बिराणि माय : कहानीकार महेन्द्र ठकुराठी की कुमाउनी कहानी
महेन्द्र ठकुराठी
जनम - 2 अक्टूबर, 1964
निवासी - ग्राम-बड़ालू (धपौट)
जिला-पिथौरागढ़
छपी किताब:
●ठुलि बरयात (कुमाउनी कहानी संग्रह)
●हिमुलि परफाम (कुमाउनी कहानी संग्रह)
पुरस्कार: बहादुर बोरा ‘श्रीबंधु’ कुमाउनी कहानी पुरस्कार- 2014
मो.- 9568583401
रघुवरदत्त कैं लागो, जसी वीक खुटपन बै जमीन धँसि गै। आज सौरास बै वीक सा्व ऐ रौछी। हँसी-खुशी माहौल छी। परिवाराक सबै मैंस फसक-फराव और हँसि-मजाक करण रई भ्या। बात-बातों में सा्व यानी हंसादत्तल जब यो बता कि उनर गौं में बेवाई शकुंतला गंभीर हालत में छु और इलाजक लिजी उकैं दिल्ली सफदरजंग अस्पताल हुं ल्हिजै रई, त अफसोसल रघुवरक कान ठाड़ है ग्याय।
‘‘ओहो! के भौ शकुंतला कैं?’’ सोदियै बिगर उ नंै रै सक।
‘‘हुंछी के भिनज्यू, आपूंकैं मालुमै भय। नशाखोरील आज पहाड़क गोंनोंकि हालत बिगाड़ि बेर राखि है। शकुंतलाक घरवाव हरदेव हमेशा शराब पी बेर टल्ली हैरूं। स्यैणि-नानतिनोंकि क्वे फिकर नैं रुनि उकैं। स्यैणि बिचारिल थ्वड़ घरपनक ख्याल धरण हुं के कै दे, रीसल बणकाट हाणि बेर स्यैणिक दैण खुटै काटि दी वीलि।’’ हंसादत्तल नानी बात में पुरि दास्तान सुणै दी।
‘‘डाक्टरनक कूण छु कि उ बचि त जालि पर अघिलकि जिंदगी उकैं आब बैशाखियोंक सहारल बितूण पड़लि।’’
‘‘ओहो! रघुवरक मन दुखी है गय। पर वील आपण मनकि पीड़ कैं भैर जहार नैं हुण दे। वीक ध्यान हंसादत्तकि बातों है बेर हटि गोछी। किलैकी आब हंसादत्तल बातचीतक बिषय बदइ हैछी।
‘‘अछया नानतिनो, आब तुम आपण मा्म दगै फसक-फराव करौ। इनूबै क्वे भलि-भलि चीज सिखौ, मैं थ्वड़ देर आराम करि ल्यूं’’ कै बेर उ उठौ और सिद भितेर जै बेर आपण बिस्तर में पड़ि गोय। नीन औणकि त गुंजैश छी नंै, फिरि लै वील आँख बुजि ल्ही। आस्ते-आस्ते वीक दिलो-दिमागल उकैं आपण कभै नैं भुलीनेर गैल अतीतकि तरफ धकेलि दे। एक-एक करि बेर उ अतीतकि हरेक चीज वीक आँखनक अघाड़ि फिलमकि चार औण लागी।
जब उ इंटरमीडिएट फाइनल में पढ़नौछी, तब शकुंतला दसूं दर्ज में छी। दुवै एकै कौलेज में पढ़ण रई भ्या। दुवैनक गौं एकै दिशा उज्याण नजीक-नजीकै पन भ्या। यैक वील अकसर दुवैनकि मुलाकात होते रौनेर भै। यो इलाकपनकि चेलियों में शकुंतला सबूंहै जादे सिदि- सादि सुभावकि सादगी पसंद चेलि छी। खूब भलि बान, अकलमंद और तेज दिमाग वालि हुणक बावजूद उकैं थ्वाड़ लै घमंड नैं छी। घरपन बौज्यू और भै-बैणी दगड़ सब कामों में मधत करण, रोज रात्ती-ब्याव हुं स्वाध्याय करण, इमतानों में भा्ल नंबरोंल पास हुन और सबनक दगड़ भल ब्यौहार करण जा्स गुण वीमें बखूबी मौजूद छी।
शकुंतला बौज्यू घनानंद मात्र दर्जा चार तक पढ़ी-लेखी, गौंक एक गरीब बामण छी। थ्वाड़-भौत गाड़-खेत त छी पर ऊं सब हलियाक ऊपर निर्भर छी। आद्द नाज और साग-पात त जंगली जानवरै चट करि जानेर भ्या। भौत कम पढ़ी-लेखी हुणक वील पुरोहिताइक काम लै ऊं हल्क-फुल्कै करि पानेर भ्या। कुछेक जजमानोंक घरों में सराद, नवान, ना्न-ना्न पुज-पाठ और भगवती मंदिर में पंडागिरी करि बेर गुजर-बसर चलि रौछी। बामणि ज्यू घरवाव समेत द्वी चेलियां और एक च्यल कैं डड़याते हुए छाड़ि बेर ज्वान्यू उमर मेंई टीबीक चपेट में औणक वील सरगवासी है गई भ्या। कुल मिलै बेर घरपनकि पुरि जिम्मेवारीक ब्वज शकुंतलाक ऊपर ऐ गोछी। तीनै भै-बैणी चुल-चैक और खेति-पातिक काम त करनेरै भ्या, दगड़ै शकुंतला गों-पड़ौसक इस्कूली नानतिनों कैं ट्यूशन लै पढ़ै ल्हिनेर भै। खालि टैम पर गौं-पड़ौसक नानतिनों लिजी टोपि और बनीन लै बुणि दिछी। गाज्यौ और फसल काटणक मौसम में उ पड़ौसियोंकि सार सारण कभै नैं भुलनेर भै। गौं-पड़ौसक लोग लत्त-कपाड़ और इस्कूली फीस हुं इनूकैं मधत करि दिनेर भ्या।
गुण और बिचारों में काफी-कुछ मेल हुणक वील रघुवर और शकुंतलाक बीच अपण्याट जसि है गई भै। पर पढ़न-लेखण, इमतान, प्रतियोगिता और गौं-घरक हाल-चालों बै अलावा हौर क्वे बिषय पर इनरि बातचीत नैं हुनेर भै। सांस्कृतिक कार्यक्रम, खेलकूद और वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में द्विए भाग ल्हिनेर भ्या। शकुंतलाक गव में भौत मिठास छी। लोक संगीत और भक्ति संगीत में वीकि भौत रूचि छी। उ मंच में जब गैनेर भै त दिल लगै बेर गैनेर भै। मंदिरों में पुज-पाठ और ब्या-काजों मौक पर वीकि मिठि अवाज आफी-आफी पछयाणी जानेर भै।
शकुंतलाक सितिल सुभाव और नेक दिली अंताजल रघुवरदत्तक मन में भौत असर करि राखछी। कएक बखत वील लोगोंक मुख बै सुणौ- ‘‘नक भल मैंसक लच्छण नानछना बैई देखी जानी। आपणि लगन और भाल गुणोंकि तागतल शकुंतला एक दिन यो इलाकक नौं रोशन करलि।’’
पर आदिमि सोचँछ कुछ और हुंछ कुछ औरै। शकुंतलाक परिवार में अचाणचक ऐ पड़ी एक गर्दिशल गौं वालोंकि यो सोच कैं फलीभूत नैं हुण दे। घनानंद कैं अस्थमा है पड़ौ और बाद-बाद में उनूकैं भौत तकलीफ हुण लागी। यैक वील शकुंतलाकि पढ़ै-लेखै पर बिरेक लागि गय। इस्कूल जाण छाड़ि बेर उ बौज्यूकि स्यौ-टहल और दवै-पुड़ीक इंतजाम में रौण फैगै। वीकि यो मिहनत लै बेकार है पड़ी। बुड़ घनानंदल हमेशा लिजी यो संसार बै बिदा ल्ही ल्हे। एक गरीब बामण परिवारक ऊपर यो भौत ठुल बजरपात छी। शकुंतला और वीक द्विए भै-बैणी नानछनाई मुई ग्याय। उनर का्क घनश्याम गौं मेंई एक ना्न-ना्न चहा होटल चलै बेर गुजार करनौछी। इन नानतिनों कैं पावण और पढूण-लेखूणै थैं खर्चकि जिम्मेदारी उठ ै पाण उनर बस में लै नंै छी। शकुंतलाल सोचै, खुद त उ आब पढ़ि-लेखि नंै सक, कम से कम भै-बैणी कैं पढ़ै-लेखै बेर उनरि जिंदगी किलै नैं सँवारी जावौ। आब गौं वालनक गाड़-खेतन में उ पैंली है बेर जादा मिहनत करण लागी। आपण खेतन में वील साग-पात पैद करण शुरू करि दे।
गौं में रहते हुए शकुंतलाल आपणि जबरदस्त मिहनतल भौत भलि मिसाल पेश करी। भै-बैणी कैं पढूण-लेखूण में आपणि तरफ बै वील क्वे कोर-कसर नैं छोड़ि। घनानंद कैं गुजरी पांच साल बिति ग्याय। इंटर पास करिया बाद नानि बैणि इंदु स्वास्थ्य विभाग में नर्सिंग टेनिङै लिजी छांटि ल्हिई गै। कांस भै हर्षू लै हाईस्कूल पास करि बेर फौज में भर्ती है गय। एकदम कमजोर माली हालात बै गुजरण रई परिवार कैं गरीबी बै निजात दिलूणै थैं करी गई शकुंतलाकि कोशिशों बा्र में पुर इलाक मंे चर्चा हुनेर भै। शकुंतलाकि इच्छा छी कि पैंली इंदु और हर्षू कैं बेवै दिई जावौ, पर का्क घनश्याम और गौं-पड़ौसक लोगोंल राय दे कि पैंली जेठि चेलि कैं बेऊणै सई हुंछ। घनश्यामल यो लै भरौस दे कि तीनै भै-बैणी जब तक चाल, घर और खेति-पातिकि देखरेख ऊं आफी करि द्याल।
रघुवरदत्त लै आ्ब बीए पास करिया बाद बीटीसी टैनिङ ल्हीबेर एक गौं में अध्यापक नियुक्त है गोछी। नौकरी में लागियां बाद वीक इज-बौज्यू लै ब्या करणै थैं वीक ऊपर जोर डालण लागी। तबै उकैं शकुंतलाक ख्याल आ। छुट्टी बितूणै थैं घर औण पर उकैं शकुंतलाक घरक सबै हालचाल सुणन हुं मिलि जांछी। वील सोचै कि अगर वी पर ब्या लिजी जोर पड़नै रौ त शकुंतलाक घर जै बेर जिगर किलै नैं छेड़ी जावौ।
रघुवरल घनश्यामकि दुकान में जै बेर वीक सामणि जब शकुंतला दगै ब्या करणै थैं इच्छा जाहिर करी त घनश्यामल बता कि शकुंतलाक लगन क्वे हौरक दगड़ द्वी दिन पैंली तय है चुकि गो।
‘‘अरे मासाप! अगर आपूं तीन दिन पैंली लै आई हुना त बात बनि सकछी। हमूकैं त चेलि आपूं दगड़ बेऊन में जादे खुशी छी। पर आब हम दुसर कैं दिई बचन बिल्कुल नंै टोड़ि सकना। माफी चानू महाराज।’’ कै बेर घनश्यामल रघुवर कैं दुकान में बैई लौटै दे।
घर हुं वापिस औण बखत एक बटवल रघुवर कैं बता कि घनश्याम और लोकमणि में भौत गैलि दोस्ती छु। जैक वील यो दुवैनल लोक मणिक च्यल दगै शकुंतलाक ब्या करणै थैं एका करि दे। यो दोस्तीक चलते लोकमणिल घनश्यामक ऊपर दैज ल्हिण हुं लै क्वे जोर नैं दे। शकुंतलाक घर में आजि यास हालात नंै है रछी कि यो लोग भारी-भरकम दैजकि भरपै करि सकन। वील इनूकैं राय दे कि ऊं आपणि सामर्थ मुताबिक जे दी सकनी, उ मंजूर होल। शकुंतला कैं लै यो बात पर पुरि संतुष्टि छी कि लोकमणिक च्यल हर देव उ दरमियान लैक वर, निब्र्यसनी और कमाऊ च्यलक रूप में पछयाणी जांछी। भाबरपन एक नगरपालिका औफिस में कलर्क छी उ। कम तनखा हुणक बावजूद भैरकि आमदनी खूब छी। ‘‘यास हालातन में घनश्यामल हरदेव दगै शकुंतलाक कन्यादान तय करि बेर भलै करौ।’’ यस सोचि बेर रघुवर मन कैं ढाढस देते हुए घर हुं लौटि आ।
शकुंतला हरदेव दगै बेवै दिई गै। संजोगल साल भरि बाद रघुवरक ब्या लै उई गों बै है पड़ौ, जां शकुंतलाक सौरास छी। आस्ते-आस्ते सब कुछ ठीक-ठाक हुण रौछी। रघुवर कैं भाल घरकि सुघड़ संस्कारवान और पढ़ी-लेखी घरवाइ मिलि गई भै। कुछ सालों में वीक एक च्यल और चेलि पैद भई। शकुंतला और हरदेवक घर डेढ़-डेढ़ सालोंक फासलाल तीन चेलियोंल जनम ल्हे। पुर पविार कैं च्यलक भौत इंतजार छी, पर उनरि इच्छा पुरि नंै है सकि। उनरि यो इच्छा तब तक बढ़ते रै। जब तक उनर घर तीन चेलियोंल आजि जनम ल्ही ल्हे। घर भितेर छै चेलियों कैं देखि बेर परिवारक माहौल अशांत हुण भैटौ। भौत भलि बान और हुस्यार शकुंतला कैं जो परिवार आपण आँखन में भैटै राखछी, उकैंई आब उ फुटी आँखनल लै भलि नैं लागनेर भै। आब वीक ऊपर तमाम किसमल ता्न कसीण लागि ग्याय। घरवाइक ऊपर ज्यान छिड़कनेर वा्ल हरदेव आब वी बटी दूर-दूर रौण लागी। आस्ते-आस्ते उकैं शराबकि लत पड़ि गै और नौकरी छोड़ि बेर गों ऐ गय।
हालांकि शकुंतला पैंली बैई घरवालों कैं समझूण लागी भै कि च्यल-चेलि में फर्क नैं हुन। पर वीकि बातोंल कै पर क्वे असर नैं पड़। गौंक अलग-अलग लोग अलग-अलग हिदैत दिण लागि ग्याय। इनर कूण पर हरदेवक परिवार देवि-द्याप्त, भूत-प्रेत और तंत्र-मंत्र जा्स टोटकोंक पछिल अलजी गय। ठीक-ठाक नौकरी कैं छोड़ि बेर घर आई हरदेव आब पियक्कड़ और अदपगाल है गय। च्यल हासिल करणक लालच में बेमतलबकि जुगत भिड़ौन देखि बेर शकुंतलाक मन लै दुखी रौण लागि गय। यो सब कैं किस्मतक खेल समझि बेर उ मन बुझै ल्हिनेर भै। खूब मान-बिनती करी गै, पुज-पाठ करी गय, बकारनकि बलि चढ़ाई गै। आखिर ढाकक तीनै पात। घर-परिवार, अड़ौस-पड़ौस और गों में रौनेर लोग इन हालातोंक लिजी शकुंतला कैंई कसूरवार बतूनेर भ्या। हालांकि यो इलाक में सुल्ट नजरियल सोचनेर लोग लै भौत छी, पर उनर बिचारोंकि कदर क्वे नंै करनेर भय। गौं-इलाकों में यास किसमक मामिलों में जतुक मूख उतुकै बात हुनेरै छन। सब लोग बंश-ब्यल अघिलकै नंै बढ़न और दैजकि डर कैं तूल दिनेर भ्या।
लोकमणि और उनरि बुड़ि बामणिल कभै सोची लै नैं भै कि बुड़याकाव में उनूकैं यास दिन लै देखण पड़ाल। एकलौत च्यलकि यसि हालत क्वे लै इज-बाब नैं देखण चान। योई दुखक रहते बुड़ लोकमणि लै एक दिन परलोक हुं न्है ग्याय। बामणि ज्यू थ्वड़ मजबूत दिल वालि छी। उनूकैं शकुंतलाकि इन बातों पर पुर भरोस छी कि यो सृष्टि चेलियों कै जरियल चली हुई छु। इनूकैं भाल ढङल पाली-पोषी जावौ त यो इज-बाब और सौरासियोंक नौं रोशन करि सकनी। सिर्फ दैज दिणक दुखक बार में सोचि बेर उनर मन दुखी रौंछी। यो बात कैं सोचि बेर त खुद शकुंतला लै परेशान है जानेर भै। किलैकी बखत दिन पर दिन बदईते जाणौछी। दैज दिणकि परंपरा कैं इज्जत, शान और मान-मर्यादा लिजी भल समझी जाणौछी। उ गौं में जादे चेेलियों वा्ल हौर परिवारों कैं लै देखणैछि, जनर मुख में हमेशा अन्यारपट है रौंछी।
पर निराश है बेर जिंदगी कैं नीरस बणून लै सई नैं हुन। बुड़ि बामणि ज्यू और शकुंतलाल हरदेव कैं समझूण हुं भौत कोशिश करी। उकैं आपणि नौकरी दुबारा शुरू करण हुं सला दे,पर वील एक नैं सुणि। वीक दिमाग चंचल होते जाणौछी।
यो सब त रघुवरदत्त कैं मालुम छी, पर उकैं यो भरौस बिल्कुल नंै छी कि हरदेव आपणि घरवाइक खुट में बणकाट हाणन जस जुलम करि भैटल। वीक आँखों अघाड़ि रूनी-डड़यूनी शकुंतलाक खुन्यौव हई खुट देखीण लागि गय। वीक मन लै डाड़ मचूण हुं करण रौछी पर फिरि ख्याल आ कि मैं त मर्द छूं, मैंल हिकमत धरण चैंछ। उकैं यस लागनौछी जसी हरदेवल बणकाट शकुंतला नैं बल्कि वीक आपण खुट में हाणी हुन्यल।
‘‘बौज्यू! मा्म जाण हुं बटी गईं। ऊं आपूं कैंई याद करनई।’’ पलंगक नजीक ऐ बेर बुलाणी आपण च्यल राहुलकि अवाज सुणि बेर रघुवरक ध्यान टुटि पड़ौ।
‘‘ठीक छु च्यला, तू हिट मैं औणयूं’’ वील जबाब दे। अङौछल मुख पोछौ और राहुलक पछिल-पछिल न्है गय। हंसादत्त वीकै इंतजार में भैटि रौछी।
‘‘अरे हंसी, हम त चाणौछियां कि तू कुछेक दिन यां रौणै कै बेर, पर तू माननै नि रए त क्वे बात नैं, पर एक बात याद राखिए, जब शकुंतला अस्पताल बै घर ऐ जालि त मैंकैं जरूर खबर दिए। अगर इलाज में जादे खर्च लागनेर हो्ल तो बताए। आपणि सामर्थ मुताबिक मधत मैं लै करि द्यूंल।’’ वील एकै सांस में हंसादत्त थैं कौ।
‘‘बिल्कुल भिना, मैं आपूंकैं बतै द्यंूल। जतुक है सकल मैं लै उनूकैं मधत करूंल। आपूं बेफिकर रौ। मैंसै मैंसक काम औंछ’’ हंसादत्तल दिलासा दे।
बिदा ल्हीबेर हंसादत्त आपण गौं हुं न्है गय। रघुवर अछयालन गों में ऐ बेर गरमीकि छुट्टी बितूणौछी। वी दगड़ भेटघाट करणक उपरै हंसादत्त आज रात्तै यां ऐ पुजी। शकुंतलाक ऊपर आई गर्दिशोंक बार में सुणि बेर रघुवरक मन भौत बेचैन छी। हालांकि शकुंतला दगै वीकि क्वे रिश्तेदारी नंै छी, पर विद्यार्थी जीवन दगै जुड़िया तमाम लोग जिंदगी भरि याद आते रौनी। फिरि शकुंतलाल वीक दिल भितेर पत्त नैं किलै आपण लिजी खास जा्ग बणै हैछी।
एक हफ्त बाद रघुवर कैं हंसादत्तकि तरफ बै खबर मिली कि शकुंतला अस्पताल बटी डिस्चार्ज है बेर घर ऐगै और पैंलीकि बनिस्बत काफी ठीक-ठाक छु। यस सुणतेई वील बजार जै बेर आपण बैंक खा्त बै कुछ डबल निकाली और सपरिवार सौरास उज्याण हिटि दे।
एकै गौं में हुणक बावजूद शकुंतलाक घर रघुवरक सौरास बै तकरीबन द्वी किलोमीटर दूर छी। पैंल दिन उ सौरासै में रूकौ और दुसार दिन रात्तै स्यैणि-नानतिनों कैं वांई छोड़ि बेर शकुंतला घर उज्याण न्है गय। हर्षू और इंदु लै छुट्टी ल्ही बेर घर आई भ्या। पत्त चलौ कि यो द्विए भै-बैणिल पुर जतनल दिदिक इलाज करा और डबल खर्च करण में क्वे कंजूसी नैं कर।
इतुक ठुल गर्दिशक बखत में रघुवर कैं भौत सालों बाद आपण सामणि देखि बेर खाट में पड़ि रई शकुंतला झिटघड़िकि थैं आपण पुर दुख कैं भुलि जसि गै।
‘‘ओहो रघू, कतुक अरसी छौ तुम! म्यर पढ़ै छोड़ियां बाद तुमूल मैंकैं एक दिन लै आपण मुख नंै देखाय’’ वीक मुख बै सिदै निकलि पड़ौ।
‘‘नैं शक्कू, तसि बात न्हा, दरसल मैं चाहते हुए लै त्यर दगड़ भेट करण हुं मौक नंै बणै सकी। पर आज बिपत्तिक बखत मैं त्यार सामणि छूं और तब तक मैं तेरि मधत करण चां, जब तक त्यार घर अमन-चैन वापिस नैं ऐ जा्न।’’ रघुवरल लै दिलकि बात खुलि बेर सामणि धरि दे।
‘‘अगर का्क ज्यूल सई बखत पर मैंकैं सब कुछ सांचि-सांचि बतै दिई हुन त मैंकैं आज यास दिन नैं देखण पड़न। मैंकैं त ब्या हइयां बाद पत्त चलौ कि तुमूल उनर सामणि म्यर दगड़ ब्या करण हुं इच्छा जाहिर करी। मैंल आपण बैग कैं हमेशा भगवान मानौ, पर उनूल मैंकैं खूब जलील करौ। शराब पी बेर खूब मारपीट करी, पर मैंल कभै आपण मुख नैं खोल।’’ एकै सांस में भड़ास निकालि बेर शकुंतला जोर-जोरलि डाड़ मारण फैगै।
‘‘आपण दिल कमजोर न कर शक्कू। जे हुण छी उ है गो, आब अघिलक लिजी भल सोचै। भगवानकि मर्जी यसी हुनेलि। जिंदगी में सुख-दुख लागिए रौं। तू आपणि दवै-पुड़ी करते रौ। अगर क्वे अड़चन आलि त बेझिझक म्यर लिजी खबर भेजिए। जां तक है सकल पुरि मधत करूंल। उसिकै लै मैं आइंदा यां आते रौंल। म्यर मन में एक बात छु। तू यो गोंकि चेलियों कैं अघिल बढूनहुं ‘नई पहल’ नामकि एक संस्था चलाली। सरकारि करमचारि हुणक वील मैं यो काम में पुरि भागीदारी त नैं निभै सकनू। पर मैं आपणि तरफ बै मार्गदर्शन और माली मधत करण में क्वे कसर नैं छोड़ूं। मैंकैं पुर भरौस छु कि तू एक दिन यो संस्था कैं भौत मलि पुजाली।’’ रघुवरकि इन बातों कैं सुणि बेर शकंुतलाक मन उछासल भरीण लागौ।
थ्वाड़ै देर में हंसादत्त लै यां ऐ पुजौ। रघुवरक कूण पर वील गौं-पड़ौसक सब बालिग स्यैणि-बैगों कैं हरदेवक घर थैं बुला और सभापति ज्यूकि अध्यक्षता में एक खास मीटिंग भैटा। हौर दिनोंकि चार हरदेव आज लै घर बै नदारद छी पर वील आज शराब नंै पी राखी भै। सैत उकैं घर थैं खास पौणौक औणकि भनक लागि गैछि। उकैं लै घर बुलै ल्हिई गोय। सबूंक सामणि उकैं यो बातक लिजी कसम खवाई गै कि आइंदा उ शराब नैं पी, परिवार में झकड़ नंै कर, चेलियों कैं पावण-पढूनै ऊपर मिहनत करल और दुबारा नौकरी में जा्ल।
यो बैठक में सबूंकि रजामंदील ‘नई पहल’ नामकि स्वयंसेवी संस्था गठित करी गै, जैकि अध्यक्ष शकुंतला कैं बणाई गोय। रघुवरल लोगों कैं भरौस दे कि संस्था लिजी वीक पुर संरक्षण रौल। रजिस्ट्रेशन करूण और कएक सरकारि, गैर सरकारि श्रोतों बै आर्थिक मधत करूणकि जिम्मेवारी वीकि रौलि। संस्था द्वारा चेलियों कैं पढून-लेखून, उनूकैं आपण खुटन में ठा्ड़ हुण सिखून और गरीब परिवारोंकि चेलियोंक कन्यादान करण हुं पुरि मधत करी जालि। रघुवरल कौ कि संस्था पदाधिकारियों लिजी टैनिङकि पुरि ब्यवस्था करी जालि, ताकि काम सई ढङल है सकौ।यैक दगड़ै बैठक में रघुवरकि तरफ बै इकावन हजार और हंसादत्तकि तरफ बै पच्चीस हजार रूपैंकि मधत शकुंतलाक परिवार कैं दिई गै।
एक सरकारि शिक्षककि यो नई पहल कैं देखि बेर पुर गौं में खुशीकि लहर दौड़ि पड़ी। शकुंतलाक परिवार में आज लंब टैम बटी हँसी-खुशीक माहौल देखण में औनौछी।●●●
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