कुमाउनी लेख : देवकी महरा और उनर साहित्य

डॉ. गीता खोलिया
एशोसियेट प्रोफेसरः हिंदी 
एस.एस.जे. वि.वि.अल्मोड़ा
मो.-9412042208


‘‘मैं कणि देवकीकि कबिता देवकीई जसि लागनी। तिनाड़-तिनाड़ कट्ठ करि बेर घोल बणूनी चाड़-प्वाथनै चार, उलै गुद-गुद जमक्यूंछि और खपाड़ भितेर हालणि बखत बिरति है जांछि वी कणि। आब त उ भोवक समाव, ब्याखुलै जुगुत, अमकणै फिकर, फलसणै जिगर है लेक मुक्ति खोजणै आपणि कबितान में। पंगत-पंगत पीड़ छु गीतन में वीक। सैत योई नियति छु वीकि-
  तिमुलि का पात मजी लसकनी खीर छू।
      मरोड़िया पात जसी म्यर मनकि पीड़ छू।।
          (डाॅ. प्रयाग जोशी, ‘पराण पुन्तुर’ )
      अनुभूति अभिब्यक्तिकि पैंल सिढ़ि छू। मैंसनक अपेक्षा स्यैणिनकि अभिब्यक्ति में तीव्र अनूभूति, बिचारनकि बिबिधता, गंभीर भाव और बोलिक सौंदर्य भौत जादा देखीं, किलैकी स्यैणिनकि मन कोमल, संबेदनशील और भावुक हूं। तबै त इनरि रचना भौतै मर्मस्पर्शी और ग्राह्य बण जैं। श्रीमती देवकी महरा ज्यूक साहित्य पढ़नक बाद य बात सांचि लागैं। वास्तव में इनूल अपुण मनकि सांचि भावनाओं कैं सरल शब्दन में ढ़ालि बेर स्यैणिनकि मनकि सहज अनुभूति कैं अपुण साहित्य में उडे़ल हालौ। देवकी महरा सन 1980 बटी हिंदी और कुमाउनी दुए भाषाओं में लगातार लिखते रई। पिरेम गीतन दगड़ राष्टगीत, खंडकाब्य, कबिता, गजल और उपन्यास हर बिधा में इनूल अपुण लेखनी चलै। दूरदर्शन और आकाशबाणी दगड़ लै जुड़ी रई।
श्रीमती देवकी महरा ज्यूक जनम 26 मई सन 1937 में अल्माड़ जिलाक लमगड़ा बिकास खंडक बिसौत पट्टी में ‘कठोली’ नामक गौं में हौ। इनार बाबू शिवदत्त तिवाड़ी, नरसिंह बाड़ी अल्माड़कि पराइमरी पाठशाला में अध्यापक छी। इनरि इज श्रीमती बसंती तिवाड़ी उ बखत अंग्रेजी कान्वेंट इस्कूल बटिक पढ़ी छी। बा्ब शिवदत्त तिवाड़ी ज्यू मूल रूपल धैंना (गरूड़) नामक गोंक उच्च, कुलीन ;ठुलद्ध बामण छी। इनूल आपुण कुल है बेर नान कुलकि समझी जाणी बामणि चेलि दगड़ ब्या करौछी। फलस्वरूप इननकैं भाइन द्वारा जात- बिरादरी बै भ्यार कर दे। इनरि इज श्रीमती बसंती देवी अपुण मैत ‘कठोली’ मेंई रूंछी। देवकी ज्यूलै अपुण इजक दगाड़ अपुण मालकोट मेंईं रौंछी। दर्जा 6 जाणै परीक्षा इनूल गौं बटिक पास करी, यैक बाद आर्य कन्या इंटर कौलेज अल्माड़ बटिक अघिलकि पढ़ाई पुरि करै। एच.टी.सी. करण बाद अध्यापिका पद हेतु साक्षात्कार दिणकि लिजी नैनीताल गई। वांई ‘पर्वतीय प्रेस’ में कार्यरत कौसानी स्टेटक मालिक श्री यशपाल महरा ज्यू दगड़ इनर परिचय हौ। य परिचय पिरेम में बदल गो और सन् 1958 में महरा ज्यूक दगड़ इनूल पिरेम बिवाह कर ले।
पढ़ाई प्रति नानछना बटी लगाव छी। य लगन ब्याक बाद लै कम नी भै। पैंल च्यलक पैद हुणा बाद इनूल हाईस्कूल पास करौ। दुसर च्यल पैद हुणा बाद इंटर मीडिएट और तिहर च्यल पैद हुणा बाद बी.ए. पास करौ। यैक बाद हिंदी साहित्य में एम.ए. परीक्षा पास करै। पंतनगर पराइमरी पाठशाला बटिक अध्यापन कार्य शुरू करौ। सितारगंज, हल्द्वाणि, लामाचैड़ आदि इस्कूलन में अध्यापिका रई। पूर्व माध्यमिक बिद्यालय गौजाजाली हल्द्वानी में प्रधानाध्यापिका पद बटी रिटायर हई। रिटायर हई बाद ग्रामसभा कौसानी में ग्राम प्रधान बण बेर समाज सेवा करै। आजकल हल्द्वाणि में रै बेर साहित्य सेवा में लागि रूनी।
श्रीमती महराक जीवन कयेक उतार-चढ़ाव, संघर्ष-समस्यान में अलझी रौ। नानछिनाक मासूमियत, बाल सुलभ परबृत्ति सब, जीवनक उधेड़बुन, उलझन, समस्या और असमंजस मेंई तिरोहित है गई। इनन कैं ततकालीन समाज में फैली रूढ़िगत-जातिगत-धर्मगत भेद भावकि समज नानछिना बटिक है गैछि। अपुण बाबू शिवदत्त तिवाड़ी ज्यूक अपुण है बेर नान बामणकि चेलि दगड़ ब्या करणक कारण जाति-बिरादरी बटिक तिरस्कृत हुण, सौरास बटिक अपमानित, उपेक्षित इजक अपुण मैत में रौण, फिर अपुण दगड़ घटी घटना देखि बेर इनर मन में समाज में ब्याप्त ऊंच-नीच, जात-पात, भेद-भाव आदिक प्रति घृणा भाव हङुरि गे। आज बटि करीब 65 साल पैंली जब हमर समाज में स्यैणिन कैं बिल्कुल लै आजादी नी छी, उ बखत इंटरब्यू दिणा लिजी इकलै नैनीताल जाण, वां यशपाल महरा ज्यू दगड़ भेट हुण, वापस ऐ बेर उनर दगड़ आपुण जात है भ्यार ब्या करण फिर अपुण परिवार, संबंधी, रिश्तेदार आदिनक कोप भाजन बणन। पर इनूल यसि जटिल, बिषम परिस्थितिन में लै धैर्य और संतुलन बणाई राखौ। जै बखत समाज में, गों-घरन में स्यैणिक दास पशुवत छी, बौद्धिक क्षेत्र त दूरकि बात समाज में लै उनन कैं सम्मान परापत नी छी, यस बखत में लै इनूल निरंतर संघर्षरत रै बेर अपुणि पढ़ाई- लिखाई जारी धरी। अपुण अस्मिता और अस्तित्व कैं बणाई रखणक लिजी परयासरत रई और साहित्य सेवा करते रई, य भौत सम्मान और गौरवक बिषय छु।
मैंसनक दगड़ कंध बटिक कंध मिलै बेर बेहिचक बेझिझक कर्तब्य क्षेत्र में अडिग रौणकि परबृत्ति इनन में नानछनाई बटिक छी। यैक ज्वलंत उदाहरण य छु कि कक्षा चारकि परीक्षा पास करणक बाद अपुण कक्षाक 26 च्यालनक दगड़ सामाजिक बिरोधक बाद लै इकलै पढ़नै रई। ब्याक बाद लै समाजक टकुर झेलते रई। बामण परिवार में पैद है बेर ठाकुर परिवार में ब्या कर बेर दुवै परिवारन बटिक अपमानित हुण पड़ौ। मैती नाराज छी कि उनूल ठाकुर दगड़ ब्या करौ। सौरासी ‘बामणकि चेलि’ कै बेर ब्यंग बाण छोड़ दीछी। यतुक उपेक्षा, अपमान, तिरस्कार सहबेर लै अपुण कर्तब्य पथ कैं नि छोड़, उरातार अपुण बा्ट में अघिल बढ़ते रई।
सन 1958 बै 1975 तक करीब 17 साल इनर जीवन भौत संघर्षमय रौ। य बखत श्री यशपाल महरा ज्यूक पुर सहयोग इनन कैं मिलते रौ। नानूनान नानतिनौक पालन-पोषणक कारण लेखन कार्य में जिटक पड़न स्वाभाविक छी लेकिन इनूल अपुण सूझ-बूझल दुयां में संतुलन बणै बेर लेखन कार्य लै जारी धरौ। काब्य परतिभा इनन में भगवानकि देन छी। नानछिना बटी गीत लेखछी। पैंली-पैंली त नानतीनौ लिजी बाल गीत आदि लेखछी। बाद में भजन, गीत आदि लेखण लागी। अपुण लेखी हुई गीत और भजनों कैं आफी संगीतब( कर बेर गांछी। जब गौंपन गुड़ाई-रूपाईक टैम हुंछी उ बखत खेतन में जै बेर गीत गै बेर किसानोंक उत्साहबर्धन करछी। गौं वा्ल यनर गीत सुणनक लिजी लालायित रूंछी। नानछना बटि कबिता, बाल साहित्यक बीज इनर भितेर हङुरि गोछी पर जीवनकि तमाम घटना-अपुण आत्मीय जनोंकि उपेक्षा, समाजक तिरस्कार, सामाजिक रूढ़ि, परंपरा बंधन, ऊंच-नीच, जात-पात आदिल इनर रचना संसार कैं बिषय वस्तु परदान करै। माठू-माठ यनर लेखन कार्य अघिल बढ़ते गो। सूक्ष्म भाव, परिमार्जित शब्दावली और सुगठित शैलीक लिजी इनरि पछयाण हुण लागै। ‘बागनाथ’ नामक समाचार पत्र में इनरि शुरूवातकि कबिता छपण लागीं। यई बीच श्री यमुनादत्त वैष्णव ‘अशोक’ ज्यूक साहित्य देवकी ज्यूल पढ़ौ और यांई बटी लेखणक परेरणा इनन कैं मिलै। कुमाउनी लोक संस्कृति बै ओत-प्रोत ‘निशास’ नामक काब्य संग्रह लेखणकि परेरणा इनन कैं ‘अशोक’ ज्यू थैं मिलै।
रचनाएं- नानछना बटिक साहित्य लेखणक प्रति अटूट लगन इननकैं छी। यई कारण छू कि शुरूवात में बाल साहित्य फिर गीत, भजन लेखी गई। बाद में खंडकाब्य, कुमाउनी काब्य, हिंदी काब्य, उपन्यास, कबिता-अकबिता, क्षणिकाएं, संपादन कार्य आदि सबै क्षेत्रन में आपुण अपरतिम परतिभा, अटूट लगन और निष्ठाक परिचय इनूल दे। इनर द्वारा लेखी गई साहित्यक बिबरण य छू-

• अशोक वाटिका में सीता (खंडकाब्य)
• प्रेमांजलि (हिंदी काब्य संग्रह) 1981
• सपनों की राधा (उपन्यास) 1982
• निशास (कुमाउनी काब्य संग्रह) 1984
• स्वाति (हिंदी काब्य संग्रह) 1987
• नवजागृति (हिंदी काब्य संग्रह) 2005
• पराण पुन्तुर (कुमाउनी काब्य) 2010
• आखिरी पड़ाव (हिदी उपन्यास) 
• संपादन-  पंत जी का कौसानी
• अप्रकाशित-  इंदिरायण व कंगन
• सामूहिक संकलन- पछयाण, किरमोई तराण, उड़ घुघुती उड़, दुदबोलि, डांडा कांठा स्वर, धाद, नई गजलें: नए गीत आदि।
• सामूहिक काब्य संग्रह- प्रीत के गीत, नवगीत। इनर अलावा बखत-बखत पर आकाशबाणी, दूरदर्शन और कबि सम्मेलन व कबि गोष्ठियों आदि में काब्य पाठ  करते रूंछी।
• पुरस्कार - श्रीमती महरा एक अपरतिम परतिभा संपन साहित्यकार छन। इनरि परतिभा देखि बेर कयेक संस्थानन बटी कई पुरस्कार दिई गई। सन 1986 उ.प्र. में हिंदी संस्थान द्वारा ‘सुमित्रानंदन पंत पुरस्कार’ इननकैं दिई गो। सन 1987 में आचार्य नरेन्द्र देव शिक्षा संस्थान द्वारा सम्मानित  करी गो। सन 1988 में ‘अरूणोदय संस्था’ हल्द्वाणि द्वारा नागरिक अभिनंदन हौ। 24 मार्च 2001 में देहरादून ;उत्तराखंडद्ध में प्रौढ़ शिक्षा कार्यकरम में ‘पछतावा’ नामक बाल बिबाह संबंधी लेख पर सम्मानित करी गो। सन 2006 में ‘उत्तराखंड वरिष्ठ साहित्यकार पुरस्कार’ मिलौ। सन 2007 में ‘विद्या वारिधि शिखर साहित्यकार सम्मेलन’ में ‘प्रतिभा अवार्ड’ दिई गो। सन 2009 में अंतराष्टीय महिला दिवसक मौक में ‘वसंुधरा’ सम्मानल सम्मानित करी गो। कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति कसारदेवी, अल्मोड़ा द्वारा 2009 में ‘कुमाउनी साहित्य सेवी सम्मान’ दिई गो। सन 2011-12 में लोक भाषा संस्थान द्वारा ‘मौलाराम सम्मान’ परदान करी गो। ‘मोहन उप्रेती लोक संस्कृति, कला एवं विज्ञान शोध समिति’ द्वारा ‘संस्कृति सम्मान’ ल श्रीमती महरा कैं सम्मानित करी गो।
सन 1972 बटिक इनरि रचना आकाशबाणी लखनऊ बटी परसारित हुण शुरू भई। यैक बाद आकाशबाणी रामपुर और अल्माड़ बटी लै लगातार इनर परसारण हैते रौ। दूरदर्शन लखनऊ कार्यकरम ‘सरस्वती’ में लै सन 1983 बटी इनरि रचना परसारित हुण लाग गोछी। इनरि काब्य परतिभा, सुमधुर कर्णप्रिय गीतन कैं सुणि बेर कबि मंडली में इननकैं ‘कुमाऊँ कोकिला’ नामलि संबोधित करी जां। कुमाउनी में अतुकांत कबिता लेखणक श्रीगणेश सबन है पैंली इनूल करौ, जो बादक कुमाउनी कबियोंक लिजी एक दिशा निर्देश बणौ। श्रीमती महरा ज्यूक रचनाओंक परिचय पेश छु-

अशोक वाटिका में सीता -
श्रीमती महराकि पैंल रचना ‘अशोक वाटिका में सीता’ छी। य एक खंडकाब्य छू। ‘बागनाथ’ समाचार पत्र में य धारावाहिक परकाशित हौ।

प्रेमांजलि- ‘प्रेमांजलि’ श्रीमती देवकी महरा ज्यूक हिंदी काब्य संग्रह छु। ज्योतिर्मय प्रेस, खटीमा बटी यैक परकाशन सन 1980 में हौ। फिर 2010 में उत्तरायण प्रकाशन, हल्द्वाणि बटिक यैक दुतीय आवृत्तिक परकाशन हौ। य पुस्तक में कुल 33 पेज तथा 26 कविता छन। काब्य संग्रहक नाम ‘प्रेमांजलि’ वास्तव में सार्थक छु। कई कविता प्रेमाभिब्यक्ति कैं ब्यक्त करनी। जसिक-

     तुम सूरज बन जाओ
     मैं चंदा बन जाऊं।
•••
     मैं भी बांह फैला दूं
     तुम भी बांह फैला दो।
इन कबितान में गीतात्मकता जादा देखीं। य गीत गजलनक अहसास लै करूनी। उर्दू शब्दावली प्रयोग लै मस्त कर राखौ-
नजर मिलाकर नजारा बनाया तुमने
मैं क्या थी क्या से क्या बनाया तुमने।

    गलबहियां जो डाल दी तुमने।
कहने लगे लोग दिलदार मुझे।।

देख मिलन की दीवानगी।
सताने लगी बहार मुझे।।
‘प्रतिरूप’ कबिता एक परतीकात्मक कबिता छु। बर्तमान परिवेश, संस्कार और यथार्थक प्रतीक-
एक पत्थर की मूर्ति
मूर्ति को लिटाया गया था
बदन में जगह-जगह
खरोंच के निशान व 
पसीने की बूंदें दर्शाई गई थी।

वह मूर्ति कातर दृष्टि से देख रही थी
मूर्तिकार की कल्पना अप्रतिम थी।

मेरा ही क्यों हर प्रकार से थके-हारे
एक शिक्षक का प्रतिरूप है (वह मूर्ति)

निशास- श्रीमती देवकी महरा ज्यू द्वारा लेखी ‘निशास’ इनर कुमाउनी काब्य संग्रह छु। यैक परकाशन तक्षशिला प्रकाशन, नई दिल्ली बटिक सन 1984 में हौ। अस्सी पृष्ठनक य संग्रह में 49 कबिता छन। अलग-अलग भाव बोधकि कबिता यमें छन। आंचलिकताक दगड़ बिश्व चेतना और सौन्दर्यबोध लै इनन में देखीं। पहाड़कि पीड़, भल-नक, आस-निरास, पिरेम भाव य गीतन में जाग-जाग देखीं। इनन कैं पढ़ि बेर यस लागूं कि गौंक जन जीवन, तौर- तरिक इनूल भौत नजीक बै देखि राखौ। एक तरफ य गीतन में खेत-हाङ-फाङ, जङव- पहाड़, नौल- गध्यारनक जिगर कर राखौ त दुहर तरफ-देश पिरेम, जात-पात, ऊंच-नीच, कुपरथा, कला और भावना आदि अनेक बिंब और प्रतीक लै देखीनी। कुमाऊं अंचलक स्यैणिनक सिदपन, सरल निश्छल मनकि अनुभूति य संग्रह में अभिब्यक्त छन। न्योलि, झ्वाड़, छपेलीनक दगड़ गीत, अकबिता और क्षणिकाएं लै य संग्रह में संग्रहीत छन। कुल मिलै बेर य संग्रहक गीत सहृयक पाठकनक मन कैं झकझोर दिनी।
संसारक पालन करनी, दुष्टनक संहार करनी, दुख और मोह कैं हरनेर माता भवानी थैं आज समाज में जा्ग-जा्ग फैली शुंभ और निशुंभ जस दुष्टनक नास करणक लिजी और समाज में सुख, शांतिक लिजी पराथना करनी-
हात में खप्पर माता, तू छै अन्नदाता,
लाल-लाल जीव तेरी, नष्ट करे घाता।
जै शोक हरणी माता।

शुंभ और निशुंभ है री ठाड़ दरबार
देबकी लिबेर ऐरै, ढाल तलवार
जै दुष्ट दलिनी माता
जौं हाथ जौं हाथ माता।
स्त्री शिक्षाकि परबल समर्थक छन देवकी ज्यू, तबै त चेलिन कैं पढ़नक लिजी परेरित करनी, दगड़ में इस्कूल जाणक लिजी लै जागरूक करनी-
धन चेली तुमर दिमाग
पुरि होली तुमरि य मांग।
बिन जून अनेरी छू रात।
तसी चेली पढ़ाई की बात।
जा जा चेली इस्कूल पढ़न।
जा जा चेली इस्कूल पढ़न।
पहाड़कि चेलिनकि प्रति इनर उत्कृष्ट भाव छन। पहाड़कि चेलिक जतुक तारीफ करी जौ उ लै कमै छु। सर्वगुण संपन्न य चेली कोई लै क्षेत्र में कम न्हातिन। इनरि तारीफ करते हुए लेखनी-
पहाड़ै चेलि
देखिछ तुमूल?
   
काठा जा खुट
लुवा कपाव।
हात में दातुल
सब हथियारन है ठुल।
उनन थैं पुछिया
जैल देखौ उनर
रणचंडी औतार।
•स्वाति- ‘स्वाति’ इनर हिंदी काब्य संग्रह छु। यैक परकाशन ‘बागनाथ प्रकाशन’ बागेश्वर बटिक सन 1987 में हौ। 88 गीतनक संग्रह में इनर मनकि पीड़, कसक, टीसक मार्मिक बर्णन छु। यौं गीत भौतै सरस,सरल शब्दन में मनक भितेरक पीड़ कैं ब्यक्त कर दिनी-
पीड़ा घुली-घुली जीवन में,
नैनाें में सागर
सागर में खारा पानी
सकल विश्व में एक बूंद की
अलग कहानी,
पीड़ा बहुत बली जीवन में
पीड़ा घुली-घुली जीवन में।
जीवनक उतार-चढ़ाव, सुख-दुख, संघर्ष समस्यान कैं झेलते-झेलते मैंसन कैं हमेशा अघिल बढ़ते रौण चैं। अघिल बणनक नामै जिंदगी छु। य जीवन नश्वर छु जो लै य संसार में जनम ल्यूं वील एक दिन न्है जाण छु-
जीवन है सतरंगी प्याला,
जीवन है जीने की ज्वाला,
जीवन है राधा का मधुवन 
फिर भी है क्षणभंगुर जीवन।
‘स्वाति’ नामक य संग्रहक गीत भ्यार बै देखण में त सांसारिक भावों बै भरी देखीनी पर यदि भली कै गौर करी जौ तो इनन में भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकताक दगड़ कबीरक दर्शन लै देखीं-
धुँधली -धुँधली जीवन बाती,
सदा रहा जग किसकी थाती
द्वार सजे हैं वंदनवार, 
दुलहनियां हो जा अब तैयार
मायका चार दिनों का डेरा।
य गीतन में कांई जीवनक राग सुणाई द्यूं त कांई नाशवान संसारक संकेत, पर फिर लै निराशा न्हातिन वरन जीवन में निरंतर अघिल बड़नक लिजी परेरणा और आस छु-
हर पीड़ी का दस्तूर है,
देकर जाना कुछ जमाने को
तुम्हें भी देना होगा,
पूरा करने को रह जाय जो सपना
उसका भार-
अपने कंधों पर लेना होगा।

नवजागृति- आधारशिला परकाशन बटि सन 2005 में परकाशित य हिंदी काब्य संग्रह में 58 पन्नों  में 35 कबिता संकलित छन। देश और राष्टकि समस्यान कैं उजागर करनेर और राष्ट पिरेम, राष्ट भक्ति भावनाओंल भरी हुई कबिता इमें छन। यैक गीत पाठकन कैं झकझोर दिण में पुर सफल छन किलैकी इनन में संप्रेषणीयता छु। कांई सौंदर्यक बर्णन छु तो कांई सामाजिक, राजनीतिक और  परजातांत्रिक बर्णन लै करि राखौ। अपुण मनकि भावनाओं कैं मुखरित करते हुए पूर्ण ओज और स्फूर्तिक दगड़ सीती जनता कैं जगै दिनी। इनरि महत्वपूर्ण बिशेषता य छु कि एक ओर त य देशक नौजवानों कें जगौण चानी दुहर तरफ इनरि अनेक समस्याओं, जसिक डबलनक कमी, काम-काज रूजगारकि किल्लत, घर बार छोड़ बेर भ्यार न्है जाण आदि कैं उजागर कर बेर इनर निराकरण करणक और आत्मसम्मान, आत्मगौरब कैं समाव राखणक संदेश लै दिनी-
बाग के मालियो
कुछ तो मनन करो
आज चिंतन करो, 
आज चिंतन करो।
    
जेब खाली सही
तेरी इज्जत तो है
पेट भूखा सही
तुझमें हिम्मत तो है
आज अपने दुखों का न क्रदन करो।
आज चिंतन करो।
वास्तव में ‘नवजागृति’ काब्य संग्रह में ‘यथा नाम तथा गुण’ वालि कहावत सत्य चरितार्थ हैं। इनर मानण छु कि जो आत्मत्यागी और बलिदानी मंैस हुनी उनन कैं जीवनकि परिस्थिति , समस्या और संकट बिल्कुल लै झुकै नि सकन। मैंसनकैं नाननान स्वार्थ, ऊंच-नीच, जात-पात, गरीब-अमीर आदि संकीर्ण बिचारधारा कैं त्याग बेर राष्ट पिरेम में आपूं कैं कुर्बान कर दिण चैं-
जाति पर कुर्बान होने से भला,
राष्ट पर कुर्बान होकर देख लो।
मंदिरों को फिर सजाना बाद में,
एक मन मंदिर सजाकर देख लो।
आज जब पुर समाज हिंसा, अशांति, अमानवीयता और घृणित मानसिकताल भर गो, यस बखत में पिरेम, सौंदर्य और कल्पना इनन कैं मणि लै भल नि लागनै, फागुणक सुर-सुर बयाव लै अशांत करनौ। न सौण भल लागनै, न भदौ-
कैसी धरती, कैसा अंबर
कैसा सावन, कैसा पतझड़
मौसम कत्लेआम चल गया
चलता रहा बारहों मास
फागुन के रंग फीके-फीके।
य संग्रहक कई गीत त समाजक दुब्र्यवस्था, प्रजातंत्रक बिगड़ी हुई दासकि तस्बीर छन। य देख बेर य दुखी है जानी और लेखनी-
शासन के क्रूर हथकंडांे को
मत कहो प्रजातंत्र
आजाद देश की
आज जनता
देखती रहेगी अत्याचार
होता रहेगा नरसंहार।

छीन लो इन हाथों से कलम
जो नहीं मिटा सकती अत्याचार।

पराण पुन्तुर- श्रीमती देवकी महरा ज्यूक कुमाउनी काब्य सं्रगह  ‘पराण पुन्तुर’ सन 2010 में ‘आधारशिला प्रकाशन’ हल्द्वानी बटिक परकाशित हौ। य किताब में 68 पेजों में 45 कबिता संकलित छन। अपुण नाम कैं सार्थक करणी य किताब में यस लागनौ कि कबित्रील आपुण पराणकि पुन्तुरि कैं य किताब में भरि हालौ किलैकी अपुण मनकि इच्छान कैं ब्यक्त कर दिनी। य इच्छा सामान्य न्हातिन बरन उदात्त है बेर लै उदात्त छन। ‘बणै दिया’ कबिता में लेखनी-
द्याप्तो मिकैं देवकि जसि बणै दिया,
भौं आपणी मनकसि बणै दिया।।
म्यार दुखांैल पहाड़ बणै दिया,
म्यार सुखोंल संसार बणै दिया।।

आँसुन कैं म्यार मोती बणै दिया,
मेरि अगन कैं ज्योति बणै दिया।।
य संसार परिवर्तनशील छु, एक चक्र छु जो आज छु उ भोल न्हातैं, जगतकि यई रीत छू। य सबनकैं पत्त छू कि नश्वर संसार में अमर क्वे लै न्हैं फिर लै मैंस जुगुत-जुगाड़ में लागी रौनी। बखतक दगड़ सब खतम है जां-
बुणनै रयों बुणनै रयों
मना क्वीड़ गुणनै रयों
बखता उमाव में
रेशमी खोल हरै गई।
       
दुणियै रेसा रेस में
पतंगों पेसा पेस में
पतंग झड़ि गे झाड़ में
पतंगों डोर हरै गई।
‘पराण पुंतुर’ देवकी ज्यूक पराणकै पुंतुर छु। जे लै उनर पराण में छी उकैं उनूल य पुंतुर में खित हालौ। जिंदगीक सच्चाई तरफ माठू-मा्ठ अघिल कै हूं बड़नई। कांई-कांई यस लागनौ कि एक दार्शनिक भाव, निराशा, हताशा लै हावी हैते जानै-
उमर वील लुकै राखी
द्वी घूंट पाणि पीण त दे।
फिरि मिलौ नि मिलौ
द्वि घड़ि जीण त दे।
        
बेई जांलै बौई रौछी जनू लिबेर,
आज पीड़ल औई रयूं उनू लिबेर।
ऊं समाज, देश, दुणियकि दा्स देखि बेर भौत दुखी छन। आतंकवाद, देशद्रोह, अमानवीयता देखि बेर कै बैठनी-
    तोपना ग्वाव में दुश्मण्याट बणै हैली दुणी,
   दुष्टोंल देखों धैं, आतंकी हाट बणै हैली दुणी।
यस बखत इननकैं माँ नंदा याद ऐजैं और बेड़ा पार लगौणक लिजी, भक्तनकि लाज बचैणक लिजी नंदा भ्रामरी थैं पराथना करनी-
मेरो बेड़ा लगाई दिए पार नंदा भ्रामरी।
     
दुष्ट दलनि मैया दुख हरणि छै,
भक्तों की आपणि तू लाज धरणी छै।
यई नै पर्यावरण सुरक्षा जसि ज्वलंत समस्या तरफ लै इनर ध्यान जां। जङव में द्याप्तनक वास छू। जङव सुरक्षित रौल त पर्यावरण कचुव नी हा्ेल। 
लगाओ जंगल भुली, मनाओ मंगल,
हमारा देबता छन, हमारा जंगल।

• सपनों की राधा- सन् 1982 में उत्तरायण प्रकाशन बटिक प्रकाशित ‘सपनों की राधा’  देवकी महरा ज्यूक हिंदी भाषा में पैंल लघु उपन्यास छु। यमें 104 पन्न और 24 खंड छन। य उपन्यास में इनर भाग्यवादी दृष्टिकोण देखीं। लेखिकाक मानण छु कि  ‘‘यदि भाग्य निर्माताल भाग्य में दुख लेखी हालौ त करोड़ उपाय करि बेर लै उ टल नी सकन। ’’
एक सामाजिक लघु भाव प्रधान उपन्यास में मध्यवर्गीय समाजक अनेक समस्यान कैं चित्रित त करी राखौ दगड़ में उनर समाधान लै सुझै राखौ। बाल विवाह, अनमेल विवाह और उनर दुष्परिणाम बतै राखौ। समाज में एक परित्यक्ता, तलागशुदा स्यैणिक मनोवृत्ति, पीड़ और अवसाद कैं बताते हुए पीड़ित परिवारकि ब्यथा कैं बर्णित कर राखौ। एक स्यैणिक, प्रेमिका, पत्नी, इज और सेविकाक रूप में चित्रण य उपन्यास में है रौ। ‘उमा’ उपन्यासकि नायिका और मुख्य स्त्री पात्र छु। यई उमा, डाॅ. शैलेशकि ;जो कि उपन्यासक नायक और मुख्य पुरूष पात्र छुद्ध ‘सपनों की राधा’ छु। उमाक तलागशुदा हुणक बाद लै शैलेश, उमा दगै सांच प्रेम करूं और ब्या करण चां। उ बखतक समाज में फैली रूढ़िवादिता और परंपरा दूनक बीच में ऐ जैं। ब्या नि है सकन। दुवै अपुण- अपुण जिंदगी काटणै लिजी बिबश है जानी। उमाकि जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव औनी, जसी-तसी अपुण दिन काटैं। दुहर तरफ डाॅ. शैलेश अनीता दगड़ ब्या कर ल्यूं लेकिन अनीता एक शक्की स्यैणि हैं,  शैलेश लै जसी-तसी वीक दगड़ दिन काटूं। पर एक दिन दुर्घटना घटि जैं, अनीता मर जैं। शैलेश बिधुर मैंसक जीवन काटूं। जो सामाजिक रीति-रिवाज, रूढ़ि उन दुवैनक बीच में दीवार बणी, उई आज खतम है जानी। उमाक बा्ब दुवोंक दुहर ब्या करण हूं तैयार है जानी। दुवैनक ‘कोर्ट विवाह’ है जां और डाॅ. शैलेश कैं उनरि ‘सपनों की राधा’ मिल जैं। य उपन्यास में जां उमा एक रूढ़िग्रस्त, सड़ी-गली मान्यताओं वा्ल समाज में अपुण अस्तित्व और अस्मिता कैं सुरक्षित रख बेर अघिल बढ़ैं वां डाॅ. शैलेश लै एक निश्छल, निष्कपट, निस्वार्थ पात्रक रूप में अपुण जिम्मेवारिन कैं भली कै निभाते हुए एक सांच पिरेमी रूप में पाठकनक सामणि ऊं। कुल मिलै बेर य उपन्यास शिक्षाप्रद, प्रेरणादायक, समसामयिक घटनाओं कैं उजागर करनेर एक भावप्रधान सामाजिक उपन्यासक श्रेणी में अपुण जा्ग बणू।
 
आखिरी पड़ाव-  देवकी महरा द्वारा लेखी हिंदी उपन्यास छु-‘आखिरी पड़ाव’। ‘आधारशिला प्रकाशन’ हल्द्वानी द्वारा सन 2013 में छपी 73 पेजनक उपन्यास छु। ‘उत्तराखंड संस्कृति विभाग’ क सहयोगल य उपन्यास परकाशित हौ। उपन्यास कैं 19 खंडन में बांट राखौ। उपन्यास में मुख्य रूपल समाज में फैली परंपरा, रूढ़िवादिता, अब्यवस्था, अशिक्षा, अज्ञानता, बेरोजगारी आदि समस्यान कैं परस्तुत करि राखौ।
य उपन्यास नायिका परधान छु। उपन्यासकि नायिका और मुख्य स्त्री पात्र लछिमा छु । यैकै चैतरफ य उपन्यासकि का्थ चक्कर लगैं। ‘आखिरी पड़ाव’ द्वी सैनिक दगड़ीनक देशक लिजी दिई कुर्बानीक का्थ छु। हमर समाज मंे सड़ी-गली मानसिकता और अज्ञानता पुर परवार और समाज कैं कसिक परभावित कर दीं, जीवन कतुक कष्टमय बण जां यैक प्रत्यक्ष उदाहरण य उपन्यास छु। उपन्यासकि स्त्रीपात्र गोमती अनपढ़ छु वीक यई अज्ञानता वीक पुर परवार कैं कष्ट में डाल द्यूं। समाज लै ऊल परभावित है जां। गोमतीक च्यल गणेश अपुण इजक अबिद्या फल पुर उमर भर भोगते रूं। गलत मार्गदर्शनक कारण गणेश दुर्बु(ि शिकार है जां। उमर भरि सई निर्णय नी ली सकन। गणेशक जीवन अभिशप्त है जां। एक शारीरिक रूपल स्वस्थ मैंस कैं वीकि इज अपुण अज्ञानताल नपुंसक समझैं और उ गलतफहमीक दुष्फल पुर परवार कैं भोगण पड़ों। जब अबिद्या, अज्ञानता मनुष्य कैं घेर लीं त मैंस सई निर्णय  लिण में असमर्थ है जां। यई हाल गणेशक है जानी। अपुण पुर जीवन कैं उ अभिशाप समझ बेर शर्मिन्दगील काटूं। यैकै दुष्फल उपन्यासकि नायिका लछिमा लै पुर उपन्यास में भोगें। कष्टकारि जीवन भोगण बाद लै अपुण बुद्धि कौशलल हर समस्याक समाधान करते हुए अघिल बढ़ते रैं।
उपन्यास में कई ज्वलंत समस्याओं कैं लेखिकाल परस्तुत कर राखौ-सर्वधर्म समभावकि भावना, पर्यावरण सुरक्षा, गंगा बचाओ अभियान आदि बिंदुओं में पर्याप्त प्रकाश डाल राखौ। उपन्यास में पात्र सीमित छन पर हरेक पात्र के न के शिक्षा जरूर द्यूं। मुख्तावर और दौलतसिंह द्वि सैनिक दोस्तनकि सच्ची दोस्ती और देशक लिजी बलिदान है जाणक संकेत द्यूं। लछिमाकि इज गौरी द्वारा एक बिबश इजकि ममता और त्यागक संकेत मिलूं। कुल मिलै बेर देवकी महरा ज्यूल य उपन्यास में अनेक समसामयिक समस्या, घटना और रूढ़ि आदिक बर्णन करते हुए इनर समाधान सुझाव लै पेश कर राखी। उपन्यासक शीर्षक ‘आखिरी पड़ाव’ लै अपुण सार्थकता कैं अभिब्यक्त करण में पर्याप्त सफल छु। उपन्यासकि नायिका लछिमा अपुण सासु गोमतीक और पति गणेशकि अज्ञानता और दुर्बुद्धिक कारण पुर उपन्यास में दुख, कष्ट और संघर्ष कैं झेलते-झेलते अंत में मृत्यु कैं प्राप्त है जैं। उकैं वीक ‘आखिरी पड़ाव’ ;मौतद्ध मिल जैं और यांई उपन्यासक अंत है जां।
श्रीमती देवकी महरा ज्यूक साहित्यक अध्ययन करणक बाद य स्पष्ट है जां कि यों अपुण कृतित्वल पुर उत्तराखंड में प्रख्यात है गई। एक तरफ इनरि कबितान में फूलनकि खुशबू छु, दिब्यता छु, एक अणकस्सै आकर्षण छु। उनर भावन में गंभीरता छु, मार्मिकता छु, स्वाभाविकता छु। वास्तव में देवकी महरा ज्यू कोमल भावनाओंक कबित्री छन, ‘कुमाऊं कोकिला’ छन। देवकी महरा ज्यूकि यई बिशेषता कैं देखि बेर त शेर सिंह बिष्ट ‘अनपढ़’ ‘पराण पुन्तुर’ कि भूमिका में इनन कैं ‘कुमाऊं महादेवी’ कौनी। वास्तव में यांै कुमाऊं महादेवी ही छन। महादेवी चारि इनर गीतन में लै कतुक पीड़ छु, बेदना छु, रीस छु-
   मैं दर्द भरे गीतों की रानी,
   दर्द में मेरा बचपन बीता,
   दर्द में सनी जवानी।
   दर्द ही ओढ़ा दर्द बिछाया,
   दर्द की अकथ कहानी
   मैं दर्द भरे गीतों की रानी।
डाॅ. प्रयाग जोशी ‘पराण पुन्तुर’ में देवकी महरा ज्यू कैं अपुण शुभकामना देते हुए कौनी- ‘‘देवकी कणि कै बखतै आपणि रिक्तता बेचैन करंछि, कै बखतै आपणै भरौसल भरी-भरी जसि ऊंछि। वी बखत उ आफूंई में रमि जाण चांछि। देवकीक यों ‘रमण’ फलदैण हवौ, यो मेरि शुभकामना छु-

    भरिए बंदूक छी तू पीड़ा का जंगल में,
    मुख बुजि बैठि  रए दुनिया का दंगल में।
•••
'पहरू' कुमाउनी पत्रिका मई २०२१ अंक बै साभभ
)
 

 

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