कुमाउनी लेख - अल्माड़क मुहर्रम : ऐतिहासिक संदर्भ
मुहम्मद नाजिम अंसारी
भाटकोट रोड तिराहा, पिथौरागढ़
मो.-87550 53301
उसिक पुर देश में मुहर्रमक त्यार इमाम हुसैन क बलिदान दिवस रूप में मनाई जां पर कुमाऊंक पहाड़ि इलाक में रूणी वाल पहाड़ी मुसलमान आपण खास पहाड़ी तरिकल य त्यार मनूनी। यां हिंदू-मुसलमान सबै मुहर्रम में शामिल हुनी। इस्लाम धरम में चंद्रदर्शन हिसाबल जो सालाक बार महैण छन, उनन में पैंल महैणक नाम मुहर्रम छु। य महैणक नाम पर यैकें मुहर्रम कई जां। मुहर्रम महैणक पैंल तारिख बटी नई साल शुरू हुंछ, जैकें मुसलमान खुश है बेर नि मनून किलैकी य महैण में एक दुखद घटना घटी। यो महैणक दस तारिख हुणि इस्लाम धरमाक महान पैगम्बर (अवतार) मुहम्मद सैपक नाति (चेलिक च्यल) इमाम हुसैन और उनार परिवारक 72 लोग करबलाक मैदान में बेदर्दीक साथ शहीद कर दिई गई। उनरि बलिदानकि याद में हर साल मुहर्रमक महैण में ताजिया निकाली जानी। करबलाक ऐतिहासिक लड़ै किलै लड़ी गेछी? के य द्वी राजांक बीचकि लड़ै छी? के य लड़ै राजपाट प्राप्त करणा लिजी छी? यो सवालनाक उत्तर जाणनै लिजी करबलाक काथकि जानकारी जरूड़ी छ-
इराक में उ बखत यजीद नामक राज छी, उ भौतै भ्रष्ट और अय्यास आदिम छी। खलीफा हजरत अमीरक मौतकि बाद यजीद आपूंकैं खलीफा घोषित करि बेर खलीफाक गद्दी में बैठ गो। उ भलिकै जाणछी कि जब तक मदीना और मक्का शहरनाक लोग बैअत (मान्यता) नि द्याल वीकि गद्दी सुरक्षित नि है सकनि। उ बखत इमाम हुसैन मदीना में छी और ऊं इन सब विवादन बटी दूर छी। उनन सत्ता या गद्दीकि क्वे लालसा नि छी और ऊं खलीफा लै नि बणन चांछी। यजीद यो जाणछी कि उ बखत इमाम हुसैन श्रेष्ठतम और महान ब्यक्ति छन, जननकणि पुर इसलामी सल्तनाक लोग आदर और श्रृद्धा नजरल देखनी। इराक क लोग लै सामूहिक रूपलि यजीदाक खिलाफ है गई और इमाम हुसैन कैं खलीफा बणूनै लिजी उनूल बार-बार यो अनुरोध करौ कि पवित्र पैगंबराक नाति हुणाक रूप में उनरि जिम्मेदारी छु कि इस्लाम धरम कैं बचूणै लिजी उनन कणि अगुवाई दियौ। इमाम हुसैन आपण परिवार, साथी लोगन दगाड़ कूफा (इराककि राजधानी) उज्याणि रवाना है ग्याय। उनर काफिला में सब मिलै बेर बहत्तर (72) लोग छी और उनर इराद क्वे लड़ैक नि छी, नतरि ऊं आपण दगाड़ हजारों हथियारबंद लोगन कैं लिजै सकछी।
जब ऊं आपण काफिला दगाड़ करबला मैदानक नजीक पुजी तो दुसरि तरफ बटी कूफाक गवर्नरकि एक हजार हथियारबंद फौज वां पुजि गे और उनर रस्त रोकि बेर कौ-‘‘ या त आफूं यजीदकि बैअत ल्हिया (यजीदक धरमक नियंत्रक रूपल मान्यता) या हमार दगाड़ आपण युद्ध ह्वल।’’- आफूंल कौ-‘‘मैं बेअत क्वे कीमत में नि ल्यूंल। मैं लड़ै लै नि करूंल और यो देश छोड़ द्यूंल।’’ यस बताई जां कि इमाम हुसैन सैपल पूरब उज्याणि स्थित भारत देशक तरफ इशार कर बेर कौ-‘‘हमार नजीक एक यस देश लै छु जां ईश्वर भक्तन कैं सम्मान मिलूं और शांति मिलैं।’’ पर उन लोगनल कौ-‘‘ न तो आपूं वापस जै सकछा और न क्वे दुसर देश जै सकछा। ’’ जब उनरि क्वे बात नि मानी गै और मुहर्रमक सात तारिक बटी उनर लिजी पाणि लै बंद कर दे तो नौ तारिक हुं आपूंल आपण काफिला वालों हुं कौ-‘‘य लोग म्यार जानक दुश्मण छन और इनन कैं तुमर दगाड़ के मतलब न्हैं, यै लिजी तुम लोग न्है जावो।’’ यो सुणि बेर सब बिलाप करण लागी और कूण लागी- ‘‘आपूंकैं इकलै छोड़ि बेर हम कसिकै जै सकनू।’’ तभै फौजक एक तीर हुसैन सैपक हात में लागौ और यसिकै करबलाक लड़ैक घोषणा है गै।
मुहर्रमक नौ तारिक हिजरी सन 61 (नौ अक्टूबर सन 680) हुं तीन दिनाक भुक-तिसै लोग एक-एक कै मैदान में आईं और बीरतापूर्वक फौजक मुकाबला कर बेर बीरगति हुं प्राप्त भई। यमें इमाम सैपक ज्वान च्यल, भतिज, भानिज, छै महैणक नानू भौ और सब साथी लोग सामिल छी। आंखिर में घ्वड़ में बैठ बेर और हातम तलवार ल्हि बेर उनन आपण बहादुरिक जौहर दिखा। य देखि बेर जब फौज पछिल हटण लागी त फौजक मुखियाल आपण लोगन कैं चेतावनी दि बेर कौ-‘‘डरपोको एक तीन दिनक भूख-तीसल जख्मी आदिम एक तरफ और दुसर तरफ एक ठुलि, शक्तिशाली फौज, तुम किलै डरनौछा?’’ य सुणि बेर फौजल आपणि पुरि ताकत लगा बेर एक दगाड़ वार करौ जैक वजैल आपूं आपण घ्वड़क पिठ बै भी में गिर पड़ी। शहीद हुण है पैंली आपूंल आपण आंचुइ में खून ल्हि बेर अगासक तरफ उछाल बेर कौ- ‘‘हे ईश्वर, मैं सच्चाई, न्याय और त्यर धरमक सिद्धांतकि रक्षा में आपुणि ज्यान दिण लागि रयूं।’’ सच्चाईक बा्ट में आपणि जान दी बेर हुसैन सैप अमर है गई, उनरि याद में हर शहर में आज एक करबला मौजूद छु।
•अल्माड़क ऐतिहासिक ताजियेदारी (मुहर्रम)-
अल्माड़ में ताजिये निकाली जाणकि प्रथा द्वी सौ साल है जादे पुराणि छु जैक सबूत छु- यांक करबला नामक जाग। द्वी सौ साल पैंली सरकारि अभिलेखन में करबला दर्ज छी और अच्याल लै यो पुर इलाक करबला नामल जाणी जां। करबला उ जाग छु जां ताजिये दफन करी जानी। सन 1815 ई. है पैंली जब यां गोरखा शासन छी, तब लै करबला छी। कमिश्नर ट्रेल ल आपणि किताब में लेखि राखौ कि उ बखत ताजियों कैं आम में निकाली जाणक मनाई छी जो एकदम झूठ छु किलैकी बिना आम में निकालि बेर ताजिये करबला कसिकै पुज सकछी। दुसर सबूत छु 1861 ई. में घटी दुखद घटना, जमें सौज्यू परिवारक एक सदस्यक हात अखाड़ाक तलवार बै कटि गोछी। यो मामिल जब कमिश्नर रैमजे सामणि पुजौ तो वील यकैं हिंदू-मुस्लिम झगड़ बणै दी, किलैकी अठार सौ सतावनकि क्रांति बाद हिंदू-मुस्लिम एकता फिरंगी अङरेजन लिजी सबूंहै ठुलि समस्या छी और ऊं हर घटना कैं हिंदू-मुस्लिम झगड़ साबित करणा लिजी तैयार रूंछी। य दुखद घटना खजांची मुहल्लक छी। कमिश्नर रैमजे सैपल फैसाल दी बेर मुहर्रम जुलूस कैं खजांची मुहल्लाक घटना वाल जाग बै अघिल जाण में पाबंदी लगै दे। 15 अगस्त 1947 हुं भारत आजाद हुणाक बाद लै कभै य मांग नि करी गै कि आब उनन बजारै-बजार जुलूस ल्हि जाणक इजाजद मिलण चैं किलैकी यास मांग आपसी भाईचार और एकताक खिलाफ छी। 1861 ई. क स्टाम्प पेपर, जमें क्वे दुसर जाग में ताजिया बणून लिजी इजाजद चैं, लै य साबित करनौ कि तब मुहर्रमक त्यार हुंछी। पुरा्ण बखत में अल्माड़ में चार इमामबाड़ा (जां ताजिये बनाई और धरी जांछी) छी- 1. नकारचीटोला (अच्याल नियाजगंज) 2. लाला बाजार, 3.कचहरी बाजार और 4. थानाबाजार। यो हिसाबल पुरा्ण टैम बै चार ताजिये बणूनकि प्रथा चली ऐ रै। लाला बजारक इमामबाड़ा बंसल गलीक ठीक सामणि छु जां बै नगरपालिका सालक 355 दिन अस्थाई दुकान किराय में दी बेर आपणि आमदनी बढूनै। सिरफ मुहर्रमक मौक पर दस दिनक लिजी य इमामबाड़ खालि करी जां। दुसर इमामबाड़ थाना कोतवालीक सामणि छु। सबूंहै पुराण इमामबाड़ नियाजगंजक कांई नाम-निसाण लै नि छ किलैकी लोगन कब्ज करि बेर दुकान-मकान बणै दी।
अल्माड़क मुहर्रम ऐतिहासिक हुणा अलावा कलात्मक ताजियाें हिंदू-मुस्लिम एकता और आपसी भाईचारक लिजी लै जाणी जां। मैं कें भलीकै याद छु पचास साल पैंली जब मुहर्रमक जुलूस रातीब्याण पल्टन बजार पुजछी तब खड़क सिंह ज्यू इदुक ठुल भीड़ लिजी चहा बणै बेर तैयार राखछी, यसीकै लुवक शेरक नजीक प्रभात होटल मालिक भट्ट ज्यू मुहर्रमक जुलूस लिजी चहा-पाणिक इंतजाम कर राखछी। पैंली सबै ताजिये नियाजगंज पुजनी, जां बटी जुलूस ढोल-ताशा और अच्याल लै मनाई जां। पैंलि सबै ताजिये नियाजगंज पुजनी, जां बटी जुलूस ढोल-ताशा और अखाड़ा दगाड़ लाला बजारक लिजी रवाना हुंछ, वां बै चैक बजार-कारखाना बजार- कचहरी बाजार फिर वापिस लुवक शेर-माल रोड- ठुल डाकखाण-पुलिस लैन-सेवाय होटल-पल्टन बजार बै ताजिये इमामबाड़ थाना बजार ल्हि जाई जानी। रस्तभर अखाड़ाक करतब लै दिखाई जानी। दुसर दिन ;मुहर्रमक दस तारिकद्ध ताजियै थाना बजार बै सर्किट हाउस- ईदगाह- कर्बला पैदल बा्ट हुं करबला पुजि बेर दफनाई जानी। यो मौक पर जाग-जाग लोगन कैं शरबत, पाणि, चहा पिवाई जां, सार्वजनिक चहा-पाणिक य प्रथा ‘सबील’ कई जां। मुहर्रम महैणकि दस तारिक हुं अल्माड़ में एक भौत ठुल भंडारा करी जां, जै थैं ‘नियाज’ कूनी।
कुमाऊंक दुसर पहाड़ी जाग जां य त्यार मनाई जां और ताजिये निकाली जानी उनन में पिथौरागढ़, रानीखेत और नैनीताल खास छन। रानीखेतक इमामबाड़ा सदर बजारक खास ऐतिहासिक महत्व छु। जब 1860 ई. में अङरेजोंल य शहर बसा तब बटी यां ताजिये निकाली जाणकि प्रथा शुरू है गे। पिथौरागढ़ में 1880 ई. बै ताजिये निकाली जाणई, जां जुलूस इमामबाड़ पुराण चैक बजार बै शुरू है बेर सुनारगली, धरमशाला लाइन, गांधी चैक, सिल्थाम, भाटकोट रोड और तिलढुकरी पुजण बाद वापस सिल्थाम, सिमलगैर, नगरपालिका तिराहे, पुराण बजार, खल्लेक डाने, इमामबाड़ पुजि बेर खतम हुनी। नैनीताल और रानीखेत में मुहर्रमक चालीस दिन बाद चेहल्लुम त्यार लै मनाई जां, जमें ताजिये निकाली जानी और य मुहर्रमक अघिल महैणकि उनीस-बीस तारिक हुं मनाई जां।
हम कै सकनू कि कुमाऊंक पहाड़ी इलाक खासकर अल्माड़क ऐतिहासिक मुहर्रम त्यार आपणि बिशिष्टता, कलात्मकता, एकता, भाईचारा और अलग पछयाणै लिजी पुर देश में जाणी जां।
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('पहरू' अगस्त २०२१ अंक बै )
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