि गे और य तरफ उरातार काम चलिए छु।
शोध, भाषा बैज्ञानिक काम और ब्याकारणक नजरियल लै कुमाउनी में काम हई छु। शोधक छेत्र में पं. गंगादत्त उप्रेती, डाॅ. देवी प्रसन्न पट्टयनायक, डाॅ. एम.एल.ऑप्टे, डाॅ. भगत सिंह, डाॅ. भवानीदत्त उप्रेती, डाॅ. डी.डी. शर्मा, डाॅ. कमला पंत, डाॅ. केशवदत्त रूवाली आदि कयेक नाम छन।
कुमाउनी में फिलमकि शुरवात 1987 ई. में भै, ‘मेघा आ’ नामकि फिलम कुमाउनीक पैंल फिलमकि रूप में सामणि ऐ जो अल्माड़ाक जीवन सिंह बिष्ट ज्यूक परयासोंल बणै। यैक बाद कुमाउनी में कयेक ना्न ठुल फिलम बणि गेई। कुमाउनी में बलि बेदना, आपणि-बिराणि, आई गे बहार, शिवार्चन, ओ पधानि लालि, अभिमान ठुल घरै चेलिक, बाटुली, मेरि इजा, दाज्यू, राजुला, दैज, छोलियार, अनपढ़ जवैं, आईना, चेलि, आस,सच्ची माया, डौन, बुद्दू देवर, भागै लेख, फौजी ददा, घोड़ा दान, मसाण, तीन आंखर, गोपी भिना, सिपै का सौं, मसाण, गोपी किशन, ऐगे तेरी याद, खिमूवा पहाड़ी, फौजी बाबू दि सोल्जर, आज-भोव समेत तीन दर्जन है सकर फिलम बण गेई।
कुमाउनी में सम्मेलनोंक लै आपण इतिहास छु। 1975 ई. बै ल्हिबेर आज तक दर्जनों सम्मेलन लै कुमाउनी में है गेई। जनूमें अंतराष्ट्रीय, राष्ट्रीय सम्मेलन शामिल छन। ‘कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति’, कसारदेवी अल्मोड़ा व ‘पहरू’ पत्रिका द्वारा सबन है जाधे सम्मेलन करी गेईं। समिति द्वारा 2009 बै ऐल तक हर साल तीन दिनी 12 राष्ट्रीय स्तराक सम्मेलन कराई जै चुकि गेई। टैम-टैम बै नान-ठुल गोष्ठी, बैठक होते रूनी।
इथां जब बै इंटरनेटक परचलन जाधे बढ़ौ तब बै कुमाउनी भाषा, साहित्य, संस्कृतिक भौत परचार देखण में आ। कुमाउनी प्रेमियों, कदरदानोंल फेसबुक, यूट्यूब, वटसप, इंस्टाग्राम, ट्विटर द्वारा परचार करौ। आज वेबसाइड, ब्लाग, पेज, ग्रुपों में भाषा, संस्कृतिक खूब प्रचार देखीण में ऊणौ। आ्ब कुमाउनी में औनलाइन बेबीनार लै हुण लागि रई। फेसबुक में दर्जनों पेज, ग्रुप कुमाउनीक लिजी बणाई छन। कुछेक युट्यूबर यूट्यूब में कौमेड़ी बिडियो लै बणूनई।
कुमाउनी कैं इस्कूलोंक में पढूनक तरफ लै बिद्वानोंक ध्यान जै रौ। कई जां कि सन् 1837 ई. में कुमाऊं में कुमाउनी कैं शासनकि भाषा रूप में प्रयोग करी जाणक आदेश भौ, पर इस्कूल,पाठशालान में कुमाउनी भाषा में लेखी किताब नि हुणा वजैल य आदेश कैं ब्यौहार में नि ल्याई जै सक। 1973 ई. में कुमाऊं विश्ववविद्यालयकि थापना हुणक बाद कुमाउनी छुटपुट रूप में पढूणकि शुरवाती है गेछी। 2014 ई. बै विश्ववविद्यालयक एस.एस.जे. कैंपस में कुमाउनी कैं बिषय रूप में पाठयक्रम में पढूण शुरू करी गोछी। साल 2021 में एस.एस.जे. अल्मोड़ा विश्वविद्यालय बणी बाद कुमाउनी भाषाक आपण खुदक बिभाग बणाई जै रौ। हमरि प्रदेश सरकारक ध्यान कुमू (कुमाऊं) क प्रराईमरी इस्कूलन में लैं एक बिषय रूप में कुमाउनी कैं पढ़ाई जाणक तरफ गो। कुमाउनीक दर्जा 1-5 तलक पाठ्यक्रम पिछाड़ि साल 2020 ई. में तैयार करि है। इथां कयेक संस्था और कुछेक कुमाउनी प्रेमियोंल कुमाउनी सिखलाई कलास लै चलूनई।
कुमाउनी लोक साहित्य आपण में बिशिष्ट छु। कुमाउनी लोक साहित्यकि परंपरा भौत पुराणि छु। बिद्वान माननी कि जब बै कुमाउनी बोलीक शुरवात भै तब बै वीक लोक साहित्य लै परंपरा में चली ऐ होलि, जो आज तलक ज्यूनि छु। कुमाउनी लोक साहित्यकि आपणि समृद्ध परंपरा रई छु। जो बर्षों तक सुणि-सुणि बेर एक पीढ़ी बै दुसरि पीढ़ी तक सरै। टैक्नौलौजी साधन ऊण पर माठू-माठू लोक साहित्य कैं रिकाॅर्ड करी जाण शुरू करी गो। आस्ते-आस्ते गिदारोंक गीत कैसेट रूप में सामणि आई। ऐलक बखत में सैकड़ों गिदार, संस्कृति प्रेमी लोक साहित्य कैं अघिल बढूण में जुट रई। बिदेशी मंचों तक कुमाउनी लोक साहित्य पुजि गो। दुसर तरफ लोक साहित्य कैं लिखित रूप में संकलित करणक ओर लै लेखक, गिदार, भाषा, संस्कृतीक कदरदान अघिल आई। गीत, का्थ, कहावत, आण आदि पर कयेक किताब लै देखा है गेई। कुमू में त्यार-बार, ऋतु, जात्रान, ब्रतन, संस्कारन, सांस्कृतिक कार्यकरमन और धार्मिक अनुष्ठानन में लोक साहित्य ज्यून है उठैं।
कुमाउनीक मानकीकरणक तरफ लै अवाज उठण लागि रै। य तरफ कुछ नान-नान कोशिश हई छन। कुमाउनी भाषाक परसिद्ध भाषाविद डाॅ. केशवदत्त रुवाली ज्यूक मानण छी कि कुमाउनीक मानक रूपक लिजी खसपर्जिया बोलि कैं मुख्य आधार बणाई जै सकीं किलैकी य सांस्कृतिक, भौगौलिक एंव राजनीतिक दृष्टिल य कुमूक केंद्र में पडू हौर बोलियोंक मुकाबिल में यमें सकर साहित्यक लेखी जै रौ। आकाशवाणी में प्रसारित हुणी कार्यकरमों में य बोलि कैं आधार बणाई जै रौ। हौर सहयोगी बोलिन बै लै के न के ल्हिई जै सकीं।
कयेक लोगबाग कुमाउनीक लिपि कैं ल्हिबेर आऊं उठूनी। कि यैक क्वे लिपि न्हैं या यैक अलग लिपि हुण चैं। और लै भौत सवाल। यैक सिद्ध जबाब यई हुण चैं कि जब कुमाउनीक प्रमाण हमुकैं देवनागरी लिपि में मिलनी और देषाक संस्कृत, हिंदी, मराठी जास दर्जनों भाषाओंकि आपणि खुदकि लिपि देवनागरी छु तो यैक लिपि लै देवनागरी किलै नि है सकनि। हौर भाषाओंकि चारि कुमाउनी लै देवनागरी में भल ढङल लेखितै उणै। अगर यैक अलग से लिपि लै बणै दिई जाओ तो यैक आज तलकक लेखी साहित्य और करी हुई कामक के ह्वल ? नई लिपि में लेखि बेर उकैं कदुक लेखवार समझ सकाल? नई लिपि थोपि बेर जो काम आज कुमाउनी में हुण लागि रौ उ लै नि है सकल। कुमाउनीक बिकास में नई लिपि बाधक बण जालि।
कुमाउनी भाषा में ऐलक बखत में उरातार साहित्य लेखी जाणौ, भाषा, साहित्य संस्कृतिक लिजी सरकार और हमर कुमाउनी कलाकार, लेखवार, भाषा प्रेमी आपण-आपण तरफ बै जुट रई। कुमाउनी लोक साहित्य में लै उरातार काम हुणौ। कयेक बिशेष पर्व, महोत्सवो में कुमाउनी संस्कृतिक कार्यक्रम हुनई, कुमाऊं ना बल्कन देशकि राजधानी, मुंबई समेत देशाक कयेक ठुल शहर और बिदेशी मंचों में लै कार्यकरम हुनई। पर सवाल यां य उठूं कि हुमुकैं इदुकै में खुशि है जाण चैं ? म्यर ख्यालल यैक जबाब हुण चैं- ना। कुमाउनी कैं जो इज्जत, जो लाड़-प्यार और जो मोह व कदरकि जरवत छु। जदुक समर्पण भावकि जरवत छु। जदुक स्तरीय व गुणवत्ताक ढङल काम करणकि जरवत छु। उ कम देखीण में नि उनय। आज या्स किसमाक सवाल कुमाउनीकै लिजी ना बलकन हमर राज्य, देश और य दुनियोंक हजारों भाषाओंक लिजी पैद हुणई। कुमाउनी लिजी आज द्वी चीज भौत अहम छन एक बिकास कै ल्हिबेर दुसरि बचूण कैं ल्हिबेर। कुमाउनी कैं बचूणै लिजी य जरूरी छु कि य सकर है सकर बोली-सुणी जाओ, सकर है सकर लोकब्यौहार में ल्याई जाओ। कुमाउनीक बिकासै लिजी य जरूरी छु कि इमें पढ़न-लेखनक काम उरातार होते रओ, जाधे हे जाधे स्तरीय साहित्य लेखी जाओ। कुमाउनी में शोध और ब्याकरण और शब्दकोशोंकि भौत जरवत छु। अगर कुमाउनीक हरेक बोलिक शब्दों कैं एकबट्यै बेर हरेक बोलिक शब्दकोष बणाई जावो तो उ मानकीकरण में और कुमाउनीक शब्द सामर्थ कैं बढूण में मधतगार साबित हलि। कुमाउनीक उपबोलियोंक मौजूद कयेक शब्दोंक इस्तमाल आजी तलक कुमाउनी साहित्य में देखण में नि ऐ रय। कुमाउनी कैं समृद्ध और वीक बिकासै लिजी लेखवारों कैं भौत मिहनत करणकि जरवत छु। स्तरीय साहित्य लेखण ठुलि बात होलि। लेखवारों कैं कुमाउनी शब्दोंक जाधे है जाधे इस्तमाल करी जाणकि जरवत छु। जब जरूरी हुंछ तबै हौर भाषाक शब्दनक इस्तमाल करण चैं। कुमाउनी में समीक्षा और समालोचना लै करी जाणकि और भल समीक्षक और आलोचकोंकि जरवत छु। साहित्यकि हर बिधा में जाधे है जाधे किताब लेखी जाणकि जरवत छु। स्तरीय गीत, फिलम बणाई जाणकि और शोधपरक काम करी जाणकि भौत जरवत छु। कुमाउनी कैं इस्कूलन में लै पढ़ाई जाण चैं यैल कुमाउनी लिजी फैदै-फैद छन। हमार सरकारों कैं लै कुमाउनी भाषा अकादमी, पहाड़ी भाषाओं पर षोध व सृजनक समेत हौर कामोंक लिजी केन्द्रीय संस्थान बणूण चैं। कुमाउनी भाषा, साहित्य, लोक साहित्य, लोकगीतों पर इतिहासपरक लेख तो देखण में ऊनी पर इनर ब्यवस्थित इतिहास आज तलक नि लेखी जै रय। य तरफ लै काम करी जाणकि जरवत छु। कुमाउनी समाज में आज तलक जदुक लै काम कुमाउनी में है रौ चाहे उ सृजन हो या शोध हर क्षेत्र में हई काम छु वीक परचार-परसार व उकें उपलब्ध करी जाण जरूरी चिताई ताकि हर कुमाउनी आपण भाषा कैं गैल भानि जाणि सकौ और गर्व करि सकौ।
य दुखकि बात छु कि देखा देखी और बिदेशी हा्व आब हम पहाड़ी लोगन कैं लै लागण फैगें यांक लोग-बागनकि हिय में उ मोह-माय, लगाव नि देखियण जो देखीण चैंछी। य सई छु कि हमूकैं दुनी दगै हिटणै पड़ल, दुनियकि हर चीज कैं देखते हुए अपनाते रूण पड़ल तबै हम दुनी दगै हिट बेर जिंदगी में तरक्की करि सकनू। पर यां सवाल अलझी जां कि हम मौडन देखिणक या हुणक लिजी देखादेखी में तो नि जिणय? पश्चिमी देशनकि रीत-रिवाज, भाषा-संस्कृति तो नि अपनूणाय? आज दुनी में छै हजार है सकर भाषान में अंग्रेजी सबन है अघिल छु, आज दुनी में कदुक भाषा संस्कृति कैं निगलते हुए य आपण खुट पसारणै, पैठ जमूनै जाणै। अंग्रेजी भाषा सबन है पैंल अंतराष्ट्रीय भाषा लै मानी जैं, और हमुकैं य बातक संतोष लै करण चैं कि अंग्रेजी मनखी जातिकै भाषा छु जो हर क्षेत्र में मनखी कैं एक दगै जोड़ि सकैं। अगर अङरेजी अंतराष्टीय भाषा छु तो तो यकैं सिखण में के परहेज नि करण चैं, पर अङरेजी सिखबेर मौडन देखीण और यकैं बुद्धिमत्ताक निशाणि मानण कां तक सई छु और यैक चक्कर में आपणि भाषा औच्छ समझण, आपणि भाषाओं कैं ह्याव समझण, आपणि रीत-रीवाजन तरफ पुठ फरकूण कां तक सई छु ? या्स किसमाक आज भौत ठुल सवाल छन।
जो हिसाबल हम कुमाउनी आपणि भाषा संस्कृति कैं जो ह्याव नजरलि देखनू, आपण हिय में जो धारणा हमुलि पालि है उकैं देखि बेर लागूं कि हमर आपणि य महान भाषा, संस्कृति हरै जालि। बस जरवत छु आपणि कुमाउनी भाषा, संस्कृति पर हमुकैं गर्व करणकि, हमर कुमाउनी समाज में कुमाउनी भाषा संस्कृतिक लिजी हमन कैं जागरूकता फैलूणकि। हम 25 लाख है सकर कुमाउनीयों कैं चैं कि ऊं जदुक गर्व हिंदी, अंग्रेजी या हौर भाषाओं कैं बुलाण में करनी, बिदेशी संस्कृति अपनूण में करनी उहैं सकर आपणि दुदबोलि (मातृभाषा), में करो, आपण भाषा त्यार-बार मनूण में करो। आपणि भाषा संस्कृति कैं ह्याय नि करो। आपणि मातृभाषाक महत्व कैं जाणो। आपणि चीजक लिजी एक बिशेश मोह आपण हिय में पैद करौ। आपणि दुदबोलि कुमाउनी में पढ़ण-लिखणक, रिवाज, बणाओ, कुमाउनी कैं लोकप्रिय बणूणै लिजी समाज मे जागरूकता फैलाओ, अगर हम सबै कुमाउनी एकबटी जूंल तो दुनियकि क्वे यसि महाशक्ति नि होलि जो कुमाउनी भाषा कैं भारतक संबिधानकि आठूं अनुसूची में ठौर पाण में व कुुमाउनी कैं एक समृद्ध भाषाक रूप में पछयाण बणूण में रोकि सकलि।
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टिप्पणियाँ
कुमाऊंनी भाषा में यतुक भल जानकारी दिने लिजी भैत-भैत आभार। कुमाऊंनी भाषाक विकास लिजी तुमर य भौते भल प्रयास छु। मैल तुमर लेख भलि-भांति पढ़ बेर स्टेटस में लै लगै रखो।
दीक्षा मेहरा
असिस्टेंट प्रोफेसर हिंदी
चंद्रावती तिवारी कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय काशीपुर।
जो मैसभाषा द्गड़राड़ नि करौल तो उ संस्कृति कसि पनपैलि?
भाषा कैं ह्यालकरबेर संस्कृति आफुआफ तौल हुं जाने
तुमर लेख पढ़ बेर सोच गुम पड़ गई
एल यतुके फिर चौड़ है बेर तुमुहुं बत्यूल बधै ,