कुमाउनी भाषा के अभिलेख : कुमाउनी की प्रचीनता को बयां करते साक्ष्य, Archival heritage of Kumauni

ललित तुलेरा
ईमेल- tulera.lalit@gmail.com
   
( उत्तराखंड की दो प्रमुख भाषाओं कुमाउनी व गढ़वाली का भी अपना गौरवशाली इतिहास रहा है। इन भाषाओं के संरक्षण के लिए इन भाषाओं के पैरोकारों ने उल्लेखनीय कार्य किया है। इन भाषाओं के अभिलेखीय प्रमाण को खोजने की ओर भी विद्वानों का ध्यान गया है। कुमाउनी भाषा के अभिलेखों पर प्रकाश डालता ललित तुलेरा का आलेख।) 
Archival heritage of Kumauni
 
           हिमालयी भाषान में कुमाउनी खास भाषा छु। कुमाउनी उन गौरवशाली भाषान में छु जो कभै राजभाषाक रूप में अपनाई गेछी। भलेई उ बखतकि कुमाउनी और आजकि कुमाउनी में भौत फरक देखीं पर राजकाज में अपनाई जाणल कुमाउनी भाषाक उन्नतिक बा्ट बणते रौ। डाॅ. चंद्र सिंह चौहान द्वारा लेखी किताब ‘कुमाउनी भाषा के अभिलेख’ कुमाउनी भाषाक अभिलेखीय बिरासत पर एक सबन है ठुल सबूतक दस्तावेज कई जै सकीं। डाॅ. चंद्र सिंह चौहान ज्यूक क्षेत्रीय पुरातत्व इकाई में काम करणक दशकों लंब अनुभव छु। उनूल आपणि किताब में राज भाषाक रूप में कुमाउनी कैं तीन वर्गों में बांटि रौ-
1. पूर्व राजभाषा युग
2. राजभाषा युग (989-1790 ई.)
3. जनबोलिक युग (1790- 2008 वर्तमान)

    अभिलेखों द्वारा जुटाई जानकारीक हिसाबल कुमाउनी भाषाक बिकास करीब 1000 ई. बै 1790 ई. तक अभिलेखीय रूप में हुनै रौ। ऐल तक कुमाउनी भाषाक सबन है पैंल ऐतिहासिक दस्तावेज 989 ई. (शक संवत 911) मिली छु। य ताम्रपत्र छु जो चंद शासक थोर अभय चंदक छु। दस पंक्ति में लेखी य ताम्रपत्रक आकार 28x18 सेमी. और 573 ग्राम यैक भार छु।


( राजा थोर अभय चंदक (989 ई.) ताम्रपत्र, कुमाउनी भाषाक पैंल ताम्रपत्र मानी जां)

Kumauni language records

      य ताम्रपत्र ‘सुई ताम्रपत्र’ नामल जाणी जां, जो चंपावताक श्री रेवाधर जुकरिया ज्यूक पास मिलौ।  य ताम्रपत्र यसिक लेखि रौ-

श्री महाराजा अभय चंद वीजयराज्ये अभै भाक
स्वस्ति श्री शोक 911 मासे ज्येष्ठ वदी 30 सोमे श्री महाराजा
थोरहत अभयचंद ले गडसारीयां ज्यु 1 संकल्पष्ठ
मी दत्त करी दीनी सैच भाट गडसरा ले पाई चुलौदा मथा
बसनाती माजा गलसम मै भूमि पाई गडिली पेटीली ना
ठ नठालि सर्ग की ढीड़ी पताल की नीधी सर्वकर अकरी
सर्व दोष नीर्दोषः अत्र साकी हरू जोईसी मुसु मौनी
हर बोरा बंसीधर वरीसूल भाट अकसमाद पैसा 1 लोक
मसीक टका 12 चैकोडाल सर्मनी आद माई का लीखीतं
वरू जोईसी शुभं स्वदत्तां परदत्तां वां यो हरंती वसुंधरा षष्टी
(पछिल तरफ लेखि रौ)
वर्ष सहस्रायां विष्टायां जायते क्रमी

इमें कै रौ- ‘‘श्री महाराजा अभयचंदक विजय राज्य में अभय हिस्स। शक संवत 911 (989 ई.) जेठ मासक तीस पैट सोमवार हुं महाराजा थोरचंद (अभयचंद) ल गडसेरा में एक ज्यूला भूमि संकल्प करि बेर दान दे, गडसेरा गौंक सैच भाटल पै। य भूमि गलसम नामक स्थान में चुनौदाक माथि तथा बसनाती बीच में छु। य भूमि में ऐल तक गडिली, पेटीली, नाठ नठाली, सर्गकि  सिढ़ि, पातालकि निधि आदि रिवाजों में राज्यक अधिकार छी, ऐल इन सबै राजकीय बंधनों कैं खतम करि य भूमि कैं राजकरों बै मुक्ति प्रदान करी गो। य भूमिक साक्षी छन- हरू जोशी, मुसू मौनी, हर बोरा, बंशीधर और वरीसूल भाट। य लिखा-पढ़ी लिजी नौ पैंस और बार टका खर्च लिई गो। य ताम्रपत्र वरू जोशील लेखौ। आपुण द्वारा दिई भूमि कैं या क्वे रा्ज द्वारा दिई भूमि कैं जो लुटि ल्यूं उकैं अघिल जनम में हजारों सालों तक मलक किड़ बणि बेर रूण पड़ौं।’’        

Kumauni inscription

यां य देखण लैक छु कि चंद शासकों में ‘अभय चंद’ नामाक द्वी राजोंक ताम्रपत्र मिली छन। अभय चंद (1360-1378 ई.) 1374 ई. क ताम्रपत्र अल्माड़ाक ब्यौपारि श्री बद्री विशाल अग्रवालक पास इग्यार पंक्तियोंक छु। डाॅ. चौहान ज्यूल लेखि रौ कि थोर अभय चंदक लोहाघाट ताम्रपत्र और अभय चंदक अल्मोड़ा ताम्रपत्र कैं अलग- अलग रा्ज समझण चैं किलैकी थोर अभय चंदक नामक अघिल जै परकारल ‘थोर’ शब्दक प्रयोग है रौ यस अल्माड़क ताम्रपत्र में अभय चंदक चैकुनी, मानेश्वर और बालेश्वर लेखों में न्हैं। अभय चंदक सबै लेखों में ‘राज’ उपाधि छु जबकि थोर अभय चंद कैं ‘महाराज’ कई जै रौ। यै पर सबन है ठुल प्रमाण राजा ज्ञानचंदक ‘खरक कार्की ताम्रपत्र’ (1384 ई.) में अभय चंद कैं कल्याण चंदक च्यल और त्रिलोक चंदक नाति और ज्ञान चंदक भै बतै रौ। काशीपुर, बत्यूली और चिटगलगांव बै मिली खस राजाओंक नाम य तथ्य कैं प्रमाणित करनी कि चंद वंश में शुरू में चंपावत में कुमाउनी भाषा चलन में छी। यों सबै नाम कुमाउनी में छन। बागेश्वर, पांडुकेश्वर और बोध गयाक अभिलेखों बै साफ है जां कि देहरादून जिल्ल में कालसीक नजीक बैराटगढ़ बै ल्हिबेर नेपाल में डोटीगढ़ तक फैली कत्यूरी साम्राज्यकि राजभाषा संस्कृत छी। अशोक मल्लक 1276 ई. बोधगया लेख तक कत्यूरी शासक संस्कृत भाषाक प्रयोग करते रईं। (पेज-9)


डाॅ. चंद्र सिंह चौहान ज्यू कूनी कि चंद वंशक राजा ज्ञानचंद (1379-1420 ई.) शासन काल में कुमाउनी कैं पुर सफलता मिलै। यै है पैंली राज भाषाक रूप में लंब बखत तक संस्कृत और कुमाउनी बीच में संघर्ष चलते रौ। कत्यूरी शासकोंक लेखों में जो संस्कृतक परयोग है रौ उ भौत कठिन छु। कुमाउनी भाषा में पाई जानी लेखों में राजा तिलकपालक ‘बचकोट ताम्रपत्र’ (1424 ई.) और राजा संसारमलक ‘बत्यूली ताम्रपत्र’ (1442 ई.) विशेष उल्लेख करणी छन। चंद राजोंक अभिलेखन में चार टाइपाक उपाधि लेखी छन- 
   ‘महाराज’, ‘राजा’, ‘राजाधिराज’, ‘महाराजाधिराज’। 


       चंद राजोंक कएक अभिलेख अल्माड़ बागेश्वर, पिथौरागढ, चंपावत जिल्लों में मिली छन। जो ताम्रपत्र, स्तंभ लेख, मंदिर लेख, शिला लेख, राजस्व बही आदि मिल रई। जनूमें अल्माड़क नजीक ढौरा गौं में घुम्रेश्वर महादेव मंदिर में लक्ष्मी-नारायण मंदिरकि प्रतिमा में राजा ज्ञानचंदक शाके 1319 लेख छु, बागेश्वर जिल्लक कत्यूर घाटी में बैजनाथ मंदिर में 1330 ई. क जयचंद और ब्रह्म पालक शिलालेख आदि उल्लेख लैक छन। 


(चंद शासक महाराजाधिराज बाज बहादुर चंदक ताम्रपत्र शाके 1586 )

Kumauni language lettering

    चंद कालीन ताम्रपत्र, राजस्व बहि, वंशावली समेत हौर लै खास चीज पिथौरागढ़ और चंपावताक कएक मैंसोंक पास छन। जनूमें श्री रेवाधर जुकरिया ज्यू (लोहाघाट) पास थोर अभयचंदक 989 ई. ताम्रपत्र, डीडीहाटाक ‘बत्यूली’ गौंक श्री देवीदत्त जोशी पास राजा नीरैपाल और संसारमल रा्जक ताम्रपत्र, बाज बहादुर चंद द्वारा दी गई चांदिक कलम-दवात, गोरखोंक सनदक दगाड़ चंदोंक पांच राजस्व बहि, खरककार्की (चंपावत) गौंक डाॅ. कीर्तिबल्लभ शक्टा ज्यूक पास राजा ज्ञानचंदक (शाके 1306) ताम्रपत्र, श्री पद्मादत्त पांडे गंगनौला (लोहाघाट) पास राजा नरचंदक (संवत 1320 ई.) ताम्रपत्र, छान गौंक श्री हरीश चंद्र पांडेक संकलन में बाजबहादुर चंदक ताम्रपत्र, भारती चंदक ‘पसेला ताम्रपत्र’ श्री लक्ष्मी दत्त पांडे ज्यूक पास, किम्वाड़ी (लोहाघाट) में ज्ञानचंदक ताम्रपत्र श्री मदन मोहन पचैली ज्यूक पास, बेरीनागक नजीक किरौली गौंक श्री पद्मा दत्त पंतक पास आनंद चंद रजबारक 1597 ई. ताम्रपत्र, पिथौरागढ़ शहरक नजीक बड़ालू गौंक देव सिंह चंदक पास राजा लक्ष्मण चंदक और यई गौंक डाॅ. मंजुला चंदक पास राजा उद्योत चंदक 1683 ई. ताम्रपत्र छु। विजय चंदक 1623 ई. क एक पत्र जाखिनी गौंक श्री कमलेश महरक पास, 1772 ई. राजा दीप चंदक ताम्रपत्र गंगोलीहाटक श्री शंकर सिंह रावलक पास छु, अस्कोटक नजीक बचकुड़ी (बरम) गौं में उद्योत चंदक 1679 ई. और जगतचंदक 1709 ई. ताम्रपत्र, राजा मोहन चंदक 1778 ई. क लेख लै लोगनक पास सुरक्षित छन। य हिसाबल कुमाउनी भाषाक अभिलेख 989 ई. बटी 1790 ई. जब तक चंद राजोंल कुमू में राज करौ तब तकाक अभिलेख मिलनी। 


(चंद शासक राजा दीप चंद्रक ताम्र पत्र शाके 1671) 


 
( राजा अभय चंदक स्तंभ लेख )


      1790 ई. में कुमू कैं गोरखोंल कब्जै ल्हे। यों अभिलेखोंल अंदाज लगाई जै सकीं कि चंद कालीन कुमाउनी और आजकि कुमाउनी भाषा में भौत फरक छु। यकैं भाषाक बिकास क्रम में देखी जाण चैं।  


( राजा ज्ञान चंद का ताम्रपत्र शाके 1334 )



 (कुमाऊं के चंद शासकों की चंद कालीन बहि) 

     ‘कुमाउनी भाषा के अभिलेख’ किताब कुमाउनी भाषाक अभिलेखीय स्वरूप कैं हमर सामणि ल्यूण में भौत ठुल सबूत छु। य कुमाउनी लिजी एक भौत जरूरी ऐतिहासिक काम छु। किलैकी इमें कुमाउनी भाषाक 989 ई. बटी 1790 ई. तकाक अभिलेख तो प्रकाश में आई रई दगाड़ै इमें कत्यूरी राजोंक, चंद राजोंक इतिहास कैं लै तथ्यों दगाड़ पेश करणकि कोशिश करी रै। कुमाऊं क्षेत्रक मध्यकालीन अस्पष्ट इतिहास कैं ब्यवस्थित तरीकल जाणन में लै य किताब कामकि छु।●●●
Archival heritage of Kumauni 

चित्र- प्रोफेसर डॉ. वीडीएस नेगी (अल्मोड़ा) कि शोध पुस्तक 'कुमाऊँ का आर्थिक व सामाजिक इतिहास' व डॉ. चंद्र सिंह चौहान (पिथौरागढ़) कि पुस्तक 'कुमाउनी भाषा के अभिलेख' से साभार

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