कुमाउनी कहानी : आँसु आँखन बै उनी
डॉ.आनंदी जोशी
जी.आई.सी.रोड, पिथौरागढ़
मो.-9917369140
भौतै मेहनती मैंस छी शेर सिंह ज्यू। आपण बाबुकि बुड़यांकावकि संतान हुनाक वील ऊं जादातर दगडुनाक शेरू का छी। बाद में आस्ते-आस्ते ऊं सा्र गौं वालनाक शेरू का है गोछी। दिन-रात काम करि बेर लै शेरू का पटै नि चितूंछी। ज्यौड़-गयूं बाटन, फिण बणून, लुट बणून, छां खुकड़न, खा्ण पकूण, भा्न माजन, कप्ड़ ध्वीन, हव बान, गोड़न-नेवन, काटन-चुटन, लकाड़ फाड़न, बाव काटन जास सबै काम करनाक ऊं सिपाव भ्या। द्वी बखत गौंक सभापति लै रई। लोग सलाह-मशबिरा करनै थैं उनरि पास आई करछी। पुर इलाक में ठुलि हाम छी उनरि। सबनाक दुख-सुख देखनी, आर-सार करनी एक मददगार इंसान छी शेरू का। भुक-तिस बटावन कैं पाणि पेऊनी, खा्ण खऊनी और जाग-ठौर दिनी उनन जौ मैंस गौं में क्वे दुहर नीछी। भुली-भटकी कैं बा्ट बतून ऊं आपण धरम समजछी। शेरू का बतूंछी कि उनूल नानछना बै दुख ठेलौ। तीन बैणिन बाद पैद भईं और जब डेढ़ सालाक छी उनार बौज्यू मरि गोछी। उनरि इजल बड़ि बिपत्ति में पाली, एक्कै डालूनि ढकन चार नानतिन। बैणिनल इस्कूलक मूखै नि देख। नानछना बटी इजाक दगाड़ काम करन सिखि ल्हे बस। शेरूकाल पढ़ौ गौंक पराइमरी इस्कूल में पांच तलक। उनार पांच पास करन तक तीनै बैणी बेवाई गोछी। सिद-सा्द बखत हुनाक वील सबै टैम पर बिन खर्चै बेवाई गोछी। आब इकलि रै गैछि शेरूकाकि इज, ठुल कारबार में। द्वी गौंनोंकि जिमदारी छी वीक पास। सौर ज्यू इकलै भै छी, घरवाव इकलै और आब च्यल लै इकलै भै भौ।
शेरूका पढ़न में हुश्यार छी, पर पांच है अघिल नी पढ़ि सक। इज कैं आब शेरूका कें इस्कूल लगूनकि हिम्मत नी ऐ, किलैकी आठ तकक इस्कूल घर बै पांच मैल दूर छी। शेरूका कें लै आपणि इज कैं इकल छाड़न ठीक नि ला्ग। उनूल इजक काम में हात बटून शुरू करौ और सबै हुनर सिखि ल्ही। पनर सालकि उमर में उनर ब्या है गोछी परूलि काखिक दगाड़। ‘यथा नाम तथा गुण’ देखीन में परूलि काखि भौतै बान छी- ऐन मैन ‘पार्वती’ जसि। वीकें लै आपण बाबुकि सूरत याद नी छी। ‘राम मिलौ जोड़ि, एक अंध एक कोड़ि’ वालि कहावत चरितार्थ भै। सौरास ऐ बेर वील धुरिक दगाड़ बांसक जस साथ निभा शेरूकाक। गोरू, भैंस, बल्द, बकारनाक दगाड़ करी दुवै गौंनोंकि जिमदारी। दुवै स्यैणि-बैग जि काम ले करछी दगड़ै करछी। शेरूकाकि इज घर पनक सब काम करि राखनेर भै। शेरू का गाड़-खेतोंक काम करि बेर दिन में बल्द-बकारन बण चरै लूनेर भ्या। शेरूकाकि इज आपण च्यलक कारबार देखि भौत खुश छी। पर कि करी जावौ, शेरूकाकि गृहस्थी में एक गरण जौ लागि पड़ौ। अठार सालकि उमर बै परूलि काखि कें कोखक दुख शुरू है पड़ौ। तीन अदकाव भई, पांच जतकाव पर कोख फिरि लै रिती छी। शेरूकाकि औलादक लिजी उनरि इजल कतुक का्व-बिकाव करी। छुरमल ज्यू कैं पंचबइ और चंडिका कें अठवार दे। ठा्ड़ द्यू जगा सैम ज्यूक थान। द्यो-द्याप्तनकि किरपा और पितरनाक सतल एक भौ बचि पड़ौ। खूब झरफरल भौक नवान करौ शेरूकाल। माई ज्यूकि झोलि में डालि बेर भौक नाम राखो ‘शंकर’। भौत लाड़-प्यारल पालो इज-बौज्यू और आमल शंकरी कैं। आमल आपण नाति कें कभै कुट है भीं नि धर। छयां महैण अनपासिणि करी। पचां साल बामण बुलै बेर बिद्यारंभ संस्कार करा। सतां साल उतरैणिक दिन घाटाक शिवालय में ख्वाराक बाव उतारी। नवां साल कर्ण बेद करा। इग्यरां साल जज्ञशाला बणै बेर भौत झरफरल बरपन करौ। चार गौं न्यूंति बेर पांच तौल भात पका शेरूकाल।
शंकरी गौंक पराइमरी इस्कूल बै दर्जा पांच पास है गोछी। जूनियर हाईस्कूल लै आ्ब गौं मेंई खुलि गोछी। तीन मैल दूर मा्ल गौं में नौ बै बार तकक इस्कूल लै चालू है गोछी। शेरू का गड़ि-भिड़ि और जर-जेवर गिरबी राखि बेर लै शंकरी कैं बार तक इस्कूल पढून चांछी पर कि करी जावो कक्षा छै बठे शंकरियल पढ़न में मनै नि लगाय। कक्षा छै और सात तौ जसी-तसी पास करि हालछी पर आठकि बोर्ड परीक्षा में तीन बखत फेल है गोछी शंकरी। शंकरियाक रङ-ढङ देखि बेर वीक इज-बौज्यू आब परेशान रून लागी। इस्कूल पढ़न में वीक ध्यान नि लाग, के बात नैं, पें घराक काम में त उ मन लगूून धैं। खेति-पातिक काम में लै वील मन नि लगाय। वील मै-बाबुक कयूं मानन लै छाड़ि हालछी। शेरूका जा्स सज्जन बाबुकि उ रत्ती भरि इज्जत नि करनेर भै। सिदि-सादि मतारि कैं उलबुलै जै दिनेर भै। आपण मनक है गोछी शंकरी, एकदम निगुर। दिन भरि डोई रूंछी जां-तां। पैरनै थैं और खानै थैं चैंछी भल-भल। आ्म लै आ्ब बुड़ि है गैछि। वीकें लै हुन लागी शंकरियकि फिकर। वील शेरू का थैं कौ- ‘‘च्यला! शंकरी आ्ब ज्वान है गो। तु तैक खुट अवज्यै दे। ब्या करि बेर तैक मन कारबार में लागि जाल। तुमर लै सहार है जा्ल और मैं लै पननातिक मूख देखि बेर आँख बुजुंल। शेरूकाल अपण सा्व हतां एक सुंदर पांच पढ़ी ब्योलि ढुनवै और करि दे शंकरियक ब्या खूब धूम-धामल। शंकरी लै देखण में कम नी छी। राम-सीताकि जसि जोड़ि छाजी रेबतिक दगाड़।
ब्या बाद शंकरियकि अबारागर्दी मणी कम त भै पर जिमदारि में वील फिर लै मन नि लगाय। शेरूकाल घरवाइक जर-जेवर बेचि गौं बै तीन मैल दूर घाट जानी वाल बा्ट में एक नानू-ना्न मकान बणै बेर वीक भैर बै छप्पर में हालि दे एक चहाकि दुकान शंकरियकि लिजी। घाटक बा्ट हुनाक वील खूब चहल-पहल हुण बै गै दुकान में। चहा, चा्ण, आलु, मटर और पकौड़ि खूब बेचीन बैठी। भलि आमदनी हुन लागी शंकरियकि। ये बीच वीक द्वी च्याल लै है गोछी राम-लछमण जा्स। नौं धरौ राजू और मुन्ना। पननातिनाक मूख देखि बेर च्यालकि छात्यूनि लधरि बेर शांतिल परलोक सिधारी शेरूकाकि इज। खूब सेवा-टहल करी च्याल-ब्वारिल मरनि बखत बुड़ियकि। दिन-बार, मास-बरस बितते गईं। राजू-मुन्ना ठुल होते गई। आब दुवै भै इस्कूल जाणी है गोछी। राजू चार में और मुन्ना द्वी में पढ़नौछी। शेरू काकि उमर अस्सी और परूलि काखिकि उमर पचहत्तर बरस पुजि गैछि। शेरू का सोचन बै गोछी कि आब दुवै बुड़-बाड़िनाक आँख बुजी लै जाना त ठीकै हुन। भलै देखि राखौ। कि देखन रै रौ आब दुनी में। पर नियति कैं के औरै मंजूर छी। भाग में जो लेखी हूं वीकें बिन भोगिए मुक्ति नि मिलनि। आजि भौत भोगन छ्यू शेरूका और परूलि काखि कें। मनाक मनसुब पुर कां हुनी। सयाणनल कै राखौ-‘‘जि मन कौ, ति जन हौ।’’
अचानक शंकरियकि मति में यस फेर ऐ पड़ौ कि वील दुकान में शराब बेचण शुरू करि दे। गोंक नानतिन वीक दुकान में शराब पी बेर लड़खड़ानै, गाइ करनै घर ऊन बैठी। शेरूकाल शंकरी कें शराब बेचनै थें मना करौ पर वील बाबुकि एक नी सुणि। एक दिन गौंक चार-छै सयाण शेरूकाक पास आई। कून लागी- ओ शेरूका! तुम समजै दिया अपण च्याल कैं, नतर ठीक नि हौ। नी पजुरौ तैकि संतान। तैल सार इलाकाक नानतिन बिगाड़ि हाली शराब पेवै बेर। शेरूका कैं के कूनै नि आय। जो लोग न्यौ-अन्यौक निशापाक लिजी ऊंछी उनरि पास, ऊं आज धमकी दी गई, गाइ बकि गईं देइ में ऐ बेर। शेरूका सोच में पड़ि गोछी। ऊं सोचन लागि रौछी कि शंकरियकि गलतीक फल वीकेंई मिलन चैं, नादान नानतिनन कें नैं। शेरूका आज यो लै सोचन बैठि गोछी कि शंकरी जा्स कपूत है नठ्यालै भलि। कतू खड़याई, कि भौ, तौ ले मरि जानौ त कि हुन? असंतानि रून पर समाज में यसि बदनामी और अपमान त नी हुन। वी रात उनूल मन मजबूत करि बेर शंकरी थें कौ- ‘‘यार शंकरिया! या तू शराब बेचण छाड़ या काव मूख कर इतिपन है। त्यार कारण आज मैंकें समाज में अपमान झेलन पड़नौ।’’ शंकरी तैश में ऐ गोछी। वील अनाप-शनाप कै दी बा्ब थैं। अपण दुवै च्यालनाक हात पकड़ि बेर वील रेबति थैं कौ- ‘‘हिट निकइ जानू ये भितेर बै। तौ बुड़ मैंकें का्व बाकर जौ देखन बैगो। तौ दुश्मण नी पावन दी मैंकें परवार। हर बखतकि कचकच आ्ब मेरि कै नी सईनि। हिटछी त हिट नति ऐल बै त्यर-म्यर के संबंध नैं। करि खाए तनरि चाकरी जनम भरि। मैं यो गयूं नानतिनन कैं ल्हिजै बेर। आज बै कभै नी टेकूं खुट ये देइ में। आज बै मैंल ये देइ में खुट टिकायो त थुकि दिया म्यार मुख में, हगि दिया म्यार गाऊनि।’’ ना्नतिननाक झिलकार पड़ि गोछी। रेबति बिचारि रून-रूनै लागी शंकरियाक पछिल। परूलि काखि शंकरियक हात पकड़ि बेर कून लागी- ‘‘ च्यला! छाड़ि दे तू शराब बेचण, हमन कें नि छाड़। घर बै नी उठौ परवार।’’ पर शंकरी कां मानछी इजक कयूं? वील धा्ंक हाणी बुड़ी कैं और गाइ बकनै हिटि दी भैर हुं। उ अपण नानतिनन कैं दुकान में ल्हि गो और वी दिन बै फरकी नी चाय इज-बौज्यू उज्याणि। उ आब बांकि बेचन बैठो शराब। वाल-पाल गौंनाक आठ-दस बिगड़ैल वीक पक्क दोस्त है गोछी किलैकी उनरि भड्डीकि सब शराब शंकरियकि दुकान में बेचीनेर भै।
सा्र इलाकाक इस्कूल पढ़नी ना्न-नान नानतिनन कें बिगाड़ि हालछी शंकरियल शराब पेवै बेर। आ्ब उ गांज-अत्तर लै बेचन बै गोछी। दिन भरि जुवाक फड़ ले जोती रूनेर भै वीकि दुकान में। दिन-रात शराबि और भङेड़ी लोटी रूंछी आङण में। फिरि लै शंकरी कें धंध फैदमंद लागछी किलैकी घर बैठी खूब इनकम है रैछि वीकि। गौं वालनल वीकि शिकैत पटवारि और तहसीलदार थें लै करी। दुकान में छा्प लै पड़ी पर मोटि रकम घूस में दी बेर शंकरी साफ बचि गोछी। वील शिकैत करनेरन पर गलत आरोप लगै बेर उनन कें जै मुसीबत में डालि दे। वी पर आब कैकि सकै नी छी किलैकी उ आब रूपैं वाल है गोछी। रूपैनल वीकें घमंडी लै बणै हालछी। जा्स-कासन उ मुखै नि लगूंछी। इज- बाबुक दुख-सुख वील कभै नी पुछ। पुज-पाठ, काम-काजन में कैं भेट लै है गई त उ मरी मनल बरायनाम उनूकैं जौं हात करछी। वीकें रूपैं कमूनक यस चस्क लागौ कि उ आपण नात-रिश्तन कैं लै भुलि गोछी। कभै-कभार रेबति और नानतिन बाखइ में न्है जांछी त शंकरी गयै बेर उनर झांक झाड़ि दिछी।
शेरूका और परूलि काखि आब भौतै बुड़ है गोछी। बड़ि बिपत्ति में काटीनौछी उनर आखिरी बखत। आब उनरि कै काम के नि है सकछी। शेरूका कें उपसास और परूलि काखि कें गँठी बात है गोछी। पावनै रौछी दुवै द्वी बल्द और एक गोरूकि धिङड़ि। आ्ब उ लै सौंपि हालछी। नाण-ध्वीण, पकूण-खाण और चुलि-भानि लै उनरि लिजी भारि काम छी। खेति-पाति पाल गौंकि तौ ब्वारि बणूछी। वाल गौंकि उनूल सौंपि दे जरूरत मंदन। आब क्वे अध्योव कमूनकि थें लै राजि नी हुंछी। भल हवौ गोपी सभापतिक जैल शेरूकाकि बुढ़िन उमर पेंशन लगै दे। बी.पी.एल. क सस्त राशन कंट्रोल बै मिलि जांछी जैक वील द्वी र्वाट पकूनाक गुजार है रौछी, नतरि जाणि कि खान ये असहाय अवस्था में। शेरूकाल ये जनम में त कभै कैकि बुराई नी करि। फिर लै उनन कैं संतानक सुख नि मिल। सैत पिछाड़ि जनमाक अणभोगी करमनाक फल मिलि रौछी उनन कैं। शास्त्रन में लेखी छ कि जै कें भगबान ठुल दुख दिण चां, वीकें दी द्यूं एक कपूत। यस कपूत जो जनम भरि वीकें झुुरयै मारौ। ये बात कैं शेरूका भली भैं जाणछी। ऊं बिधिक-बिधान समजि बेर, रामनाम जपि बेर जिंदगीक आंखिरी समय काटन लागि रौछी।
शंकरियाक है रौछी चैनाक चुपाड़। पर कब कि है जावौ, ये बात कैं क्वे जाणि नि सकन। आज अचानक शंकरियाक खुटना तावकि जमीन खिसकन जै लागी जब वील देखौ कि द्वी नानतिन वीक ठुल च्यलाक द्विए पाखुड़ पकड़ि बेर मा्ल गौंक हरदा मास्टराक दगाड़ ऊनौछी। ना्न च्यल अघिल बै हिटनौछी। वी बखत शंकरी पलेट में आमलेट पसिकि बेर गिलासन में शराब खितनौछी। शंकरी हातक हातै, पातक पातै छाड़ि बेर झट्ट दुकान बै भैर आ। हरदा कें नमस्कार करि बेर कूण लागौ- ‘‘ कि बात है गै हरदा! आज कि है गो म्यार राजू कें? रात्तै इस्कूल जाण बखत तौ राजू ठीकै छी। अचानक कि है गो तैकें?’’ हरदाल कौ- ‘‘शंकरौ, भुला! त्यार च्याल बिगड़ि ग्यान। राजू रोज शराब और गांज-अत्तर पी बेर लोटी रूंछ लटखाऊनि नहराक किनार। त मुन्ना कैं लै इस्कूल नि ऊन दिन। आज तनू केैं इस्कूल नी पुजी बीस-बाईस दिन है गई। ब्याव कै जब राजूक नस्स उतरूं तब त घर ऐ पुजनी। पछिल पंाच-छै महैण बठे तनार लछण ठीक नैं देखीन लागि र्या। पैंली हप्त में तीन-चार दिन इस्कूल ऊनै छी। आज जब लंब समय बै इस्कूल नी आया त मैंकैं शक है पड़ौ। आज एक नानतिन तनरि हरकत मैंकें बतै बैठौ तो मैंल तनन कें रंगे हात पकड़ि ल्हे। ल्हे आब समाव अपण अबारा च्यालन कें। त्वील दुकान में गलत धंद शुरू करि बेर ठीक नि कर। एक दिन त्यार बा्ब मिलि पड़ी डाकखान में। बतूनौछी आपणि राम कहानि। भौत गट लागौ भुला! त्वील मै बाबुक कयूं नी मान। सबनाक नानतिनन कैं शराबि-गंजेड़ि, जुवारि बणै बेर त्वील कसी सोचै कि त्यार नानतिन भलि मति सिखाल? आब जाणलै कि कस हुंछ संतानक दुख।’’ इतुक कै बेर हरी मास्टर जानै रौ।
शंकरी कैं आज गू खाईनकि जै खिसैन लागि पड़ी। वील सारि बात मुन्ना थें पुछी। मुन्नाल एक-एक बात सांचि बतै दे। आब शंकरी वी बखतकि बातन कैं सोचन लागौ जब वील पढ़न में मन नी लगाय। इज-बौज्यूक कयूं नी मा्न, उनन कैं गयै बेर बाखइ बै परिवार उठा और फिरि उनरि उज्याणि फरकी नी चाय। रात भरि शंकरी और रेबति कें नीन नि ऐ। शंकरियल कसम खै कि भोव बै गलत धंद छाड़ि द्यूंल। जै धंदलि मैं लखपति बणुल सोची वील मेरि गिरस्ती चैपट करि है। रत्तै उठन-उठनै वील शराबक जार और गांजक थैल गाड़ बगै दे। वी दिन बठे उ फिरि आलु, मटर, चा्ण, चहा, पकौड़ि बेचन बैठौ। शंकरी आ्ब ठीक रस्त में ऐ गोछी, मुन्ना ले रोज इस्कूल जान बै गोछी पर राजू दिन पर दिन बिगड़ते आ। उ नस्स में इतुक डुबि गोछी कि वी बिना रई नी सकछी। इस्कूल जान वील छाड़ि हालछी। रत्तै बै डुबि रूंछी नस्स में, डोई रूंछी जां-तां दिन भरि। वीकि हरकत एकदम पागलनै जै हुन बै गैछी। इज-बाबन थैं रोज रूपैं माङन, नी दिन पर तोड़-फोड़ करन वीक रोजक धंद है गोछी। मतारिक गहन वील सटकै बेर बेचि खै हालछी। दुकान में आई द्वी रूपैं लै उ नि राखनेर भै। यां तक कि द्याप्ताक थान में राखी द्वी-चार रूपैं लै उ उठै ल्हिजांछी। शंकरी और रेबति भौत दुखी करि हालछी राजूल। के कून पर मतारि बाबुक गाव में पकड़न में लै उ देर नी करछी। जैल जि कौ ति करौ शंकरियल राजू कैं ठीक करनै लिजी। गण्त-पूछ, झाड़-फूंक, डङरयौव, पुज- पाठ सबै करि हालछी पर के फैद नी भै। शंकरी कें भारि बिपत्ति ऐ पड़ी। दिनकि भूक, रातकि नीन टुटि पड़ी वीकि। कि करी जावो, के समजै में नी ऊनौछी। वीकें आब भली कै पत्त चलि गोछी कि यो वीकि करनीक फल छ, बुड़ इज-बाबन कें ठुकराइयांक पाप लागि रौ वीकें। अगर नानतिन अपण आ्म-बुबुक दगाड़ बाखइ में हुना त आज राजूकि यो हालत नी हुनि। लेकिन आब सोचि बेर ले कि हुंछी?
एक दिन जेठाक महैण सुबदार भवान सिंह ;भौनी दाद्ध घुमन-घुमनै शंकरियकि दुकान में पुजि पड़ौ। उ द्याप्त पुजनै थें हल्द्वाणि बै घर ऐ रौछी। कुशल बात पुछन पर शंकरियल भौनी दा कें राजूकि परेशानीक बार में बता। भौनी सुबदारल कौ-‘‘तैकैं भूत-पिचाश, द्याप्त-पितर के लाग्यूं न्हां शंकरिया! कम उमर में नस्स करनल तैक डिमाग खुसक है गो। तैकें जल्दी है जल्दी नशा उन्मूलन केन्द्र में डालन पड़ल। पोर हूं मैं जान लागि रयूं, तैकैं पकड़नकि लिजी द्वी ज्वाननकि ब्यवस्था कर। गाड़ि बुक करै बेर ल्हिजान होल तै कें, नतर त भाजि जा्ल। इलाजकि थें चालीस-पचास हजारकि जरवत पड़लि। तू भोवक दिन ब्यवस्था करि बेर पोर हूं म्यार दगाड़ हिट हल्द्वाणि। छै महैण वां रून पर तैक नश छुटि जा्ल और तौ भली कै ठीक है जाल। हाईस्कूल पास तौ छनै छ। कती वैं छोटि-मोटि नौकरी लै करि सकूं। आजि जादे देर नैं है रै। जादे देर हुन पर बिमारी लाइलाज है जालि।’’ इतुक कै बेर भौनीदा न्है गोछी और शंकरी सोच में पड़ि गोछी।
एक साल बै पाणिक भौ रूपैं बगून में छी शंकरी। आब वीक पास एक फुटी कौड़ि लै नी रै गैछि। रेबुलि थें ले नाककि फुलि है अलावा के नी बचि रौछी। क्याल करी जावो राजूक इलाज, वीकें के रस्तै नी देखीनौछी। दगाड़ तो क्वे न क्वे आई द्यल पर डबलनक इंतजाम कां बै होल? दुहार दिन रत्तै बै ब्याव तक शंकरी देइ-देइ, कुड़ि-कुड़ि घुमौ रूपैं माङनै लिजी पर कैल मुख नी लगाय। कै-कै लै त मुखै थें कै दे कि सार गौं- पड़ौसाक नानतिनन कैं बिगाड़ि बेर आज आपण च्याल कैं सुदारनै लिजी घर- घर भीख माङन में त्वैकें शरम ऊनि चैं। भो्ग आपण कर्मनाक फल। कुकुरक जौ मूख ल्हीबेर उ साँस बखत घर पुजौ खालि हात। रेबतिल शंकरी कें समजा कि ये दुनी में मतारि-बाबन है ठुल हितैषी क्वे नि हुन। तुम आपण इज-बौज्यूक पास जावो। हात जोड़ि बे, खुटन पड़ि बेर माफि माङौ। ऊं तुमन कें जरूर माफ कराल। क्वे न क्वे बा्ट बताल सौर ज्यू, ये बिपत्ति बै भैर निकलनक। शंकरी बोलौ- ‘‘कि मूख ल्हि बेर जां उनरि पास? सात बरस तक मैंल उनन उज्याणि नि चाय। आज आपण मतलबै लिजी उनरि पास जान ठीक नी भै। पर राजूकि जिंदगी समावनै लिजी नाक काटि पात में धरि बेर लै मैं उनरि पास जूंल।’’ यस कै बेर शंकरी आपण आँसु पोछन बैठो। रेबति त बाखइ बै निकली बठे रोज रूनै में छी। आ्ब आँसु ले सुकि गोछी वीक। साँसाक अन्यार में शंकरी लुपुक्क कनै बिराउकि चार बाबुकि देइ में पुजौ। शेरू का चाख में बोरी बिछै बेर लधरि रौछी छा्ज लै। परूलि काखि भितेराक क्वाड़ूनि साग माज हालनैछि चुल में लंफु उज्याव में। मणि-मणि उज्याव मोव बै छाज लै ले पड़नौछी। शंकरियल बाबुक खुटन में खोर धरि बेर डाड़ मारि दे। बोलौ-‘‘मैं भौतै कसूरवार छूं बाबू! तुम मैंकैं माफ करि दियौ। शंकरियाक बचन सुणि बेर परूलि काखि लै चाख में ऐ पुजी। वीक मन धक-धक करनौछी। शंकरियल इजाक कुटूनि खोर धरि बेर कौ- ‘‘इजा! मैंल तुमन कें भौत दुख दे। जैक फल मैंकें मिलि रौ। मैं आज भारि बिपत्ति में छूं। राजू कें जाणि कि है गो। दिन-रात नश करूं। दिन भरि डोई रूं, रात कै कलह करूं घर में। पागलनै जै हरकत करन बैठि गो उ । मतारिक जेवर वील कब बेचि खा, के पत्तै नी चल। ताल कुड़क भौनीदा कूनौ कि हल्द्वाणि में राजूक इलाज है सकूं। पर आजाक दिन म्यर पास वीक इलाजक लिजी एक लाल पाई नि भै। भोव रत्तै जाण लागि रौ भौनीदा। कून लागि रौ कि मैं दिखै द्यूंल तैकें। छै महैण इलाज करन हो्ल। चालीस-पचास हजारक खर्च आल कून लागि रौ।’’ मरन धांतक शंकरियल सारि बात एक्कै सास में बतै दे सिसकन- सिसकनै। शेरूकाल खांसन- खांसनै कौ- ‘‘मैंल त्वैकैं नानछना बै भौत समजा पर त्वील म्यर कयूं ल्याखै नी लगाय। जै दिन त्वील दुकान में शराब बेचन शुरू करौ मैंल वी दिनै जाणि हालछी कि आब त्यर अदीन शुरू है गई। मैंल बार-बार मना करौ त्वैकैं शराब बेचनै थें, पर मेरि बात त्वैकैं भलि नि लागि। तू मैंथें जिखाप-तिखाप कै बेर उठै ल्हिगोछै अपण परवार। वी बाद त्वील ये देइ में खुट नि टिकाइ। ये चैथि अवस्था में हम कसी खाण लागि रयां द्वी र्वाट उ हमै जाणनू। जि ले मैंल कमा, सब त्यार पछिल लगा। त्यार नामकन बै नातिनाक नामकन तक सबै काज झरफरल करी। ब्वारिकि थें जेवर लै बाटौ। तेरि इजाक जेवर बेचि बेर हाली तेरि लिजी दुकान। कि नि कर मैंल तेरि लिजी? आज जब चेड़ में डीठ पुजि रै हमरि, तब तू कि माङनै थें ऐ रौछै मेरि पास? त्वैकैं दिनै लिजी के न्हैं आब मेिर पास।’’ शंकरियल कौ-‘‘ तुमरि पास आज के न्हां, जैक कारण मैंई छूं। तुम मैंकैं और के नैं एक आँखर माफि दि दियो। नतर मैंकें कभै सुख नी मिलौ।’’ शेरू का बोली- ‘‘म्यार माफि दी बेर त्वैकैं कभै सुख नि मिल शंकरिया! सुख मिलूं भलि मति-मरजाद और भल आचरणल जो तेरि पास कभै नि भ्यो। आज जाणन लागि ग्यो हुनलै कि कसि हुंछि मै-बाबन कैं ठुकरूनी संतान। मैं भैलि नैं भैटयून लागि रयूं रे! हकीकत बयां करन लागि रयूं।’’ शंकरी चम्म उठौ और हात जोड़ि बेर कून लागौ- ‘‘मैं आ्ब हिटूं और आस करूं कि तुम मैंकैं जरूर माफ करला।’’ परूलि काखि आँसु पोछनी कून लागी- ‘‘ च्यला! म्यार गाऊनि यो गलोबंद छ तीन त्वालक। तेरि आ्म मरनि बखत म्यार गाऊनि खिति गई। योई एक पितरनकि कमै छ मेरि पास। यैल त्यर च्यलक इलाज है सकूं, त तू करि ल्हिए। तू मेरि औलाद छै। त्यर दुख मेरि कै नी देखी सकीन। म्यार कल्जकि पीड़ तू नि देखि सकनै। पोथा! तू सुखी रौलै त मैं ले शांतिल आँख बुजि सकुंल। तू दुख में रौलै त मरि बेर लै मेरि आत्मा कैं चैन नि मिलौ।’’ इतुक कै बेर वील गा्व है खोलि बेर गलोबंद शंकरियाक हात में धरि दे। शंकरी भारि मनल गलोबंद खल्दयूनि हालि बेर बा्ट लागो। वीकें बार-बार आ्मकि कई बात आज याद ऊन लागि रैछि-‘‘आँसु आँखनै बै ऊनी, घुनन बै नैं।’’
•••
'पहरू' कुमाउनी पत्रिका अगस्त २०२१ अंक बै
टिप्पणियाँ