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जनवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मंजू आर साह ज्यूक ‘पिरूल आर्ट’

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  हमर पहाड़ पुरा्ण जमान बटी हुनरक मामिल में सेठ रई छु, हुनरमंदोंकि यां कभै क्वे लै क्षेत्र में कमी नि रइ। हस्तशिल्प क्षेत्र में यसै एक नाम छु मंजू आर साह । ऊं सव (चीड़) क बोटक ‘ पिरूल ’ कैं ल्हिबेर कलाकारी करनी। कलाकार तो ऊं ऐपण व मेहंदीक लै छन पर पिरूल कलाकार रूप में समाज व देश में पछयाण छु। उनर पिरूलकि कलाकारी देख बेर अचंभ हुंछ कि पिरूलल इदुक शानदार कालाकरी करी जै सकी कै? Pirool art by Manju R Sah .  पिरूल आर्ट पर काम करणै लिजी उनूकैं सम्मान लै मिल रई। पिरूल आर्ट पर उनूल कार्यशाला, आॅनलाइन ट्रेनिंग लै दिई छन। पिरूल आर्ट दगडै़ ऊं ऐपण कला इस्कूली नानू व पहाड़ाक स्यैणियों कैं सिखूनी, दगड़ै पिरूल आर्ट कैं रूजगारक रूप में लै बदलनई।  उनर जनम 09 अगस्त 1984 हुं बागेश्वर जिल्लक असों (कपकोट) गौं में भौ। नानछना बै उनर मन कला और रचनात्मक कामों में लागछी। पिरूल आर्ट बणूणकि सीप उनूल आपणि कैंजै चेलि बटी सिखौ। आपण कलाक श्रेय ऊं आपण परवार, रिश्तदार और गुरूओं कैं दिनी। करीब आठ-दस सालों बटी ऊं कलाक क्षेत्र में छा्व छन। ‘पिरूल आर्ट’ में पछयाण दिलूनक श्रेय ऊं हल्द्वाणि निवासी शिक्षक गौरीशंक...

उत्तराखंडकि झांकी कैं मिलौ तिसर पुरस्कार

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         २६ जनवरी २०२१ हुं ७२ ऊं गणतंत्र दिवसक मौक पर राजधानी दिल्ली क राजपथ में हुणी परेड में य साल उत्तराखंडकि झांकी कैं तिसर पुरस्कार मिलौ। परेड में अलीबेर ३२ झांकी शामिल छी। १७ झांकी राज्य और केन्द्रशासित प्रदेशोंक छी, जनूमें उत्तराखंडकि झांकी कैं तिसर पुरस्कार मिलौ। पैंल पुरस्कार उत्तर प्रदेश व दुसर पुरस्कार त्रिपुरा  झांकी कैं मिलौ। उत्तराखंडकि झांकी में राज्य पशु कस्तूरी मृग, राज्य पक्षी मोनाल, प्रसिद्ध केदारनाथ धाम, आदिगुरू शंकराचार्य, कलाकार, संत, जोगि खाश छी दगड़ै झांकी दगै आठ कलाकार उत्तराखंडकि बेशभूषा में नाच करण राछी। केदारनाथ मंदिर और वीक आसपासक पुर इलाक २०१३ में आई बिनाशकारी आपदाल बिखरि गोछी जकैं पछां नए टुक बै तैय्यार करी गोछी।             उत्तराखंडकि झांकी में हल्द्वाणिक ‘आंचल कला केन्द्र’क ११ कलाकार शामिल छी जनूमें ४ छात्र एम.बी.पी.जी. कॉलेज हल्द्ववाणिक छी। बुधबारक दिन देर रात केन्द्रीय युवा मामले और खेल मंत्री किरण रिजिजू ल उत्तराखंडाक कलाकारों कैं सम्मानित करौ। य जाणण लैक छु कि परेड में शामिल झांकियोंक ...

‘कौ सुआ का्थ कौ’ कुमाउनी गद्य साहित्यकि ठुलि उपलब्धि

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    ••• समीक्षक-  ललित तुलेरा   उप संपादक- ‘ पहरू ’ कुमाउनी मासिक पत्रिका  मो.- 7055574602     कुमाउनीक नामी - गिरामी साहित्यकार मथुरादत्त मठपाल ज्यूक मिहनत व लगनल ‘‘ कौ सुआ, का्थ कौ ’’ किताब हमर हाथों में छु। जमें कुमाउनी भाषाक सन् 1938 बटी 2018 तक अस्सी साल में लेखी 100 कहानीकारोंक 100 कहानि एकबटयाई छन। कुमाउनी साहित्य में य पोथि बिशेष अहमियत धरणा दगड़ै कुमाउनीक ताकत लै बढूनै। कुमाउनी साहित्य संसार में ‘कौ सुआ, का्थ कौ’ जस ठुल संकलन कुमाउनी कैं देशाक हौर भाषाओं सामणि ठड़यूणक ठुल सबूत लै साबित हुणौ और उ सोच कैं मा्ट में मिलूणै जनर नजरों में कुमाउनी ह्याव है गेछी या के लै न्हैंती। बर्ष 2020 में छपी पैंल संस्करण में य ग्रंथ हिंदीक नामी कथाकार शैलेश मटियानी कैं समर्पित कर रौ। ग्रंथकि भूमिका लोक साहित्याक विद्वान डाॅ. प्रयाग जोशी द्वारा आपण अंदाज में लेखि  रै। ग्रंथक कबर फोटो युवा चित्रकार भास्कर भौर्याल द्वारा बणाई छु। कहानी शुरू करण है पैंली कहानीकारोंक कम शब्दों में परिचय लै दी रौ। ग्रंथ में शामिल 100 कहानियों में करीब 22 कहानि ‘अचल’ (कुमाउ...

दिल्ली में पैंल बार राष्ट्रीय स्तरक गढ़वाली, कुमाउनी, जौनसारी कवि सम्मेलन

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दिल्ली सरकार द्वारा बणाई ‘गढ़वाली, कुमाउनी एवं जौनसारी अकादमी’ द्वारा ७१ ऊं गणतंत्र दिवसक यादगारी में २० दिसंबर २०२१ हुं पैंल बार राष्ट्रीय कवि सम्मेलन उर्याई गो। य सम्मेलन नई दिल्ली में विष्णु दिगंबर मार्ग में मौजूद हिंदी भवन में ठैराई गोछी जो ब्याकार ४ बाज़ी बै शुरू भौ। सम्मेलनकि शुरवात वृंदगान गीत गै बेर और अकादमी अध्यक्ष व दिल्ली सरकार में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, अकादमी उपाध्यक्ष एम.एस. रावल, अकादमी सचिव डॉ. जीतराम भट्ट व कवियोंल दी जगै बेर करौ।  सम्मेलन में यों कवि रई शामिल -  सम्मेलन में गढ़वाली, कुमाउनी व जौनसारी भाषाक कवियोंल कविता पाठ करौ। गढ़वाली भाषाक कवि मदन डुकलान, दिनेश ध्यानी, पृथ्वी सिंह केदारखंडी, कुमाउनी भाषाक कवि पूरन चंद्र कांडपाल, दमयन्ती शर्मा, रमेश हितैषी व जौनसारी भाषाक कवि खजानदत्त जोशी ल कविता पाठ करौ। देशभक्ति व देशप्रेम संबंधी कविता सुणि बेर सुणनेर भौत खुशि भई। कोरोना बै जुड़ी नियमोंक लै पालन करी गो ।     राष्ट्रीय स्तरक य कवि सम्मेलन में मुख्य अतिथि दिल्ली सरकार में उप मुख्यमंत्री व अकादमी अध्मयक्ष मनीष सिसोदिया, व अध्यक्षता गढ़...

‘बिरत्वाइ’ : प्रयोगधर्मी कलमल लेखी नाटककि किताब

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        समीक्षक-  ललित तुलेरा  (बागेष्वर) कु माउनी नाटक संसार में ‘बिरत्वाइ’ शुरवाती किताबन में एक छु। य किताब रंगकर्मी, पत्रकार व कुमाउनी लेखवार नवीन बिष्ट ज्यूल लेखि रै, जो साल 2017 ई. में छपै। किताबकि भूमिका में कुमाउनी साहित्यकार श्याम सिंह कुटौला ल कलम चलै रै व कबर दिगविजय सिंह बिष्ट ल बणै रौ। अस्सी पेजकि य किताब में चार नाटक शामिल छन। उत्तराखंड कुमाऊँ में प्रचलित प्रसिद्ध चार लोक गाथा ‘बाला गोरिया ’, (पेज-1-6), ‘बैरागी कल्याण ’, (पेज 17-44), ‘ नारद मोह’ (पेज 45-56) ‘ राजुला मालूशाह ’ (पेज- 57-81) कैं गीत नाट्य रूप में पेश कर रौ। बिष्ट ज्यू माननी कि लोक गाथाओं कैं ज्यून धरण और लोकप्रिय बणूनै लिजी उनर असली रूप कैं बणाई धरते हुए मर्यादा में रै बेर नई प्रयोग है सकनी, य सोच उनूल यों चार नाटकों में साकार करि रै। उनूल आपणि बुद्धि व कलम कौशलल नई रूप में पढ़नेरों (पाठकों) सामणि नाटकों कैं पसक री। इन नाटकोंकि खास बिशेषता य छु कि एक तो लोकगाथाओं कैं नाटक रूप में बणै बेर मंचन लैक बणै रौ यै और दुसरि य कि नाटक गद्य में ना बल्कि गीतात्मक व पद्य रूप में पेश कर...

क़ुली बेगार प्रथा कैं १०० साल पुर

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शिवदत्त पांडे ग्रा.-कफलनी, दन्या, अल्मोड़ा मो.- 8859784649     14 जनवरी 2021 हुं कुली बेगार आंदोलन कैं सौ साल पुर है गी। सन 1921 में मकर सङरांती दिन उत्तरैणी म्याल में बागेश्वर आई लोगनल बद्रीदत्त पांडे ज्यूक नेतृत्व में कुली बेगारक बिरोध करि बेर कुली बेगार रजिस्टरन कैं सरयू बगड़ में बगा दे और लोगनल आपणि एकता दिखै बेर अंग्रेजन कैं कुली बेगार प्रथा समाप्त करनै लिजी मजबूर कर दे। तब बटी पहाड़ा लोगना ख्वार माथ लागी कुली बेगार करनक कलंक मिटो। उत्तरैणी म्याला दिन यो इतिहासै घटना घटित हुना वील बागेश्वरक म्याव कैं ऐतिहासिक म्यावक दर्ज लै मिलौ। तब बटी हर साल उत्तरैणी म्याव हुं बागेश्वर में य इतिहासै घटना कें याद करी जां। जो लोगनल य म्याव में ब्रिटिश राजक खिलाफ कुली बेगार प्रथाक बिरोध करौ, उनर य साहस औनी वा्ल पीढ़ीनै लिजी बरदान साबित भो। आज ऊं साहसी लोग भले ही हमार बीच में न्हांतन पर उनर य साहस पीढ़ी दर पीढ़ीन तक याद करी जा्ल। उसिक तो बताई जां कि जब हमार पहाड़ में कत्यूरी, चंद और गोरखा राज छी तब ले कुली बेगार कराई जांछी। तब य बेगार क्रूर रूपल नि कराई जांछी। सन् 1815 बटी जब हमार पहाड़ में अंग्र...

कुमाउनी कहानी : ध्यूड़कोट

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देवकीनंदन भट्ट ‘मयंक’       तीनपानी, हल्द्वानी,  मो.-9917441019           भौत पैंली सन बासठकि चीनकि लड़ै समयकि बात छु। च्याली नामक 20-25 मवासक गौं छी। ऊ गौं में राम सिंह नामक एक नानि जोतक किसान आपुणि बुढ़ि इज दिगै रौंछी। राम सिंह भल मिलनसार आदतक लौंड हणक कारण गौं वा्ल उकैं प्यारल ‘रमी’ कौंछी। रमी जब 20-22 सालक है गोय तो वीक इजल भनारि गौंक एक भलि बान चेलि राधा दगै वीक ‘ब्या’ कर दी। राधा उज्याव मुखड़कि भलि गोरि फनार 17-18 बर्षकि लौंडि हइ। उ मैत बै दैज लै ठीक-ठाकै ल्याई हइ। गौंक सब लोग रमियकि इज हैंती कौनेर हाय- ‘रमिए इजा! ब्वारि के ल्याछै ‘सुनक टुकुड़’ ल्याछै। सार गौं-घरों में तेरि जसि देखण-चाण और छाव -छरपट ब्वारि आज तक कैकि नि आइ वे।’’ लोगों बै आपुणि ब्वारिक तारीफ सुण बेर रमियकि इज लै भौत खुशि है जनेर भै। ऊ ब्वारि कैं आपुणि चेलि है बेर लै भल माननेर भै। उकैं भल-भल खा्ण और पैरण हैं भा्ल-भा्ल लुकुड़ लै दिनेर भै। आपुणि तरफ बै रमिए इज ब्वारिक खूब थिताण-मिताण करनेर भै। रमी लै राधाक रूप-रंग और जवानी कैं देख बेर भौतै मायादार और मोहिल हई भै। ऊ आपुण...

कुमाउनी लोक कथा: हेड मास्टर ज्यूक पैजाम

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शेरसिंह मेहता ‘कुमाउनी’ जनम - 18-3-1928 ग्राम - मैचोड़ (डीनापानी), जिला- अल्मोड़ा छपी किताब - कुमाउनी व हिंदी में करीब एक दर्जन किताब छपी छन। कविता, कहानि, उपन्यास, गीत, भजन, कीर्तन सबै विधाओं में लेखि रखौ। भौत पुराणि बात छ। हमा्र इस्कूल में एक हेड मास्टर सैप छी। ऊ भौतै सात्विक, धार्मिक, ज्ञान-वान और सिद-सा्द मैंस भाय, चतुराई, चालबाजी और बेईमानी तौ ऊ जा्णनेरै नि भा्य। उनर पैराव कुर्त-धोति और द्विकली टोपि भय।  उतकांन हमा्र देश में अंग्रेजोंक राज छी। कांग्रेस पार्टी स्वराज आन्दोलन चलूनैंछि। कदिन-कदिनै स्वराजी नेता हमा्र इस्कूल में लै अई करछी। उनूँल हमा्र हेड मास्सैप थैं लै कय कि ग्वारन दगै डरणकि के बात न्हाँ। आपूं लै कभै-कभै खद्दराक कुर्त-पैजाम पैर ल्हिई करौ। हेड मास्टर ज्यूक दिल में बात बैठि गेइ। तनखा मिलतेई उनूंल खद्दरक पैजा्म सिणै ल्ही। मैंसनकि सा्मणि यो अधेड़ उमर में पैजाम पैरण में शरम जै लागि गेइ। कभै पैरियकै नि भै। पैजा्म कें चुप-चाप बगसन लुकै दी।  आस्ते-आस्ते हमा्र हेड मास्टर सैप लै कांग्रेस कार्यक्रमों में रुचि ल्हिण फैटि गछी। एक दिन खबर ऐ कि कांग्रेसाक ठुल-ठुल नेता इ...

ख्यातिनाम हिंदी कथाकार शैलेश मटियानी की मातृभाषा 'कुमाउनी' में लिखी कविता

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शैलेश मटियानी जनम- 14 अक्टूबर 1931 निधन- 24 अप्रेल 2001 जन्मस्थान- अल्मोड़ा (उत्तराखंड )  छपी किताब : 28 कहानी संग्रह,  7 लोक कथा संग्रह,  30 उपन्यास, 16 बाल साहित्य,  3 संस्मरण साहित्य समेत करीब एक सौ किताब।  •••        हिंदीक नामी कथाकार शैलेश मटियानी ज्यूकि मातृभाषा कुमाउनी छी । उनर जनम अल्मोड़ा जिल्ल में भौछी। उनरि अापणि मातृभाषा कुमाउनी में लेखी ‘ शिवहरी कैलाश बटी’  कविता   ‘ शिखरों के स्वर ’  किताब में संकलित छु।  शिवहरी कैलास बटी शिवहरी कैलास बटी ऐ गेछ पुकार हो, उठो ज्वानो हई जाओ लडै़ हूँ तैयार हो। जो चीन हुँणी हमूँल, भाई-भाई कौछ रे, वी हमरि छाती मणि बन्दूक धरनौछ रे, हिमाल में घुसि गेछ, दुश्मण की फौज रे, शांति-शांति कून-कूनै यस जुलुम भौछ रे। हाथ में थमून पड़ी गया हथियार हो, शिवहरी कैलास बटी ऐ गेछ पुकार हो। हाथ जै मिलाधें कौछी, चुली थमै देछ रे, चाऊ की चण्डाल चाँनी यसि फुटि रैछ रे, बानर कैं ठेकि देछी खै ल्हे यमें दै छ रे, दै ले फोक, ठेकि लै फोड़ि, यो जै भलि भै छ रे।। भलि कि बुरी, छाति में छुरी, यसो अत्याचार हो, शिवहरी ...

घुघुती त्यार बै जुड़ी एक लोक का्थ

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( चित्र: devbhoomi.xyz पेज बै )  काले कौव्वा काले!  घुघुती मावा खाले!! ले कौव्वा पूरी, मैं कैं दे सुनू छूरी। ले कौव्वा बड़, मैं कैं दे सुनू घ्वड़। काले कौव्वा काले!  घुघुती मावा खाले!! ले कौव्वा ढाल, मैं कैं दे सुनू थाल। ले कौव्वा लगड़, मैं कैं दे सुनू सगड़। काले कौव्वा काले!  घुघुती मावा खाले!! ००० ( चित्र: इंटरनेट बटी साभार )      रतन सिंह किरमोलिया गरूड़ (बागेश्वर )      माघक महैंण एक पैट मकर सङरांती दिन हुंछ यौ घुघुती त्यार। य दिन नानाकि है जैं बहार। ग्यूंक पिसूं और गूड़क पाग ओलि बेर बणाईं जानी घुघुत। यैक दगाड़ डमरु, हुड़ुक, ढाल, तलवार, दाड़िमाक् फूल और जाणि के के। दिन में घाम में सुकै बेर फिरि उं उलाई जानी गरम-गरम तेल में और बणाईं जां त्यार। त्यार में किसम-किसमाक् पकवान।  फिर नारीङाक् दाणा दगै गछ्याई जैं माव्। मा्व में घुघुतांक् दगाड़ि गछ्याईं जानी- ढाल-तलवार, हुड़ुक, डमरू, दाड़िमक फूल। माव् बणाई जानी च्यालांक, चेलियांक, देश, परदेश जाईंयांक लिजी। उनूँ नाति-नातिणां लिजी लै जो देश-परदेश में आ्पण मै-बाबों दगाड़ि छन और ब्यवाई चेलियांक और ...

‘क़ुली बेगार प्रथा’ पर कुमाउनी कवि ‘गौदा’ की’ लिखी कुमाउनी कविता

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     कुमाउनी कवि : गौरीदत्त पाण्डे ‘गौर्दा’   जन्म - अगस्त, 1872 ग्राम - पाटिया, अल्मोड़ा निधन - अक्टूबर, 1939 १. ‘गौर्दा’ का काव्य दर्शन   २. छोड़ो  गुलामी ख़िताब  ३. ECHOES FROM THE HILLS (गौर्दा की चुनी कविताएं और उनर अंग्रेजी अनुवाद। तीनों किताबों क संपादन - चारुचन्द्र पाण्डे।) ••• अंग्रेजोंक शासन में पैंली कुमाऊँ (उत्तराखंड) में ‘कुली बेगार’ प्रथा चली हुई छी। येक खिलाफ कुमाऊँ में जबरदस्त आंदोलन चलौ। कुमाऊँ केसरी बदरीदत्त पाण्डे ज्यूक नेतृत्व में 13 जनवरी, 1921 हुँ, बागेश्वर सरयू नदी बगड़ में एक विशाल सभा भैछ। उ सभा में  लोगनल आज बटी ‘कुली बेगार’ न करूँ कै, हाथ में सरयू पाणि ल्ही बेर कसम खै और पधान/ थोकदारोंल आ्पण-आ्पण गौंक कुली रजिस्टर सरयू में बगै दी। तब बटी कुमाऊँ में ‘कुली बेगार’ प्रथा बंद हैगे। येक बार में कुमाउनी कवि गौरीदत्त पाण्डे ‘गौर्दा’ ल एक कविता लेखी-  (चित्र: ‘उत्तराखंड में क़ुली बेगार प्रथा’ किताब बै )  कुली उतार मुल्क कुमाऊँ का सुणि लिया यारो,  झन दिया कुल्ली बेगार। चाहे पड़ी जा डंडै की मार।  झेल हुणी लै होव...